टैबलॉयड पत्रकारिता: नंबर और राजस्व ही असलियत है, बाकी सब माया है

बता दें कि टैबलॉयड पत्रकारिता में अपुष्ट और सनसनी फैलाने वाली खबरों को प्रकाशित किया जाता है.

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समाचार पत्रकरों की ब्रिकी बढ़ाने के लिए प्रसिद्ध शब्द ‘पीत पत्रकारिता’ का नया स्वरूप है ‘क्लिकबेट पत्रकारिता’. आज के समय में मीडिया संस्थानों को ज्यादा से ज्यादा नंबर पाने की चाह में खबर में क्या लिखा जा रहा है, उससे फर्क नहीं पड़ता, सिर्फ यह देखा जा रहा है कि कौन सी खबर कितने नंबर ला रही है. उसी के हिसाब से खबर को ‘अच्छा’ और ‘खराब’ माना जाता है.

हाल ही में मलाइका अरोड़ा को लेकर एक खबर कई डिजिटल संस्थानों में चलाई गई. खबर का स्तर हेडलाइन से समझा जा सकता है. न्यूज18 की हेडलाइन है,“मलाइका अरोड़ा ‘ब्रा’ पहने बिना घर से डॉगी को टहलाने निकलीं, तस्वीरें हो रही VIRAL”, कुछ इसी तरह की हेडलाइन जी न्यूज़ ने भी दी, “बिना ब्रा पहने ही Dogi को टहलाने निकली मलाइका अरोड़ा, लोगों ने उड़ाया मजाक, Photo Viral”. कई अन्य संस्थानों ने भी इस खबर को लिखा है. सबकी हेडलाइन लगभग एक जैसी ही है.

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बता दें कि न्यूज़18 की खबर की हेडलाइन सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद संस्थान ने अपनी हेडलाइन को बदल दिया. अब हेडलाइन हो गई है, “मलाइका अरोड़ा सुबह-सुबह अपने डॉगी को टहलाने निकलीं सड़क पर,अब हो रही हैं Troll”.

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हिंदी डिजिटल मीडिया में ‘लाइफस्टाइल’, ‘मनोरंजन’ दो ऐसे सेक्शन हैं, जिसमें सेक्स लाइफ,अभिनेत्री के कपड़े, किस अभिनेत्री के साथ रिलेशनशिप में कौन है, और भी कई तरह की खबरें छापी जाती हैं. मलाइका को लेकर जो खबर प्रकाशित की गईं, यह हिंदी पत्रकारिता में सामान्य बात हो गई है.

सवाल है कि इस तरह की खबर से कौन सी पत्रकारिता हो रही है? क्या होता है इन खबरों का सोर्स, क्या संस्थान का कैमरामैन या रिपोर्टर इन खबरों को देता है या एजेंसी?,आखिर इन खबरों को लिखने वाले पत्रकार की सोच क्या होती है? क्या संस्थान कर्मचारियों पर ज्यादा से ज्यादा नंबर लाने का दवाब बनाता है? और सबसे महत्वपूर्ण इस तरह की खबरों को प्रकाशित होने के लिए क्या संपादक अनुमति देते हैं?

इन खबरों को कैसे चुना जाता है?

मनोरंजन बीट में पांच साल से ज्यादा समय से काम करने वाले एक पत्रकार कहते है, “इन खबरों को ‘पैपराजी फोटोग्राफर्स, बॉलीवुड सेलिब्रिटी के आधिकारिक अकाउंट, मीम पेज या बॉलीवुड को फॉलो करने वाले पेज जैसे कि ‘वायरल भयानी’,‘इंसटेंट बॉलीवुड’ इन जगहों से लिया जाता है. कई बार खबरें एजेंसी के जरिए भी आती हैं लेकिन उसमें इस तरह की भाषा का उपयोग नहीं होता है जैसी आप वेबसाइट्स पर देखते हैं.”

पत्रकार आगे बताते हैं, “खबर बेचने के लिए ज्यादातर संस्थान ऐसे आकर्षक शब्दों का उपयोग करते हैं. इसलिए पहले की तरह ‘सेक्सी’, ‘बिकनी’, ‘वायरल फोटो’ या ‘वीडियो’ जैसे शब्दों का उपयोग कम हो गया है क्योंकि लोग अब ऐसे शब्दों से थक गए है लेकिन आप देखते हैं हेडलाइन को सेंसुअल किया जाता है.”

क्या संस्थान के रिपोर्टर इस तरह की खबरें देते हैं या फोटोग्राफर, इस पर वह कहते हैं,“पत्रकार इस तरह की खबरें नहीं देते क्योंकि डिजिटल में पत्रकार का टारगेट होता है खबर करने और नंबर लाने का, इसलिए वह खुद ही बॉलीवुड सेलिब्रिटी के अकाउंट को देखता है. अगर कोई विषय ट्रेंड हो रहा है तो उससे संबंधित खबर बना देते हैं. ज्यादातर ऐसा होता है कि किसी अभिनेता या अभिनेत्री के बारे में किसी दूसरे संस्थान में खबर छपती है तो उसी को दूसरे संस्थान में पत्रकार थोड़े बहुत बदलाव के साथ छाप देते हैं.”

मलाइका की जो खबर न्यूज18 पर प्रकाशित हुई है, वही खबर जी न्यूज़, न्यूज नेशन, प्रभासाक्षी जैसे संस्थानों में प्रकाशित हुई. न्यूज़लॉन्ड्री ने न्यूज18 में खबर लिखने वाली पत्रकार प्रतिभा राय को फोन किया, लेकिन उन्होंने सवाल का जवाब देने से इंकार करते हुए फोन काट दिया. कुछ देर बाद खबर की हेडलाइन को बदल दिया गया.

नंबर लाने का दवाब और ट्रेंड हो रहीं खबरें

वेबसाइट एनालिटिक्स सर्विस और वेब ट्रैफिक देने वाली कंपनी सिमिलर वेब की वेबसाइट पर न्यूज़ और मीडिया सेक्शन इंडिया में इंडिया टाइम्स ट्रैफिक के मामले में नंबर वन वेबसाइट है. दिसंबर 2021 में वेबसाइट का ट्रैफिक 193.26 मिलियन, एनडीटीवी का 189.29 मिलियन, टाइम्स ऑफ इंडिया का 137.84 मिलियन और न्यूज 18 का 118.65 मिलियन है.

मनोरंजन, लाइफस्टाइल और अन्य सेक्शन में काम करने के लिए मीडिया कंपनियां फ्रीलांस पत्रकारों या आउटसोर्सिंग कंपनियों से काम करवाती हैं. एक आउटसोर्सिंग कंपनी में न्यूज़18 के लिए काम करने वाले पूर्व पत्रकार न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “हेडलाइन ऐसी होनी चाहिए जिसे देखकर लोग ज्यादा से ज्यादा क्लिक करें. क्लिक ही हमारे लिए सब कुछ मायने रखता है. ‘जितना क्लिक उतनी आय”.

“अगर किसी अभिनेत्री का बिकनी शूट रिलीज होता है तो एनडीटीवी, न्यूज़18 जैसे बड़े मीडिया आउटलेट्स इस तरह की खबरों पर ज्यादा जोर देते हैं. एसईओ टीम हमें हमेशा बताती है कि ऐसी स्टोरीज ज्यादा ट्रैफिक लाती हैं.” पूर्व पत्रकार बताते हैं.

यह कुछ खबरें उदाहरण के लिए ताकि आप समझ सकें कि किस तरह की खबरें छापी जा रही हैं और किस तरह की भाषा का उपयोग हो रहा है.

मनोरंजन बीट में काम कर चुके पत्रकार कहते हैं, “ट्रेंडिग खबरें ज्यादा चलती हैं इसलिए कई बार एक ही अभिनेत्री के ऊपर एक समय में कई खबरें बनाई जाती हैं. मलाइका पर जैसे 20 तारीख को खबर बनी. वह खबर बहुत चली. इसलिए आगे कुछ दिनों तक आप मलाइका से जुड़ी हुई कई खबरें देखेंगे. यह एक तरह का ट्रेंड है. जो विषय ट्रेंड होता है मीडिया उस पर ज्यादा से ज्यादा खबरें बनाता है. नंबर लाने का बहुत दवाब होता है”

एनबीटी डिजिटल में काम करने वाले एक पत्रकार कहते हैं, “नंबर लाने का काफी दबाव रहता है. वेबसाइट ट्रैफिक के साथ ही आप की ग्रोथ भी जुड़ी होती है. अगर आपकी खबरें अच्छा नंबर ला रही हैं तो आप की ग्रोथ भी ज्यादा होगी. नंबर की होड़ में खबरों के स्तर को नहीं देखा जाता है”

बता दें कि इंडिया टाइम्स डोमेन पर ही नवभारत टाइम्स भी रजिस्टर है. देश में सबसे ज्यादा ट्रैफिक न्यूज़ सेक्शन में इसी पर आता है.

पत्रकारों की मनोदशा

मनोरंजन बीट में काम कर चुके एक अन्य पत्रकार कहते हैं, “60-70 प्रतिशत पत्रकार इस तरह की खबर लिखना ही नहीं चाहते हैं. क्योंकि उन्हें भी पता है कि इस तरह की खबर पढ़कर या देखकर उनके साथी या रिश्तेदार लोग सवाल उठाएंगे, शर्मिदी उठानी पड़ेगी, लेकिन ऐसा वह इसलिए करते हैं क्योंकि ज्यादा से ज्यादा स्टोरी लिखने और नंबर लाने का दबाव रहता है. आखिर परिवार भी तो चलाना है.”

जनसत्ता में नौकरी छोड़ चुके एक पत्रकार बताते हैं, ”मैंने करीब एक साल वहां काम किया. यहां हिट्स लाने का दबाव इतना है कि मज़बूरी में निम्न स्तर की खबरें लिखनी पड़ती हैं. किसका किससे अफेयर रहा? कौन किसके घर से निकलते देखा गया? किस टीवी एंकर ने नेता की बोलती बंद की? ये सब चाहे जो भी हो लेकिन ये पत्रकारिता तो नहीं है.”

आईआईएमसी के प्रोफेसर आनंद प्रधान न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहते हैं, “ऑनलाइन मनोरंजन बीट की खबर लिखने वाले भी पत्रकारिता ही कर रहे है लेकिन उसे टैबलॉयड पत्रकारिता कहते हैं. जिसका उद्देश्य ही खबरों को सनसनीखेज बनाना है.”

बता दें कि टैबलॉयड पत्रकारिता में अपुष्ट और सनसनी फैलाने वाली खबरों को प्रकाशित किया जाता है. यह पत्रकारिता पश्चिमी देशों में काफी प्रचलित है. इसमें कई बार व्यक्तियों और स्थितियों को गलत तरीके से पेश किया जाता है.

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बतौर एसईओ मैनेजर एक मीडिया संस्थान में काम करने वाले एक कर्मचारी कहते हैं, “मनोरंजन बीट में जो ‘बिकनी’,‘सेक्सी’ या इस तरह के और भी जो शब्दों का उपयोग कर खबरें लिखी जाती हैं, उसका सुझाव एसईओ नहीं देता है. किसी दिन इस तरह की खबरें चल जाती हैं, जब नहीं चलती हैं तो पत्रकार हताश हो जाते हैं क्योंकि आखिर में उनका नंबर जोड़ा जाता है.”

वेबसाइट की कुल ट्रैफिक में मनोरंजन सेक्शन का नंबर

मनोरंजन सेक्शन में जिस तरह की खबरें डिजिटल मीडिया पर बनाई जा रही हैं और उसका ट्रैफिक कैसे और कितना आता है, इस प्रकिया को एसईओ मैनेजर समझाते हैं. वह कहते हैं, “सबसे ज्यादा ट्रैफिक वेबसाइट पर गूगल से आता है. जो गूगल का ‘डिस्कवर’ फीचर है उससे 80 प्रतिशत ट्रैफिक आता है और बाकी 20 प्रतिशत दूसरे तरीकों से.”

वह समझाते हैं कि यह कैसे काम करता है, “जो भी आप गूगल क्रोम पर सर्च करते हैं, आपके सर्च कीवर्ड के आधार पर गूगल आपको उस तरह के कंटेंट का सुझाव देता है.”

उदाहरण के तौर पर मानिए कि आपने गूगल पर ‘बिकनी’ या ‘सेक्सी फोटो’ शब्द लिखकर कुछ सर्च किया. अब गूगल का एल्गोरिदम आपके इस कीवर्ड के आधार पर आपको कंटेंट का सुझाव देगा. जिस भी खबर में इन शब्दों का उपयोग होगा, वह खबर ‘डिस्कवर’ में पाठक को दिखेगी.

कर्मचारी कहते हैं, “गूगल डिस्कवर में किसी भी दिखने वाले कंटेंट पर किसी भी एसईओ का कोई असर नहीं होता है. यह गूगल के एल्गोरिदम से ही होता है. यहां पर दिखने वाली खबर का कंटेंट एडिटोरियल ही लिखता है. उसमें एसईओ का कोई योगदान नहीं होता है.”

वेबसाइट के कुल ट्रैफिक में कितना प्रतिशत मनोरंजन सेक्शन का होता है? इस पर वह कहते हैं, “अब तो हेल्थ और लाइफ स्टाइल की खबरों को भी तड़का लगाकर पेश किया जाता है. ऐसे में इन सबको मिलाकर देखें तो न्यूज़ के मुकाबले इनका प्रतिशत ट्रैफिक में कई गुना है.”

वह कहते हैं, “एनडीटीवी में न्यूज़ का ट्रैफिक अन्य डिजिटल मीडिया के मुकाबले ज्यादा है. वहीं ज्यादातर संस्थानों में मनोरंजन सेक्शन का ज्यादा है. अगर एक अनुमान के तौर पर बात करें तो एनडीटीवी में 60:40 का फर्क है. मतलब की 60 प्रतिशत ट्रैफिक मसाला वाली खबरों से आता है और 40 प्रतिशत न्यूज़ से. वहीं अगर बतौर उदाहरण ज़ी न्यूज़ या अन्य किसी की बात करें तो वह प्रतिशत 70:30 का हो जाता है. 70 प्रतिशत ट्रैफिक मसाला वाली खबरों से और 30 प्रतिशत न्यूज़ से. यही हाल लगभग हर वेबसाइट का है.”

कंटेंट में सुधार की कोई उम्मीद?

एसईओ कर्मचारी कहते हैं, “धीरे-धीरे सुधार हो रहा है. गूगल भी अब इस तरह की खबरों को प्रमोट नहीं करता है. वह अपना एल्गोरिदम बदल रहा है तो आने वाले समय में बदलव दिखेगा.”

आनंद प्रधान कहते हैं, “सुधार लाने के लिए मीडिया संस्थानों को अपने बिजनेस मॉडल को बदलना होगा. उन्हें अपनी निर्भरता को विज्ञापन और क्लिकबेट से कम करना होगा, उम्मीद है तभी इस तरह का कंटेंट नहीं छपेगा. जब तक नंबर की होड़ लगी रहेगी ऐसे ही कंटेंट आएंगे.”

वह आगे कहते हैं, “ऐसा नहीं है कि नंबर सिर्फ मसाला वाली खबरों से ही आते हैं. द गार्जियन का उदाहरण हमारे सामने है जिसने गंभीर रिपोर्ट्स करके ट्रैफिक नंबर लाए हैं. यह बहाना है कि गंभीर न्यूज़ से नंबर नहीं आते.”

“सिर्फ मीडिया को ही नहीं बल्कि पाठकों को भी बदलना होगा. वह मसाला वाली खबरों को ज्यादा पढ़ते और देखते हैं जिसके कारण ही न्यूज़ संस्थान ऐसी खबरें बनाता है” आनंद प्रधान कहते हैं.

एसईओ कर्मचारी कहते हैं, “संपादकीय ही जिम्मेदार है इस तरह की खबरों के लिए और कोई नहीं. हम सिर्फ सुझाव देते हैं कि मलाइका पर खबर बना लो क्योंकि वह ट्रेंड में है, लेकिन ‘बिकनी’ या ‘हॉट फोटो’ जैसे शब्द तो पत्रकार ही लिखते हैं. इसके लिए एसईओ जिम्मेदार नहीं है.”

मसाला खबरों में संपादक के रवैये पर मनोरंजन बीट में काम करने वाले पत्रकार कहते हैं, “वेबसाइट में जो भी जा रहा हैं उसके लिए तो एडिटर ही जिम्मेदार होते हैं. आपकी वेबसाइट पर क्या खबर जा रही है वह तो एडिटर की जानकारी में ही होता है लेकिन नंबर के लिए उसे रहने दिया जाता है.”

***

क्लिकबेट जर्नलिज्म मौजूदा दौर में विज्ञापन आधारित डिजिटल मीडिया का एक जांचा-परखा औजार बन गया है. सनसनीखेज हेडलाइन के जरिए लोगों के अंदर की इच्छाओं को उकसाना और उन्हें स्टोरी क्लिक करने के लिए आकर्षित करना इस पत्रकारिता की पहचान बनता जा रहा है. हिंदी के ज्यादातर डिजिटल प्लेटफॉर्म इस बीमारी से पीड़ित हैं.

इसलिए हम न्यूज़लॉन्ड्री में सनसनीजेख पत्रकारिता के जरिए नंबर लाने और विज्ञापन के जरिए पैसे कमाने वाली पत्रकारिता नहीं करते. हमारा मानना है कि जब तक विज्ञापन पर आधारित मीडिया का मॉडल रहेगा, तब तक पाठकों और दर्शकों को ऐसी खबरें परोसी जाएंगी क्योंकि इस तरह की खबरों से नंबर और पैसे दोनों ज्यादा आते हैं. इसलिए स्वतंत्र मीडिया को अपना समर्थन दें, न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करें.

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