एक समय में हिंदी पत्रकारिता में प्रगतिशील धारा को आवाज़ देने वाले अखबार जनसत्ता की डिजिटल पत्रकारिता हर दिन पतन की एक नई गाथा लिख रही है.
सिंह के अलावा पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर के भी ट्वीट पर लगातार जनसत्ता खबरें प्रकाशित करता है. ठाकुर योगी सरकार के आलोचक रहे हैं और इन्हें हाल ही में योगी सरकार ने समय से पहले नौकरी से जबरन रिटायर कर दिया. इनके अलावा, ट्विटर पर जो कुछ भी ट्रेंड हुआ, जनसत्ता उस पर खबर बनाता है.
इसको लेकर वहां काम कर रहे एक कर्मचारी बताते है, ‘‘एक-दो दिन इनके ट्वीट पर खबर बनाकर देखा गया. तो उसपर ट्रैफिक आया. जैसे बाबा रामदेव या सुब्रमण्यम स्वामी ट्रैफिक देते हैं. स्वामी के एक ट्वीट पर तो दो-दो खबरें बनती हैं. ऐसे ही दिग्विजय सिंह भी. उनके बयान या उनसे जुड़ी खबरें बनाने पर ट्रैफिक आता है. ऐसे ही ये दोनों पूर्व अधिकारी हैं. जब तक ट्रैफिक दे रहे हैं तब तक इनपर खबरें बन रही हैं.’’
इसके अलावा टीवी चैनलों पर होने वाली गलाफाड़ डिबेट पर भी जनसत्ता आए दिन खबरें बनाता है. भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संबित पात्रा हर शाम किसी ना किसी टीवी चैनल पर मौजूद रहते हैं. उनपर जनसत्ता 16 अगस्त तक 13 खबर बना चुका है. किसी-किसी रोज तो एक दिन में संबित के डिबेट पर किसी कांग्रेस प्रवक्ता या एंकर से हुई बहस से जुड़ी दो-दो खबरें बनाई गईं.
यही नहीं एंकर्स ने किसी प्रवक्ता या किसी नेता को शो में डांट दिया या किसी प्रवक्ता ने एंकर को तो यह भी जनसत्ता के लिए खबर है. कई बार ऐसा हुआ कि सालों पहले किसी नेता ने किसी एंकर को कुछ बोला होगा, उसे अब जाकर खबर बनाया गया. जैसे 16 अगस्त को ‘जब अपना गलत नाम सुन एंकर पर भड़क गई थीं स्मृति ईरानी, कहा था – अंजना अंजनी तो नहीं हो सकता न?’ शीर्षक से खबर प्रकाशित हुई. दरअसल यह घटना 2014 की है.
ऐसे ही 11 अगस्त को एक खबर प्रकाशित हुई जिसका शीर्षक ‘भारतीय होने के सवाल पर जब आग-बबूला हो गए थे फारुख अब्दुल्ला, एंकर से कहा-साइकेट्रिस्ट की जरूरत है आपको’. यह इंटरव्यू जनवरी 2017 में हुआ. तब पुण्य प्रसून वाजपेई आज तक न्यूज़ चैनल में में एंकर हुआ करते थे. जनसत्ता ने यह खबर लगभग चार साल बाद प्रकाशित की.
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टीवी न्यूज़ चैनलों पर चलने वाली बहस पर हर रोज दो से तीन खबरें जनसत्ता वेबसाइट पर प्रकाशित होती हैं.
इसको लेकर वहां काम कर रहे एक कर्मचारी न्यूज़लॉन्ड्री से बताते हैं, ‘‘इन स्टोरी के कंटेंट पर कोई बात नहीं होती है. बस इतना कहा जाता है कि कुछ गलत मत लिखो. बाकी कुछ भी लिखकर 350 शब्दों की स्टोरी बना दो. इन खबरों का आप यूआरएल देखिए. उसमें रिपब्लिक टीवी या आज तक होता है, एंकर का नाम होता है, प्रवक्ता का नाम है. ये सब कीवर्ड इस्तेमाल किए जाते हैं. इससे ट्रैफिक अच्छा खासा आता है. क्योंकि इसमें न्यूज चैनलों और एंकरों का अपना ट्रैफिक है वो भी जुड़ जाता है. कोई आज तक सर्च करेगा तब भी ये खबर दिखाई पड़ेगी और जनसत्ता के अपने पाठक तो हैं ही.’’
यहां काम कर चुके एक पूर्व कर्मचारी बताते हैं, ‘‘एक दो लोगों की ड्यूटी तो टीवी डिबेट या पुराने इंटरव्यू देखने के लिए लगाई जाती है. वे उसमें से कुछ विवादास्पद हिस्सा तलाशते हैं और उस पर खबर बनाई जाती है. यहां उस तरह से खबरें बनाई जाती हैं जैसी उस चैनल के लोग नहीं बनाते जहां घटना हुई होती है.’’
टीवी चैनलों पर होने वाले चिल्ल-पों पर जनसत्ता क्यों खबरें बनाता है. इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, ‘‘वेबसाइट पर न्यूज़ के साथ-साथ मनोरंजन सेक्शन भी है. टीवी डिबेट पर जो चल रहा है. वो हमारे लिए मनोरंजन सेक्शन की न्यूज़ है. मनोरंजन की खबरें सिर्फ बॉलीवुड या ओटीटी से जुड़ी खबरें होंगी ये हम नहीं मानते.’’
इंडियन एक्सप्रेस पर ऐसी खबरें नहीं होतीं…?
इंडियन एक्सप्रेस को बेहतर पत्रकारिता के लिए जाना जाता है. जनसत्ता अख़बार भी एक समय में हिंदी का प्रतिनधि अख़बार रहा है. लम्बे समय तक जनसत्ता में मीडिया की भाषा और उसके गैरजिम्मेदारना रवैये पर लेख प्रकाशित होते रहे लेकिन आज उसकी ही हिंदी वेबसाइट पर प्रकाशित खबरों पर सवाल खड़े हो रहे हैं. आखिर इंडियन एक्सप्रेस वेबसाइट पर ऐसी खबरें क्यों नहीं होती?
ये सवाल हमने संपादक विजय झा से किया तो वे कहते हैं, ‘‘इंडियन एक्सप्रेस पर ऐसी खबरें क्यों नहीं होती तो इसका जवाब मैं नहीं दे सकता है.’’
लंबे समय तक मीडिया को लेकर जनसत्ता अख़बार में कॉलम लिखने वाले मीडिया विशेषज्ञ विनीत कुमार हिंदी और अंग्रेजी की वेबसाइट के बीच के अंतर को लेकर कहते हैं, ‘‘ज़्यादातर हिंदी मीडिया संस्थान अपने पाठकों को मुर्ख समझते हैं. अपने पाठकों के कॉमन सेन्स को खत्म करने में लगे हुए हैं. यह बहुत अपमानजनक है. इसमें जनसत्ता के साथ-साथ एनडीटीवी भी शामिल है, बाकि तो हैं ही. ऐसा नहीं है कि अंग्रेजी में मैनिपुलेशन नहीं होता या प्रोपेगेंडा नहीं होता. सबकुछ होता है. लेकिन वहां पर इस हद तक फूहड़पन नहीं है. और यह इसलिए नहीं है क्योंकि उन्हें अपने पाठकों को एक तरह का सम्मान देना होता है. हिंदी में ऐसा नहीं है.’’
इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप हर साल बेहतर पत्रकारिता के लिए देशभर के पत्रकारों को सम्मानित करता है. यह अवार्ड जनसत्ता के मालिक रामनाथ गोयनका के नाम पर दिया जाता है. विनीत कुमार कहते हैं, ‘‘यह वही संस्थान है जो हर साल बेहतरीन खबर करने वाले पत्रकारों को पुरस्कृत करता है. पुरस्कार देने का मतलब है कि वह पत्रकारिता को बचाये रखने की कोशिश कर रहा है. जो संस्थान पूरे देश के संस्थानों को उत्साहित करने के लिए अवार्ड दे रहा है वो संस्थान अपने भीतर पत्रकारिता को नहीं बचा पा रहा है. यह कितना दुखद और हास्यास्पद है. रामनाथ गोयनका अब डिजिटल मीडिया संस्थानों को भी मिलने लगा है. ऐसे में क्या इस तरह की खबर कर रहे जनसत्ता को कभी यह अवार्ड मिल पाएगा?’’
झा से हमने पूछा कि एक्सप्रेस हर सवाल बेहतर पत्रकारिता के लिए अवार्ड देता है. जिस तरह की पत्रकारिता जनसत्ता कर रहा है ऐसे में उसे कभी यह अवार्ड मिल पाएगा? वे कहते हैं, ‘‘अगर डिजिटल के पास प्रिंट या टीवी जैसा रिसोर्स हो तो वहां भी बेहतरीन रिपोर्ट हो सकती है. अवार्ड रिपोर्ट को मिलता है किसी माध्यम को नहीं मिलता. अगर वो रिपोर्टर और रिसोर्स हमारे पास होगा तो हम भी जीतेंगे.’’
रिसोर्स की कमी की बात आगे बढ़ाते हुए झा कहते हैं, ‘‘ओरिजिनल रिपोर्टिंग के लिए आपको अलग तरह का रिसोर्स चाहिए. वो रिसोर्स प्रिंट और टीवी में जिस तरह से उपलब्ध है उस तरह डिजिटल में कहीं नहीं है. इसे आप वेब मीडिया का माइनस पॉइंट कहिए. अभी उसे इस तरह की मान्यता और विश्वनीयता नहीं मिल पाई है. उसका खामियाजा जैसे बाकी वेब मीडिया भुगत रहा वैसे जनसत्ता भी भुगत रहा है.’’
जनसत्ता की लम्बे समय तक एक प्रगतिशील अख़बार की छवि रही है. क्या जनसत्ता डिजिटल के इस तरह की खबरों से उसे नुकसान हो रहा है. जवाब में झा कहते हैं, ‘‘जनसत्ता अख़बार एक खास तरह के पाठक वर्ग तक पहुंच रहा है. हमारे पास हर तरह के पाठक के लिए कंटेंट हैं. ऐसा नहीं है कि हार्ड न्यूज़ हमारे पास नहीं होती है. वो भी है लेकिन बाकी जो पाठक हैं उनके लिए भी हमारे पास खबरें होती हैं.’’
यह वो जनसत्ता है जो एक बार फिर से पत्रकारिता के नए मुहावरे गढ़ रहा है. दुखद बात यह है कि इस बार के मुहावरे क्लिकबेट, हिट बटोरू, सनसनीपसंद हो चुके हैं.
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