एक दूसरे के सहयोगी हैं विकास और निरंतरता, लेकिन सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में यह क्यों नहीं दिखाई देता?

विकास के नाम पर हो रही इस बर्बादी की भारी कीमत नागरिकों को चुकानी पड़ रही है.

WrittenBy:अल्पना किशोर
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अगर आंकड़ों को दूसरे नजरिए से देखें तो आर्किटेक्ट ने बार-बार ज़ोर देकर कहा है कि सेंट्रल विस्टा में कर्मचारियों की तादाद में कोई बदलाव नहीं होगा. सेंट्रल विस्टा के दफ्तरों में फिलहाल 54,800 कर्मचारी काम करते हैं. जिनके लिए तोड़ी जाने वाली मौजूदा 18 इमारतों और खाली कराए जाने वाले नॉर्थ और साउथ ब्लॉक को जोड़कर 6.25 लाख स्क्वायर मीटर जगह में दफ्तर बनाए गए थे. इस हिसाब से यह निर्माण लगभग 11 वर्गमीटर प्रति कर्मचारी के अनुपात में है

मान भी लिया जाए कि मौजूदा दफ्तर बहुत बेतरतीब हैं और उन्हें आधुनिक बनाने की जरूरत भी है, जगह के हिसाब से ये ज्यादा बेहतर तरीका भी है. 54,800 कर्मचारियों के लिए इन इमारतों में पर्याप्त जगह भी है, जिसे बगैर बहुत तोड़फोड़ के और बर्बाद किए बगैर भी बेहतरीन तरीके से सजाया-संवारा जा सकता है.

नए सचिवालय में अब यही जगह तीन गुना बढ़कर 17.02 लाख वर्गमीटर हो जाएगी. इन्हीं 54,800 लोगों के लिए अब जगह का अनुपात बढ़ कर प्रति व्यक्ति 31 वर्गमीटर हो जाएगा. (नीचे दी गई तालिका देखें)

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लेकिन ये समझ से बाहर है कि इतने ही कर्मचारियों को उसी काम के लिए तीन गुना ज्यादा जगह की जरूरत आखिर क्यों है? इतनी जगह तो किसी भी आदर्श कार्यालय की जगह से भी कहीं बहुत ज्यादा है, आर्किटेक्ट आमतौर पर प्रति व्यक्ति जगह का आदर्श अनुपात 10-12 वर्गमीटर मानते हैं. भले ही हम आधुनिक सुविधाओं से लैस नई इमारत में कांफ्रेंस हॉल, जिम, कैफे, योग और संगीत कक्ष वगैरह बनाएं तो भी इतनी सारी जगह घेरना कतई वाजिब नहीं है.

जरूरी सुविधाओं के इस्तेमाल के लिहाज से भी ये फिज़ूलखर्ची ही है. इससे बिजली की खपत तीन गुना और चार गुना ज्यादा पानी की जरूरत पड़ेगी. नीचे देखें.

तीसरी पसंद- स्थायी संसाधन की हानि

यह गैरजरूरी निर्माण राजपथ लॉन में भी झलकता है, जिसमें ग्रेड-1 हेरिटेज जोन के तहत संरक्षित होने के बावजूद लैम्प पोस्ट से लेकर स्काईलाइन से लेकर नहरों और लॉन वगैरह, हर चीज से बड़े पैमाने पर दखलंदाजी की गई है. कानून के मुताबिक जरूरी ईआईए यानी पर्यावरण पर प्रभाव का आकलन नहीं किया गया है, न ही ग्रेड-1 हेरिटेज जोन के लान्स में बदलाव के लिए कानूनी मंजूरी ली गई.

फिर भी, डिजाइन फर्म एचसीपी कंसल्टेंट्स ने हाल ही में अपने प्रचार अभियान में 'आफ्टर' ग्राफिक्स के जरिए हरे भरे लॉन, साफ-सुथरे रास्ते, तरतीब से बनी पार्किंग, कतार में लगे पेड़ वगैरह दिखाए हैं. कहा जा रहा है कि शौचालय समेत जन सुविधाओं के लिए केवल 100-110 पेड़ हटाए जाएंगे. इसे लोगों की जरूरतों को पूरा करने की मामूली कीमत बताया जा रहा है. जिससे लंबे वक्त से उजाड़ पड़े सार्वजनिक स्थान की अहमियत बढ़ जाएगी.

गैर ज़रूरी निर्माण की एक कीमत चुकानी होती है. इस मामले में देखा जाए तो वो कुदरती तरतीब हमेशा के लिए मिट जाएगी, जिनकी वजह से ये जगह खुली-खुली, हरी-भरी बनी हुई है.

नए डिजाइन में गैरज़रूरी तरीके से बहुत सी नई चीजें बेवजह जोड़ी और बढ़ाई गई हैं. सड़कों के किनारे फर्नीचर, राजपथ के साथ पक्की सड़कें, घास के बीच से पक्की पगडंडियां और पक्के रास्तों के साथ लंबी-चौड़ी पार्किंग बनाई जा रही है. आइसक्रीम वालों के जाने के बाद ये लॉन पहले जैसा हो जाता था. अब उस पुराने इंतजाम के बजाय विक्रेताओं के लिए एक स्थाई जगह का निर्माण होगा. शौचालय, सबवे, एक सीढ़ीदार बगीचे और लॉन के ऊपरी हिस्से पर एक पक्का मंच भी बनाया जाएगा.

कई वास्तुकारों और संरक्षणवादियों ने सार्वजनिक सुविधाओं के नाम पर लॉन में कंक्रीट से निर्माण पर चिंता जाहिर की है. उनका मानना है कि इससे बारिश के पानी के प्रवाह और वाटर रिचार्ज पैटर्न पर स्थायी रूप से बुरा असर पड़ सकता है.

आर्किटेक्ट पटेल इन आशंकाओं को गलत बताते हैं. उनका दावा है कि लॉन में "ज़रा सा" ही पक्का निर्माण है. उनका कहना है कि "इससे ज्यादा पानी का जमीन में रिसाव होता है, जो एक किलोमीटर दूर नदी में सीधे चला जाएगा. तो एक मायने में, यह वॉटर हॉर्वेस्टिंग है… अगर आप चाहें तो ये भी कह सकते हैं."

लेकिन उनकी झिझक से साफ है कि वह खुद भी ऐसा नहीं सोचते- क्योंकि जो हो रहा है वो असलियत से कोसों दूर है.

जबकि ऊपरी तौर पर तो 105 एकड़ लॉन को पहले की तरह 'संरक्षित' किया जाएगा और आवाम की सहूलियत के मद्देनजर इसका “विकास” किया जाएगा, लेकिन असलियत यह है कि गैर ज़िम्मेदाराना तरीके से 60 फीसदी लॉन को कंक्रीट और पत्थर से ढका जाएगा. जो दिल्ली के बीचोंबीच इस ज़ोन की वाटर इकोलॉजी को धता बताने जैसा है. जिसके कारण यमुना से पानी के कुदरती बहाव पर असर पड़ना तय है.

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आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं-

मौजूदा राजपथ लॉन में पानी का पूरी तरह रिसाव होता है. इसे पहले कुल 105.06 एकड़ में, चार आयताकार ब्लॉक और दो त्रिकोण के रूप में बनाया गया था. लॉन के बीच से गुजर रही ईंटों की बनी नहरें कुल 18.32 एकड़ में फैली हुई हैं.

इसलिए पूर्ण जल रिसाव के लिए उपयुक्त हरियाली वाला क्षेत्र 86.74 एकड़ (105.6- 18.32 एकड़) है, जो अब काफी बदल जाएगा.

आलम ये है कि अब लॉन की एक तिहाई जगह यानी 35.02 एकड़ पार्किंग घेर लेगी. यह 1,364 कारों और 40 बसों के लिए काफी जगह है! लेकिन सुविधाएं बढ़ा कर पार्किंग को प्रोत्साहित करने का ये कदम, सरकार की सड़कों पर कारें कम करने, पार्किंग को हतोत्साहित करने और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने की घोषित नीति के खिलाफ है. इसके अलावा, दुनिया में कहीं भी पब्लिक पार्क में पार्किंग के लिए इतनी बड़ी जगह नहीं रखी जाती है, क्योंकि ये बेमायने है. कोई भी नहीं चाहता है कि सैलानियों की बसों की आवाजाही से ये खूबसूरत जगह, एक भीड़भाड़ वाले बस अड्डे की तरह हो जाए- बल्कि, यह सभी के लिए एक खुली जगह होनी चाहिए, जिसका लोग अपने अपने तरीके और अपने-अपने अंदाज से लुत्फ उठा सकें.

अगला मुद्दा लॉन पर पक्के फर्श के निर्माण से जुड़ा है. आर्किटेक्ट माधव रमन सटीक माप लेकर कैलकुलेशन करते हैं. उनके मुताबिक मुख्य सड़क के दोनों ओर डाली गई पुरानी लालबजरी वाली पट्टी पूरी तरह से पक्की बनाई जाएगी. गूगल अर्थ की तस्वीरों से पता चलता है कि इनकी चौड़ाई 4.8 मीटर रखी गई है, जो गणतंत्र दिवस परेड के दौरान राष्ट्रपति के अंगरक्षक दस्ते के चार घोड़ों के चलने लिए काफी है.

इतना ही नहीं, लॉन के दोनों किनारों पर लगभग 2.5 मीटर चौड़ाई वाला कंक्रीट का वॉकवे भी बनाया जाएगा. इसमें लॉन के बीच से गुज़रने वाले रास्ते भी शामिल हैं, जो ग्रेड-1 जोन के लिए तय हेरिटेज रूल्स के खिलाफ जा कर चार खंडों में लॉन को बांटते हैं. इनकी चौड़ाई को लंबाई से गुणा करें और पक्के बनाए गए पैदल मार्ग और घोड़ों के रास्ते को जोड़ें तो ये कुल 14.53 एकड़ जगह घेरते हैं.

अंत में, राजपथ में लॉन के 1.5 किमी के दायरे में बने सार्वजनिक शौचालयों के आठ सेट होंगे. दो पहले से ही विजय चौक पर मौजूद हैं और दो इंडिया गेट लॉन पर प्रस्तावित हैं. तो, सेंट्रल विस्टा के विजय चौक से इंडिया गेट लॉन तक, 2.25 किमी और 105 एकड़ के पूरे इलाके में 12 शौचालय परिसर उपलब्ध कराए जाएंगे.

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इसके मुकाबले लंदन के हाइड पार्क के 350 एकड़ में सिर्फ तीन सार्वजनिक शौचालय हैं. न्यूयॉर्क के सेंट्रल पार्क में 843 एकड़ में 13 स्थाई सार्वजनिक शौचालय हैं- उनमें से भी ज्यादातर पार्क से जुड़ी इमारतों जैसे चिड़ियाघर, थिएटर, झील के किनारे रेस्तरां और छत वगैरह से बाबस्ता हैं.

रमन कहते हैं, "पिछले कुछ सालों में, एनडीएमसी ने इंडिया गेट के आसपास कई जन सुविधाएं बनाई हैं. ये सोच समझ कर ही दूर-दूर रखी गई हैं. बारह जन सुविधाएं गैर जरूरी हैं. इससे इस धरोहर की खूबसूरती पर असर पड़ता है. लोग यहां जनसुविधा के लिए नहीं, बल्कि इस हरियाली के लिए आते हैं जिसे आपने बेहद कम कर दिया है!"

वह एक खाका खींच कर बताते हैं कि वास्तविक योजना पर कंक्रीट के निर्माण से कितना बुरा असर पड़ा है.

राजपथ के लॉन पर पक्के क्षेत्रों को दर्शाने वाला लाल और पीला नक्शा

पीले रंग की चिह्नित पार्किंग और पक्के रास्तों से कंक्रीट निर्मित क्षेत्र में 49.55 एकड़ की और बढ़ोत्तरी हो जाती है, यह लॉन के हरियाली वाले इलाके (86.74 एकड़) का लगभग 53 फीसदी है.

वहीं, अगर लाल रंग की जगह (बेचने वालों की जगह, शौचालय, कला प्रदर्शन का मंच) को भी जोड़ें तो लॉन का ये कंक्रीटीकरण लगभग 60-70 प्रतिशत तक पहुंच सकता है. जबकि मूल योजना में इनमें से कुछ भी नहीं था.

वहीं, सचिवालय की 11 इमारतें ऐसी हैं जिनमें दो मंजिल गहरे बेसमेंट हैं. एक भूमिगत रेल से कवर किया जाने वाला ये सेंट्रल विस्टा क्षेत्र पारंपरिक रूप से दिल्ली का ये वो अहम वाटरशेड इलाका है जो रिज एरिया को यमुना से जोड़ता है.

वास्तुकार नारायण मूर्ति कहते हैं, "यह एक निरंतर भूमिगत बांध की तरह होने जा रहा है. भूगर्भीय जल इसके ऊपर और नीचे बहता है. यदि आपके पास 5.5 लाख वर्गमीटर कठोर आरसीसी का कंक्रीट से बना बेसमेंट है और उसे जोड़ने वाली एक विशेष भूमिगत रेल है. साथ ही आप लॉन के 60 फीसदी हिस्से पर जरूरत से ज्यादा क्रंक्रीट के बुनियादी ढांचे और पार्किंग का निर्माण कर रहे हैं तो इससे पानी का रिसाव तुरंत रुक जाएगा और बहाव के सभी रास्ते बंद हो जाएंगे, ऐसे में ग्राउंड वाटर रिचार्ज और बारिश के पानी के प्रवाह के ढांचे पर पड़ने वाले असर की कल्पना करना भी मुश्किल है. आप इसे किसी भी पैमाने पर जायज नहीं ठहरा सकते."

लेकिन सरकार फिर भी इसे सही ठहराने में जुटी हुई है.

सेंट्रल विस्टा एवेन्यू के पुनर्विकास को मिली पर्यावरण मंजूरी पर सांसद जवाहर सरकार ने संसद में सीधा सवाल पूछा था. जवाब में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का कहना था, "आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय और सीपीडब्ल्यूडी द्वारा प्रदान की गई जानकारी के अनुसार, सेंट्रल विस्टा एवेन्यू के पुनर्विकास के लिए किसी विशेष पर्यावरण मंजूरी की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि प्रस्तावित कुल निर्मित क्षेत्र 20,000 वर्ग मीटर से कम है."

लेकिन यह केवल अर्धसत्य है. पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम नियम के मुताबिक 1,50,000 वर्गमीटर से ज्यादा और 3,00,000 वर्गमीटर से कम या फिर 50 हेक्टेयर से अधिक के क्षेत्र को कवर करने वाली परियोजना के लिए पर्यावरण संबंधी मंजूरी लेना जरूरी है.

जबकि असलियत यह है कि सेंट्रल विस्टा एवेन्यू परियोजना 80 हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में विकसित की जा रही है. नीचे देखें तस्वीर

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(सहयोग-माधव रमन, लोकपथ)

(अनुवाद: अंशुमान त्रिपाठी)

अगला अंक: भाग- चार सेंट्रल विस्टा की विरासत की कीमत? यह सौंदर्यशास्त्र का मुद्दा नहीं, बल्कि कानूनी पहलुओं से जुड़ा सवाल.

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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