सरकारी अस्पतालों में रेजिडेंट डॉक्टर क्यों कर रहे हैं हड़ताल?

पिछले एक महीने से देशभर के रेजिडेंट डॉक्टर हड़ताल पर हैं. उनकी मांग है कि सुप्रीम कोर्ट रुकी हुई नीट पीजी परीक्षाओं की काउंसलिंग पर जल्द से जल्द फैसला सुनाएं.

Article image

शुक्रवार सुबह 9 बजे, विभा बिहार के सासाराम से अपनी मां और मामा के साथ डॉ राम मनोहर लोहिया (आरएमएल) अस्पताल पहुंचीं हैं. लेकिन जब वह अपने मामा के साथ ओपीडी के बाहर पहुंचीं तब उन्हें पता चला कि डॉक्टरों की हड़ताल है. विभा की मां को पेट में पथरी की शिकायत है.

imageby :

विभा और उनके मामा इमरजेंसी के बाहर गार्ड से विनती कर रहे थे कि कोई डॉक्टर उनकी मां को देख ले. विभा कहती हैं, "हम सुबह से यहां खड़े हैं. ये लोग अंदर नहीं जाने दे रहे. ओपीडी भी बंद कर दी है. मैं चाहती हूं कि कम से कम इमरजेंसी में डॉक्टर कोई दवाई लिखकर दे दे तो कुछ राहत मिल जाए. हम सुबह से अनुरोध कर रहे हैं."

जब हमने गार्ड से पूछा कि वह मरीजों को इमरजेंसी वार्ड में क्यों नहीं जाने दे रहे? वह दरवाजे के बाहर चिपकी अस्पतालों की एक लिस्ट की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, "आप इन अस्पतालों में चले जाइए. आरएमएल में सभी डॉक्टर हड़ताल पर हैं. किसी भी मरीज का इलाज नहीं हो पाएगा."

imageby :

इसके बाद हम आरएमएल अस्पताल की ओपीडी में गए. दोपहर के 12 बज रहे थे. वहां काफी भीड़ लगी हुई थी. मरीजों के परिजन गार्ड और नर्सों से लड़ रहे थे कि ओपीडी क्यों बंद है. लोग ओपीडी के उस काउंटर के बाहर जमा थे जहां पर्ची बनती है और बंद खिड़की को थपथपा रहे थे, "खिड़की खोलो, हमारा मरीज परेशान हो रहा है,"

imageby :

ओपीडी के अंदर खड़े एक मरीज ने बताया कि ओपीडी में डॉक्टर केवल उन मरीजों को देख रहे हैं जिनके पास कोई पुराना पर्चा हो. जो लोग नया पर्चा बनवाकर दिखाने आए हैं उन्हें डॉक्टर नहीं देख रहे.

रुक्मिणी करोल बाग की रहने वाली हैं. 13 दिसंबर को उनके पति को दो जगह, आरएमएल और जीबी पंत अस्पताल में रेफर किया गया था. "मेरे पति को दिल की बीमारी है. उनके सीने में पानी भर गया है. हमारे डॉक्टर ने कहा था कि कोई जांच कराने की जरूरत है. आरएमएल में वह मशीन है इसलिए यहीं जांच भी होगी लेकिन यहां कह रहे हैं कि कल आना." रुक्मिणी कहती हैं.

लक्ष्मीनगर निवासी पिंकी शर्मा सुबह 11 बजे आरएमएल अस्पताल पहुंचीं, वह कहती हैं, "मेरे पापा का हाथ टूट गया था. उनको प्लास्टर बंधा है. आज उसे बदलवाना था. लेकिन जब हम यहां पहुंचे तो ओपीडी बंद थी. कह रहे हैं कि डॉक्टरों की हड़ताल चल रही है. मेरे पापा को प्लास्टर बंधा है. ऐसे में उन्हें बार -बार लाने और ले जाने में तकलीफ होती है और पैसा भी खर्च होता है."

दरअसल नीट-पीजी काउंसलिंग में देरी को लेकर देशभर के केंद्र संचालित अस्पतालों के रेजिडेंट डॉक्टर नवंबर से हड़ताल कर रहे हैं. इस बीच उन्होंने कई बार हड़ताल की जिसमें उन्होंने ओपीडी और इमरजेंसी सेवाओं को करने से मना कर दिया. रेजिडेंट डॉक्टर कई बार स्वास्थ्य मंत्रालय को पत्र भी लिख चुके हैं. यहां तक कि वे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांड़विया से भी मुलाकात कर चुके हैं लेकिन इस मामले में अब तक कोई फैसला नहीं आया है.

imageby :

अब शुक्रवार, 17 दिसंबर से दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में रेजिडेंट डॉक्टरों ने अपनी हड़ताल फिर से शुरू कर दी है और इमरजेंसी सहित सभी सेवाओं का बहिष्कार कर दिया है. इसके चलते आरएमएल, सफदरजंग, गुरु तेग बहादुर, लेडी हार्डिंग समेत कई सरकारी अस्पतालों में इमरजेंसी और ओपीडी सुविधाएं ठप हैं. यह हड़ताल कब खत्म होगी इसकी कोई जानकारी नहीं दी गई है. हड़ताल के कारण कई मरीजों को तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है.

मनोज की पत्नी को पेट में दर्द उठता है. डॉक्टर ने अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह दी. मनोज बहादुरगढ़ के रहने वाले हैं और उनकी पत्नी का इलाज आरएमएल में चल रहा है. वह सुबह 5 बजे से आरएमएल अस्पताल में हैं. वह बताते हैं, "मैं सुबह से यहां हूं. मेरे पास पुरानी पर्ची और सभी रिपोर्ट भी हैं. गार्ड कह रहा है कि दो बजे आना तब बताएंगे कि आज अल्ट्रासाउंड होगा या नहीं. गार्ड उल्टा हम पर चिल्ला रहा था कि क्या तुम्हे नहीं मालूम डॉक्टरों की हड़ताल है."

क्या है पूरा मामला?

12 दिसंबर को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में, फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (फोरडा) ने घोषणा की थी कि 9 दिसंबर को बंद की गई हड़ताल 16 दिसंबर को फिर से शुरू होगी, जब तक कि सरकार कोई समाधान नहीं निकालती. फोरडा ने चेतावनी दी थी कि यदि स्वास्थ्य मंत्रालय उनकी समस्याओं का समाधान करने में विफल रहता है, तो वे इमरजेंसी सेवाओं सहित सभी सेवाओं को करने से हट जाएंगे.

imageby :

दरअसल नीट पीजी 2021 की परीक्षाएं इस साल मई के महीने में होनी थीं. लेकिन कोविड की दूसरी लहर के कारण यह परीक्षा सितम्बर तक स्थगित कर दी गईं. ईडब्ल्यूएस कोटा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है जो हर बार टाल दी जाती है, यानी नीट पीजी परीक्षाओं की कॉउंसलिंग में देरी हो रही है. इस कारण अस्पतालों में रेसिडेंट डॉक्टरों की कमी हो गई है.

एक समय पर दिल्ली के हर सरकारी अस्पताल में रेजिडेंट डॉक्टरों के तीन बैच होते हैं. आमतौर पर रेजिडेंट डॉक्टर वह होते हैं जिसके पास पहले से ही एमबीबीएस मेडिकल ग्रेजुएट डिग्री होती है और अब वह एमडी, एमएस जैसे पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री हासिल करने के लिए अस्पताल में रहकर काम करते हैं.

जुलाई 2021 में केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के छात्रों को 10% आरक्षण देने का ऐलान किया था. इस बीच एक याचिका डाली गई जिसने इस आरक्षण नीति को चुनौती दी गई थी. 25 नवंबर को केंद्र सरकार ने कहा था कि वह शीर्ष अदालत को एक रिपोर्ट सौंपने के लिए एक समिति बनाएगी लेकिन इस काम में लगातार देरी होने के कारण नीट पीजी की कॉउंसलिंग टल रही है. रेजिडेंट डॉक्टर चाहते हैं कि प्रक्रिया में तेजी लाई जाए क्योंकि रेजिडेंट डॉक्टरों के एक नए बैच के गैर-प्रवेश के कारण देश भर में स्वास्थ्य कर्मियों की कमी हो रही है और वर्तमान रेजिडेंट डॉक्टरों का बोझ बढ़ता जा रहा है.

रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के महासचिव और सफदरजंग अस्पताल में सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर अनुज अग्रवाल कहते हैं, "यह याचिका कहती है कि नीट पीजी परीक्षाओं के लिए फॉर्म दिसंबर 2020 में निकल गया था और जनवरी में परीक्षा होनी थी. लेकिन कोविड के कारण परीक्षा स्थगित होती रही. आरक्षण की नई नीति जुलाई महीने में आई थी. तब तक उम्मीदवारों ने पुराने दिशानिर्देशानुसार फॉर्म भर दिया था. जिन्होंने याचिका दी है उनका कहना है कि यह नीति इस बार की परीक्षा में लागू न की जाए बल्कि अगले बैच के लिए प्रवेश परीक्षा के लिए इसका इस्तेमाल किया जाए."

imageby :

रेजिडेंट डॉक्टरों ने हड़ताल फिर से क्यों शुरू कर दी है? इसका जवाब देते हुए डॉ अनुज बताते हैं, "कोर्ट की सुनवाई बार-बार टलती जा रही है. इसका मतलब है कि कोर्ट इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले रहा. हम कई महीनों से कोर्ट के फैसले का इंतज़ार कर रहे हैं. इस दौरान हमने अपनी क्षमता से अधिक काम किया है. लेकिन जब कोई फैसला नहीं आया तब हमने 27 नवंबर से देशभर में हड़ताल शुरू कर दी."

हर डॉक्टर पर रोजाना 150 मरीजों को देखने का भार

इस समय सरकारी अस्पतालों में जूनियर रेजिडेंट डॉक्टरों के केवल दो बैच मौजूद है जो तीन बैच के लोगों का काम कर रहे हैं. इसके कारण सीनियर रेजिडेंट डॉक्टरों का भी काम बढ़ गया है. डॉ अनुज अपना अनुभव बताते हैं, "पिछले सोमवार को मैंने 36 घंटे बिना आराम किए काम किया और यह कुछ ऐसा है जो अब हमारे लिए बहुत आम हो गया है. हमें सप्ताह में लगभग 100 घंटे और लगभग 36 घंटे लगातार काम करने के लिए कहा जाता है. चार घंटे की नींद लेना भी हमारे लिए दूर के सपने जैसा लगता है और अगर कोई मरीज रात में बीमार हो जाए तो हमें नींद से उठाकर बुला लिया जाता है."

imageby :

डॉ. सिंधु आरएमएल अस्पताल में पीडियाट्रिक्स यानी शिशु रोग विभाग में जूनियर डॉक्टर हैं. वह बताती हैं, "अभी यहां दो बैच हैं. पहले साल और दूसरे साल के बैच को अब तक प्रमोट नहीं किया गया है. ऐसा केवल इसलिए क्योंकि नीट पीजी की काउंसलिंग नहीं हुई है. जब तक नया बैच नहीं आएगा हमें भी प्रमोट नहीं किया जाएगा."

लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर तरुणा कहती हैं, "एक बैच तीन साल का होता है. अंतिम वर्ष के छात्र (जूनियर रेजिडेंट) पास आउट हो चुके हैं. अब तक प्रथम वर्ष के छात्र नहीं आए हैं. हमारे एग्जाम जुलाई में हो गए थे और अगस्त में हम पास हो गए और सीनियर रेजिडेंट बन गए. इस समय जब हमें ट्रेनिंग और रिसर्च पर फोकस करना होता है, तब हमसे क्षमता से ज्यादा काम कराया जा रहा है. हमारी छुट्टियां कैंसिल कर दी जाती हैं."

आरडीए आरएमएल के सह सचिव डॉ सर्वेश कहते हैं, "इस समय हर जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर रोज 100 से 150 मरीजों को देख रहा है. ऑन पेपर, रेजिडेंट डॉक्टर 48 घंटे प्रति सप्ताह काम करते हैं लेकिन कोविड के बाद से ही हम 24*7 काम कर रहे हैं. ऐसे में हम कब से नहीं सोए हैं. न हमें एक भी दिन छुट्टी मिली है. हमें खुद से ज्यादा मरीजों की चिंता है. हम थक गए हैं. ऐसे में हमें डर रहता है कि कहीं थकान के चलते हमारा ध्यान इधर-उधर न हो जाए और मरीज को गलत दवाई लिखकर न दे दें. यह मरीज की जान के साथ खिलवाड़ होगा और इसलिए हम हड़ताल कर रहे हैं."

आरएमएल में जूनियर रेजिडेंट डॉ प्रणव बताते हैं, "मुझे याद भी नहीं मैं कब से नहीं सोया हूं. हमें मरीजों की चिंता है. इस समय स्वास्थ्य क्षेत्र में डॉक्टरों की कमी है. कोविड के बाद से सरकार को इस पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए था. इस समय एक रेजिडेंट डॉक्टर 10 डॉक्टरों का काम कर रहा है. हमें अपनी पढाई करने का समय भी नहीं मिल पाता."

मरीजों के स्वास्थ्य के साथ हो रहा खिलवाड़!

ओपीडी और इमरजेंसी सेवाओं का बहिष्कार करने से आम जनता पर असर साफ देखने को मिल रहा है जो अपना इलाज नहीं करवा पा रहे. इस पर आरडीए आरएमएल के सह सचिव डॉ सर्वेश कहते हैं, "रेजिडेंट डॉक्टरों द्वारा ओपीडी और इमरजेंसी सेवाओं का बहिष्कार करने का मतलब यह नहीं होता कि मरीज का इलाज नहीं होगा. सीनियर डॉक्टर, फैकल्टी और कंसलटेंट, ओपीडी वार्ड, इमरजेंसी हर जगह काम कर रहे हैं. हालांकि हम 48 घंटे पहले ही हड़ताल की सूचना दे देते हैं.

imageby :

डॉ सर्वेश आगे कहते हैं, "छः महीने का समय बर्बाद हो गया है. यदि ऐसे ही काउंसलिंग टलती रही तो अगले साल की प्रवेश परीक्षा भी टल जाएगी. स्वास्थ्य क्षेत्र में वैसे भी डॉक्टरों की कमी है. अगर ऐसा चलता रहा तो स्वास्थ्य क्षेत्र ठप हो जाएगा. इस बीच अगर कोविड की तीसरी लहर आ गई तो हम कितने लोगों का इलाज कर लेंगे? सरकार और कोर्ट को इस मामले का जल्द से जल्द समाधान ढूंढ़ना होगा.”

Also see
article imageजलवायु परिवर्तन: दुनियाभर में 180 करोड़ लोगों पर खतरे की आशंका
article imageमहाराष्ट्र: महामारी में महाआपदा बन गए झोलाछाप डॉक्टर

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like