बीएचयू के छात्र शिव को कथित तौर पर यूपी पुलिस विश्वविद्यालय के गेट से उठाकर लंका थाने ले गई थी, लेकिन वह थाने से कभी नहीं लौटा.
पुलिस हिरासत में हुईं मौतें
इंडियास्पेंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक 27 जुलाई को लोकसभा में पूछा गया कि देश में कितने लोगों की मौत पुलिस और न्यायिक हिरासत में हुई. इसके जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के आंकड़े पेश किए. इन आंकड़ों के मुताबिक, हिरासत में मौत के मामलों में उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर है. उत्तर प्रदेश में पिछले तीन साल में 1,318 लोगों की पुलिस और न्यायिक हिरासत में मौत हुई है.
एनएचआरसी के आंकड़े बताते हैं कि यूपी में 2018-19 में पुलिस हिरासत में 12 और न्यायिक हिरासत में 452 लोगों की मौत हुई. इसी तरह 2019-20 में पुलिस हिरासत में 3 और न्यायिक हिरासत में 400 लोगों की मौत हुई. वहीं, 2020-21 में पुलिस हिरासत में 8 और न्यायिक हिरासत में 443 लोगों की मौत हुई है.
पिछले तीन साल में हुई इन मौतों को जोड़ दें तो उत्तर प्रदेश में कुल 1,318 लोगों की पुलिस और न्यायिक हिरासत में मौत हुई है. उत्तर प्रदेश का यह आंकड़ा देश में हुई हिरासत में मौत के मामलों का करीब 23% है. देश में पिछले तीन साल में पुलिस और न्यायिक हिरासत में 5,569 लोगों की जान गई है.
इस मामले में हमने अर्जुन सिंह से भी बात की. अर्जुन सिंह वही छात्र हैं जिनके फोन पर पुलिस शिव को लंका थाने ले गई थी.
बनारस निवासी अर्जुन कहते हैं, "वो 13 फरवरी की एक सर्द शाम थी, रात के करीब 8-9 के बीच का समय होगा. उस दिन मैं रोज की तरह बीएचयू में ही रनिंग करने गया था. बीएचयू के गेट पर जैसे ही मैंने अपनी साइकिल खड़ी की तभी मेरा ध्यान गेट के पास ही बने नाले पर गया. जिसमें एक लड़का घुटनों से ऊपर तक के पानी में खड़ा था. तब बहुत ठंड थी. जब मैंने लड़के को आवाज दी तो वह कुछ नहीं बोला. तब तक कुछ और लोग भी वहां आ गए. लोगों की मदद से लड़के को हाथ पकड़कर बाहर निकाला. उसने एक पायजामा और जैकेट पहना हुआ था, जबकि उसके जूते नाले में ही तैर रहे थे. जब हमने उससे बात करने की कोशिश की तो वह कुछ नहीं बोल पा रहा था. इसके बाद हमने पुलिस को 112 नंबर पर फोन किया. पुलिस की काले रंग की गाड़ी आई जिसमें एक महिला कांस्टेबल सहित चार लोग थे. हमने पुलिस को सारी जानकारी दी."
"पुलिस ने भी लड़के से कुछ बात करने की कोशिश की लेकिन वह कुछ नहीं बोल पा रहा था. इसके बाद पुलिस उसे अपने साथ ले गई. तब पुलिस ने कहा था कि हम इसे लंका थाने ले जा रहे हैं नशा होगा तो उतर जाएगा और मेंटली डिस्टर्ब होगा तो पुलिस वाले देखेंगे क्या करना है. उसके बाद उसे पुलिस ले गई और मैं रनिंग करके घर आ गया." अर्जुन ने कहा.
वह आगे कहते हैं, "19 फरवरी को मैं फेसबुक स्क्रॉल कर रहा था तभी उसी लड़के का फोटो और गुमशुदगी की जानकारी मेरे सामने आई. मुझे याद आया कि यह तो वही लड़का है जिसकी मैंने ही पुलिस को फोन करके जानकारी दी थी. फिर मैंने फेसबुक पर ही उनके पापा और भाई का नंबर लिया. और उनको कॉल करके सारी जानकारी दी. उसके बाद मैंने उनसे मुलाकात भी की."
22 मार्च को लॉकडाउन लग गया तो मामला ठंडे बस्ते में चला गया. इस बीच किसी से कोई बात नहीं हुई. लॉकडाउन खत्म होने के बाद बीएचयू के लोगों ने मुहिम छेड़ी की कैसे लड़का गायब हो गया. अर्जुन भी लड़के को ढूंढ़ने में मदद करने लगे. अर्जुन बताते हैं कि यूपी पुलिस और सीबीसीआईडी उनसे इस मामले में पूछताछ कर चुकी है.
वह आगे कहते हैं, "जब मैं थाने में गया था तो मुझसे एक बार पुलिस ने कहा कि अरे आप इस चक्कर में क्यों पड़ रहे हैं. आप अपनी पढ़ाई लिखाई पर ध्यान दीजिए. तो मैंने कहा कि मैंने किसी की मदद करके कोई गुनाह किया है क्या? इस पर पुलिस ने कहा कि गलत नहीं किया है लेकिन ये मामला पुलिस का है इसलिए इसमें आप मत पड़िए. मुझे उन्होंने बयान से पलटने के लिए कहा."
शिव के पिता प्रदीप कुमार त्रिवेदी फोन पर कहते हैं, “तत्कालीन थाना प्रभारी भारत भूषण हम पर दबाव बना रहे हैं. हमारे घर पर उन्होंने दो लोग भेजे थे. उन्होंने कहा कि हम भारत भूषण के भाई हैं. आप 10 लाख रुपए ले लीजिए और शांति से घर बैठ जाइए या अपना बयान बदल दीजिए. वह हमारे गांव के सरपंच को लेकर आए थे. तब मैंने कहा कि मैं पैसे नहीं लूंगा. मेरा बेटा अगर जिंदा है तो उसे तलाश कर लाओ और अगर मर गया है तो आप साफ-साफ बताओ, फिर मैं केस वापस ले लूंगा."
वह आगे कहते हैं, “कर्ज लेकर बच्चों को पढ़ा रहा हूं. कर्ज के चलते बीते 20 सिंतबर को जो कुछ जमीन बची थी अब वह भी बिक गई है. अब मजदूरी करके बच्चे की पढ़ाई और घर का खर्चा चला रहा हूं. हम मूल रूप से बरगड़ी खुर्द, जिला पन्ना मध्य प्रदेश के हैं. कर्ज लेकर बच्चे के न्याय के लिए यहां से बनारस और इलाहाबाद जाना पड़ता है.
हमने उस नंबर पर भी फोन किया जो लोग शिव के घर पर आए थे और अपने आप को भरत भूषण तिवारी का भाई बता रहे थे. वह फोन पर कहते हैं, हां मैं भरत भूषण तिवारी का भाई पप्पू तिवारी हूं. जब हमने उनसे कुछ और सवाल किए तो वह कहने लगे कि अब हमारी उनसे (भारत भूषण) ज्यादा बात नहीं होती है. वह यह भी कहते हैं कि वो शिव के घर नहीं गए थे.
इस मामले में जांच कर रहे अधिकारी श्याम वर्मा कहते हैं, “हम बीती 27 अक्टूबर को बनारस गए थे. इस मामले में हमने कई लोगों के भी बयान लिए हैं. एक अज्ञात शव के बारे में भी जानकारी मिली है. जिसका उन दिनों पोस्टमार्टम हुआ था. यह शव रामनगर थाना क्षेत्र में मिला है. जो लंका थाने से करीब 6-7 किलोमीटर की दूरी पर है. जांच चल रही है, जल्दी ही कुछ नतीजा निकलेगा.”
हमने लंका थाने के वर्तमान एसएचओ महातम सिंह यादव से बात की. वह कहते हैं मैं यहां नया नया आया हूं. मुझे आए अभी एक ही महीना हुआ है इसलिए मैं कोई जानकारी नहीं दे सकता हूं.
इसके बाद हमने लंका थाने के तत्कालीन एसएचओ भारत भूषण तिवारी से भी बात की. इस मामले पर वह कहते हैं, "तब 16 फरवरी को पीएम मोदी का दौरा था, हम उसी में व्यस्त थे. इस बीच उसी दिन शिव के पिता प्रदीप कुमार त्रिवेदी थाने गुमशुदगी लिखवाने आए थे. जिसके बाद हमने जांच शुरू की, इसके चांज अधिकारी कुंवर सिंह थे. हालांकि शिव की कोई जानकारी नहीं मिली. फिर बाद में लॉकडाउन लग गया. फिर अगस्त में दोबारा ये सभी चीजें सामने आईं. इस बीच मेरा ट्रांसफर भी हो गया था. बाद में ये मामला हाईकोर्ट चला गया और सीबीसीआईडी से जांच शुरू की. इस जांच में मुझे, डे अफसर, नाइट अफसर, जांचकर्ता अधिकारी और मुंशी को देरी करने और शिव का नहीं पता कर पाने के कराण लापरवाही का दोषी मानते हुए सजा दी गई. फिलहाल मैं सजा पर हूं और एटीएस लखनऊ में कार्यरत हूं."
112 नंबर पर कॉल की गई थी, जिसके बाद पुलिस लड़के को लेकर लंका थाने गई. और जिस लड़के ने कॉल की थी अब वह भी सामने आ गया है. तब आप थाना इंचार्ज थे उस रात लड़के के साथ क्या हुआ? इस सवाल पर वह कहते हैं, "देखिए ये भी एक एंगल है. एक लड़का अर्जुन को नाले के किनारे मिला था, जिसकी अर्जुन ने 112 नंबर पर कॉल करके सूचना दी थी. तब पीआरबी गई थी तो मुझे भी कॉल किया गया, और लड़के के बारे में बताया गया. तब मैंने कहा कि इसे थाने ले आइए. क्योंकि पीएम मोदी आने वाले थे और वह वीआईपी रूट पर था. लेकिन ये कोई नहीं जानता कि वह शिव त्रिवेदी थे. क्योंकि न ही उसको कोई जानता था और न ही उनका कोई फोटो था. इसलिए यह नहीं कह सकते हैं कि वह शिव त्रिवेदी थे."
जो लड़का थाने लाया गया वह कहां गया? वह कहते हैं, "जो लड़का आया था उसने रात को कपड़ों में ही लेट्रीन कर दी थी. ठंड का समय था तो हमने उसे एक कंबल दिया था. थाना छोटा है वहां गंदगी हो गई तो इसलिए उसे सुबह सफाई के चलते बाहर बैठा दिया था, तभी वह वहां से मिस हो गया. लेकिन वह शिव त्रिवेदी थे इसकी कोई जानकारी नहीं है."
क्या थाने में सीसीटीवी कैमरा नहीं थे? इस पर वह कहते हैं, "सीसीटी थे लेकिन उस समय काम नहीं कर रहे थे. यह जांच में भी सबित हुआ है कि सीसीटीवी चालू नहीं थे."
लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद दस्तावेज में ये साबित होता है कि उस समय सीसीटीवी कैमरा चालू थे? इस पर वह कहते हैं, देखिए मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता हूं. क्योंकि उनका संचालन कहीं और से होता है थाने से नहीं.
हालांकि वह इस दौरान अपनी गलती मानते हुए यह भी कहते हैं कि हमसे एक मानवीय भूल हुई है जो वह लड़का थाने से गायब हो गया. इसके लिए हमें अफसोस है. इस गलती का मुझे दंड भी मिल गया है. वरना आज मैं एटीएस में नहीं होता किसी थाने में होता. वो जो हुआ वह मेरा और मेरी टीम का फाल्ट था.