कॉप- 26 में हमें असमानता की हकीकत का सामना करने और इसका समाधान निकालने की जरूरत है.
हम जानते हैं कि भारत जैसे देशों को वही गलतियां नहीं करनी चाहिए जो पहले से ही अमीरों ने की हैं. दुनिया को कम कार्बन विकास के रास्ते को सुरक्षित करने की जरूरत है. साथ ही अभी भी विकासशील देशों को इस परिवर्तन के लिए भुगतान किए जाने की जरूरत है.
उभरती हुई दुनिया के भविष्य को या उनके जरूरी उत्सर्जन के लिए उन्हें उंगली दिखाना या शर्मिंदा करना उनपर कोई प्रभाव नहीं छोड़ेगा. कॉप 26 में हमें इस असमानता की हकीकत का सामना करने और इसका समाधान निकालने की जरूरत है.
तीसरा एजेंडा है कि यह "कैसे" होगा? वित्त की उपलब्धता को पारदर्शी और मापने योग्य बनाया जाना चाहिए. इससे घाटे को दूर करने वाला यकीन पैदा होगा. इसलिए यह केवल वित्त के पैमाने पर चर्चा और सहमति नहीं है बल्कि इसके नियम भी बनाए जाने चाहिए ताकि इस फंड ट्रांसफर को गिना और सत्यापित किया जा सके. पारदर्शिता की आवश्यकता का प्रचार करना ही पर्याप्त नहीं है, उस पर कार्रवाई करने की जरूरत है.
"कैसे" का एजेंडा बाजारों पर चर्चा से भी जुड़ा हुआ है. इसमें पेरिस समझौते का अनुच्छेद-6 शामिल है, जो कि कॉप 26 की मेज पर है. मौजूदा प्रयास एक बाजार उपकरण बनाने के लिए स्मार्ट और सस्ता तरीका खोजने का है जो विकासशील दुनिया से कार्बन खरीद की लागत कम करेगा. साथ ही सस्ते, जटिल और कठोर ‘स्वच्छ विकास तंत्र’ (सीडीएम) को दोहराने की अनुमति फिर से नहीं दी जानी चाहिए. जिस तरह क्योटो प्रोटोकॉल के सीडीएम को अंतिम रूप दिया गया था उसके विपरीत वास्तविकता में हमें इस बार सभी देशों को उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य को तय करना होगा.
इसलिए, कोई कारण नहीं है कि किसी भी देश को कार्बन उन्मूलन के लिए अपने सस्ते विकल्पों को "व्यापार" करने और "बेचने" के लिए सहमत होना चाहिए. बल्कि बदलाव के लिए जलवायु वित्त का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. वहीं, बाजार का उपयोग परिवर्तनकारी कार्रवाई के लिए किया जाना चाहिए ताकि इस उपकरण के माध्यम से कार्बन कटौती लाने वाली प्रभावी परियोजनाओं का भुगतान किया जा सके. बाजार को सार्वजनिक नीति और मंशा से संचालित होना चाहिए और कार्बन ऑफसेट के नाम पर नए घोटालों को ईजाद करने के लिए नहीं छोड़ा जाना चाहिए.
यह वक्त है कि आरईडीडी+ या प्रकृति-आधारित समाधानों पर चर्चा गूढ़ तरीके से होनी चाहिए. हमें सचमुच चीजों को बड़े दायरे में देखना होगा. हमारे पास कार्बन उत्सर्जन प्रभाव को कम करने के लिए गरीब देशों और समुदायों की पारिस्थितिक संपदा का इस्तेमाल करने का अवसर है. जैसे पेड़ और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र कार्बन डाइऑक्साइड को पृथक करते हैं. इसलिए, इसे कार्बन स्टिक के रूप में नहीं बल्कि गरीबों की आजीविका और आर्थिक कल्याण के अवसरों के रूप में देखा जाना चाहिए. खासतौर से वनों के लिए कार्बन को कम करने के नियमों को इन सब बातों का ख्याल दिमाग में रखते हुए सोच -समझकर और आधुनिकता के साथ विकसित करना चाहिए.
यह सारी चीजें फिर दुनिया को अनुकूलन, जलवायु परिवर्तन के कारण हो रही नुकसान व क्षति की बहस में लाकर खड़ा करती हैं, जबकि यह एजेंडा पूरी तरह से बिना किसी पैसे या प्रभाव के संस्थानों, समितियों, निधियों की बहुलता में खो गया है. इस एजेंडे को बचाने की जरूरत है. यदि आप दुनिया के जरिए अभी तक अनुकूलन लक्ष्य की प्रगति को मापने के लिए तकनीकी पेपर को समझने की कोशिश करें तो आपको यह समझ में आएगा कि मैं क्या कह रही हूं. हम सभी जानते हैं कि हमारे बीच एक बड़ी चीज खड़ी है जिस पर हम चर्चा नहीं करना चाहेंगे, वह है वित्त. अब मुख्य तौर पर चर्चा अनुकूलन और नुकसान व क्षति पर होनी चाहिए. जलवायु परिवर्तन जनित चरम मौसम की घटनाओं के कारण देशों और समुदायों को होने वाले भयावह नुकसान की गणना करने के लिए हमें किसी रॉकेट साइंस की आवश्यकता नहीं है. यही कारण है कि कॉप 26 को वार्ता में पूर्वाग्रहों और कमजोर नेताओं से हारना नहीं चाहिए. आइए उम्मीद करते हैं कि यह कॉप बाहर खड़ा है और इसकी गिनती अलग होगी. यह हमारे समय की मांग है.
(साभार- डाउन टू अर्थ)