कॉप-26: भारत में 25 गुना तक बढ़ जाएगा लू का कहर!

जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए प्रयास न किए गए तो हाल के दशकों में विकास को लेकर जो काम किए गए हैं यह उसे गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है.

WrittenBy:जयंता बासु
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रिपोर्ट की मानें तो यदि वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि चार डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाती है तो भारत में 2036 से 2065 के बीच लू का कहर सामान्य से 25 गुना अधिक समय तक रहेगा. वहीं यदि तापमान में हो रही वृद्धि दो डिग्री सेल्सियस तक भी पहुंच जाती है तो भी लू का कहर पांच गुना अधिक समय तक रहेगा. यही नहीं यदि हम तापमान में हो रही वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोकने में कामयाब हो भी जाते हैं तो भी लू का कहर करीब डेढ़ गुना बढ़ जाएगा.

साथ ही देश में गर्मी का बढ़ता कहर लोगों की आजीविका को भी बुरी तरह प्रभावित करेगा. अनुमान है कि 2050 तक कम उत्सर्जन परिदृश्य में भी 2050 तक श्रम उत्पादन में करीब 13.4 फीसदी की गिरावट आ जाएगी. वहीं मध्यम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत 2080 तक यह आंकड़ा बढ़कर 24 फीसदी तक जा सकता है. वहीं उच्च उत्सर्जन परिदृश्यों के मामले में यह स्थिति और ज्यादा गंभीर हो सकती है.

यदि तापमान में हो रही वृद्धि 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ती है तो 2050 तक कृषि के लिए पानी की मांग करीब 29 फीसदी बढ़ जाएगी. वहीं 2036 से 2065 के बीच कृषि संबंधित सूखा 48 फीसदी बढ़ जाएगा. वहीं दो डिग्री सेल्सियस वृद्धि के परिदृश्य में यह समान समयावधि में 20 फीसदी तक गिर जाएगा.

इसी तरह कम उत्सर्जन परिदृश्य में 2050 तक पकड़ी जाने वाली मछलियों में 8.8 फीसदी की गिरावट आ सकती है. वहीं उच्च उत्सर्जन परिदृश्य में यह गिरावट 17.1 फीसदी तक जा सकती है.

विकास कार्यों में जो प्रगति हुई है उसे नुकसान पहुंचा सकता है जलवायु परिवर्तन

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यदि देश में जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए प्रयास न किए गए तो हाल के दशकों में विकास को लेकर जो काम किए गए हैं यह उसे गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है.

रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक जलवायु परिवर्तन के मध्यम परिदृश्य में भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का करीब 0.8 से दो फीसदी तक हिस्सा खो देगा. वहीं उच्च उत्सर्जन परिदृश्य में यह लागत दोगुनी हो सकती है, जो 10 फीसदी तक बढ़ सकती है.

यदि उत्सर्जन में वृद्धि तीव्र गति से होती रही तो 2050 तक देश में करीब 1.8 करोड़ लोग नदियों में आने वाली बाढ़ की जद में होंगे, जोकि वर्तमान की तुलना में करीब 15 गुना ज्यादा है. गौरतलब है कि वर्तमान में करीब 13 लाख लोगों पर इस तरह की बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है.

इसी तरह उच्च उत्सर्जन परिदृश्य में सदी के अंत तक अतिरिक्त मृत्युदर में करीब 10 फीसदी का इजाफा हो जाएगा. यह प्रति वर्ष करीब 15.4 लाख अतिरिक्त मौतों के बराबर है. वहीं मध्यम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत इस आंकड़े में 80 फीसदी तक की गिरावट आने की संभावना है.

(साभार- डाउन टू अर्थ)

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