ट्रेन बम धमाकों में सुप्रीम कोर्ट से बरी हुए सलीम अंसारी की कहानी.
11 मई 2016 को सलीम अदालत से बरी हो गए. 22 साल बिना किसी अपराध के उन्हें जेल में रहना पड़ा. इस दौरान उनकी मां की मृत्यु हो गयी. जब उन्हें हैदराबाद पुलिस उठा कर ले गयी थी तब उनकी बेटी सिर्फ 15 महीने की थी. वह बड़ी हो गई है, इस दौरान ही उसकी शादी भी हो गयी. इन 22 सालों में सलीम सिर्फ एक बार जेल से बाहर आ पाए थे. 2012 में उन्हें अपनी बेटी की शादी में शरीक होने का मौका मिला लेकिन मां के अंतिम संस्कार में वो नहीं आ पाए थे.
सलीम कहते हैं, "मैं अपनी अम्मी के इंतकाल में शरीक नहीं हो पाया था इस बात का मुझे ताउम्र ग़म रहेगा. इसके अलावा ये बात मुझे बहुत अखरती है कि मैं अपनी बच्ची का बचपन नहीं देख पाया. उसके लिए वो सब नहीं कर पाया जो एक पिता अपनी बच्ची के लिए करता है. मेरी बच्ची अब अमेरिका में रहती है और उसे भी इस बात का ग़म है कि उसके बचपन में उसे उसके अब्बा का प्यार नसीब नहीं हुआ."
वह आगे कहते हैं, "जब मैं घर लौटा तो दो-तीन महीने तक तो सिर्फ आराम करता रहा. मैं बरी हो चुका था तो कुछ लोगों ने सलाह दी कि मैं अपनी पुरानी नौकरी में वापस बहाल होने के लिए अर्जी दूं. मैंने दो-तीन बार अर्जी भेजी लेकिन बस यही जवाब आया कि मेरी याचिका विचाराधीन है. इसके बाद मैंने लेबर कोर्ट में भी याचिका दाखिल की लेकिन उनका जवाब यही था कि टाडा जैसे मामले में आरोपी रह चुके व्यक्ति को फिर से रक्षा मंत्रालय के तहत आने वाले संवेदनशील कामों में बहाल नहीं कर सकते. उन्होंने मुझे वापस नौकरी तो नहीं दी, लेकिन 2016 से 2021 तक का पांच लाख का अनुग्रह भुगतान (एक्स ग्रेशिआ) दे दिया. पांच लाख से क्या होता है. जो लोग मेरे साथ नौकरी करते थे आज उनकी महीने की तनख्वाह 70 हज़ार रूपये है. लेकिन फिर मैंने वापस इस बात को आगे नहीं बढ़ाया क्योंकि मेरी लगभग आधी जिंदगी मुक़दमे लड़ते हुए ही बीत गई है.”
सलीम बताते हैं कि उनके साथ नौकरी करने वाले उनके बहुत दोस्त उनसे कन्नी काटने लगे हैं. वापस आने के बाद जब उन्होंने अपने कुछ पुराने दोस्तों को फोन किया तो उन्होंने नाम सुनने के बाद रॉन्ग नंबर कहकर फोन काट दिया. लेकिन एक-दो अच्छे दोस्त भी हैं जिन्होंने वापस आने के बाद उनकी मदद की. सलीम बताते हैं कि आस-पड़ोस के लोग का रवैया कमोबेश ठीक है.
एक पढ़े-लिखे परिवार में बड़े हुए सलीम ने बताया उन्होंने और भी कई जगह छोटी-मोटी नौकरी की कोशिश की लेकिन कोई उन्हें काम देने को तैयार नहीं था. वह कहते हैं, "थक हार कर मैंने खुद का काम करने का मन बनाया. मैंने कर्ज़ा लिया और मेरी ही तरह जेल से बरी हुए एक दोस्त की मदद से हैदराबाद से बिस्किट मंगवाकर यहां बेचता हूं. मैं खुद ही बेकरियों पर या निजी आर्डर मिलने पर जाकर माल पहुंचाता हूं. लेकिन पिछले दो साल में कोविड के चलते वो काम भी लगभग बंद होने की कगार पर पहुंच गया है."
सलीम कहते हैं, "एक बार आतंकवाद जैसे इलज़ाम का ठप्पा आप पर लग जाता है तो जिंदगी जहन्नुम बन जाती है. भले ही आप बेक़सूर साबित हो जाएं, अदालत से बरी हो जाएं. आपको लोग शक की निगाह से देखते हैं, काम देने से हिचकते हैं. विदेशों की तरह हिन्दुस्तान में कोई कानून भी नहीं है कि झूठे इल्ज़ामों में फंसाये गए लोगों को कोई मुआवज़ा मिले. काश ऐसा होता तो मेरे जैसे कई बेगुनाह लोगों को एक सहारा हो जाता."
अभी हाल ही में क्राइम ब्रांच से आये टेलीफोन के बाद सलीम वहां गए थे. वहां पुलिस वालों ने उनसे रोज़मर्रा की जिंदगी की बारे में पूछताछ की. उनके भाई, बहनों, बाकी रिश्तेदारों के नाम, पते, फ़ोन नंबर लिखवाये. पुलिस वाले उनसे कह रह थे कि उन्हें पता ही नहीं था कि वह पांच साल पहले बरी होकर आ गये हैं. सलीम को अब खौफ है कि निर्दोष साबित होने के बावजूद भी कहीं फिर से थानों की हाज़िरी लगाने का चक्कर पुलिस न बांध दे.