जर्मन बेकरी ब्लास्ट के इस आरोपी को आतंकवाद के सभी आरोपों से बरी कर दिया गया है और विस्फोटक सामग्री रखने का दोषी पाए जाने के खिलाफ उनकी याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.
हिमायत को पिछले साल जनवरी में अपने पिता के अंतिम संस्कार के लिए भी बाहर नहीं जाने दिया गया, वे मृत्यु से पहले पूरी तरह से हतोत्साहित और उम्मीद खो चुके थे. 41 वर्षीय तारिक बेग जो अपने परिवार के साथ महाराष्ट्र के बीड में रहते हैं, कहते हैं, "हमारे पिता ने हिमायत का केस एक दशक से ज्यादा समय तक इस उम्मीद से लड़ा कि एक दिन हम उसे बाहर निकाल पाएंगे. वे यह देखे बिना ही गुज़र गए. हिमायत को उनका अंतिम संस्कार के लिए भी नहीं निकलने दिया गया. जब भी वह मुझसे बात करता है या लिखता है, वो मुझे अंडा सेल में अपनी हालत के बारे में बताता है और उसे वहां से बाहर निकालने की मिन्नतें करता है. वह निर्दोष है वरना उसे आतंकवाद के आरोपों से बरी नहीं किया गया होता. वह हमारे परिवार में इकलौता पढ़ा-लिखा लड़का था और हमारे मां-बाप को उससे बड़ी उम्मीदें थीं. अब हमारे पिता नहीं रहे और हमारी मां 6 साल से बिस्तर पकड़े हुए हैं. मुझे नहीं पता उसे बाहर कैसे निकालूं."
2016 में, जमीयत ने हिमायत के लिए नए वकील रखे जिनसे तारिक बिल्कुल भी प्रभावित नहीं थे. उनकी आर्थिक हालत ऐसी नहीं कि वह खुद एक वकील रख सकें, परिवार बहुत गरीब है. इसके चलते उन्होंने पुणे के एक एक्टिविस्ट अंजुम इनामदार की मदद लेने की कोशिश की.
अंजुम कहते हैं कि उन्होंने हिमायत के परिवार की तरफ से एडीजी जेल के कार्यालय में प्रार्थना पत्र जमा किए हैं. "मैंने हिमायत को अंडा सेल से निकालने के लिए करीब आधा दर्जन पत्र जमा किए, कभी भी सकारात्मक जवाब नहीं आया."
हमने नासिक सेंट्रल जेल के अधीक्षक प्रमोद वाघ से पूछा की हिमायत को कानून के विरुद्ध एकांत कारावास में क्यों रखा जा रहा है? उन्होंने जवाब दिया, "आप किस कानून के बारे में बात कर रहे हैं? मैं आपके प्रश्नों का जवाब नहीं दे सकता. आप मेरे दफ्तर में लिखित एप्लीकेशन भेजिए, तब मैं आपको जवाब देने के बारे में सोचूंगा."
हमने वाघ को अपने प्रश्न ईमेल किए लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया, उनकी तरफ से जवाब आने पर रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.
हमने एडीजी जेल सुनील रामानंद से भी इस बारे में बातचीत के लिए संपर्क किया, लेकिन उन्होंने कोई भी टिप्पणी करने से मना कर दिया.
डीआईजी जेल योगेश देसाई कहते हैं, "किसी को भी अंडा सेल या कहीं और रखने का निर्णय पूरी तरह से जेल अधीक्षकों के हाथों में होता है. उनके कैदियों को लेकर अपनी एक समीक्षा होती है जिसके आधार पर वे उन्हें अंडा सेल में रखते हैं. हम उनके मामलों में दखल नहीं देते."
क्या ऐसा संभव नहीं है वे इस प्रक्रिया में कानून का उल्लंघन कर रहे हैं? इसके जवाब में वे कहते हैं, "आपको जेल अधीक्षक से बात करनी चाहिए."