डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट कहती है कि 2019 में दक्षिण पूर्व एशिया में 70 हज़ार से अधिक लोगों की मौत डूब कर मरने से हुई यानी औसतन 191 लोगों की मौत हर रोज़. भारत में यह आंकड़ा हर साल 50,000 मौतों से ऊपर है.
वह कहते हैं, “ड्राउनिंग शब्द का इस्तेमाल सामान्य रूप में कर लिया जाता है लेकिन यह जटिल मामला है. अगर किसी जगह नाव डूबती है तो वहां हुई मौतों का कारण ड्राउनिंग है लेकिन जब हमारे यहां (पहाड़ों में) फ्लैश फ्लड होता है तो आप नहीं जानते कि मौत किसी पत्थर से टकरा कर चोट लगने से हुई या डूबने से. पहाड़ों में अगर आप आत्महत्या जैसी वजहों को छोड़ दें तो आप मौत की वजह तकनीकी रूप से ड्राउनिंग नहीं कह सकते.”
रौतेला कहते हैं कि डूबने की घटनायें समुद्र तटीय इलाकों या उन क्षेत्रों में अधिक होती हैं जहां बड़ी नदियों को पार करने के लिये नावों इत्यादि का इस्तेमाल होता है. वैसे नदियों, झीलों और समुद्र तटों पर लोगों को यात्रा, रोज़गार और पढ़ाई-लिखाई यानी स्कूल जाने जैसे कार्यों के लिये पानी के पास जाना पड़ता है और कई बार दुर्घटनायें हो जाती हैं.
क्या हैं बचने के उपाय?
पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में आपदा प्रबंधन और शहरी इलाकों में क्लाइमेट से जुड़े मुद्दों पर काम कर रही संस्था इन्वायरेंमेंटल एक्शन ग्रुप, गोरखपुर के अध्यक्ष शिराज़ वजीह कहते हैं, “मैंने डूबने से हुई मौतों के पीछे वजह के तौर पर क्लाइमेट चेंज के असर का अध्ययन नहीं किया लेकिन यह स्वाभाविक बात है कि अगर कम वक्त में बहुत अधिक बारिश होगी और अचानक पानी बढ़ेगा तो डूबने का ख़तरा तो बढ़ेगा ही.”
वजीह के मुताबिक ऐसी घटनाओं को रोकने के लिये ग्रामीण इलाकों में जागरूकता, मूलभूत ढांचा और लोगों को बेहतर उपकरण या ट्रेनिंग उपलब्ध करानी होगी क्योंकि लोगों की दिनचर्या में बाढ़ और पानी शामिल है.
वह कहते हैं, “अगर आप उत्तर भारत के तराई वाले इलाकों में कोसी, गंडक या राप्ती बेसिन जैसे इलाकों को देखें तो पूरे जलागम क्षेत्र में काफी गड्ढे बने हुये हैं क्योंकि नदियां रास्ता बदलती रहती हैं और क्योंकि लोग भोजन या रोज़गार के लिये मछली पकड़ने यहां जाते ही हैं तो दुर्घटनायें भी होती रहती हैं.”
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में वॉटर सेफ्टी नियमों को लेकर ज़ोर दिया गया है. सभी देशों से एक राष्ट्रीय जल सुरक्षा योजना बनाने और लागू करने को कहा गया है. लोगों द्वारा पानी प्राप्त करने (एक्सिस टू वॉटर) या पानी से जुड़े रोज़गार को सुरक्षित किया जाये. उधर पूर्व ओलम्पियन और मार्था पूल्स (इंडिया) के मैनेजिंग डायरेक्टर हकीमुद्दीन हबीबुल्ला कहते हैं कि तैराकी को सिर्फ एक खेल तक सीमित न रखकर अधिक आगे ले जाने की ज़रूरत है. यह महत्वपूर्ण जीवन रक्षण का कौशल है और हर किसी को इसे सीखना चाहिये.
हबीबुल्ला के मुताबिक बच्चों को स्कूल में ही तैराकी सिखाने और वॉटर सेफ्टी की तकनीक सिखाने की नीति होनी चाहिये. बच्चों के लिये सुरक्षा की प्राथमिक ज़िम्मेदारी स्वयंसेवक, टीचर और अभिभावक के रूप में महिलाओं के हाथों में होनी चाहिये.
(साभार- कार्बन कॉपी)