पेगसस सॉफ्टवेयर के जरिए जिन पत्रकारों की जासूसी की गई या करने की कोशिश हुई. उसमें से एक नाम बिहार के 50 वर्षीय पत्रकार संजय श्याम का भी है.
‘‘चूंकि मैं खुद इन्हीं इलाकों से आता हूं तो मैं लोगों का दुख जानता था. इसलिए अपने कार्यक्षेत्र के रूप में इसे ही चुना.’’ सजंय कहते हैं.
‘लोगों को न्याय दिलाने के लिए कलम भी चलाया और सड़क पर भी उतरा’
जिस रोज यह सूचना आई कि पेगासस की सूची में इनका नाम भी है. उससे एक दिन पहले ही औरंगाबाद के एसपी ने संजय को अपने ऑफिस में बुलाकर घंटों पूछताछ की थी.
संजय कई घटनाओं का जिक्र न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए करते हैं. वे बताते हैं, ‘‘औरंगबाद के डुमरिया में एक रेफरल अस्पताल है. रेफरल अस्पताल का काम मरीजों का इलाज करना है, लेकिन वहां सीआरपीएफ वालों का कैंप था. वहां इलाज नहीं होता था. जिन इलाकों में ठीक से इलाज की व्यवस्था नहीं है. उन इलाकों में एक अस्पताल को कैंप में बदल दिया जाए. यह बेहद हैरान करने वाली बात है. मैंने इस पर रिपोर्ट की. सिर्फ रिपोर्ट ही नहीं की उस समय बिहार विधानसभा के अध्यक्ष उदयनारायण चौधरी के सामने इस मामले को उठाया भी. इसका असर भी हुआ और वहां इलाज शुरू हुआ.’’
संजय औरंगाबाद जिले की एक और घटना का जिक्र करते हैं, ‘‘जिले में देव थाने के चीलमी गांव है. साल 2015 के आसपास की बात है. यहां सीआरपीएसफ वाले अपने अभियान पर थे. गांव की रहने वाली राजकुमारी देवी, जंगल में बकरी चराने और लकड़ी बीनने गई थीं. वहां उसका बलात्कार हुआ. इसका आरोप सीआरपीएफ के लोगों पर लगा. गांव वालों ने जब इस घटना का विरोध किया तो उनके साथ जोर जबरदस्ती हुई. मैं इस खबर को करने के लिए वहां गया. राजकुमारी देवी का इंटरव्यू करवाया. ज्ञापन लेकर गांव वालों के साथ जिले के सीनियर अधिकारियों से मिला. संघषों के बाद इस मामले में एक सिपाही, जिसका नाम अभी मैं भूल रहा हूं, को सजा हुई. उसे जेल भेजा गया. अगर मैं इस खबर को नहीं करता तो अन्य खबरों की तरह यह भी दब जाती. इस तरह की कई घटनाओं में काम किया.’’
संजय पर औरंगाबाद के मदनपुर थाने में एक एफआईआर भी दर्ज है. यह एफआईआर क्यों दर्ज की गई. इस सवाल के जवाब में संजय कहते हैं, ‘‘मदनपुर क्षेत्र के अलग-अलग गांवों, जैसे असुराइन, कोठवा, शाजहांपुर में सीआरपीएफ का अभियान चलता था. यहां रहने वाले भुईयां जाति के लोग हैं. मेरे पास खबर आई कि यहां लोगों को पकड़कर मार दिया जा रहा है. मरने वालों में अवधेश भुईयां और दूसरे लोगों का नाम था. मैंने वहां पहुंचकर रिपोर्ट की.’’
संजय आगे कहते हैं, ‘‘एक दिन की बात है कि गांव की कुछ लड़कियां लौट रही थीं तो सीआरपीएफ के लोगों ने उनपर फब्तियां कसीं और पकड़ने की भी कोशिश की. गांव वाले इस घटना के विरोध में सड़क पर उतर गए. प्रदर्शन कर रहे लोगों को पकड़कर स्कूल में बंद कर दिया गया. तो बाकी गांव वालों ने स्कूल को घेर लिया. मामला बड़ा बन गया. अंत में समझौते के तहत लोगों को छोड़ा गया. ये कहा गया कि इस मामले पर जांच करेंगे. लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं. फिर गांव के लोग मदनपुर थाने चले गए. दरअसल वे ब्लॉक में ज्ञापन देना चाहते थे. लेकिन कोई भी जब ज्ञापन लेने नहीं आया तो उन्होंने ब्लॉक को घेर लिया और जीटी रोड जाम किया. यहां भारी मात्रा में पुलिस पहुंची और फायरिंग की. जिसमें एक महिला की मौत हो गई. कई लोग घायल हुए. मैंने इस पर रिपोर्ट की. जिसका परिणाम यह हुआ कि बाद में सरकार ने अपनी गलती मानी और पीड़िता के परिजनों को मुआवजा दिया गया.’’
‘‘इस घटना के एक साल के बाद कुछ लोगों ने श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया था. पुलिस उन्हें गिरफ्तार करके एफआईआर दर्ज कर दी. इसमें मेरा भी नाम था. जबकि मैं उस रोज वहां मौजदू ही नहीं था.’’ संजय कहते हैं.
जासूसी में नाम आने से डर लग रहा?
आपका फोन नंबर जासूसी के लिए दिया गया था. आपको इसका कारण क्या लगता है? इस सवाल के जवाब में संजय कहते हैं, ‘‘इसका सही-सही जवाब तो सरकार ही दे सकती है, लेकिन मुझे लगता है कि मेरी खबरें और मैं जिन मुद्दों के लिए खड़ा होता हूं उससे सरकार को डर लगता है. आप देखिए कोरोना महामारी पर दैनिक भास्कर ने अच्छी पत्रकारिता की तो उनके यहां छापा पड़ गया. ऐसे ही मैंने भी जो जनपक्ष से जुड़े हुए मुद्दों पर रिपोर्टिंग की है तो आप कह सकते हैं कि इन्हीं वजहों से मेरी फोन टैपिंग हुई होगी.’’
आपको डर लग रहा है? इस पर श्याम कहते हैं, ‘‘इसमें डरने का क्या सवाल है. पत्रकारिता का धर्म हर हालत में मानवता के पक्ष में खड़ा होना और सच को उजागर करना है. अगर मैंने इस धर्म का पालन किया है और इस वजह से मेरी फोन टैपिंग हुई है. इसके अलावा दमन के अन्य रूप मेरे ऊपर इस्तेमाल हो सकते है. ऐसे में मेरे डरने का सवाल ही नहीं उठता है.’’
बीते 17 जुलाई को ही संजय श्याम से औरंगाबाद के एसपी ने उनके नक्सलियों से संबंध के अलावा कई दूसरे सवाल पूछे थे. इसपर संजय न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘मेरे तो दोनों फोन नंबर टैपिंग के लिए इस्तेमाल किए गए थे. अब तो सरकार के पास जानकारी होगी कि मेरा किससे क्या संबंध है. सरकार को यह बात बतानी चाहिए. जहां तक माओवादियों से संपर्क का सवाल है. यह बेबुनियाद है. मैं लोकतांत्रिक मूल्यों में भरोसा करने वाला इंसान हूं.’’