यह खामोश महामारी रोगाणुरोधी प्रतिरोध, कोविड-19 और जलवायु परिवर्तन जितनी ही विनाशकारी है

रोगाणुरोधी प्रतिरोध यानी एंटी-माइक्रोबियल रेजिस्टेंस, एएमआर एक खामोश महामारी.

WrittenBy:सुनीता नारायण
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यह उत्पादकता बढ़ाने के लिए टूलकिट का हिस्सा बन गया है, जो किसानों की आजीविका सुरक्षा के मद्देनजर मुनासिब भी लगता है, जैसे कि कई वर्षों से कीटनाशकों तथा अन्य रसायनों का इस्तेमाल किया जाता रहा है. पर यह दावा जिस बात को नजरअंदाज करता है, वह है सघन पशुपालन के मामले में रोगाणुरोधकों का बेरहमी से इस्तेमाल. एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग या दुरुपयोग का संबंध हमारी भोज्य-प्रणाली से है. पशुओं को पाला कैसे जाता है; उनके बाहर आने-जाने की व्यवस्था क्या है, पशुशालाओं की व्यवस्था है या नहीं, कितनों के लिए ऐसी व्यवस्था है, और कितनी नायाब और नाज़ुक नस्लें गायब हो रही हैं, क्योंकि यह मामला खाद्य जगत में जैव विविधता से जुड़ा है. इन बातों का असर सीधे-सीधे हमारे आहार पर पड़ता है. लिहाजा, इसे उत्पादकता बनाम स्थिरता जैसे एक साधारण मुद्दे के तौर पर पेश करना मुनासिब नहीं होगा.

भोजन उत्पादन और पर्यावरण प्रबंधन के तौर-तरीकों को कायदे से संबोधित करने की आवश्यकता है क्योंकि रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) से इसका सीधा संबंध है. इसके लिए ऐसी रणनीतियों की जरूरत है जो सस्ती और प्रतिरोधी हों. आज जो दुनिया उभर रही है उसके सामने कई अहम चुनौतियां है सब एक पर एक. सभी चुनौतियों से एक साथ मुक़ाबले की आवश्यकता है. हमें अपने लोगों तक स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच को व्यापक व सुगम बनाना है, उन तक जीवन रक्षक दवाएं पहुंचानी है. हमें खाद्य उत्पादकता बढ़ानी है और यह सुनिश्चित करना है कि किसानों को आजीविका की सुरक्षा मिले. इसके उलट, मगर हम प्रदूषण के बाद सफाई की उच्च लागत वहन नहीं कर सकते.

लिहाज़ा बदलाव के अगले एजेंडे पर चर्चा जरूरी है. एक, यह सुनिश्चित करने के लिए कि मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर रूप से महत्त्वपूर्ण रोगाणुरोधी दवाओं का प्रयोग पशुओं या फसलों के लिए न किया जाए. आप इसे "संरक्षण एजेंडा" कह सकते हैं.

"विकास एजेंडा" को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम रोगाणुरोधी दवाओं के अंधाधुंध उपयोग के बिना खाद्य उत्पादन में वृद्धि जारी रखें. और "पर्यावरण एजेंडा" यह सुनिश्चित करना है कि औषधि उद्योग और मछली या पॉल्ट्री फॉर्म जैसे अन्य स्रोतों से निकलने वाले अपशिष्ट का बेहतर प्रबंधन किया जाए और उन्हें नियंत्रित किया जाए.

हमारी दुनिया में खेती से निकलने वाला कचरा कभी कचरा नहीं होता, बल्कि जमीन के लिए संसाधन होते हैं. लिहाजा हमें रोगाणुरोधी के उपयोग को रोकने की आवश्यकता है, ताकि खाद का पुनर्प्रयोग और पुनर्चक्रण मुमकिन हो पाये. हमें 'महत्त्वपूर्ण सूची' का संरक्षण करना चाहिए; हमें इसका उपयोग कम से कम करना चाहिए और रोकथाम में निवेश करना चाहिए ताकि हमें अच्छे स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए रोगाणुरोधी दवाओं का उपयोग न करना पड़े.

साथ ही स्वच्छ पेयजल और साफ-सफाई जैसे महत्त्वपूर्ण बिंदुओं को भी अपने एजेंडे में शामिल करना चाहिए, ताकि रोगाणुरोधी दवाओं के इस्तेमाल को न्यूनतम किया जा सके और जितना मुमकिन हो, रोगाणुरोधी प्रतिरोधक से बचाव हो पाये. यह हमारी दुनिया के लिए 'विध्वंस या निर्माण' का एक और एजेंडा हो सकता है.

(डाउन टू अर्थ से साभार)

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