क्या जून के शुरुआत में अत्यधिक मानसूनी बारिश देश में लंबी अवधि वाली बाढ़ का संकेत है?

देश में चरम वर्षा वाली घटनाएं बढ़ रही हैं जिसने भारत में बाढ़ से होने वाली मौतों की चिंता और बढ़ गई है.

WrittenBy:विवेक मिश्रा
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जून में बाढ़ निश्चित ही सीजनल खेती के लिए विनाशकारी है. मानसून कारकों के अलावा बाढ़ विषय के जानकार और बिहार के बाढ़, सूखा व आकाल के इतिहास पर काम कर रहे दिनेश मिश्र बताते हैं, "लोगों की स्मृतियों के अभाव होने और सरकारी दस्तावेजों में बाढ़ की सही सूरत न दर्ज किए जाने के कारण आजकल लोग भूल गए हैं कि बिहार ने मई और नवंबर दोनों महीने में काफी क्षति वाली बाढ़ देखी है. इसलिए यह कहना कि जून के शुरुआती महीने में बाढ़ एक नई चीज है यह गलत होगा. यहां तक कि बाढ़ का सीजन मई से भी कभी-कभी शुरू हो जाता है. जलवायु परिवर्तन हो रहा है, इसमें कोई संदेह नहीं है लेकिन सरकारें इसकी ओट में छुपने की कोशिश करती हैं और बाढ़ से पहले समुचित तैयारियों से नजर चुराती रहती हैं. इस वक्त एक भी नाव और सरकारी सहायता लोगों तक नहीं पहुंच रही है, यह हर वर्ष का दस्तूर बन गया है."

यदि बीते एक दशक में 2021 को छोड़कर बड़ी बाढ़ का अध्ययन करें जिनमें काफी जान-माल को नुकसान पहुंचा है. तो ऐसी कुल 12 बाढ़ हैं, जिनकी वजह भारी वर्षा, मानसूनी वर्षा और साइक्लोन के साथ की वर्षा रही है.

मेजर फ्लड : सारिणी

इस वर्ष 2021 के शुरुआत में ही फरवरी महीने में चमोली में बाढ़ ने काफी जान-माल को नुकसान पहुंचाया था.

दरअसल असमय और अल्प समय वाली तीव्र वर्षा फ्लैश फ्लड यानी अचानक विनाशकारी बाढ़ लेकर आ रही हैं. 14 अप्रैल, 2021 को जर्नल अर्त सिस्टम में प्रकाशित एक शोधपत्र में जर्मन शोधार्थियों की टीम को लीड करने वाले लेखक अंजा काटजेनबर्जर ने चेताया है कि हर एक डिग्री सेल्सियस वार्मिंग के कारण मानसून वर्षा में पांच फीसदी की वृद्धि हो सकती है. ग्लोबल वार्मिंग भारत में वर्षा को इस कदर बढ़ाने वाला है जैसा कि पहले कभी सोचा नहीं गया. यह 21 शताब्दी में मानसून का प्रबल आयाम है.

19 जून, 2021 को गोवा और कोंकड़ सब डिवीजन में दक्षिणी गोवा तट पर फ्लैश फ्लड की सूचना का खतरा मानसूनी वर्षा के बाद ही मंडरा रहा था. इसके अलावा 2013 की तरह ही ऋषिकेष में गंगा का स्तर काफी ज्यादा था.

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नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक हाल ही के शोध में कहा गया है कि केंद्रीय भारत में मानसून चक्र कमजोर होने के साथ औसत वर्षा कम हो रही है लेकिन चरम वर्षा की घटनाएं बढ़ रही हैं. इसके कई मिले-जुले कारण हो सकते हैं. अल नीनो इवेंट की तीव्रता और आकार (मैग्नीट्यूड) बढ़ने के साथ ही लैंड यूज में बदलाव, वायु प्रदूषण चरम वर्षा वाली घटनाओं के कारण हो सकते हैं. केंद्रीय भारत में वृहत चरम वर्षा घटनाएं 10 से 30 फीसदी तक बढ़ सकती हैं.

बाढ़ से मौतों (फ्लड मोर्टेलिटी) के कारण बाढ़ को दुनिया में सर्वाधिक विनाशकारी माना जाता है. इसमें भारत की स्थिति काफी चिंताजनक है.

वर्षा के कारण बाढ़ और चरम घटनाओं से होने वाली मौतों के मामले में डाउन टू अर्थ ने 13 अगस्त, 2019 को प्रकाशित अपने विश्लेषण में पाया था कि देश में बाढ़ के कारण सर्वाधिक मौतें उत्तराखंड में होती हैं और वर्ष 2008 से 23 जुलाई 2019 के बीच एक दशक में कुल 24 हजार मौतें देश में दर्ज की गई हैं.

एक अंतरराष्ट्रीय शोधपत्र में 1995 से 2006 तक दो दशक में बाढ़ से होने वाली मौतों (फ्लड मोर्टेलिटी) के अध्ययन में भी फ्लड मोर्टेलिटी को लेकर कहा गया है, "चीन की तरह भारत में भी एक दशक से दूसरे दशक तक बाढ़ की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हो रही है. लेकिन चिंताजनक यह है कि भारत में बाढ़ से मृत्यु (मोर्टेलिटी) चीन से काफी ज्यादा है. वर्ष 2006 से 2015 के बीच 90 बाढ़ ने 15820 जानें ली हैं और 1995 से 2005 के बीच कुल 67 बाढ़ के कारण 13660 लोगों ने जान गंवाई है. यदि भारत चीन का अनुसरण करता है तो वैश्विक स्तर पर बीते दशक में बाढ़ के कारण होने वाली मौतों की घटती हुई प्रवृत्ति को संभव है विस्तार मिले." ( पेज -9, स्रोत : पॉवर्टी एंड डेथ डिजास्टर मोर्टेलिटी )

बाढ़ के विनाश से बचने के लिए एक्सपर्ट पूर्वसूचना को प्रबंधन का बड़ा हथियार मानते हैं. हालांकि, यह अब भी एक बड़ी चुनौती है. पानी राज्य का विषय है और इसलिए केंद्र और राज्य आपस में कभी आसानी से प्रबंधन के लिए एकमत नहीं होते. उत्तराखंड में बार-बार अचानक होने वाली चरम वर्षा की घटनाओं में जान-माल नुकसान के लिए इसपर ही चिंता जताई जा रही है.

केंद्रीय जल आयोग ने 5 मई, 2021 को एक गंगा, सतलुज बेसिन में फ्लड फोरकास्टिंग के सवाल को लेकर पर अपने आधिकारिक ट्वीट में कहा, "जम्मू-कश्मीर की ओर से गुजारिश किए जाने के बाद वर्ष 2019 से एक मई महीने से ही झेलम नदी की बाढ़ फोरकॉस्टिंग शुरु कर दी गई है. यदि उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की सरकार भी हमसे रिक्वेस्ट करेगी तो हम ऐसा जरूर करेंगे."

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी रुड़की के डॉक्टर शरद कुमार जैन ने कहा, "इस वर्ष चमोली में बाढ़ की घटना ने स्पष्ट इशारा किया है कि हमें वर्ष भर बाढ़ की पूर्वसूचना (फोरकास्टिंग चाहिए). हमें कुछ मानकों को तैयार रखना होगा, जैसे ही थ्रेशहोल्ड पार करने की स्थिति बने हमें अलर्ट होना होगा. ऐसा अभ्यास हम समुद्री तटीय इलाकों में करने लगे हैं, यह बाढ़ से बचाव के लिए भी हो सकता है."

क्या यह बाढ़ लंबी अवधि तक रुक सकती है? शरद के जैन ने कहा, "इस प्रश्न का उत्तर स्पष्ट नहीं दिया जा सकता है. हां, यह जरूर है कि पानी का ड्रेनेज सिस्टम (तालाब, जलाशय, प्राकृतिक नालियां) खराब हुआ है जिससे वह ज्यादा देर तक टिकने लगी है.

(डाउन टू अर्थ से साभार)

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