24 जून को हिंदी अख़बार अमर उजाला के लखनऊ संस्करण का 13 वां स्थापना दिवस था. इस दिन अयोध्या, बाराबंकी और सीतापुर के विधायकों, सांसदों और भावी उम्मीदवारों ने विज्ञापन देकर पाठकों को शुभकामनाएं दीं.
17 जून को इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि पाठक दंपति से 18 मार्च को उसी जमीन का दो कट्टा सीधे ट्रस्ट ने खरीदा. यह जमीन 18.5 करोड़ वाली जमीन के आधी कीमत पर खरीदी गई थी. हालांकि अमर उजाला ने अयोध्या माय सिटी में रामालय ट्रस्ट के अविमुक्ततेश्वरानन्द के हवाले से खबर छापी कि जांच होने तक चम्पत राय और अनिल मिश्रा को हटाया जाए.
इंडियन एक्सप्रेस की इस खबर को अमर उजाला ने अगले दिन यानी 18 जून को फ्रंट पेज पर जगह दी. वहीं माय सिटी से जमीन से जुडी खबर गायब मिली.
अमर उजाला ने 19 अप्रैल को मुख्य अख़बार में अयोध्या जमीन विवाद पर तो कोई रिपोर्ट नहीं की लेकिन माय सिटी में इसको लेकर दो खबरें प्रकाशित की गईं. एक खबर में बताया गया कि आरएसएस के सह सर कार्यवाहक कृष्ण गोपाल ट्रस्ट से जमीन खरीद की तमाम जानकारी लेकर गए हैं. साथ में यह भी बताया कि निर्वाणी अखाड़े के प्रमुख धर्मदास चाहते हैं कि ट्रस्ट को भंग किया जाए. इसी रोज अख़बार ने हरीश पाठक के पूर्व के कारनामे को लेकर रिपोर्ट पब्लिश की. हालांकि न्यूज़लॉन्ड्री इसके बारे में 17 जून को ही बता चुका था.
19 जून को न्यूज़लॉन्ड्री ने अपनी एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में बताया कि अयोध्या मेयर और बीजेपी नेता ऋषिकेश उपाध्याय के भांजे दीप नारायण ने फरवरी 2021 में 20 लाख रुपए में एक जमीन खरीदी थी. जो तीन महीने बाद मई में 2.50 करोड़ रुपए में रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र को बेच दी. इस जमीन का सर्किल रेट 35.6 लाख रुपए है. इसके बाद कई चैनलों से इस खबर पर रिपोर्ट की लेकिन अमर उजाला ने 20 जून को अपने अख़बार में इस खरीद-बिक्री की कोई चर्चा नहीं की.
20 जून को अमर उजाला ने माय सिटी पेज पर एक रिपोर्ट छापी जिसका शीर्षक 'ट्रस्ट ने वेबसाइड पर डाला जमीन खरीद का ब्यौरा'. दरअसल यह खबर पुरानी थी. अख़बार ने जो जानकारी 20 जून को दी वो ट्रस्ट के महासचिव चम्पत राय 15 जून को ही ट्विटर के जरिए दे चुके थे. हैरानी की बात है कि इस जानकारी को अख़बार ने छह दिन बाद प्रकाशित करना क्यों ज़रूरी समझा?
मेयर के भांजे से ट्रस्ट ने जो जमीन खरीदी उसमें एक नया मोड़ तब आया जब आजतक की एक रिपोर्ट में सामने आया कि वो जमीन नजूल यानी सरकार की है. 21 जून को अमर उजाला ने अपने अख़बार के फ्रंट पेज पर इसको लेकर रिपोर्ट छापी जिसका शीर्षक मेयर के भांजे से नजूल की जमीन खरीदकर और फंस गया ट्रस्ट. वहीं माय सिटी में इसको लेकर कुछ भी नहीं छपा गया.
22 जून को ट्रस्ट द्वारा जमीन खरीद के विवाद से जुड़ी कोई खबर अमर उजाला में नहीं छपी. अयोध्या माय सिटी में अयोध्या के विकास कार्यों को लेकर खबरें छापी गईं जिसका शीर्षक ' सरयू किनारे उभारी जाएगी राम की यात्रा'. 23 जून को भी इस विवाद से जुड़ी कोई खबर प्रकाशित नहीं हुई. इस रोज भी अख़बार ने अयोध्या के विकास से जुड़ी खबर प्रकाशित की.
इसी बीच 22 जून को न्यूज़लॉन्ड्री ने अपनी एक एक्सक्लूसिव खबर के जरिए बताया कि, जिलाधिकारी ने एक जांच कमेटी बनाई थी जिसको पता करना था कि वह जमीन नजूल की है या नहीं. और इस जांच में सामने आया कि वह जमीन सरकारी है और उसे बेचा नहीं जा सकता.
इसके बाद लगातार अमर उजाला अयोध्या में निर्माण की खबरें छापता रहा.
अयोध्या के अलावा बाराबंकी और सीतापुर के एडिशन में भी नेताओं के इसी तरह के विज्ञापन छपे. बाराबंकी के दरियाबाद से बीजेपी विधायक सतीश वर्मा, सांसद उपेंद्र सिंह रावत, रामनगर से विधायक शरद अवस्थी का अमर उजाला के स्थापना दिवस पर बधाई देते हुए विज्ञापन छपा.
अयोध्या में जहां सिर्फ बीजेपी नेताओं का विज्ञापन छपा वहीं बाराबंकी में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेताओं ने भी अख़बार के स्थापना दिवस पर विज्ञापन दिया. समाजवादी पार्टी की तरफ से पूर्व केन्द्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा की पुत्रवधु रेनू वर्मा और पूर्व कारगार मंत्री राकेश वर्मा ने विज्ञापन दिया. वहीं कांग्रेस की तरफ से पीएल पुनिया के बेटे तनुज ने शुभकामनाएं देते हुए विज्ञापन दिया.
बाराबंकी में नेताओं ने एक कदम आगे बढ़कर बधाई देते हुए लिखा, ‘‘अमर उजाला के 13वें स्थापना दिवस पर उत्तम पत्रकरिता के लिए अमर उजला परिवार को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.’’
मीडिया और राजनीतिक दल
इस पूरे मामले पर मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार तंज कसते हुए कहते हैं, ‘‘अमर उजाला ने एक तरह से ठीक ही किया. जो बात हम जनता को रिपोर्ट और रिसर्च पेपर के जरिए समझाने की कोशिश कर रहे थे. अख़बार ने यह विज्ञापन छापकर जनता के सामने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी.’’
विनीत कुमार आगे कहते हैं, “कोई भी सरकार या राजनीतिक पार्टी किसी अख़बार या चैनल के कितना भी खिलाफ हो लेकिन वो पब्लिक डोमेन में कभी इसका इजहार नहीं करते हैं. ऐसे ही कोई भी कारोबारी मीडिया किसी सरकार या राजनीतिक दल की कितनी भी खुशामदीद करें लेकिन पब्लिक डोमेन में नहीं बताते कि हम किसी राजनीतिक दल के साथ हैं. इस घटना से आने वाले समय में अमर उजाला की इस स्तर पर फजीहत होगी कि वो कह नहीं सकेंगे कि वो कांग्रेस, बीजेपी या सपा से अलग हैं.’’
“राजनीतिक दलों से दूरी रखने से मीडिया की छवि बचती है. और राजनीतिक दलों के लिए मीडिया के खिलाफ जाने के बावजूद पब्लिक डोमेन में उसके साथ खड़े होने से उसकी छवि बनती है. इस प्रकरण से राजनीतिक दलों की छवि बनी और अख़बार की छवि ध्वस्त हुई है.” विनीत कुमार कहते है.
हालांकि भारतीय जनसंचार संस्थान दिल्ली के प्रोफेसर आनंद प्रधान इसे थोड़े बड़े स्तर पर देखते हैं. वे कहते हैं, ‘‘इस तरह की प्रक्रिया हम लम्बे समय से देख रहे हैं. अख़बार के ब्यूरो और रिपोर्टरों पर विज्ञापन लाने का दबाव होता है. बिहार और यूपी में व्यवसायिक प्रतिष्ठान बेहद कम हैं. ऐसे में अख़बार के कर्मचारी नेताओं से ही विज्ञापन लेते हैं. इसमें से उन्हें भी कमीशन मिलता है. ऐसे में पत्रकार की स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाती है. जिन लोगों पर पत्रकार रिपोर्ट करते हैं उनसे अगर विज्ञापन लेने का दबाव होगा तो वो खबर कैसे करेंगे.’’
कारवां पत्रिका के संपादक विनोद के जोश अपने एक लेख में लिखते हैं, ‘‘वैसे तो प्रोत्साहित करना आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास पैदा करने के लिए अच्छी बात मानी जाती है, लेकिन जब यही तारीफ सत्ता के दलालों की तरफ से आती है तो आपको उसे संदेह की नजर से देखना चाहिए. आपको समझना चाहिए कि वे भी आपके साथ संबंध बनाने की फिराक में रहते हैं. इसलिए उन्हें तरजीह ना दें.’’
जोसेफ के अलावा भी कई संपादक/पत्रकार अक्सर ही पत्रकारों को सत्ता से जुड़े लोगों से एक दूरी बनाए रखने का सुझाव देते रहते हैं. मीडिया एथिक्स में ऐसी बातें पढ़ाई जाती हैं, लेकिन हकीकत यह है कि ज़्यादातर पत्रकार सत्ता के करीब होने पर गौरवान्वित महसूस करते हैं. हाल में देखा गया कि पीएम मोदी के ट्विटर पर फॉलो करने पर पत्रकारों ने जश्न मनाया तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा अनफॉलो करने पर पत्रकार दुखी नजर आए.
अमर उजाला फैज़ाबाद के ब्यूरो चीफ धीरेन्द्र सिंह न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘जैसे आप अपना जन्मदिन मनाते हैं. वैसे ही अख़बार अपना स्थापना दिवस मनाता है. इसमें मुख्यमंत्री की तरफ से बधाई विज्ञापन आता है, नगरपालिका से आता है, नगर निगम से आता है, विधायक देते हैं. हमारे विज्ञापन विभाग के लोग जाते हैं और बताते हैं कि स्थापना दिवस है. वो विज्ञापन क्यों नहीं दे सकते हैं. सबसे बड़ी बात है कि वे सरकारी धन नहीं देते हैं. अगर वे विधायक या सांसद निधि से देते तो गैरकानूनी होता. यहां वे अपने पास से पैसे दे रहे हैं. अमर उजाला के साथ-साथ वे अपने कार्यकर्ताओं को भी शुभकामाना देते हैं. उसमें वे अपना काम बताते हैं.’’
राम मंदिर विवाद की खबरें माय सिटी से गायब मिलीं. इस सवाल पर सिंह कहते हैं, ''नहीं, ऐसा नहीं है. दूसरे अख़बारों की तुलना में अमर उजाला ने इस विवाद पर ज़्यादा काम किया है. हमने बताया कि जो जमीन बेचीं गई वो नजूल की थी.'' हम और सवाल पूछते उससे पहले उन्होंने नाराज़ होकर फोन रख दिया.