यह बांध एक ऐसी ज़मीन के ऊपर बनने वाला है, जिसके अंदर हलचल जारी है. भूकंप के लिहाज़ से यह सबसे संवेदनशील इलाका है.
2010 में एक अंतरराष्ट्रीय संस्था इंस्टीट्यूट फॉर एनवायर्नमेंटल साइंसेज (आइईएस) के लिए वैज्ञानिकों (मार्क एवरार्ड और गौरव कटारिया) के अध्ययन के अनुसार, यदि केवल महाकाली घाटी के पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं का आकलन किया जाए तो इस परियोजना की लागत, लाभ से कई गुना अधिक होगी. इस अध्ययन के अनुसार भारत और नेपाल को मिला कर घाटी के 80 हजार से ज्यादा लोग प्रभावित होंगे, जिसमें मुख्यतः किसान, मजदूर, मछुआरे हैं.
अगर बांध के नीचे के क्षेत्रों को जोड़ा जाए तो उत्तर प्रदेश और बिहार के उन इलाकों को भी कीमत चुकानी पड़ेगी जो शारदा के किनारे बसे हैं. वन संपत्ति के नुकसान की बात करें तो इस परियोजना में अकेले चंपावत जिले में ही तीन लाख से अधिक पेड़ डूब जाएंगे. क्षेत्र में पेड़ों की गिनती पूरी होने के बाद वन रेंज अधिकारी हेमचंद गहतोरी ने बताया, “हमारे अनुमान के मुताबिक वन भूमि में लगे तीन लाख से अधिक पेड़ केवल चंपावत जिले में ही बांध के पानी में डूब जाएंगे.” उन्होंने कहा कि निजी भूमि में लगे पेड़ों की गिनती अभी शुरू नहीं हुई है. पेड़ों की गिनती की कवायद में लगे गहतोरी ने कहा, “500 हेक्टेअर क्षेत्र में पेड़ों की गिनती की गयी और इसमें 36 दिन लगे." वन रेंज अधिकारी दिनेश चंद्र जोशी ने कहा, "पिथौरागढ़ वन प्रभाग में भी 69000 पेड़ बांध के पानी में डूब जाएंगे."
हाल ही में जारी पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय और उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की “स्टेट ऑफ इनवायरमेंट रिपोर्ट ऑफ उत्तराखंड” में बताया गया है कि महाकाली नदी पर पंचेश्वर बहुद्देशीय परियोजना के लिए नेपाल को भारत 1,500 करोड़ रुपये देगा. 315 मीटर की प्रस्तावित ऊंचाई का ये विश्व का दूसरा सबसे बड़ा बांध होगा जिससे 6,720 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा. ये प्रोजेक्ट कर्णाली और मोहना नदी के प्रवाह को नियंत्रित करेगा, जो उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी, पीलीभीत समेत तराई के अन्य क्षेत्रों में हर वर्ष बाढ़ की वजह बनती है. बांध के लिए बनने वाली झील में पिथौरागढ़, चंपावत और अल्मोड़ा के 87 गांव पूरी तरह डूब जाएंगे. पेड़-पौधों की 193 प्रजातियां, 43 स्तनधारी जीवों की प्रजातियां, चिड़ियों की 70 प्रजातियां, 47 तितलियों की और 30 मछलियों की प्रजातियों पर खतरा होगा.
महाकाली नदी पर प्रस्तावित पंचेश्वर बांध अपने साथ पर्यावरणीय, मानवीय, सांस्कृतिक संकट तो लाएगा ही, आशंका जतायी जा रही है कि भारत-नेपाल के बदलते रिश्तों के बीच सामरिक संकट की वजह भी बन सकता है. न केवल नेपाल बल्कि भारत में भी बुद्धिजीवियों और पर्यावरणविदों ने भी महाकाली संधि के भविष्य को लेकर सवाल उठाये हैं. पर्यावरण से जुड़े खतरों की अनदेखी कर इस बांध पर आगे बढ़ी सरकार को मौजूदा समय में इस पर नये सिरे से विचार करने की आवश्यकता है.
(साभार- जनपथ)