"अच्छा हुआ कि मेरी पहली दोनों फिल्में रिजेक्ट हो गईं वरना मैं कभी ‘लगान’ नहीं बना पाता"

15 जून 2001 को रिलीज होने के बाद इस फिल्म ने कामयाबी और तारीफ का नया इतिहास रच दिया.

Article image
  • Share this article on whatsapp

दो सालों की तैयारी और प्रतिभाओं का जुटान

आमिर खान की सहमति के बाद उनकी सलाह से निर्माताओं की तलाश जारी होती है. स्क्रिप्ट के प्रति अभिनेताओं की राय समझने के लिए कुछ अभिनेताओं से आशुतोष मुलाकात करते हैं. सभी को कहानी अच्छी और विशेष लगती है, लेकिन कोई भी जुड़ना नहीं चाहता. आमिर ने मना कर रखा है कि किसी निर्माता को मेरी सहमति के बारे में नहीं बताना. आमिर का नाम सुनते ही सभी राजी हो जाएंगे, लेकिन इस महंगी फिल्म की कहानी में उनका यकीन होना जरूरी है. इसी वजह से पहले निर्माता यकीन जाहिर करें तो आमिर का नाम बता दिया जाए.

हर तरफ से ना होने के बाद फिर से गेंद आमिर खान के पाले में आ जाती है. उनके दिमाग में उथल-पुथल चल रही है. वे बीच-बीच में आशुतोष से प्रगति की जानकारी लेते रहे हैं. आमिर खान निर्णय लेते हैं कि अगर इस फिल्म में काम करना है तो मुझे ही निर्माता बनना पड़ेगा. कैरियर के आरंभ में पिता की परेशानियों से सबक लेकर फिल्म निर्माण में नहीं उतरने का फैसला ले चुके आमिर खान पुनर्विचार करते हैं. अंतिम निर्णय लेने के पहले वे चाहते हैं कि आशुतोष उनके माता-पिता, पूर्व पत्नी रीना और फिल्म के फाइनेंसर जामू सुगंध को स्क्रिप्ट सुनाएं. अगर इन करीबियों को फिल्म पसंद आती है तो आमिर निर्माता बन जाएंगे. स्क्रिप्ट सभी को पसंद आती है और आमिर निर्माता बनने के लिए तैयार हो जाते हैं.

आमिर चाहते हैं कि उनकी प्रोडक्शन की पहली महत्वाकांक्षी फिल्म की टीम के सभी विभागों में प्रतिभाओं का जुटान हो. कलाकारों का चयन कड़े ऑडिशन के बाद लिया जाए. सबसे पहले प्रोडक्शन की जिम्मेदारी के लिए रीना तैयार होती है. फिल्म के प्रोडक्शन डिजाइनर के तौर पर नितिन चंद्रकांत देसाई का चुनाव होता है. उसके बाद एक-एक कर सभी विभागों के लिए फिल्म इंडस्ट्री की श्रेष्ठ प्रतिभाओं से संपर्क किया जाता है. कॉस्टयूम डिजाइनर ऑस्कर विजेता भानु अथैया हैं. कैमरे की जिम्मेदारी अनिल मेहता को दी जाती है. साउंड के लिए नकुल कामटे को चुना जाता है. फिल्म की थीम के अनुसार पुरबिया लहजे के संवादों के लिए लखनऊ के केपी सक्सेना से आशुतोष मिलते हैं. गीत के लिए जावेद अख्तर और संगीत के लिए एआर रहमान से बात होती है. जावेद अख्तर की प्रतिक्रिया आमिर और आशुतोष को हैरान करती है.

वे दो टूक शब्दों में कहते हैं, “इस स्क्रिप्ट में मुझे कई दिक्कतें हैं. अगर कोई मुख्यधारा की हिंदी फिल्मों की ‘अनावश्यक’ चीजों की सूची बनाए तो इस स्क्रिप्ट में वह सब मिलेगी.” उन्हें लगा कि यह दोनों का पागलपन या कमर्शियल आत्महत्या है. पूरी शिष्टता से आशुतोष और आमिर उनसे असहमति जाहिर करते हैं. अपनी आशंकाओं के बावजूद जावेद अख्तर गीत लिखने के लिए तैयार हो जाते हैं.

कलाकारों का चुनाव एक अलग कठिन प्रक्रिया रही. फिल्म के नायक भुवन की टीम के लिए ऐसे कलाकारों की जरूरत थी, जो सबसे पहले तो क्रिकेट खेल सकें. उसके बाद उन्हें अपनी भूमिका के हिसाब से गांव के कारीगरों के पेशे से वाकिफ होना चाहिए. वे अभ्यास कर उसे जल्दी से जल्दी सीख लें. अंग्रेजों की टीम के कलाकारों के लिए तय हुआ कि लंदन जाकर उनका चुनाव किया जाए. हिंदी की अन्य फिल्मों की तरह मुंबई और भारत में उपलब्ध गोर व्यक्तियों को कलाकारों के तौर पर नहीं लिया जाए. लंदन जाकर कलाकारों को चुनना आसान नहीं रहा. आशुतोष और रीना के फाइनल किए कलाकारों का ऑडिशन देखने के बाद दो कलाकारों के चुनाव में आमिर को भारी चूक लगी. अंतिम समय में उन्हें बदलना पड़ा. अनुबंध नहीं होने के बावजूद उनके लिए तय की गई राशि उन्हें दे दी गई. अमूमन ऐसा नहीं होता.

सबसे चुनौतीपूर्ण और नया फैसला फर्स्ट एडी के रूप में हॉलीवुड से किसी प्रोफेशनल को बुलाना था. एक शेड्यूल, एक लोकेशन में शूटिंग का फैसला लेने के बाद आमिर चाहते थे कि फर्स्ट एडी के लिए किसी प्रोफेशनल का आयात किया जाए. आशुतोष इसके लिए राजी नहीं थे. इसके बावजूद आमिर के जोर देने पर अपूर्व लाखिया को बुलाया गया. अपूर्वा ने शूटिंग की पुरानी परिपाटी बदल दी. उन्होंने शूटिंग का नया तौर-तरीका पेश किया, जिसे बाद में पूरी फिल्म इंडस्ट्री ने अपनाया.

और अंत में

15 जून 2001 को रिलीज होने के बाद इस फिल्म ने कामयाबी और तारीफ का नया इतिहास रच दिया. पिछले 20 सालों में इस फिल्म का प्रभाव बढ़ता ही गया है. यह फिल्म सही मायने में 21वीं सदी की हिंदी की पहली क्लासिक फिल्म है.

Also see
article imageफिल्म लॉन्ड्री: किस्सा ख्वानी बाज़ार में गूंजेंगे दिलीप कुमार और राज कपूर के किस्से
article imageफिल्म लॉन्ड्री: 'कर्णन' प्रतिष्ठा और समान अधिकार का युद्ध
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like