गांव के मुस्लिम समुदाय पर आरोप है कि उन्होंने दलितों की बारात को रोकने की कोशिश ही नहीं की बल्कि बारातियों और स्थानीय लोगों से मारपीट भी की.
गांव के ज़्यादातर मुसलमान उस दिन किसी भी तरह के झगड़े से इंकार करते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए बार-बार वे कहते हैं कि इतना बड़ा विवाद नहीं था. मीडिया के लोगों ने इसे बड़ा बना दिया. 65 वर्षीय बुजुर्ग शेर मोहम्मद यहां के ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल (बीडीसी) रह चुके हैं. जब वे बीडीसी थे तो उन्हें दलित समुदाय को बारात घर बनाने के लिए 30 हज़ार रुपए की मदद की. यह दावा वे खुद करते हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए शेर मोहम्मद स्थानीय हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिशाल देते हैं. वे कहते हैं, ‘‘यहां हिंदुओं की बारात भी खूब प्यार से चढ़ती थी. हमने खुद कई सारी शादी कराई हैं. हम उनमें जाते हैं वे हमारे में आते हैं. खूब प्यार मोहब्बत है. यहां कुछ लोग ऐसे हैं जो बीजेपी में नए-नए शामिल हुए हैं. वो दंगा कराना चाहते हैं ताकि उनकी पार्टी में पूछ बढ़े. बस यही बात है.’’
26 मई को क्या हुआ इस सवाल पर शेर मोहम्मद आजम की बात को ही दोहराते हैं. वे कहते हैं, ‘‘हल्की धक्का मुक्की हुई. जहां तक रही ओमप्रकाश के पैर में चोट लगने की बात तो उसकी दीवार बन रही थी जो गिर गई और चोट लग गई. धन्ना सेठ सीढ़ी पर से गिर गया तो उसके पैर में चोट आई है. अगर ईट पत्थर चलता तो सर में लगता पैर में थोड़ी न लगता. डंडा लाठी कुछ भी नहीं चला.’’
शेर मोहम्मद को उम्मीद है कि गांव में पूर्व की तरफ भाईचारा फिर से कायम होगा. हालांकि इससे पूर्व बारात रोकने के सवाल पर वे कोई साफ़ जवाब नहीं देते हैं. लेकिन एक नौजवान जिनका नाम तारीक है. वे जरूर बताते हैं, ‘‘पूर्व में या उस दिन. जब भी नमाज़ के वक़्त बारात आई तो हाथ जोड़कर हमने बस यह कहा कि मस्जिद के आगे डीजे मत बजाओ. आगे जाकर बजा लो. नौ मई को रमजान चल रहा था. उसमें हमारे यहां तरावीह होती है. हमने बोला तो लोग मान गए. कई शादियों में लोग नशा करके आते है. वे लोग ही हंगामा करते हैं. हालांकि अब सब कुछ शांत है.’’
घर पर क्यों लिखा गया 'यह मकान बिकाऊ है'
घटना के चार दिन बाद ओमप्रकाश ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. उसके तीन दिन बाद दीवारों पर लिख दिया गया कि यह मकान बिकाऊ है. आखिर ऐसा लिखने की ज़रूरत क्यों पड़ी?
इस सवाल का जवाब देते हुए ओमप्रकाश कहते हैं, ‘‘वो इसलिए लिखा है क्योंकि ये जब कभी इस तरह की घटना करते हैं तब तो पंचायत में कहते हैं कि आगे कुछ नहीं होगा, लेकिन आगे ऐसा ही होता है. इसी हरकतों से तंग आकर कि ये हमारी बहन- बेटियों की शादी नहीं होने दे रहे हैं. बारात नहीं चढ़ने दे रहे हैं. रिश्ते के लिए कहीं जाते हैं तो वहां लोग मना कर देते हैं कि हम इस गांव में शादी नहीं करेंगे क्योंकि यहां के लोग दबे हुए हैं. इसलिए मज़बूर होकर हमने यह लिखा कि हम ये गांव छोड़कर जा रहे हैं. क्योंकि अगर हमारा यहां मान सम्मान नहीं होगा तो हम किस लिए रहेंगे.’’
गांव के एक नौजवान दीवारों पर ऐसा लिखने का दूसरा कारण बताते हैं. वे कहते हैं, “प्रशासन पहले हमारी शिकायत पर ध्यान नहीं दे रहा था. जब हमने अपने घरों पर इसे बेचने की बात लिखी तो मीडिया वाले आए और खबर हुई. उसके बाद ही प्रशासन ने गंभीरता से लेना शुरू किया और आरोपियों की गिरफ्तारी शुरू हुई.”
'मकान बिकाऊ है' यह वाक्य अब ज़्यादातर घरों पर से मिटा दिया गया है. लेकिन क्या मन से वो भय मिट पाया जिस वजह से लोग लिखने पर मज़बूर हुए? क्या अब भी लोग घर छोड़कर जाना चाहते हैं. इस सवाल के जवाब में ओमप्रकाश कहते हैं, ‘‘हम यहां माहौल शांत है. पुलिस प्रशासन हमारी मदद कर रहा है. हम हर तरह से उससे संतुष्ट हैं. अब हम घर छोड़कर नहीं जाने वाले और ना ही कोई समझौता करने वाले हैं. हमने जो मामला दर्ज कराया है उसमें शामिल सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर उन्हें कठोर सजा दी जाए. हम केस लड़ेंगे.’’
32 वर्षीय शिवराज सिंह साल 2014 से बीजेपी से जुड़े हुए हैं. मुस्लिम समुदाय के लोग इनपर भी राजनीति करने का आरोप लगा रहे हैं. इस आरोप पर न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए सिंह कहते हैं, ‘‘ऐसा कुछ नहीं है. लोगों ने अपनी मर्जी से अपने घर पर लिखा है. मैंने भी अपने घर पर लिखा. ऐसा इन्होंने पहली बार नहीं किया है. इससे पहले भी इस तरह की घटनाएं हुई हैं. अब हालांकि माहौल शांत है. हम कोई राजनीति नहीं कर रहे हैं. ये बारात ना रोके तो हम लड़ने तो जा नहीं रहे हैं.’’
अब गांव में शांति का माहौल है. जिसकी तस्दीक यहां सुरक्षा में तैनात पीएससी के कई जवान भी करते हैं. एक जवान जो यहां बीते तीन दिनों से तैनात हैं, न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘मीडिया में खबरों को देख लगा था कि दंगे की स्थिति बन चुकी है, लेकिन यहां हमें सब सही नजर आ रहा है. हमें तो लग ही नहीं रहा की यहां कोई विवाद भी हुआ है.’’
यहां शांति तो ज़रूर नजर आने लगी है, लेकिन लोगों के मन में एक दूसरे के प्रति अविश्वास भी साफ नजर आता है. दलित समुदाय के लोग बार-बार के असम्मान से खफा नजर आते हैं. वहीं हिंदूवादी संगठनों का भी यहां आना जाना शुरू हो गया है. ऐसे में किसी बड़ी अनहोनी से भी इंकार नहीं किया जा सकता है. हालांकि पुलिस अधिकारी ऐसी किसी भी संभावना से इनकार कर स्थिति को सामान्य बताते हुए नजर आते हैं.