अब आसपास के इलाकों में युवाओं द्वारा चिपको आंदोलन शुरू किया गया है. इसमें लोग पेड़ों से चिपककर अपना विरोध दर्ज कर रहे हैं.
स्थानीय पत्रकारों द्वारा जब विधायक प्रदुम्न सिंह से जंगल और हीरा कंपनी के बारे में पूछा गया, तो इस पर उन्होंने कहा, "इसका विरोध कुछ कुंठित मानसिकता के लोग कर रहे हैं. लीज 50 साल के लिये है पूरे पेड़ एक दिन में नहीं कट जायेंगे. कितने पेंड कटेगें यह पहले से कैसे कह सकते हो? इसके पहले भू-गर्भ अधिकारी व पर्यावरण विभाग के अधिकारी मौके पर जाकर देखेंगे. और फिर काम शूरू होने से पहले सरकार और कंपनी जिम्मेदारी के साथ पेड़ लगाना शुरू करेंगी. एक पेंड़ के बदले 15 पेड़ लगाएं जाएंगे. विरोध वो कर रहे हैं जिन्होंने विकास कभी देखा ही नहीं. ये मानसिक रूप से ग्रस्त लोग हैं जिनका काम ही विरोध करना है.
इस जंगल के सबसे नजदीक सगोंरिया, हिंरदेपुर, हरदुआ, तिलई, कसेरा, तिलई, बीरमपुरा और जगारा गांव हैं.
सगोंरिया जंगल से लगा हुआ गांव है. यह एक आदिवासी बाहुल्य गांव है. यहां के लोगों का जीवन यापन जंगलो पर निर्भर है. स्थानीय लोग पशुपालन व खेती पर निर्भर हैं. स्थानीय लोगों का कहना हैं अगर जंगल पूरी तरह खत्म हुए तो हमें जानवरों को करीब 12 किलोमीटर दूर से लाना पड़ेगा. यहां अच्छे रास्ते नहीं हैं इससे हमें और ज्यादा परेशानी होगी. अभी जंगल नजदीक में है तो हमें परेशानी नहीं होती है.
हिंरदेपुर आदिवासी बाहुल्य इलाके की जनसंख्या करीब 200 है. जिसमें उनके जीवन यापन का मूल सहारा जंगल ही हैं. स्थानीय लोग कहते हैं, कि अभी हम केवल जंगल पर ही पूरी तरह आश्रित है. कंपनी के आने से हमें जीवन यापन में सहायता होगी, लेकिन पूरे वन को खत्म करने से हमारा भी जीवन खत्म हो जाएगा.
हरदुआ पूरी तरह जनजातीय बाहुल्य क्षेत्र है. यहां पर केवल आदिवासी लोग ही मौजूद हैं. स्थानीय निवासी तरजू बारेला कहते हैं, "मेरे 100 महुआ के पेड़ हैं. जो काट दिए जाएंगे. हम पूरी तरह से इन्हीं पेड़ों पर आधारित हैं. अगर ये पेंड़ काट दिए जायेंगे तो हम खाएंगे क्या. सरकार जो आंकड़ें बता रही है वो पूरी तरह झूठे हैं. इतने पेड़ तो केवल एक साइड मौजूद हैं और ये जंगल चारों तरफ से घिरा हुआ है."
बता दें कि स्थानीय लोगों द्वारा जंगल बचाने की जद्दोजहद जारी है. साथ ही आसपास के इलाकों में युवाओं द्वारा चिपको आंदोलन शुरू किया गया है. इसमें लोग पेड़ों से चिपककर अपना विरोध दर्ज कर रहे हैं.