कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद दैनिक जागरण कैसे दिला रहा है किसानों को फायदा?

हरियाणा में सरसों की खरीद को लेकर दैनिक जागरण और बीजेपी नेताओं का बेबुनियाद दावा.

WrittenBy:बसंत कुमार
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भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सोशल मीडिया विंग की नेशनल इंचार्ज प्रीति गांधी ने शनिवार को दैनिक जागरण अख़बार की एक खबर साझा करते हुए लिखा, Thanks to #FarmLaws, farmers in India are reaping gold!' इस ट्वीट को केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी समेत हज़ारों लोगों ने रीट्वीट किया.

प्रीति गांधी ने दैनिक जागरण के जिस खबर को साझा किया उसका शीर्षक ‘समर्थन मूल्य छूटा पीछे, खुले बाजार में सरसों के मिले कई गुना ज़्यादा दाम’ हैं. चंडीगढ़ से लिखी गई इस खबर के शीर्षक के बिलकुल नीचे जागरण ने बड़े अक्षरों में लिखा है ‘नए कृषि कानून के फायदे’.

आगे अपनी खबर में जागरण लिखता है, ‘‘देशभर में किसानों के लिए यह अच्छी खबर है. नए कृषि सुधार कानूनों के जरिए मनचाही कीमत पर फसल बेचने की छूट का परिणाम दिखने लगा है. इस बार हरियाणा और पंजाब में सरसों की फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य कई गुना ज़्यादा भाव खुले बाजार में मिला है.’’ दैनिक जागरण की पूरी खबर का स्वर यह बताना है कि नए कृषि कानूनों के कारण किसानों को लाभ मिला है.

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दैनिक जागरण की इस खबर को एनडीटीवी के पत्रकार अखिलेश शर्मा ने भी साझा किया. इनके ट्वीट का स्वर भी जागरण खबर की तरफ कृषि कानूनों की तारीफ करना था. शर्मा ने जागरण की खबर साझा करते हुए लिखा, ‘‘हरियाणा के किसानों की पौ-बारह हो गई. एमएसपी से काफी अधिक दामों पर खुले बाजार में जमकर बिकी सरसों. मंडी में एक दाना तक नहीं आया. नए कृषि कानून में है खुले बाजार में बेचने का विकल्प.’’

न्यूजलॉन्ड्री ने यह दावा गलत पाया कि सरसों की कीमत में वृद्धि का नए कृषि कानूनों से कोई संबंध है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी को कृषि कानूनों पर रोक लगा दी थी. रोक लगाने के साथ ही कोर्ट ने किसानों से बातचीत करने के लिए एक कमेटी का गठन भी किया था. जानकारी के मुताबिक इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंप दी है, हालांकि कानून लागू होने पर रोक अभी भी जारी है.

ऐसे में जिस कानून पर जनवरी में ही रोक लगा दी गई थी उसे मार्च-अप्रैल में मंडी में बिक्री के लिए आए सरसों के ज़्यादा कीमत मिलने का कारण बताना गलत है.

किसान आंदोलन को लेकर दैनिक जागरण की पत्रकारिता सवालों के घेरे में रही है. नाराज़ किसानों ने इस अख़बार को आंदोलन के दौरान जलाया भी है. एक तरह किसान दिल्ली के बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे थे तो दूसरी तरह जागरण उत्तर प्रदेश में चार वैन शहर-शहर घुमाकर सरकार द्वारा किसानों के लिए चलाई जा रही योजनाओं का प्रचार कर रहा था.

इस खबर को भी जानबूझकर कृषि कानून से जोड़ा गया. इतना ही नहीं शीर्षक में लिखा गया कि एमएसपी से कई गुना ज़्यादा दाम जबकि सरसों का एमएसपी 4650 रुपए था वहीं जागरण के मुताबिक ही खुले बाजार में 7000 से 7300 रुपए बिका. अब यह दोगुना भी नहीं हुआ, लेकिन जागरण इसे कई गुना लिख रहा है.

एमएसपी से कम कीमत पर कई उत्पाद बेचने को मज़बूर किसान

गुरुग्राम के सकतपुर गांव के रहने वाले किसान हबीब खान ने अपना सरसों प्राइवेट खरीदार को ही बेचा है. सरकार ने जहां सरसों के लिए एमएसपी 4650 रुपए रखा था वहीं खान को खुले बाजार में 5100 रुपए का भाव मिला. दूसरी तरफ खान को बाजरे का कोई खरीदार नहीं मिला. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए खान बताते है, ‘‘सरकार ने बाजरे के लिए एमएसपी 2150 रुपए तय की थी, लेकिन हमारा बाजरा बिक नहीं पाया. बाहर 1200 रुपए से ऊपर कोई लेता ही नहीं है. मेरा एक दाना भी नहीं बिका. सब घर में पड़ा है. अपने पशुओं को खिला रहे हैं.’’

न्यूज़लॉन्ड्री ने एक रिपोर्ट के सिलसिले में फरवरी महीने में सकतपुर के रहने वाले भीम सिंह से बात की थी. तब उन्होंने बताया था, ‘‘हमारे यहां अधिकतर किसान गेहूं, बाज़रा और सरसों ये तीनों फसलें उगाते हैं. इस साल जिन लोगों ने बाजरा उगाया उनका अब तक घरों में ही पड़ा हुआ है. सरकार ने इसका एमएसपी 2150 रुपए निर्धारित किया लेकिन वे बेचारे 1100-1200 रुपए तक में भी नहीं बेच पा रहे हैं. 800 से 1000 रुपए में उन्हें बेंचना पड़ रहा है. मेरे घर पर ही कई क्विंटल बाजरा रखा हुआ है. हम अपने पशुओं को खिला रहे है.’’

इसी दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों में एमएसपी में अपने उत्पाद बेचने के लिए किसानों को प्रदर्शन करना पड़ा. अप्रैल महीने में ही ग्रेटर नोएडा के दनकौर अनाज मंडी में किसानों ने प्रदर्शन किया. उनका आरोप था कि एमएसपी पर वे अपना गेहूं नहीं बेच पा रहे हैं. अप्रैल में टीवी 9 भारतवर्ष ने एक रिपोर्ट में बताया कि सरकार ने मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1850 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है, लेकिन देश के ज्यादातर राज्यों के खुले बाजार में किसान इसे औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर हैं. मक्का उत्पादक प्रमुख राज्य महाराष्ट्र की ज्यादातर मंडियों में किसानों को 1555 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे ही इसका रेट मिल रहा है.

स्मृति ईरानी ने भी किया इस खबर को रीट्वीट

अगर कुछ देर के लिए मान भी लें की सरसों को एमएसपी से ज़्यादा कीमत नए कृषि कानूनों के कारण मिली तो बाजरे या गेहूं के साथ ऐसा क्यों नहीं हुआ. आखिर क्यों किसान बाजरा अपने पशुओं को खिलाने पर मज़बूर हैं क्योंकि उन्हें एमएसपी से आधी कीमत बाजार में मिल रही है?

दिल्ली के बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले स्वराज इंडिया के प्रमुख योगेंद्र यादव भी इसी तरफ इशारा करते हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए यादव कहते हैं, ‘‘सरकारी और दरबारी लोग इस प्रयास में लगे रहते हैं कि किसानों के बारे में कुछ सकारात्मक खबर चलाई जा सके. उन बेचारों को ऐसा कुछ मिलता नहीं है. ऐसे में वे खोद-खोदकर लाते हैं और बेतुके कनेक्शन बताते हैं. जैसे सरसों की फसल का इस बार अच्छे दामों पर बिकना. अगर वो इन कृषि कानूनों के कारण हुआ है तो चने का कम बिकना, चने की जो बुरी हालत हुई. जौ की, गेहूं की एमएसपी से कम पर बिक्री, ये किस कारण से हुआ. क्या सरसों के लिए अलग क़ानून बने थे?’’

यादव आगे कहते हैं, ‘‘इसके अलावा भी यह तर्क बेतुका है क्योंकि इन तीनों कानूनों पर अभी तो सुप्रीम कोर्ट का स्टे लगा हुआ है. तो जो कानून अभी लागू ही नहीं है उसे फायदा बताना, इससे बेतुकी बात क्या हो सकती है. हकीकत यह है कि इससे केवल उनकी छटपटाहट और असहायता नजर आती है. दरअसल इनके पास दिखाने और बताने को कुछ है नहीं इसलिए पहले खाद का दाम बढ़ा देते हैं. फिर उसके बाद उसे कम कर पुराने स्तर पर लाते हैं और फिर तालियां बजाते हैं कि देखिए प्रधानमंत्री ने कितना बड़ा काम कर दिया. इस तरह के बेतुके प्रचार चलते रहते हैं, लेकिन इसका किसानों पर कोई असर नहीं है.’’

इसको लेकर हमने चंडीगढ़ में दैनिक जागरण के स्थानीय संपादक अमित शर्मा और एनडीटीवी के पत्रकार अखिलेश शर्मा को सवाल भेजे हैं. खबर प्रकाशित किए जाने तक उनका कोई जवाब नहीं आया. अगर जवाब आता है तो खबर में जोड़ दिया जाएगा.

सरसों की कीमत में वृद्धि का क्या है कारण

भले ही सोशल मीडिया पर बीजेपी से जुड़े और उनसे सहानुभूति रखने वाले लोग सरसों को एमएसपी से ज़्यादा कीमत मिलने का कारण कृषि कानूनों को बता रहे हैं, लेकिन हमने पाया की यह सच नहीं है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि सरसों की कीमत में बेतहाशा वृद्धि हो क्यों रही है.

भारत सरकार के उपभोक्ता मंत्रालय के मुताबिक 15 मई 2020 को देश में सरसों के तेल की कीमत 132 रुपए प्रति लीटर थी, जो एक साल बाद 15 मई को 179 रुपए प्रति लीटर हो गई. ऐसे ही बाकी खाद्य तेलों में इजाफा देखने को मिला.

रूरल वॉइस इन के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार हरवीर सिंह कहते हैं, ‘‘खाद्य तेलों में बेतहाशा वृद्धि का कृषि कानूनों से कोई लेना देना नहीं है, अंतरराष्ट्रीय मार्केट से लेना देना है.’’

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए सिंह कहते हैं, ‘‘इंडोनेशिया और मलेशिया में पाम ऑयल का उत्पादन बुरी तरह से गिर गया है. इससे अंतराष्ट्रीय बाजार में पाम ऑयल की कीमत काफी बढ़ गई है. ऐसे में हमारे पास जो सबसे बड़ा खाद्य तेल है, वो सरसो है. जिस कारण सरसों के तेल की कीमत फरवरी के आसपास में बढ़ने लगी. जिसके बाद जो ट्रेंडर को लगा कि जितना सरसों आपके पास होगा उतनी आपकी कमाई होगी. तो वे लोग सीधे मार्केट में उत्तर गए और खूब खरीदारी की. फरवरी महीने में जब सरसों की फसल बाजार में आई उसी वक़्त कीमत एमएसपी से ऊपर चला गया. सोया तेल की भी कीमत अंतराष्ट्रीय बाजार में बढ़ी हुई है.’’

सिंह आगे कहते हैं, ‘‘भारत अपने कुल खर्च का 65 प्रतिशत तक खाद्य तेल आयात करता है. अब जब अंतरराष्ट्रीय मार्केट में पाम ऑयल की कीमत में वृद्धि हुई तो उसका जो विकल्प यानी सरसों के भी दाम में वृद्धि होगी. सरसों तेल के दाम लगभग 200 रुपए लीटर पहुंच गए हैं.’’

सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के मुताबिक भारत में अप्रैल 2021 में 1,053,347 टन वनस्पति तेल का आयात हुआ बीते साल अप्रैल 2020 में कुल 798,715 टन आयात हुआ. इस तरह अप्रैल महीने में बीते साल की तुलना में 32 प्रतिशत ज़्यादा आयात की गई. न्यूज़ 18 की रिपोर्ट के मुताबिक देश के कुल वनस्पति तेल के आयात में पाम ऑयल की हिस्सेदारी 60 फीसदी से ज्यादा की है.

सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया द्वारा जारी आयात के आंकड़े

एक तरफ इंडोनेशिया और मलेशिया में तेल का उत्पादन कम हुआ दूसरी तरह भारत सरकार ने 2020 में अपने बजट में एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपमेंट सेस लगाना शुरू कर दिया. अभी पाम ऑयल पर एग्री सेस 17.50 फीसदी और सूरजमुखी एवं सोयाबीन तेल पर 20 फीसदी है. ऐसे में इनकी कीमतों में वृद्धि होना ही था और ऐसा हुआ भी. भारत सरकार के उपभोक्ता मंत्रालय के मुताबिक वनस्पति तेल की कीमत में 30 रुपए की, मूंगफली तेल में 48 रुपए, सूरजमुखी में 78 रुपए और पाम ऑयल में 35 रुपए की वृद्धि बीते एक साल के अंदर हुई है.

मीडिया रिपोट्स की माने तो तेल की बढ़ती कीमतों को देखकर सरकार ने इसके आयात पर लगने वाले एग्री सेस को घटाने को लेकर विचार कर रही है.

इसके साथ सरसों के तेल में वृद्धि का एक और कारण हरवीर सिंह बताते हैं कि सरकार द्वारा 2020 से सरसों के तेल में अन्य तेल मिलाने पर लगी रोक भी मानते है. वे कहते हैं, ‘‘पहले जो सरसों तेल बाजार में आता था वो सिर्फ सरसों का तेल नहीं होता था. उसमें मिलावट की इजाजत थी तो लोग उसमें पाम ऑयल मिला देते थे. लेकिन अभी मिलावट बंद कर दी गई है. जिसके कारण सरसों का तेल और महंगा हो गया है.’’

इसके अलावा जानकार लॉकडाउन को भी इसके लिए जिम्मेदार मानते है. समान्यत: भारत की एक बड़ी आबादी अपने घर पर सरसों के तेल का इस्तेमाल करती है. लॉकडाउन के कारण ज़्यादातर लोग घरों पर हैं. ऐसे में तेल की खपत बढ़ गई है. तेल की खपत बढ़ने से उसकी मांग तो बढ़ी, लेकिन उपलब्धता ज़्यादा नहीं होने से कीमत में वृद्धि देखने को मिल रही है.

सरसों की कीमत के वृद्धि में कई कारण है, लेकिन वह कारण नहीं हैं जो बीजेपी नेता और दैनिक जागरण ने बताए.

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