हरियाणा: किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए गोद लिए दो गांवों की कहानी

कृषि विज्ञान केंद्र की प्रमुख की माने तो गांव गोद लेने के लिए कह तो दिया गया, लेकिन इसके लिए अलग से हमें कोई बजट नहीं दिया गया.

WrittenBy:बसंत कुमार
Date:
   

‘आमदनी बढ़ने की बात ही नहीं, 2022 तक हमें खेत न बेचना पड़े’

हमने दोनों गांवों में कई किसानों से सरकार द्वारा 2022 तक किसानों की आमदनी बढ़ाने को लेकर किए गए वादों पर सवाल किया तो ज़्यादातर किसानों का कहना है कि आमदनी बढ़ने के बजाय घट रही है. उत्पाद की कीमत की तुलना में खेती में खर्च ज़्यादा बढ़ रहा है.

सकतपुर गांव के हबीब खान आगे कहते हैं, ‘‘जहां तक रही साल 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात तो ये तो भूल ही जाइये. आमदनी लगातार कम हो रही और खर्च में इजाफा हो रहा है. ऐसे में आने वाले समय में लोग खेत बेचना शुरू कर देंगे.’’

भीम सिंह का भी ऐसा ही मानना है. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए सिंह कहते हैं, ‘‘हमारे गांव के ज़्यादातर किसान गेहूं और बाजरे की खेती करते हैं. जिन्होंने पिछले सीजन में बाजरा उगाया उन किसानों का बाजरा अभी घरों में पड़ा हुआ है. सरकार ने बाजरे के लिए 2200 रुपए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) निर्धारित किया था. जिनका बाजरा नहीं बिका वो अब उसे 1100 से 1200 रुपए में भी नहीं बेच पा रहे हैं. उन्हें आठ-नौ सौ रुपए में बेचना पड़ रहा है. ऐसा ही रहा तो उनकी आमदनी साल 2050 तक भी दोगुनी नहीं हो पाएगी.’’

लोकरा गांव के रहने वाले हरपाल यादव 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने को लेकर कहते हैं, ‘‘सरकार हर बार गेहूं और बाकी उत्पादों पर जो एमएसपी बढ़ा कर दे रही है वो 100 से 150 रुपए है. उतना ही खर्चा बढ़ता जा रहा है. यूरिया जितने में 50 किलो आता था उतने में अब 45 किलो आ रहा है. गेहूं के जो नए बीज हम बोते हैं वो प्राइवेट में 1200 से 1500 रुपए किलो लेना पड़ता है. सरकार से जो मिला है वो बेकार वाला मिला है. डीजल महंगा होता जा रहा है. मज़दूरी महंगी होती जा रही है तो हमारी आमदनी दोगुनी कैसे हो जाएगी.’’

लोकरा गांव के सरपंच पंकज शील का भी ऐसा ही मानना है. वे कहते हैं, ‘‘हर साल एमएसपी में 50 से 100 रुपए की वृद्धि होती है. किसान तो दुखी हो रहे हैं. साल 2014 में गेहूं की एमएसपी 1600 से 1700 रुपए हुआ करती थी. इस साल 1925 रुपए है. अगले साल तक 1975 रुपए हो जाएगी. छह साल में 200 से 300 रुपए की वृद्धि हुई है, ऐसे में किसानों की आमदनी दोगुनी कैसे हो जाएगी.’’

‘गांव गोद लेने के लिए तो कह दिया गया, लेकिन अलग से बजट नहीं मिला’

दोनों गांवों में कई लोगों से बातचीत के बाद यह साफ हो जाता है कि केवीके ने गांव को गोद लिया है इसकी जानकारी कुछ लोगों को ही है. गांव के ज़्यादातर लोग इससे अनजान हैं. वही इसका कोई खास असर गांव के किसानों पर नहीं पड़ा है.

गांव से निकलकर न्यूजलॉन्ड्री शिकोहपुर स्थित केवीके पहुंचा. यहां हमने केवीके के अध्यक्ष डॉ. अनामिका शर्मा से बात की.

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए शर्मा कहती हैं, ‘‘मैं यहां एक जनवरी 2019 में ज्वाइन की थी. मेरे आने के बाद ही गांवों को गोद लेने की प्रक्रिया शुरू हुई और हमने काम करना शुरू किया. हमें गांवों को गोद लेकर किसानों की आमदनी बढ़ाने की जिम्मेदारी तो दे दी गई, लेकिन इसके लिए अलग से कोई बजट नहीं दिया गया. हमें कहा गया कि आपको नाबार्ड को एक प्रोजेक्ट बनाकर देना है. हमने 2019 में भी प्रोजेक्ट जमा किया तो उसपर नाबार्ड ने बदलाव करने के लिए कहा. फिर बीते दिसंबर के आसपास नाबार्ड से हमें एक रिफ्यूजल मिला कि हम सिर्फ 20 प्रतिशत ही प्रोजेक्ट का खर्च दे सकते है. नाबार्ड से हमें अभी तक कोई पैसा नहीं मिला है. हमें उसी बजट में से खर्च करने लिए कहा गया जो केवीके के लिए मिलता है.’’

केवीके के अध्यक्ष डॉ. अनामिका शर्मा

इन दोनों गांवों को लेकर अब तक क्या काम किया गया. इस सवाल के जवाब में शर्मा बताती हैं, ‘‘जब हमने इन दोनों गांवों में काम शुरू किया तो सबसे पहले सकतपुर में करीब 100 किसानों की आय की जानकारी इकट्ठा की. हमने पाया कि यहां के किसानों की औसत सालाना आमदनी 1.50 लाख से 2:50 लाख है.’’

किसानों की आय को लेकर जानकारी इकट्ठा करने का सवाल जब हमने दोनों गांवों के किसानों से पूछा तो कोई भी किसान नहीं मिला जो इसमें शामिल हुआ हो. सकतपुर गांव के रहने वाले हबीब खान कहते हैं, ‘‘मैं तो यहां के एक बड़े किसानों में से एक हूं. मुझसे तो आजतक कोई सालाना आमदनी को लेकर पूछताछ करने कोई नहीं आया. केवीके का ज़्यादातर काम कागजों पर होता है. शायद यह काम भी कागजों पर ही हुआ हो.’’

अनामिका शर्मा केवीके द्वारा किसानों की आमदनी डबल करने को लेकर किए केवीके के किए कामों का जिक्र करते हुए कहती हैं, ‘‘सकतपुर एससी बाहुल्य गांव है. वहां के दस दलित किसानों को हमने टमाटर उत्पादन के लिए टेंट दिया.’’

हमने रिपोर्ट की शुरुआत में सकतपुर में जिन किसानों को टेंट दिया गया उसका जिक्र किया है. दस में सिर्फ एक किसान ने इस टेंट का इस्तेमाल किया है क्योंकि इसको लगाने में टेंट के अलावा 70 से 80 हज़ार रुपए की जरूरत पड़ती है. लोगों के घरों पर टेंट ऐसे ही रखा हुआ है.

साल 2019-20 में इन गांवों को गोद लिया गया. ‘डबलिंग फार्मर्स इनकम विलेज' में रहने वाले किसानों की आमदनी कब तक डबल करनी थी इस सवाल के जवाब में शर्मा कहती हैं, ‘‘इन गांवों के किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करनी है. लेकिन अभी तक के कामों के आधार पर कहें तो साल 2022 तक हम इन गांवों के 30 प्रतिशत किसानों की आमदनी दोगुनी कर देंगे.’’

किसानों की आमदनी डबल नहीं कर पाने के पीछे सबसे बड़ा कारण शर्मा को कोई एक्स्ट्रा बजट नहीं देना लगता है. वो कहती हैं, ‘‘आजकल किसान हमसे ज़्यादा व्यस्त है. अगर हम उन्हें किसी कार्यक्रम में बुलाएंगे तो हमें उन्हें कुछ लालच देना होगा. उन्हें आर्थिक मदद देनी होगी. जब हमें बजट ही नहीं मिला तो हम उन्हें कैसे मदद कर सकते हैं. अगर बजट मिला होता तो हम दो कदम और आगे चलते.’’

जब ‘डबलिंग फार्मर्स इनकम विलेज’ की आमदनी नहीं बढ़ी तो बाकि गांवों की क्या स्थिति होगी

तमाम जानकार और विपक्षी दल के नेता कहते रहे हैं कि सरकार जिस तरह से कृषि को लेकर काम कर रही है ऐसे में मुमकिन नहीं है कि तय सीमा के अंदर किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाए. सरकार को इसके मिशन के तहत काम करना होगा.

आईसीएआर के पूर्व महानिदेशक और भारत के नामी कृषि वैज्ञानिक 74 वर्षीय डॉक्टर मंगल राय किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी होने के सवाल पर कहते हैं, ‘‘आमदनी दोगुनी होने का सवाल ही नहीं पैदा होता. 2022 में तो अब जो एक-दो साल रह गया. जब बात हुई थी तब से कृषि में करीब 14-15 प्रतिशत कम्पाउंड ग्रोथ होता तब जाकर आमदनी दोगुनी होती, लेकिन आपकी ग्रोथ रेट तीन से साढ़े तीन प्रतिशत पर अटकी हुई है. दूसरी तरफ डीजल- पेट्रोल का दाम बढ़ रहा है, मज़दूरी बढ़ रही है, खाद की कीमत बढ़ रही है. यातायात की कीमत बढ़ रही है. हर चीज का दाम बढ़ रहा है तो कैसे डबल हो जाएगा.’’

ऐसा कहने वालों को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2018 में अपने एक भाषण में घेरते हुए कहा था, ‘‘किसानों की आय दोगुनी करने की बात की तो बहुत लोग ऐसे थे जिन्होंने उसका मज़ाक उड़ाया. ये तो संभव नहीं है. ये तो मुश्किल है. ये कैसे हो सकता है. देश के किसान पर मेरा भरोसा था. अगर हमारे देश के किसान के सामने कोई लक्ष्य रखा जाए. आवश्यक वातावरण पैदा किया जाए. बदलाव लाया जाए. तो मेरे देश के किसान रिस्क लेने को तैयार हैं. मेहनत करने को तैयार हैं. परिणाम लाने को तैयार हैं और भूतकाल में उसने करके दिखाया है.’’

प्रधानमंत्री ने भले ही किसानों की आमदनी दोगुनी करने को लेकर सरकार के दावे पर सवाल उठाने वालों को जवाब दिया, लेकिन जब ‘डबलिंग फार्मर्स इनकम विलेज’ के ही किसानों की आमदनी में ख़ास बदलाव नहीं आया तो बाकी गांवों के किसानों की आमदनी क्या दोगुनी हो पाएगी? जानकारों की माने तो अभी जो कृषि में ग्रोथ रेट है ऐसे में तो यह मुमकिन होता नज़र नहीं आ रहा है.

इसी बीच बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और वर्तमान में राज्यसभा के सांसद सुशील मोदी ने एक कार्यक्रम में कहा है कि हम अगले पांच साल में किसानों की आमदनी दोगुनी करेंगे.

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‘आमदनी बढ़ने की बात ही नहीं, 2022 तक हमें खेत न बेचना पड़े’

हमने दोनों गांवों में कई किसानों से सरकार द्वारा 2022 तक किसानों की आमदनी बढ़ाने को लेकर किए गए वादों पर सवाल किया तो ज़्यादातर किसानों का कहना है कि आमदनी बढ़ने के बजाय घट रही है. उत्पाद की कीमत की तुलना में खेती में खर्च ज़्यादा बढ़ रहा है.

सकतपुर गांव के हबीब खान आगे कहते हैं, ‘‘जहां तक रही साल 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात तो ये तो भूल ही जाइये. आमदनी लगातार कम हो रही और खर्च में इजाफा हो रहा है. ऐसे में आने वाले समय में लोग खेत बेचना शुरू कर देंगे.’’

भीम सिंह का भी ऐसा ही मानना है. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए सिंह कहते हैं, ‘‘हमारे गांव के ज़्यादातर किसान गेहूं और बाजरे की खेती करते हैं. जिन्होंने पिछले सीजन में बाजरा उगाया उन किसानों का बाजरा अभी घरों में पड़ा हुआ है. सरकार ने बाजरे के लिए 2200 रुपए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) निर्धारित किया था. जिनका बाजरा नहीं बिका वो अब उसे 1100 से 1200 रुपए में भी नहीं बेच पा रहे हैं. उन्हें आठ-नौ सौ रुपए में बेचना पड़ रहा है. ऐसा ही रहा तो उनकी आमदनी साल 2050 तक भी दोगुनी नहीं हो पाएगी.’’

लोकरा गांव के रहने वाले हरपाल यादव 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने को लेकर कहते हैं, ‘‘सरकार हर बार गेहूं और बाकी उत्पादों पर जो एमएसपी बढ़ा कर दे रही है वो 100 से 150 रुपए है. उतना ही खर्चा बढ़ता जा रहा है. यूरिया जितने में 50 किलो आता था उतने में अब 45 किलो आ रहा है. गेहूं के जो नए बीज हम बोते हैं वो प्राइवेट में 1200 से 1500 रुपए किलो लेना पड़ता है. सरकार से जो मिला है वो बेकार वाला मिला है. डीजल महंगा होता जा रहा है. मज़दूरी महंगी होती जा रही है तो हमारी आमदनी दोगुनी कैसे हो जाएगी.’’

लोकरा गांव के सरपंच पंकज शील का भी ऐसा ही मानना है. वे कहते हैं, ‘‘हर साल एमएसपी में 50 से 100 रुपए की वृद्धि होती है. किसान तो दुखी हो रहे हैं. साल 2014 में गेहूं की एमएसपी 1600 से 1700 रुपए हुआ करती थी. इस साल 1925 रुपए है. अगले साल तक 1975 रुपए हो जाएगी. छह साल में 200 से 300 रुपए की वृद्धि हुई है, ऐसे में किसानों की आमदनी दोगुनी कैसे हो जाएगी.’’

‘गांव गोद लेने के लिए तो कह दिया गया, लेकिन अलग से बजट नहीं मिला’

दोनों गांवों में कई लोगों से बातचीत के बाद यह साफ हो जाता है कि केवीके ने गांव को गोद लिया है इसकी जानकारी कुछ लोगों को ही है. गांव के ज़्यादातर लोग इससे अनजान हैं. वही इसका कोई खास असर गांव के किसानों पर नहीं पड़ा है.

गांव से निकलकर न्यूजलॉन्ड्री शिकोहपुर स्थित केवीके पहुंचा. यहां हमने केवीके के अध्यक्ष डॉ. अनामिका शर्मा से बात की.

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए शर्मा कहती हैं, ‘‘मैं यहां एक जनवरी 2019 में ज्वाइन की थी. मेरे आने के बाद ही गांवों को गोद लेने की प्रक्रिया शुरू हुई और हमने काम करना शुरू किया. हमें गांवों को गोद लेकर किसानों की आमदनी बढ़ाने की जिम्मेदारी तो दे दी गई, लेकिन इसके लिए अलग से कोई बजट नहीं दिया गया. हमें कहा गया कि आपको नाबार्ड को एक प्रोजेक्ट बनाकर देना है. हमने 2019 में भी प्रोजेक्ट जमा किया तो उसपर नाबार्ड ने बदलाव करने के लिए कहा. फिर बीते दिसंबर के आसपास नाबार्ड से हमें एक रिफ्यूजल मिला कि हम सिर्फ 20 प्रतिशत ही प्रोजेक्ट का खर्च दे सकते है. नाबार्ड से हमें अभी तक कोई पैसा नहीं मिला है. हमें उसी बजट में से खर्च करने लिए कहा गया जो केवीके के लिए मिलता है.’’

केवीके के अध्यक्ष डॉ. अनामिका शर्मा

इन दोनों गांवों को लेकर अब तक क्या काम किया गया. इस सवाल के जवाब में शर्मा बताती हैं, ‘‘जब हमने इन दोनों गांवों में काम शुरू किया तो सबसे पहले सकतपुर में करीब 100 किसानों की आय की जानकारी इकट्ठा की. हमने पाया कि यहां के किसानों की औसत सालाना आमदनी 1.50 लाख से 2:50 लाख है.’’

किसानों की आय को लेकर जानकारी इकट्ठा करने का सवाल जब हमने दोनों गांवों के किसानों से पूछा तो कोई भी किसान नहीं मिला जो इसमें शामिल हुआ हो. सकतपुर गांव के रहने वाले हबीब खान कहते हैं, ‘‘मैं तो यहां के एक बड़े किसानों में से एक हूं. मुझसे तो आजतक कोई सालाना आमदनी को लेकर पूछताछ करने कोई नहीं आया. केवीके का ज़्यादातर काम कागजों पर होता है. शायद यह काम भी कागजों पर ही हुआ हो.’’

अनामिका शर्मा केवीके द्वारा किसानों की आमदनी डबल करने को लेकर किए केवीके के किए कामों का जिक्र करते हुए कहती हैं, ‘‘सकतपुर एससी बाहुल्य गांव है. वहां के दस दलित किसानों को हमने टमाटर उत्पादन के लिए टेंट दिया.’’

हमने रिपोर्ट की शुरुआत में सकतपुर में जिन किसानों को टेंट दिया गया उसका जिक्र किया है. दस में सिर्फ एक किसान ने इस टेंट का इस्तेमाल किया है क्योंकि इसको लगाने में टेंट के अलावा 70 से 80 हज़ार रुपए की जरूरत पड़ती है. लोगों के घरों पर टेंट ऐसे ही रखा हुआ है.

साल 2019-20 में इन गांवों को गोद लिया गया. ‘डबलिंग फार्मर्स इनकम विलेज' में रहने वाले किसानों की आमदनी कब तक डबल करनी थी इस सवाल के जवाब में शर्मा कहती हैं, ‘‘इन गांवों के किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करनी है. लेकिन अभी तक के कामों के आधार पर कहें तो साल 2022 तक हम इन गांवों के 30 प्रतिशत किसानों की आमदनी दोगुनी कर देंगे.’’

किसानों की आमदनी डबल नहीं कर पाने के पीछे सबसे बड़ा कारण शर्मा को कोई एक्स्ट्रा बजट नहीं देना लगता है. वो कहती हैं, ‘‘आजकल किसान हमसे ज़्यादा व्यस्त है. अगर हम उन्हें किसी कार्यक्रम में बुलाएंगे तो हमें उन्हें कुछ लालच देना होगा. उन्हें आर्थिक मदद देनी होगी. जब हमें बजट ही नहीं मिला तो हम उन्हें कैसे मदद कर सकते हैं. अगर बजट मिला होता तो हम दो कदम और आगे चलते.’’

जब ‘डबलिंग फार्मर्स इनकम विलेज’ की आमदनी नहीं बढ़ी तो बाकि गांवों की क्या स्थिति होगी

तमाम जानकार और विपक्षी दल के नेता कहते रहे हैं कि सरकार जिस तरह से कृषि को लेकर काम कर रही है ऐसे में मुमकिन नहीं है कि तय सीमा के अंदर किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाए. सरकार को इसके मिशन के तहत काम करना होगा.

आईसीएआर के पूर्व महानिदेशक और भारत के नामी कृषि वैज्ञानिक 74 वर्षीय डॉक्टर मंगल राय किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी होने के सवाल पर कहते हैं, ‘‘आमदनी दोगुनी होने का सवाल ही नहीं पैदा होता. 2022 में तो अब जो एक-दो साल रह गया. जब बात हुई थी तब से कृषि में करीब 14-15 प्रतिशत कम्पाउंड ग्रोथ होता तब जाकर आमदनी दोगुनी होती, लेकिन आपकी ग्रोथ रेट तीन से साढ़े तीन प्रतिशत पर अटकी हुई है. दूसरी तरफ डीजल- पेट्रोल का दाम बढ़ रहा है, मज़दूरी बढ़ रही है, खाद की कीमत बढ़ रही है. यातायात की कीमत बढ़ रही है. हर चीज का दाम बढ़ रहा है तो कैसे डबल हो जाएगा.’’

ऐसा कहने वालों को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2018 में अपने एक भाषण में घेरते हुए कहा था, ‘‘किसानों की आय दोगुनी करने की बात की तो बहुत लोग ऐसे थे जिन्होंने उसका मज़ाक उड़ाया. ये तो संभव नहीं है. ये तो मुश्किल है. ये कैसे हो सकता है. देश के किसान पर मेरा भरोसा था. अगर हमारे देश के किसान के सामने कोई लक्ष्य रखा जाए. आवश्यक वातावरण पैदा किया जाए. बदलाव लाया जाए. तो मेरे देश के किसान रिस्क लेने को तैयार हैं. मेहनत करने को तैयार हैं. परिणाम लाने को तैयार हैं और भूतकाल में उसने करके दिखाया है.’’

प्रधानमंत्री ने भले ही किसानों की आमदनी दोगुनी करने को लेकर सरकार के दावे पर सवाल उठाने वालों को जवाब दिया, लेकिन जब ‘डबलिंग फार्मर्स इनकम विलेज’ के ही किसानों की आमदनी में ख़ास बदलाव नहीं आया तो बाकी गांवों के किसानों की आमदनी क्या दोगुनी हो पाएगी? जानकारों की माने तो अभी जो कृषि में ग्रोथ रेट है ऐसे में तो यह मुमकिन होता नज़र नहीं आ रहा है.

इसी बीच बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और वर्तमान में राज्यसभा के सांसद सुशील मोदी ने एक कार्यक्रम में कहा है कि हम अगले पांच साल में किसानों की आमदनी दोगुनी करेंगे.

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