अमीश के महादेव, दीपक के राम और सुचरिता के मोदीजी

दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.

WrittenBy:अतुल चौरसिया
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धृतराष्ट्र संजय संवाद के साथ ही इस हफ्ते संघ प्रमुख मोहन भागवत का सकारात्मकता पर प्रवचन. संघ प्रमुख के कार्यक्रम का नाम था पॉजिटिविटी अनलिमिटेड. लिहाजा बाल्टी भर-भर कर यहां से सकारात्मकता फैलाई गई. संघ प्रमुख का सारा जोर सकारात्मकता फैलाने पर था. लेकिन उनके स्वयंसेवकों ने खुला विद्रोह कर दिया.

स्वयंसेवकों का विद्रोह जायज भी है. इतने वर्षों से उन्हें गौमूत्र और गोबर वाली इलाज पद्धतियों की शिक्षा दी गई थी और आज अवसर आने पर उन्हें विज्ञान की ओर ताकने को कहा जा रहा है. विज्ञान कहता है कि धुएं में कार्बन होता है और धुआं फेफड़े के लिए हानिकारक है. खासकर कोरोना में तो फेफड़ों की ही शामत आई हुई है, लेकिन स्वयंसेवकों ने एलानिया कहा कि सरसंघचालक चाहे जो कहें हवन तो घर-घर होकर रहेगा.

खबरिया चैनलों की दुनिया में हमेशा की तरह आधा सच, अधूरी तस्वीर और भरमाने वाले खेल बीते भी चलते रहे. बनारस के संस्कार घाटों पर कुछ दिन पहले तक लाशें जलाने की जगह नहीं थी, गंगा के किनारे रेती में जहां तहां लोगों की लाशें दबी पड़ी हैं. ऐसी अनगिनत कहानियां पूर्वांचल के अलग-अलग जिलों से न्यूज़लॉड्री के रिपोर्टर्स आपके सामने लाए हैं.

कुछ दिन पहले बाबा रामदेव ने रूबिका लियाक़त के सामने कोविड अस्पताल से जुड़े बड़े-बड़े दावे किए थे. हमारे रिपोर्टर्स ने रामदेव के उन दावों की पड़ताल की और पाया कि बाबा साफ-साफ झूठ बोल रहे थे. न तो वहां दावे के मुताबिक बेड थे न ही लोगों को दावे के मुताबिक भर्ती किया जा रहा था. ये रिपोर्टर्स दिन रात इस महामारी का सच आपके सामने ला रहे हैं. हम ये इसलिए कर पा रहे हैं क्योंकि न्यूज़लॉन्ड्री देश का पहला सब्सक्राइबर आधारित मीडिया संस्थान है. आपका छोटा सा समर्थन निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता का सहारा बन सकता है. इस देश में लगभग बर्बाद हो चुकी मुख्यधारा की पत्रकारिता का कोई इलाज अगर करना है तो आपको आगे आना ही होगा. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करें और गर्व से कहें मेरे खर्च पर आज़ाद हैं खबरें.

एक हमारे मित्र हैं दो शब्द वाले अमीश देवगन. काफी दिनों बाद छोटे परदे पर वापसी की सो इन्होंने सकारात्मकता की पूरी थीसिस ही खोल कर रख दी. सकारात्मकता तो ठीक है लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर सकारात्मक होने की बात को चालाकी से पत्रकारिता में सकारात्मकता की बेवजह बहस शुरू कर देना ठीक नहीं. इससे यह बात झुठलाई नहीं जा सकती कि प्राइम टाइम बहसों का विषय कोई अदृश्य शक्ति तय करती है.

एकेश्वरवाद में यकीन रखने वाली धर्मालु जनता को उस दर्शन में गहरी श्रद्धा होती है कि दुनिया में भले ही भांति-भांति के धर्म है लेकिन सबको पहुंचना एक ही जगह है, ईश्वर एक ही है बस उस तक पहुंचने के रास्ते अलग अलग हैं. हिंदू-मुसलमान मामलों के विशेषज्ञ दीपक चौरसिया भी उस दर्शन में गहरी आस्था रखते हैं. मसलन बहस वो चांद्रयान मिशन की भी करें लेकिन गिरना उनको अंतत: हिंदू मुसलमान के कीचड़ में ही होता है. हर दिन वो इस कीचड़ में गिरने का एक नया रास्ता ढूंढते हैं. गिरते हैं, निकलते हैं फिर गिर पड़ते हैं. बिल्कुल विक्रम बेताल की तर्ज पर.

इस हफ्ते की रिपोर्ट दैनिक भास्कर डॉट कॉम से है. यह रिपोर्ट रिपोर्टिंग की दुनिया में एक मिसाल है. गंगा के तट पर स्थित उत्तर प्रदेश के 27 जिलों से की गई यह मेगा रिपोर्ट हमें बताती है कि 1140 किलोमीटर के क्षेत्र में दो हजार से ज्यादा लाशें दफन हैं. इस रिपोर्ट के लिए दैनिक भास्कर ने अपने 30 रिपोर्टरों को एक साथ इस मुद्दे की रिपोर्टिंग के लिए तैनात किया था.

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