क्या इतनी मौतें सच में बही-खाते में लिखी थीं?

मौत के आंकड़ों का अगर यही हाल रहा तो एक दिन पूरा मुल्क सांसारिक बाधाओं से मुक्त होकर परम मोक्ष को प्राप्त कर लेगा.

WrittenBy:सतीश वर्मा
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कोरोना वायरस को आए एक साल से ज्यादा हो गया और इसके जीनोम स्ट्रक्चर को अभी तक दुनिया के वायरोलॉजिस्ट नहीं समझ सके हैं. क्या ये रामायण में श्रीराम द्वारा असुरों पर, रावण पर प्रहार किए जाने वाले वो बाण हैं जिनके रहस्य को विज्ञान आज तक नहीं भेद सका? अगर ऐसा नहीं है तो फिर इस बाण अर्थात वायरस की काट मेडिकल साइंस अभी तक क्यों नहीं डेलवप कर पायी? ये सवाल अगर अहम नहीं है तो कोरोना वायरस भी अहम नहीं है. कोरोना वायरस है अथवा नहीं है, ये कहीं से भी अहम नहीं है और न ही मैं किसी कॉन्सपिरेसी थ्योरी में यकीन करता, मगर ये तो सच है कि मौतें हो रही हैं और वो भी अकाल मौतें. चाहे वो इलाज सही समय पर नहीं मिलने की वजह से हो रही हों या फिर मेडिकल सुविधा और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी से या फिर अस्पताल, शासक-प्रशासक की लापरवाही से. मगर मौतें तो हो रही हैं. इन मौतों का जिम्मेवार कौन है?

जब वुहान में मौतें हो रही थीं तो ये दुनिया के लिए पहेली थी. ब्राजील और इटली में जब लाशों का अंबार दिखाया जाने लगा तो ये महामारी बन गई, वैश्विक महामारी. अब जब भारत श्मसान बनता जा रहा है तो इस कोरोना वायरस से हुई मौतों की वाजिब पोल पट्टी खुल रही है. सच ये है कि मौतें हो रही हैं और उससे भी बड़ा सच ये है कि लोगों को जानबूझ कर मरने दिया जा रहा है. भय-अराजकता और हाहाकार का एक ऐसा धुंधलका रचा जा रहा है जिसके अंदर छिपा वीभत्स सच किसी को दिखे नहीं. कोरोना मौत की प्राथमिक वजह नहीं है, हां वो भी एक वजह है, मगर मुख्य वजह है इस बीमारी से लोगों को मरने दिया जाए. और इसकी सहमति पहले से नियामक और प्रशासकों के बीच बन चुकी है. बाकी वैक्सीन, टेस्ट, एंटीबॉडी, म्यूटेंट, डबल म्यूटेंट, ट्रिपल म्यूटेंट ये सब तो हमारे लिए है ही समझने के लिए. समझते रहिए.

हां, जिंदगी बचाने के लिए कुछ लोग जरूर जी जान लगाए हुए हैं, मगर वो गिनती के लोग हैं. कुछेक 10-20, 50-100 लोग या कुछ इंसानियत को तवज्जो देने वाली संस्थाएं. मगर जिनको वोट देकर हमने अपनी जिंदगी बचाने की जिम्मेवारी दे रखी है वो तो हमें मारने पर तुले हुए हैं. एक-एक कतरा सांस के लिए हमें सरकार-अस्पताल के आगे गिड़गिड़ाना पड़ रहा है. एक-एक सांस के लिए मुल्क को कभी इस तरह तड़पता किसी ने देखा हो तो बताएं. 1918 की भीषण महामारी स्पेनिश फ्लू पर भी तो इसी विज्ञान और मेडिकल साइंस ने काबू पाया था? मगर कोरोना के आगे आज क्यों लाचार दिख रहा है, या फिर लाचार रहने के लिए मजबूर है? इस सवाल का जवाब कभी नहीं मिलेगा क्योंकि यही जल्लादों के रचे विधि का विधान है.

(साभार- जनपथ)

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