लॉकडाउन के डर से भारत छोड़ नेपाल में तलाशना पड़ा काम

लॉकडाउन के एक बरस बाद प्रवासी श्रमिकों की जिंदगी और ज्यादा कठिन हो गई है. उनके सिर पर ब्याज वाले कर्ज हैं. साथ ही उन्हें पूरे महीने काम नहीं मिल रहा और उनकी आय भी घटकर आधी हो चुकी है.

WrittenBy:विवेक मिश्रा
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लॉकडाउन के दौरान, एक वर्ष पहले की स्थिति

लॉकडाउन का तीसरा चरण था और काम छिन चुका था. गाजियाबाद ओखला मंडी से काम छोड़कर करीब 1000 किलोमीटर दूर वापस उत्तर प्रदेश के देवरिया जिला अपने सब्जी ढ़ोने वाले ठेले से ही निकल गए. अमरोहा से पहले बृजघाट पर जोगिंदर का ठेला पुलिस वालों ने जब्त कर लिया. जोगिंदर ने कहा, “बिना ठेले के वे गांव में भूखे मर जाएंगे. किसी तरह ठेले के साथ मई, 2020 महीने में वे अपने गांव पहुंच गए.”

लॉकडाउन के एक वर्ष बाद की स्थिति

जोगिंदर को करीब 9 महीने बाद गांव से वापस फिलहाल गाजियाबाद लौटना पड़ा है. काम की तलाश में आए जोगिंदर जब शहर पहुंचे हैं तो उनके सिर पर 28 हजार रुपए का कर्ज चढ़ चुका है. लॉकडाउन में आनन-फानन में वो भागे तो कमरा छोड़ नहीं पाए थे, मकान मालिक ने 10 महीने का किराया मांगा है. फिलहाल अब वे गाजियाबाद में चिनाई का काम कर रहे हैं. उनकी ठेलियां गांव में है.

वह कहते हैं, "बहुत बदल गया है शहर. काम ही नहीं है. पहले जबरदस्ती 2 से 3 दिन की छुट्टी करनी पड़ती थी. महीने की आय 20 से 25 हजार रुपये तक हो जाती थी अब यह घटकर आधी हो गई है. महज 14- 15 हजार रुपए ही जुटते हैं. महीने में करीब 12 दिन खाली चले जाते हैं.”

संभल जिला, गुरसुरी गांव, चंदौली तहसील, उत्तर प्रदेश के 38 वर्षीय राम गोपाल एक साल पहले की लॉकडाउन की स्थिति पर कहते हैं, ”लॉकडाउन के चलते दिहाड़ी का काम खत्म हो गया था. लॉकडाउन के दौरान तीसरे चरण (मई, 2020) के दौरान पूरे परिवार समेत गांव को लौटना पड़ा. जिस गाड़ी को इन्होंने 20 हजार रुपए दिए थे वह बृजघाट पर रास्ते में ही उतार कर भाग गया था. पूरे परिवार को खुले मैदान में भूखे-प्यासे रात बितानी पड़ी थी.”

अब करीब एक साल बाद वह कहते हैं, “पंजाब के मोहाली में ईटा-गारा ढ़ोने का काम करते हैं. तीन बेटियां और दो बेटे हैं. माता का देहांत हो गया है इसलिए अभी घर आया हूं. बिना काम किए कहां गुजारा होता है. सिर पर 2 फीसदी ब्याज के साथ करीब 15 हजार का कर्ज था, अब 3 से 4 हजार रुपए देना रह गया है. लॉकडाउन के बाद काम मिलना काफी कम हो गया है.”

पिपरी मोहन गांव, बहराइच, उत्तर प्रदेश के 28 वर्षीय राजमिस्त्री का काम करने वाले रमेश कुमार गौतम एक साल पहले की लॉकडाउन में स्थिति पर कहते हैं, ”लॉकडाउन के लंबे चरण में काम की तलाश में वहीं बैठे रहे. लगा था कि लॉकडाउन खुल जाएगा. हालांकि, जब पैसे खत्म हो गए तो 13 मई, 2020 को पंजाब के जालंधर से हम वापस गांव को लौटे. गांव आए तो एक बीघा खेत गिरवी रखकर 15 हजार रुपए कर्ज लेना पड़ा”

लॉकडाउन के करीब एक वर्ष बाद वह कहते हैं, “इसी वर्ष हमने बीए की फाइनल परीक्षा पास की है. मजदूरी जारी है. हम अगस्त, 2020 में ही वापस काम की तलाश में पंजाब के जालंधर लौट आए. तब से राजमिस्त्री का काम कर रहे हैं. जब तक पैसा वापस नहीं होगा तब तक हमारा खेत जोतने और बोने के लिए साहूकार के पास ही रहेगा. कोशिश कर रहे हैं कि यह कर्ज जल्द उतर जाए.”

(साभार- डाउन टू अर्थ)

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