इस चकाचौंध भरी इंडस्ट्री से इसके दिहाड़ी कामगारों की ज़िन्दगियों में थोड़ी-सी रोशनी है और अब इस रोशनी के बिना ये लोग जी नही पायेंगे.
नींद के बिना कटती रातें
सन 1988 से स्पॉट बॉय का काम करने वाले 44 साल के समशेर ख़ान का कहना है, "उन्होंने तब से लेकर अब तक इतने सालों में कभी भी लॉकडाउन जैसा मुश्किल दौर नहीं देखा है. बहुत सारी परेशानियां थीं. उन दिनों के बारे में सोचते हुए कई बार तो दिमाग ही काम करना बंद कर देता है."
समशेर ने पिछले साल जून में मुंबई से उत्तर प्रदेश के लिए बस ली फिर वहां से झारखंड होते हुए बिहार में स्थित अपने गांव पहुंचे और इस साल जनवरी तक वहीं रुके रहें. उन्हें दोबारा काम मिलने में थोड़ा वक्त लगा. अब जब उन्होंने दोबारा उसी सेट पर नियमित तौर पर काम करना शुरू कर दिया है जिस पर सत्तार भी काम कर रहे हैं तो एक बार फिर से एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री पर अनिश्चितता की तलवार लटकने लगी है.
19 साल का नौजवान सलमान ख़ान जो कि एक वैनिटी वैन के हैल्पर के तौर पर काम करता है, पिछले साल पूरे लॉकडाउन के दौरान दिल्ली में अपने घर भी नहीं जा पाया था. उसने फ़िल्म सिटी, गोरेगांव में एक किराए के कमरे में ही ठहरने का फैसला किया लेकिन उसका ये फैसला उसे बहुत महंगा पड़ा और उसकी बचत के सारे पैसे, लगभग 90,000 रूपये खर्च हो गये.
ऐसे में तो वो एक और लॉकडाउन झेलने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं. उन्होंने कहा, "ऐसा हुआ तो इस बार सब कुछ ख़त्म हो जाएगा."
इंडस्ट्री में इसी तरह के रोजाना की तनख़्वाह पर काम करने के लिए आने वाले चांद जैसे नए लोगों के लिए हालात और भी कठिन हैं.
32 साल के चांद सफेद कपड़ों के ढेर के बीच एक टीवी शूट के लाइटिंग सेटअप को तैयार करने के लिए बैठे हुए हैं और हर कपड़े के टुकड़े पर उसके माप के हिसाब से नंबर डाल रहे हैं. हमसे बातचीत के दौरान उन्होंने उन दिनों को याद किया जब लॉकडाउन के कारण स्कूल वैन के ड्राइवर की नौकरी छूटने के बाद वो इस इंडस्ट्री में अपने लिए काम ढूंढ रहे थें.
"जून से लेकर अक्टूबर तक मुझे 10 दिनों में से केवल दो ही दिन काम मिल पाता था." उन्होंने बताया.
उन्होंने आगे कहा, "पिछले कुछ महीनों से उन्हें महीने में करीब 15 दिन काम मिलने लगा है. लेकिन अब मैं पहले की तरह रातों को सो नहीं पाता. इसका कारण ये है कि वो लगातार इसी चिंता में डूबे रहते हैं कि कहीं फिर से शहर में लॉकडाउन न लग जाए और इसके साथ ही एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री भी बंद न हो जाए.
'एक्स्ट्राज़' की छंटनी
पिछले साल जब महाराष्ट्र सरकार ने दोबारा शूटिंग करने की इजाज़त दी तो इसके साथ ही निर्माताओं पर अपने क्रू के सदस्यों की संख्या को कम कर उसे जितना हो सके उतना छोटा करने की शर्त भी लाद दी. जूनियर आर्टिस्ट के तौर पर काम करने वाले या जिन्हें आमतौर पर 'एक्सट्राज़' कहा जाता है, की रोजी-रोटी के सहारे पर ये शर्त एक बहुत बड़ी चोट थी.
"नए नियम-कायदों के कारण लेखक ऐसी स्क्रिप्ट्स तैयार कर रहे हैं जिससे कम से कम जूनियर आर्टिस्ट्स की जरूरत पड़े." ये कहना है 52 साल के रइस काज़ी का जो 15 जूनियर आर्टिस्ट्स की एक टीम चलाते हैं.
उनका अंदाज़ा है कि मुंबई, जूनियर आर्टिस्ट्स एसोसिएशन के करीब 1400 सदस्यों में से कम से कम 500 सदस्यों ने पिछले साल से अब तक एक बेहतर जिंदगी की तलाश में इंडस्ट्री छोड़ दी है और सदस्यता के लिए दी जाने वाली शुरुआती फ़ीस के बदले अपने सदस्यता कार्ड भी दूसरों के नाम ट्रांसफर कर दिये हैं.
महिला कलाकार संघ की एक सदस्य लक्ष्मी गोस्वामी कहती हैं, "महिला जूनियर आर्टिस्ट्स के लिए अलग-अलग तरह की कई जटिल समस्याएं मौजूद हैं. इनमें से कुछ महिलाएं विधवा हैं, तो कुछ एकल माएं हैं. उनके बचत के पैसे ख़त्म हो चुके हैं. पिछले साल उन्होंने बहुत सारी मुसीबतें झेली और उनके पास कोई सहारा नहीं था."
जिन लोगों के पास इस वक़्त काम है वो भी एक अलग ही तरह के मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं. हेयर और मेकअप आर्टिस्ट्स को हर वक़्त पीपीई किट पहननी पड़ती है. अब चूंकि अभिनेताओं के लिए शूट्स के दौरान मास्क पहनना जरूरी नहीं है तो ऐसे में हेयर या मेकअप आर्टिस्ट्स को दोहरी सतर्कता बरतनी पड़ती है.
"इसके भीतर ऐसा लगता है जैसे कि मैं पिघल रहा हूं. पसीने वगैरह से फेस शील्ड पर भाप जम जाती है और बचाव के लिए पहने गए दस्तानों को पहनने के कारण मेकअप ब्रश अक़्सर हमारे हाथों से फिसलता रहता है." एक मेकअप आर्टिस्ट ने नाम न बताने की शर्त पर पीपीई किट की ओर इशारा करते हुए कहा.
उन्होंने आगे बताया कि वैसे तो वो ये काम पिछले करीब 10 सालों से कर रहे हैं पर अभी तक इस वैश्विक आपदा से आए बदलावों के हिसाब से खुद को ढालना सीख ही रहे हैं.
22 साल के एक दूसरे हेयर स्टाइलिस्ट, गुलफ़ाम अली ने शिकायती लहज़े में कहा, "मुझे लगता है कि लॉकडाउन के कारण मैं इस इंडस्ट्री में पांच साल पीछे चला गया हूं. हमारा खर्च हमारी कमाई से ज्यादा हो गया है."
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