बंगाल में भाजपा की सरकार कल आती है या नहीं, इससे बहुत सी चीजें अछूती और बेअसर भी रह जाएंगी, जिन पर पत्रकारों का ध्यान नहीं है.
‘’अन्यता’’ की अज्ञानता
एकबारगी दिल्ली के पत्रकारों को छोड़ दीजिए, तो यह सवाल बंगाल के उन तमाम हिंदीभाषी पत्रकारों से पूछा जाना चाहिए जो हिंदीभाषियों की बंगालियों द्वारा सांस्कृतिक उपेक्षा का राग अलापते हुए आजकल भाजपा के पक्ष में जोर लगा रहे हैं. जनसत्ता कलकत्ता के एक पुराने पत्रकार परमानंद सिंह से उनके घर पर बात हो रही थी. वे रिसड़ा में रहते हैं, जहां देश की पहली जूट मिल अंग्रेजों ने स्थापित की थी. वे दुखी होकर बता रहे थे कि बुद्धदेब भट्टाचार्य से उनके अच्छे सम्बंध हुआ करते थे, लेकिन जब भी वे मिलते बुद्धदेब बंगाल के लोगों के लिए कहते- आमादेर लोग (हमारे लोग). इससे उन्हें ‘’अन्य’’ होने का जो अहसास होता, वह अपमानजनक था.
बंगाल में रहने वाले लाखों हिंदीभाषी इस ‘’अन्यता’’ के भाव का ‘प्रतिशोध’ लेने के लिए न केवल भाजपा के लिए जोर लगा रहे हैं, बल्कि तृणमूल के जीतने की स्थिति में भी दोनों हाथों में लड्डू रखना चाहते हैं. इसीलिए चांपदानी विधासभा सीट, जिसमें रिसड़ा आता है, वहां के लोगों ने दोनों पक्षों से पुरबिया ठाकुरों को खड़ा कर दिया है. चित भी मेरी, पट भी मेरी. ये है बंगाल के कुंठित हिंदीभाषियों की असल राजनीति.
ये लोग शायद नहीं जानते उनकी हिंदी भाषा को राष्ट्रीय बनाने की बात और किसी ने नहीं, दो बंगालियों ने की थी जिसमें एक मुसलमान इंशाअल्ला खां थे. वे बगैर इस बात को जाने मोदी नाम का जाप कर रहे हैं कि हिंदुत्व के जनक चंद्र नाथ सेन कलकत्ता से साठ किलोमीटर दूर पैदा हुए. या हो सकता है वे जानते भी हों, क्योंकि कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें कालीन के नीचे बुहार देने में ही ‘भलाई’ समझी जाती है. ऐसी ही एक बात जिसे कोई बंगाली या बंगाल में रहने वाला हिंदीभाषी कभी नहीं कहता, वह चैतन्य महाप्रभु के रहस्यमय तरीके से गायब हो जाने का अध्याय है.
जिस वक्त दिल्ली के पत्रकारों के लिए बंगाल का ‘’भद्रलोक’’ एक रहस्य बना हुआ है और लगातार तमाम रिपोर्टों में इस बात को स्थापित करने की कोशिश की जा रही है कि बंगाली ‘’भद्रलोक’’ भाजपा का विरोधी है और उसके सत्ता में आने की आशंका से दुखी है, बाउल के महान कलाकार मंसूर फकीर आंख खोलने का काम करते हैं. मंसूर फकीर पूछते हैं, ‘’चैतन्य को किसने मारा? जब वे हिंदुओं और मुस्लिमों को कृष्ण भक्ति में एकजुट कर रहे थे, वे ब्राह्मण ही तो थे जिनके हाथ में चाबुक था. जिन्होंने मार कर महाप्रभु को फेंक दिया?”
नदिया जिले के एक छोटे से गांव में अपना आश्रम बनाकर रहने वाले मंसूर फकीर के दादा महान लालन शाह फ़कीर के शागिर्द थे. मंसूर के पिता अज़हर फ़कीर मालदा के गौड़भंगा से लालन की शिक्षाएं लेकर नदिया आए और यहां एक और गौड़भंगा बसाये. चैतन्य महाप्रभु की रहस्यमय मौत पर बोलने का साहस करने वाले मंसूर फ़कीर से बात करने पर लगता है कि बंगाल के ‘’भद्रलोक’’ को हम जिस चश्मे से देखते रहे हैं, वो बुनियादी रूप से गड़बड़ है.
‘’बाइनरी’’ की पत्रकारिता
राजा राममोहन राय का हिंदी को अवदान हो या चैतन्य महाप्रभु का प्रसंग, इस तरह की तमाम बातें उस फर्जी द्विभाजन की धुंध को साफ करने में मददगार होंगी जिसमें हमारा मीडिया और पत्रकार फंसे पड़े हैं. हर चीज को दो विरोधी तत्वों में बांटकर देखने का नजरिया मौजूदा दौर की पत्रकारिता में धुरी बन चुका है. यही समग्र नजरिये को विकसित होने से रोकता है. अगर हमारे पत्रकार थोड़ा कायदे से घूम-फिर लेते, पढ़-लिख लेते, तो वे हिंदी बनाम बंगाली, हिंदू राष्ट्रवाद बनाम बांग्ला राष्ट्रवाद, हिंदुत्व बनाम भद्रलोक की बाइनरी खड़ी नहीं करते, चीजों को समग्रता में रिपोर्ट करते.
बात केवल इतनी नहीं है. बंगाल में भाजपा की सरकार कल आती है या नहीं, इससे बहुत सी चीजें अछूती और बेअसर भी रह जाएंगी, जिन पर पत्रकारों का ध्यान नहीं है. आम तौर से बाउल फ़कीर सियासत पर बात नहीं करते, लेकिन मंसूर फ़कीर के शागिर्द बाबू फ़कीर संक्षेप में जो बात कहते हैं वह बंगाली समाज के एक अनछुए पहलू को उजागर करता है: ‘’कोई भी आए, सब अपना है. हां, गाना हम अपना ही गाएगा, दूसरे का नहीं.‘’
इसी बात को बिद्यार्थी दादा कुछ अलग तरीके से कहते हैं, ‘’बहुत मजा आएगा, एक बार भाजपा को आने दो. उसको पता नहीं है वो कहां फंस रहा है. बंगाली भद्रलोक देखने को बोका लगता है, लेकिन उतना है नहीं. जहां अपना फायदा दिखता है, वो बोका बना रहता है. ये बंगाल है. भाजपा आ तो जाएगा, लेकिन टिकेगा कैसे?”
अब भी एक पखवाड़ा बाकी है चुनाव खत्म होने में. क्या सुधी पत्रकार इस पर कुछ लिखेंगे कि बंगाल में भाजपा अगर सत्ता में आती है तो उसकी चुनौतियां क्या होंगी? या वे वाकई ये मानकर चल रहे हैं कि बंगाली बोका होता है और बंगाल में भाजपा वैसे ही राज करेगी जैसे बाकी देश में कर रही है? ताली-थाली बजवाकर?