आंबेडकर की राष्ट्र की संकल्पना में सामाजिक बराबरी के बाद बनने वाले हिंदुस्तान की तस्वीर इतनी स्पष्ट थी कि उन्होंने इसके लिए गांधी और नेहरू से भी टकराव मंजूर किया.
यह दिलचस्प बात है कि आज जिस आरएसएस की विचारधारा वाली पार्टी भाजपा सत्ता में है वह आंबेडकर को आत्मसात कर लेना चाहती है. खुद आरएसएस भी ऐसा ही चाहता है, लेकिन राष्ट्रवाद के क्लासिकल संदर्भ में आंबेडकर बिल्कुल फिट नहीं बैठते. आज धार्मिक ध्रुवीकरण और सांप्रदायिक राजनीति का जो विकृत रूप हम राजनीति में देख रहे हैं उस पैमाने पर आंबेडकर अधिक से अधिक राष्ट्रद्रोही के खांचे में रखे जा सकते हैं.
वो आंबेडकर जो 1930 में भारत के पूर्ण स्वराज के दावे का विरोध कर चुके थे. वह भी तब जब 1929 कांग्रेस इसका प्रस्ताव पारित कर चुकी थी. उनका साफ मानना था कि दलितों के लिए रूढ़िवादी हिंदुओं की किसी भी सत्ता से बेहतर अंग्रेजी राज. वो आंबेडकर जिन्होंने साफ शब्दों में कहा कि यदि दलितों और राष्ट्र के बीच उन्हें एक को चुनना होगा तो वो दलितों के पहले चुनेंगे, राष्ट्र को बाद में. इस तरह के रैडिकल सोच वाले आंबेडकर को आज भाजपा और आरएसएस क्यों आत्मसात कर लेना चाहते हैं, उनकी विरासत पर कब्जा कर लेना चाहते हैं.
रैडिकल सोच आंबेडकर की सबसे बड़ी चारित्रिक विशेषता थी. उन्होंने कभी भी अपने समय के लोकप्रिय और प्रचलित नैरेटिव के सामने घुटने नहीं टेके. राष्ट्र की उनकी संकल्पना में सामाजिक बराबरी के बाद बनने वाले हिंदुस्तान की तस्वीर इतनी स्पष्ट थी कि उन्होंने इसके लिए गांधी और नेहरू से भी टकराव मंजूर किया. उस आंबेडकर की जयंती के मौके पर न्यूज़लॉन्ड्री अपने पूर्ण अवतार में सामने आ रहा है. उम्मीद है हम अपने सब्सक्राइबर्स की अपेक्षाओं पर खरा उतरेंगे. भारत के मीडिया लैंडस्केप में सामाजिक गैरबराबरी एक बड़ा सच है, न्यूज़लॉन्ड्री ने इस दिशा में भी गंभीर प्रयास किए हैं. यह कोशिश अब आपके सामने है, देखें, इसकी खूबियों और खामियों से हमें अवगत कराएं.