बेमौत मरने को मजबूर नदियां

प्रदूषण से नदियां बेमौत मारी जा रही हैं. अब तक किए समस्त प्रयास ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहे हैं.

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देश की राष्ट्रीय नदी गंगा अभी बहस के केंद्र में है. साल-दर-साल गंगा नदी के प्रवाह में दर्ज होते प्रदूषण के स्तर से नदी को साफ करने के लिए की जा रही कोशिशों पर सवाल उठते हैं. पिछले साल अगस्त में एनजीटी, जो गंगा को साफ करने के कार्यक्रम की निगरानी करता है, ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कहा था कि वह नदी के इन हिस्सों की शिनाख्त करे, जहां का पानी नहाने और पीने के योग्य है. बोर्ड ने इस बाबत एक मानचित्र तैयार किया जिसमें बताया गया है कि गंगा के मुख्य मार्ग के पानी की गुणवत्ता चिंताजनक रूप से खराब है. यहां तक कि सितंबर 2018 का मानचित्र बताता है कि मॉनसून खत्म होने के बाद भी प्रवाह प्रदूषित है और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्लास-ए या क्लास-सी में भी नहीं आता है.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्लास ए का मतलब उन पेयजल स्रोतों से है, जिनके पानी को पारंपरिक तरीके से परिशोधित किए बिना रोगाणुमुक्त कर इस्तेमाल किया जा सकता है. वहीं, क्लास सी का मतलब उन पेयजल स्रोतों से है जिसके पानी को पारंपरिक तरीके से परिशोधित व रोगाणुमुक्त कर इस्तेमाल किया जा सकता है. एनजीटी ने यह पूछा था कि नदी का पानी नहाने लायक है कि नहीं, लेकिन मानचित्र में ये संकेत नहीं दिया गया कि नदी के पूरे बहाव में खुले तौर पर नहाने दिया जा सकता है या नहीं. क्लास सी गुणवत्ता वाले पानी का यह मतलब नहीं है कि वो क्लास बी की शर्तों को पूरा करता है. क्लास बी और सी के लिए बीडीओ की मात्रा प्रति लीटर अधिकतम 3 मिलीग्राम होनी चाहिए लेकिन खुले तौर पर नहाने के लिए डिजॉल्व्ड ऑक्सीजन प्रति लीटर 5 मिलीग्राम होनी चाहिए जबकि क्लास सी के लिए प्रति लीटर 4 मिलीग्राम होनी चाहिए.

इसके अलावा खुले तौर पर स्नान के लिए कुल कोलीफार्म प्रति मिली लीटर 500 एमपीएन मिला है, जो क्लास सी के लिए मान्य स्तर का दसवां हिस्सा है. अतः मानचित्र में साफ तौर पर यह संकेत अंकित किया जाना चाहिए कि कहां लोग नहाने के लिए जा सकते हैं. गंगा नदी के कन्नौज से लेकर गाजीपुर तक के हिस्से (मिर्जापुर और वाराणसी को छोड़कर) को मॉनसून के बाद (अगस्त 2018) के आंकड़ों में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने असंतोषजनक बताया है. हालांकि, इन स्थानों पर टोटल कोलीफोर्म (टीसी) की मात्रा 500 मिनिमम प्रोपेबल नंबर (एमपीएन)/100 मिलीलीटर दर्ज की गई है, लेकिन जैव ऑक्सीजन मांग (बीओडी) और घुलनशील ऑक्सीजन (डीओ) की मात्रा क्लास बी के मानकों के भीतर रहा. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानचित्र, जिसे सुटेब्लिटी आफ रिवर गंगा नाम दिया गया है, में दर्ज लाल बिन्दुओं के जरिए बताया गया है कि इन स्थानों (ये क्लास ए और सी में शामिल नहीं हैं) के पानी को पारंपरिक/आधुनिक तौर पर परिशोधित व रोगाणुमुक्त करने के बाद पीने की इजाजत दी गई है. इस तरह के स्तर को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के असल “वाटर क्वालिटी क्राइटेरिया” में श्रेणीबद्ध नहीं किया गया है.

बोर्ड ने यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि क्लास सी में जिस अत्याधुनिक ट्रीटमेंट या संगठित पारम्परिक व्यवस्था का जिक्र किया गया है, वो क्या है. ताजा रिकॉर्ड के मुताबिक, गंगा की सफाई पर मार्च 2017 तक 7,304.64 करोड़ रुपए खर्च किये जा चुके हैं, लेकिन गंगा और उसकी सहायक नदियों के पानी की गुणवत्ता में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है. केंद्रीय जल आयोग के आंकड़े (मई 2016-जून 2017 तक) बताते हैं कि गढ़मुक्तेश्वर से शहजादपुर के बीच गंगा में औसत बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड वैल्यू (प्रदूषण का स्तर मापने का पैमाना) स्नान करने के योग्य भी नहीं है.

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