सरकार केवल खर्च, खर्च और खर्च करने से ज्यादा कुछ कर सकती है, और उसे करना भी चाहिए.
यह साल का वह समय है जब कोई भी व्यक्ति जो अर्थशास्त्र और वित्तीय व्यवस्था के बारे में लिखकर आजीविका चलाता है, वित्त मंत्री को केंद्र सरकार के अगले वित्तीय वर्ष के बजट में क्या करना चाहिए इसके बारे में सलाह देने के लिए कुछ सौ शब्द तो लिख ही देता है.
इस साल कोरोनावायरस महामारी की वजह से अर्थव्यवस्था पर पड़े नकारात्मक प्रभाव के कारण कई स्तंभकारों, अर्थशास्त्रियों, पत्रकारों और विश्लेषकों ने वित्त मंत्री से हाथ खोलकर खर्च करने को कहा है. इसके पीछे का विचार यह है कि जब निजी क्षेत्र (उद्यमी और व्यक्तिगत) पर्याप्त धन नहीं खर्च कर रहा है तो अंततः सरकार को खर्चा करके अर्थव्यवस्था को बचाना चाहिए.
लेकिन दिशाहीन और विशिष्ट उद्देश्य के बिना केवल खर्चा, एक जुगाड़ से ज्यादा कुछ नहीं है. विश्वास करिए, मेरे जैसे लोग जिन से मैं भी अलग नहीं हूं, वर्षों से इसके दोषी रहे हैं.
इसीलिए, अपने में सुधार करते हुए मैंने सोचा कि इस वर्ष कुछ सधी हुई बात करते हुए मुझे उन पांच कदमों के बारे में बात करनी चाहिए जो सरकार रियल एस्टेट सेक्टर को लेकर उठा सकती है.
आइए क्रमवार तरीके से देखें
1. पहला, बड़ी संख्या में ताला लगे घर भारतीय रियल एस्टेट के लिए एक बड़ी समस्या है. लोग जिन घरों में नहीं रहते उन्हें खरीद कर ताला डालकर छोड़ देते हैं. भारत जैसे देश में यह किसी अपराध से कम नहीं. जिस घर में रहना नहीं उसे खरीदकर तारा डालकर छोड़ देने से, भारत जैसे कम पूंजी वाले देश में बहुत धन बर्बाद होता है. एक ताला लगा घर किसी के काम का नहीं है.
अतीत में कई बार सलाह दी गई कि इन ताला लगे घरों के मालिकों के ऊपर एक निर्धारित किराए की दर से कर लगाया जाए. मेरे विचार में एक अच्छा उपाय नहीं है. इससे बेहतर हुआ कि हम लोगों को अपने घर किराए पर चढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करें. इसका एक तरीका है कि किराए से होने वाली आय के ऊपर कर कम दर से लगे. मान लीजिए कि किराए से होने वाली आय पर 10 प्रतिशत से कर लगे, यह शायद बहुत से लोगों को अपने घरों को किराए पर चलाने के लिए प्रोत्साहित करे.
इसके अनेक फायदे होंगे. किराए पर ज्यादा घर उपलब्ध होने के कारण काफी लोग इस मुश्किल समय में घर खरीदने के दबाव से मुक्त होंगे, जिनसे उनका जीवन थोड़ा आसान हो सकता है.
दूसरे, आंकड़े बताते हैं कि नकद में किराया लेकर बहुत से मकान मालिक किराए को अपनी आय में नहीं दिखाते हैं. इस आय पर कर की दर कम होना, उन्हें कर देने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है जिससे सरकार के राजस्व में बढ़ोतरी हो सकती है.
तीसरा, किराए के लिए अधिक घर उपलब्ध होने के कारण किराए भी कम हो सकते हैं, जिससे किराए से होने वाली आमदनी कम होगी. इस आमदनी के कम होने से नए घरों को खरीदने के लाभ कम होंगे, जिससे बिल्डर घरों की कीमतों की समीक्षा कर पाएंगे जो उन्होंने बहुत लंबे समय से नहीं की है. और एक 2 वर्ष के बाद उपलब्ध आंकड़ों से इन कदमों की समीक्षा भी की जा सकती है.
2. देशभर के शहरों में केंद्र सरकार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों और दूसरी संस्थाओं के माध्यम से भूमि का स्वामित्व रखती है. इस भूभाग का एक बड़ा हिस्सा उपयोग में नहीं लाया जाता है. इस सब भूमि को सूचीबद्ध करने के बारे में कुछ विचार विमर्श हुआ है. यह अति आवश्यक है कि इस काम को तेजी से किया जाए. इसके साथ ही साथ सरकार को इस भूमि के विक्रय करने की प्रक्रिया को भी शुरू कर देना चाहिए. यह ऐसा कदम नहीं जो बहुत सहजता से उठाया जा सकेगा क्योंकि ऐसा प्रयास पहले कभी नहीं किया गया. इसीलिए कुछ भूल चूक अवश्य होगी. सरकार के लिए राजस्व पैदा करने के अलावा यह शहरों में जमीन की कीमत को कम भी करेगा, जोकि रियल एस्टेट उद्योग में नए निर्माण के लिए एक मुख्य कारक है.
3. भारत में रियल एस्टेट सेक्टर में एक बड़ी कमी अच्छे आंकड़ों की सार्वजनिक उपलब्धता न होना है. अमेरिका में, 'हाउसिंग स्टार्टस्' एक सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ा है जो बताता है कि किसी भी क्षेत्र में इस महीने कितने नए व्यक्तिगत घरों का निर्माण शुरू हुआ है. हर राज्य में एक रियल एस्टेट नियामक होने के कारण भारत में भी इस प्रकार के आंकड़ों को अर्जित करना संभव है. बिल्डरों के लिए अपने हर नए प्रोजेक्ट की जानकारी को सूचित करने के कारण भारत भी इस प्रकार के आर्थिक आंकड़ों को घोषित करने में समर्थ है. सरकार को दिल्ली में मौजूद अपने द्वारा पोषित या स्वामित्व वाले विचार मंडलों में से एक को इस काम में लगाना चाहिए. इस सबसे अलग, केंद्र सरकार के द्वारा राज्य सरकारों को घरों की बिक्री पर मिलने वाली स्टैंप ड्यूटी की जानकारी को भी संकलित करना चाहिए.
यह आंकड़े समय के साथ-साथ महत्वपूर्ण आर्थिक मानकों के रूप में उतरेंगे क्योंकि किसी भी व्यक्ति के द्वारा खरीदी गई जीवन में सबसे महंगी चीज उसका घर ही होती है. इसका मतलब है कि अगर घरों की बिक्री का पंजीकरण बढ़ रहा है, तो हमें स्पष्ट रूप से बताएगा कि लोग व्यक्तिगत तौर पर अपने आर्थिक भविष्य के लिए अधिक आश्वस्त हैं. जब कोई अपने आर्थिक भविष्य को लेकर आश्वस्त होता है तभी कोई भी व्यक्ति होम लोन लेता है या एक बड़ी एकमुश्त किश्त चुकाता है, जोगी घर खरीदने के लिए जरूरी है.
सरकार को यह भी चाहिए कि वह भारतीय रिजर्व बैंक को नियमित तौर पर गृह ऋणों के आंकड़ों को नियमित तौर पर प्रकाशित करने के लिए कहे. फिलहाल आरबीआई बैंकों के बकाया गृह ऋणों को महीने के आखिर में प्रकाशित करता है. हमें ऋणों की राशि और महीने के दौरान बैंकों और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों के द्वारा दिए गए नए ऋणों के आंकड़े भी मिलने चाहिए.
हालांकि इसका सीधा-सीधा बजट से कोई लेना देना नहीं है लेकिन देखते हुए के अधिकतर नीतियों की घोषणा बजट के समय ही होती है, इनके साथ भी ऐसा किया जा सकता है.
4.जो वेतन भोगी नहीं हैं उनके लिए घरों के किराए की कर में छूट 5000 रुपए प्रति माह या 60,000 रुपए सालाना ही है. इसे बदला जाना चाहिए. जब तक किराया चेक या ऑनलाइन ट्रांसफर के द्वारा दिया जा रहा है, कर में पूरी छूट मिलनी चाहिए. इस मामले में आयकर का कानून जिस तरीके से बना है, वह उन लोगों के खिलाफ भेदभाव करता प्रतीत होता है जिन्हें नियमित तनख्वाह नहीं मिलती और हाउस रेंट अलाउंस उनके वेतन का हिस्सा नहीं है.
5. वित्त मंत्री को अपने बजट के भाषण में, राज्य सरकारों को रियल एस्टेट सौदों पर लगने वाली स्टांप ड्यूटी को कम करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. इसके साथ ही साथ उन्हें राज्य सरकारों से यह निवेदन भी करना चाहिए कि वह रियल एस्टेट के विक्रय और निर्माण में लगने वाले विभिन्न प्रकार के शुल्कों को घटाएं. इससे बढ़ने वाले सौदों की संख्या, दर कम करने से होने वाले कर की कमी को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगी. इससे राज्यों में रियल एस्टेट क्षेत्र में होने वाली गतिविधियां बढ़ेंगी जिसके परिणाम स्वरूप अर्ध कुशल और अकुशल कर्मियों के लिए नौकरियां पैदा होंगी, जोकि कोविड-19 महामारी से हुए नुकसान के सबसे बड़े भुक्तभोगी हैं. जैसा कि थॉमस सॉवेल कंट्रोवर्शियल एस्सेस़ में लिखते हैं, "जब कोई भी निवेश किया जाता है… तो सबसे पहले खर्च लोगों को रखने में होता है. उसके बिना कुछ नहीं होता. पैसा पहले लागत में खर्च होता है और बाद में फायदा बनकर वापस आता है."
यह वह पांच चीजें हैं जिन्हें वित्त मंत्री और सरकार को नए बजट में करना चाहिए जिससे कि आने वाले वर्षों में रियल एस्टेट क्षेत्र में बढ़ोतरी हो सके. यह समय की मांग हैं.
इस स्टोरी का एक वर्जन पहले न्यूज़लॉन्ड्री पर प्रकाशित हो चुका है.
(विवेक कौल बैड मनी किताब के लेखक हैं.)
यह साल का वह समय है जब कोई भी व्यक्ति जो अर्थशास्त्र और वित्तीय व्यवस्था के बारे में लिखकर आजीविका चलाता है, वित्त मंत्री को केंद्र सरकार के अगले वित्तीय वर्ष के बजट में क्या करना चाहिए इसके बारे में सलाह देने के लिए कुछ सौ शब्द तो लिख ही देता है.
इस साल कोरोनावायरस महामारी की वजह से अर्थव्यवस्था पर पड़े नकारात्मक प्रभाव के कारण कई स्तंभकारों, अर्थशास्त्रियों, पत्रकारों और विश्लेषकों ने वित्त मंत्री से हाथ खोलकर खर्च करने को कहा है. इसके पीछे का विचार यह है कि जब निजी क्षेत्र (उद्यमी और व्यक्तिगत) पर्याप्त धन नहीं खर्च कर रहा है तो अंततः सरकार को खर्चा करके अर्थव्यवस्था को बचाना चाहिए.
लेकिन दिशाहीन और विशिष्ट उद्देश्य के बिना केवल खर्चा, एक जुगाड़ से ज्यादा कुछ नहीं है. विश्वास करिए, मेरे जैसे लोग जिन से मैं भी अलग नहीं हूं, वर्षों से इसके दोषी रहे हैं.
इसीलिए, अपने में सुधार करते हुए मैंने सोचा कि इस वर्ष कुछ सधी हुई बात करते हुए मुझे उन पांच कदमों के बारे में बात करनी चाहिए जो सरकार रियल एस्टेट सेक्टर को लेकर उठा सकती है.
आइए क्रमवार तरीके से देखें
1. पहला, बड़ी संख्या में ताला लगे घर भारतीय रियल एस्टेट के लिए एक बड़ी समस्या है. लोग जिन घरों में नहीं रहते उन्हें खरीद कर ताला डालकर छोड़ देते हैं. भारत जैसे देश में यह किसी अपराध से कम नहीं. जिस घर में रहना नहीं उसे खरीदकर तारा डालकर छोड़ देने से, भारत जैसे कम पूंजी वाले देश में बहुत धन बर्बाद होता है. एक ताला लगा घर किसी के काम का नहीं है.
अतीत में कई बार सलाह दी गई कि इन ताला लगे घरों के मालिकों के ऊपर एक निर्धारित किराए की दर से कर लगाया जाए. मेरे विचार में एक अच्छा उपाय नहीं है. इससे बेहतर हुआ कि हम लोगों को अपने घर किराए पर चढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करें. इसका एक तरीका है कि किराए से होने वाली आय के ऊपर कर कम दर से लगे. मान लीजिए कि किराए से होने वाली आय पर 10 प्रतिशत से कर लगे, यह शायद बहुत से लोगों को अपने घरों को किराए पर चलाने के लिए प्रोत्साहित करे.
इसके अनेक फायदे होंगे. किराए पर ज्यादा घर उपलब्ध होने के कारण काफी लोग इस मुश्किल समय में घर खरीदने के दबाव से मुक्त होंगे, जिनसे उनका जीवन थोड़ा आसान हो सकता है.
दूसरे, आंकड़े बताते हैं कि नकद में किराया लेकर बहुत से मकान मालिक किराए को अपनी आय में नहीं दिखाते हैं. इस आय पर कर की दर कम होना, उन्हें कर देने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है जिससे सरकार के राजस्व में बढ़ोतरी हो सकती है.
तीसरा, किराए के लिए अधिक घर उपलब्ध होने के कारण किराए भी कम हो सकते हैं, जिससे किराए से होने वाली आमदनी कम होगी. इस आमदनी के कम होने से नए घरों को खरीदने के लाभ कम होंगे, जिससे बिल्डर घरों की कीमतों की समीक्षा कर पाएंगे जो उन्होंने बहुत लंबे समय से नहीं की है. और एक 2 वर्ष के बाद उपलब्ध आंकड़ों से इन कदमों की समीक्षा भी की जा सकती है.
2. देशभर के शहरों में केंद्र सरकार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों और दूसरी संस्थाओं के माध्यम से भूमि का स्वामित्व रखती है. इस भूभाग का एक बड़ा हिस्सा उपयोग में नहीं लाया जाता है. इस सब भूमि को सूचीबद्ध करने के बारे में कुछ विचार विमर्श हुआ है. यह अति आवश्यक है कि इस काम को तेजी से किया जाए. इसके साथ ही साथ सरकार को इस भूमि के विक्रय करने की प्रक्रिया को भी शुरू कर देना चाहिए. यह ऐसा कदम नहीं जो बहुत सहजता से उठाया जा सकेगा क्योंकि ऐसा प्रयास पहले कभी नहीं किया गया. इसीलिए कुछ भूल चूक अवश्य होगी. सरकार के लिए राजस्व पैदा करने के अलावा यह शहरों में जमीन की कीमत को कम भी करेगा, जोकि रियल एस्टेट उद्योग में नए निर्माण के लिए एक मुख्य कारक है.
3. भारत में रियल एस्टेट सेक्टर में एक बड़ी कमी अच्छे आंकड़ों की सार्वजनिक उपलब्धता न होना है. अमेरिका में, 'हाउसिंग स्टार्टस्' एक सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ा है जो बताता है कि किसी भी क्षेत्र में इस महीने कितने नए व्यक्तिगत घरों का निर्माण शुरू हुआ है. हर राज्य में एक रियल एस्टेट नियामक होने के कारण भारत में भी इस प्रकार के आंकड़ों को अर्जित करना संभव है. बिल्डरों के लिए अपने हर नए प्रोजेक्ट की जानकारी को सूचित करने के कारण भारत भी इस प्रकार के आर्थिक आंकड़ों को घोषित करने में समर्थ है. सरकार को दिल्ली में मौजूद अपने द्वारा पोषित या स्वामित्व वाले विचार मंडलों में से एक को इस काम में लगाना चाहिए. इस सबसे अलग, केंद्र सरकार के द्वारा राज्य सरकारों को घरों की बिक्री पर मिलने वाली स्टैंप ड्यूटी की जानकारी को भी संकलित करना चाहिए.
यह आंकड़े समय के साथ-साथ महत्वपूर्ण आर्थिक मानकों के रूप में उतरेंगे क्योंकि किसी भी व्यक्ति के द्वारा खरीदी गई जीवन में सबसे महंगी चीज उसका घर ही होती है. इसका मतलब है कि अगर घरों की बिक्री का पंजीकरण बढ़ रहा है, तो हमें स्पष्ट रूप से बताएगा कि लोग व्यक्तिगत तौर पर अपने आर्थिक भविष्य के लिए अधिक आश्वस्त हैं. जब कोई अपने आर्थिक भविष्य को लेकर आश्वस्त होता है तभी कोई भी व्यक्ति होम लोन लेता है या एक बड़ी एकमुश्त किश्त चुकाता है, जोगी घर खरीदने के लिए जरूरी है.
सरकार को यह भी चाहिए कि वह भारतीय रिजर्व बैंक को नियमित तौर पर गृह ऋणों के आंकड़ों को नियमित तौर पर प्रकाशित करने के लिए कहे. फिलहाल आरबीआई बैंकों के बकाया गृह ऋणों को महीने के आखिर में प्रकाशित करता है. हमें ऋणों की राशि और महीने के दौरान बैंकों और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों के द्वारा दिए गए नए ऋणों के आंकड़े भी मिलने चाहिए.
हालांकि इसका सीधा-सीधा बजट से कोई लेना देना नहीं है लेकिन देखते हुए के अधिकतर नीतियों की घोषणा बजट के समय ही होती है, इनके साथ भी ऐसा किया जा सकता है.
4.जो वेतन भोगी नहीं हैं उनके लिए घरों के किराए की कर में छूट 5000 रुपए प्रति माह या 60,000 रुपए सालाना ही है. इसे बदला जाना चाहिए. जब तक किराया चेक या ऑनलाइन ट्रांसफर के द्वारा दिया जा रहा है, कर में पूरी छूट मिलनी चाहिए. इस मामले में आयकर का कानून जिस तरीके से बना है, वह उन लोगों के खिलाफ भेदभाव करता प्रतीत होता है जिन्हें नियमित तनख्वाह नहीं मिलती और हाउस रेंट अलाउंस उनके वेतन का हिस्सा नहीं है.
5. वित्त मंत्री को अपने बजट के भाषण में, राज्य सरकारों को रियल एस्टेट सौदों पर लगने वाली स्टांप ड्यूटी को कम करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. इसके साथ ही साथ उन्हें राज्य सरकारों से यह निवेदन भी करना चाहिए कि वह रियल एस्टेट के विक्रय और निर्माण में लगने वाले विभिन्न प्रकार के शुल्कों को घटाएं. इससे बढ़ने वाले सौदों की संख्या, दर कम करने से होने वाले कर की कमी को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगी. इससे राज्यों में रियल एस्टेट क्षेत्र में होने वाली गतिविधियां बढ़ेंगी जिसके परिणाम स्वरूप अर्ध कुशल और अकुशल कर्मियों के लिए नौकरियां पैदा होंगी, जोकि कोविड-19 महामारी से हुए नुकसान के सबसे बड़े भुक्तभोगी हैं. जैसा कि थॉमस सॉवेल कंट्रोवर्शियल एस्सेस़ में लिखते हैं, "जब कोई भी निवेश किया जाता है… तो सबसे पहले खर्च लोगों को रखने में होता है. उसके बिना कुछ नहीं होता. पैसा पहले लागत में खर्च होता है और बाद में फायदा बनकर वापस आता है."
यह वह पांच चीजें हैं जिन्हें वित्त मंत्री और सरकार को नए बजट में करना चाहिए जिससे कि आने वाले वर्षों में रियल एस्टेट क्षेत्र में बढ़ोतरी हो सके. यह समय की मांग हैं.
इस स्टोरी का एक वर्जन पहले न्यूज़लॉन्ड्री पर प्रकाशित हो चुका है.
(विवेक कौल बैड मनी किताब के लेखक हैं.)