बजट का सबसे महत्वपूर्ण भाग जिसके बारे में कोई चर्चा नहीं है

अगले हफ्ते आने वाले बजट में सरकार को क्या करना चाहिए इसको क्रमवार तरीके से देखें.

WrittenBy:विवेक कौल
Date:
Article image
  • Share this article on whatsapp

1 फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण केंद्र सरकार के वित्त वर्ष 2021-22 का बजट पेश करेंगी. तब तक आने वाले दिनों में मीडिया में ऐसे अनेक लेख होंगे जो वित्त मंत्री को बजट में क्या करना चाहिए, इस पर सलाह देते मिलेंगे. राजनेता, अर्थशास्त्री, विश्लेषक और पत्रकार सभी अपनी-अपनी समझ से महत्वपूर्ण कदम बताएंगे.

इनमें से अनेक लेखों के साथ दिक्कत यह है कि लेखक बजट का मुख्य उद्देश्य भूलते हुए प्रतीत होते हैं, जो केंद्र सरकार के खातों का लेखा-जोखा सटीक रूप से पेश करना है. अगले वित्त वर्ष में सरकार कितना खर्च करने की योजना बना रही है और वह पैसा कहां से लाएगी. मोटे तौर पर देखा जाए तो यही बजट का मुख्य उद्देश्य है. परंतु मीडिया में बजट से पहले लिखे गए हजारों शब्दों में आपको यह महत्वपूर्ण और मौलिक बिंदु दिखाई नहीं देगा.

इस घटक को याद रखते हुए, अगले हफ्ते आने वाले बजट में सरकार को क्या करना चाहिए इसको क्रमवार तरीके से देखें.

  1. पिछले दो वर्षोंं, 2018-19 और 2019-20 में, सरकार ने साल के अंत में जितना कर से आने वाला राजस्व अर्जित किया उसको लेकर वह बजट में अत्यधिक आशावादी थी. 2018-19 में सरकार की उम्मीद थी कि वह कर से आने वाले राजस्व से 22.7 लाख करोड़ रुपए अर्जित करेगी. लेकिन अंततः उन्हें केवल 20.8 लाख करोड़ रुपए का राजस्व मिला जो कि अनुमान से 8.4 प्रतिशत कम था. 2019-20 में सरकार की आशा थी कि वह कर से आने वाले राजस्व से 24.6 लाख करोड़ रुपए अर्जित करेगी, लेकिन वह केवल 21.6 लाख करोड़ रुपए ही अर्जित कर पाई जो कि अनुमान से 12.1 प्रतिशत कम था. सकल कर राजस्व में मुख्यतः व्यक्तिगत आय कर, कॉरपोरेट आय कर, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क और केंद्रीय वस्तु और सेवा कर या जीएसटी, होते हैं. इन करों का कुछ हिस्सा राज्य सरकारों को साथ भी साझा किया जाता है.

  1. करों के अनुमान गलत क्यों निकले? हम अभी केवल कयास लगा सकते हैं. संभवत एक कारण यह हो सकता है कि वित्त मंत्रालय राजकोषीय घाटे को कमतर दिखाना चाहता था. राजकोषीय घाटा सरकार की कमाई और उसके खर्चे के बीच का अंतर है जिसको देश के सकल घरेलू उत्पाद में प्रतिशत के तौर पर दिखाया जाता. अगर कोई सरकार कर अर्जन से ज्यादा कमाई को दिखाती है, तो वह अंततः राजकोषीय घाटे को भी कम दिखा देती है, बशर्ते की होने वाला खर्च बराबर रहे.

  1. वित्त मंत्रालय के नौकरशाहों के द्वारा ज्यादा कर अर्जन दिखाए जाने का एक कारण, एक अच्छी अर्थव्यवस्था दिखाने का दबाव भी हो सकता है. क्योंकि अर्जित कर राशि तभी ज्यादा हो सकती है जब अर्थव्यवस्था अच्छे से चल रही हो.

  1. केवल कर राजस्व ही नहीं, 2019-20 और 2020-21 में सरकार ने अंतत: विनिवेश से आने वाले राजस्व को भी काफी बढ़ाकर प्रस्तुत किया, जिसका मतलब है कि सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की हिस्सेदारी को बेचकर यह पैसा कमाने की उम्मीद थी. 2019-20 में यह अनुमान 1.05 लाख करोड रुपए था जबकि वास्तविक कमाई 65,000 करोड रुपए हुई. 2020-21 में यह अनुमान पूर्णतया गलत साबित हुआ. सार्वजनिक क्षेत्र में विनिवेश से होने वाले आय का अनुमान 2.1 लाख करोड रुपए रखा गया था लेकिन अप्रैल और नवंबर के बीच हुई यह आय मात्र 6,179 करोड़ रुपए थी. हालांकि आय के कम होने का कारण कोविड-19 का फैलना हो सकता है लेकिन अनुमानित आए और वास्तविक आय के बीच का अंतर अप्रत्याशित रूप से ज्यादा है. वह भी तब जब शेयर बाजार लगातार बढ़ रहा है. इससे यह स्पष्ट होता है कि यहां पर सरकार ने एक अवसर को जाने दिया.

  2. इस साल सरकार और वित्त मंत्रालय के नौकरशाहों के लिए इन अनुमानों को वास्तविक तौर पर प्रस्तुत करना बहुत ज़रूरी है. जब सरकार की आमदनी साल भर में उसके द्वारा अनुमानित आय से कम रहती है, तब उसको अपने घोषित खर्चों में कटौती करनी ही पड़ती है. 2018-19 में सरकार की उम्मीद थी कि वह साल भर के दौरान 24 दशमलव 400000 करोड रुपए खर्च करेगी, लेकिन अंत में उसने 23.2 लाख करोड़ रुपए ही खर्च किए जो अनुमान से 5.2 प्रतिशत कम थे. 2019-20 में सरकार को उम्मीद थी कि वह 27.9 लाख करोड़ रुपए खर्च करेगी परंतु अपने 27 लाख करोड़ रुपए ही खर्च किए जो 3.2 प्रतिशत कम है.

  1. यह देखते हुए कि भारत की वित्तीय विकास दर 2016-17 में 8.3% के बाद से लगातार गिर ही रही है, सरकार के खर्च में किसी भी प्रकार की कटौती है उस पर नकारात्मक प्रभाव डालती है. इस बार, 2021-22 मैं यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब देश कोविड-19 महामारी की वजह से अर्थव्यवस्था को हुए भारी नुकसान से उबरने की चेष्टा कर रहा है. हालांकि पिछले कुछ महीनों में व्यक्तिगत खपत का खर्च बढ़ा है पर उसे 2019-20 के स्तर तक पहुंचने में अभी कुछ समय लगेगा. ऐसे वातावरण में यह ज़रूरी है कि सरकार जो भी खर्च का आंकड़ा प्रस्तुत करे उस पर वह 2021-22 में कायम रहे, जो कि पिछले दो वर्षों में नहीं हो पाया है. इतना ही नहीं, 2021-22 वह साल होना चाहिए जब सरकार अपनी अंत में खर्च करने वाले की भूमिका पर खरी उतरे, क्योंकि उद्यमी और लोग व्यक्तिगत तौर पर पहले की तरह खुलकर खर्च नहीं करेंगे.

  1. जब कर से अर्जित होने वाली आय के अनुमान गलत साबित होते हैं तो केवल वह केंद्र सरकार ही नहीं राज्य सरकारों पर भी असर डालते हैं. केंद्र सरकार के द्वारा अर्जित किए गए कर राजस्व का राज्य सरकारों के साथ साझा किया जाना भी इसका एक मुख्य कारण है. राज्य सरकारें अपने बजट के अनुमानों को केंद्र सरकार के बताए गए अनुमानों पर ही आधारित करती हैं जिनमें केंद्र सरकार के द्वारा साझा किया गये कर एक बड़ी भूमिका निभाते हैं. अगर साझा की गई कर राशि गिरती है तो राज्य सरकारों के बजट भी पूरी तरह से गड़बड़ा जाते हैं. जैसा कि 2019-20 में हुआ, राज्य सरकारों के साथ साझा की जाने वाली राशि 8.1 लाख करोड़ रुपए बताई गई थी, परंतु साझा की गई वास्तविक राशि 6.6 लाख करोड़ रुपए थी जो कि अनुमानित राशि से 1.5 लाख करोड़ रुपए या 18.5% कम थी. जाहिर है इससे राज्य सरकारों को या तो अपने खर्च में कटौती करनी पड़ी होगी या उन्हें और अधिक उधार लेना पड़ा होगा, अगर वह ऐसा कर सकने की स्थिति में थे तो.

अंतत: एक उद्यमी से लेकर साधारण नागरिक तक केंद्र सरकार के बजट की ओर देखकर पूछते हैं, कि इसमें हमारे लिए क्या है? वित्त मंत्री और सरकार को बजट पर मिलने वाली सारी सलाहें, मूलतः इसी परिवेश पर निर्धारित होती हैं. बहुत ही कम लोग बजट की समीक्षा सूक्ष्म रूप से करते हैं.

चाहे कुछ भी हो, लेकिन 2021-22 में बजट के यह सूक्ष्म पहलू बहुत महत्वपूर्ण होने वाले हैं. सरकार को चाहिए कि वह अपने प्रत्याशित अनुमानों को सही दिशा में प्रस्तुत करे.

इस स्टोरी का एक वर्जन पहले न्यूज़लॉन्ड्री पर प्रकाशित हो चुका है.


(विवेक कौल बैड मनी किताब के लेखक हैं.)

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute
Also see
article imageकौन हैं वे किसान संगठन जो कृषि क़ानूनों पर मोदी सरकार को दे रहे हैं समर्थन?
article imageकिसी भी हाल में किसानों को दिल्ली नहीं पहुंचने देना चाहती मोदी सरकार
article imageकौन हैं वे किसान संगठन जो कृषि क़ानूनों पर मोदी सरकार को दे रहे हैं समर्थन?
article imageकिसी भी हाल में किसानों को दिल्ली नहीं पहुंचने देना चाहती मोदी सरकार

1 फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण केंद्र सरकार के वित्त वर्ष 2021-22 का बजट पेश करेंगी. तब तक आने वाले दिनों में मीडिया में ऐसे अनेक लेख होंगे जो वित्त मंत्री को बजट में क्या करना चाहिए, इस पर सलाह देते मिलेंगे. राजनेता, अर्थशास्त्री, विश्लेषक और पत्रकार सभी अपनी-अपनी समझ से महत्वपूर्ण कदम बताएंगे.

इनमें से अनेक लेखों के साथ दिक्कत यह है कि लेखक बजट का मुख्य उद्देश्य भूलते हुए प्रतीत होते हैं, जो केंद्र सरकार के खातों का लेखा-जोखा सटीक रूप से पेश करना है. अगले वित्त वर्ष में सरकार कितना खर्च करने की योजना बना रही है और वह पैसा कहां से लाएगी. मोटे तौर पर देखा जाए तो यही बजट का मुख्य उद्देश्य है. परंतु मीडिया में बजट से पहले लिखे गए हजारों शब्दों में आपको यह महत्वपूर्ण और मौलिक बिंदु दिखाई नहीं देगा.

इस घटक को याद रखते हुए, अगले हफ्ते आने वाले बजट में सरकार को क्या करना चाहिए इसको क्रमवार तरीके से देखें.

  1. पिछले दो वर्षोंं, 2018-19 और 2019-20 में, सरकार ने साल के अंत में जितना कर से आने वाला राजस्व अर्जित किया उसको लेकर वह बजट में अत्यधिक आशावादी थी. 2018-19 में सरकार की उम्मीद थी कि वह कर से आने वाले राजस्व से 22.7 लाख करोड़ रुपए अर्जित करेगी. लेकिन अंततः उन्हें केवल 20.8 लाख करोड़ रुपए का राजस्व मिला जो कि अनुमान से 8.4 प्रतिशत कम था. 2019-20 में सरकार की आशा थी कि वह कर से आने वाले राजस्व से 24.6 लाख करोड़ रुपए अर्जित करेगी, लेकिन वह केवल 21.6 लाख करोड़ रुपए ही अर्जित कर पाई जो कि अनुमान से 12.1 प्रतिशत कम था. सकल कर राजस्व में मुख्यतः व्यक्तिगत आय कर, कॉरपोरेट आय कर, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क और केंद्रीय वस्तु और सेवा कर या जीएसटी, होते हैं. इन करों का कुछ हिस्सा राज्य सरकारों को साथ भी साझा किया जाता है.

  1. करों के अनुमान गलत क्यों निकले? हम अभी केवल कयास लगा सकते हैं. संभवत एक कारण यह हो सकता है कि वित्त मंत्रालय राजकोषीय घाटे को कमतर दिखाना चाहता था. राजकोषीय घाटा सरकार की कमाई और उसके खर्चे के बीच का अंतर है जिसको देश के सकल घरेलू उत्पाद में प्रतिशत के तौर पर दिखाया जाता. अगर कोई सरकार कर अर्जन से ज्यादा कमाई को दिखाती है, तो वह अंततः राजकोषीय घाटे को भी कम दिखा देती है, बशर्ते की होने वाला खर्च बराबर रहे.

  1. वित्त मंत्रालय के नौकरशाहों के द्वारा ज्यादा कर अर्जन दिखाए जाने का एक कारण, एक अच्छी अर्थव्यवस्था दिखाने का दबाव भी हो सकता है. क्योंकि अर्जित कर राशि तभी ज्यादा हो सकती है जब अर्थव्यवस्था अच्छे से चल रही हो.

  1. केवल कर राजस्व ही नहीं, 2019-20 और 2020-21 में सरकार ने अंतत: विनिवेश से आने वाले राजस्व को भी काफी बढ़ाकर प्रस्तुत किया, जिसका मतलब है कि सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की हिस्सेदारी को बेचकर यह पैसा कमाने की उम्मीद थी. 2019-20 में यह अनुमान 1.05 लाख करोड रुपए था जबकि वास्तविक कमाई 65,000 करोड रुपए हुई. 2020-21 में यह अनुमान पूर्णतया गलत साबित हुआ. सार्वजनिक क्षेत्र में विनिवेश से होने वाले आय का अनुमान 2.1 लाख करोड रुपए रखा गया था लेकिन अप्रैल और नवंबर के बीच हुई यह आय मात्र 6,179 करोड़ रुपए थी. हालांकि आय के कम होने का कारण कोविड-19 का फैलना हो सकता है लेकिन अनुमानित आए और वास्तविक आय के बीच का अंतर अप्रत्याशित रूप से ज्यादा है. वह भी तब जब शेयर बाजार लगातार बढ़ रहा है. इससे यह स्पष्ट होता है कि यहां पर सरकार ने एक अवसर को जाने दिया.

  2. इस साल सरकार और वित्त मंत्रालय के नौकरशाहों के लिए इन अनुमानों को वास्तविक तौर पर प्रस्तुत करना बहुत ज़रूरी है. जब सरकार की आमदनी साल भर में उसके द्वारा अनुमानित आय से कम रहती है, तब उसको अपने घोषित खर्चों में कटौती करनी ही पड़ती है. 2018-19 में सरकार की उम्मीद थी कि वह साल भर के दौरान 24 दशमलव 400000 करोड रुपए खर्च करेगी, लेकिन अंत में उसने 23.2 लाख करोड़ रुपए ही खर्च किए जो अनुमान से 5.2 प्रतिशत कम थे. 2019-20 में सरकार को उम्मीद थी कि वह 27.9 लाख करोड़ रुपए खर्च करेगी परंतु अपने 27 लाख करोड़ रुपए ही खर्च किए जो 3.2 प्रतिशत कम है.

  1. यह देखते हुए कि भारत की वित्तीय विकास दर 2016-17 में 8.3% के बाद से लगातार गिर ही रही है, सरकार के खर्च में किसी भी प्रकार की कटौती है उस पर नकारात्मक प्रभाव डालती है. इस बार, 2021-22 मैं यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब देश कोविड-19 महामारी की वजह से अर्थव्यवस्था को हुए भारी नुकसान से उबरने की चेष्टा कर रहा है. हालांकि पिछले कुछ महीनों में व्यक्तिगत खपत का खर्च बढ़ा है पर उसे 2019-20 के स्तर तक पहुंचने में अभी कुछ समय लगेगा. ऐसे वातावरण में यह ज़रूरी है कि सरकार जो भी खर्च का आंकड़ा प्रस्तुत करे उस पर वह 2021-22 में कायम रहे, जो कि पिछले दो वर्षों में नहीं हो पाया है. इतना ही नहीं, 2021-22 वह साल होना चाहिए जब सरकार अपनी अंत में खर्च करने वाले की भूमिका पर खरी उतरे, क्योंकि उद्यमी और लोग व्यक्तिगत तौर पर पहले की तरह खुलकर खर्च नहीं करेंगे.

  1. जब कर से अर्जित होने वाली आय के अनुमान गलत साबित होते हैं तो केवल वह केंद्र सरकार ही नहीं राज्य सरकारों पर भी असर डालते हैं. केंद्र सरकार के द्वारा अर्जित किए गए कर राजस्व का राज्य सरकारों के साथ साझा किया जाना भी इसका एक मुख्य कारण है. राज्य सरकारें अपने बजट के अनुमानों को केंद्र सरकार के बताए गए अनुमानों पर ही आधारित करती हैं जिनमें केंद्र सरकार के द्वारा साझा किया गये कर एक बड़ी भूमिका निभाते हैं. अगर साझा की गई कर राशि गिरती है तो राज्य सरकारों के बजट भी पूरी तरह से गड़बड़ा जाते हैं. जैसा कि 2019-20 में हुआ, राज्य सरकारों के साथ साझा की जाने वाली राशि 8.1 लाख करोड़ रुपए बताई गई थी, परंतु साझा की गई वास्तविक राशि 6.6 लाख करोड़ रुपए थी जो कि अनुमानित राशि से 1.5 लाख करोड़ रुपए या 18.5% कम थी. जाहिर है इससे राज्य सरकारों को या तो अपने खर्च में कटौती करनी पड़ी होगी या उन्हें और अधिक उधार लेना पड़ा होगा, अगर वह ऐसा कर सकने की स्थिति में थे तो.

अंतत: एक उद्यमी से लेकर साधारण नागरिक तक केंद्र सरकार के बजट की ओर देखकर पूछते हैं, कि इसमें हमारे लिए क्या है? वित्त मंत्री और सरकार को बजट पर मिलने वाली सारी सलाहें, मूलतः इसी परिवेश पर निर्धारित होती हैं. बहुत ही कम लोग बजट की समीक्षा सूक्ष्म रूप से करते हैं.

चाहे कुछ भी हो, लेकिन 2021-22 में बजट के यह सूक्ष्म पहलू बहुत महत्वपूर्ण होने वाले हैं. सरकार को चाहिए कि वह अपने प्रत्याशित अनुमानों को सही दिशा में प्रस्तुत करे.

इस स्टोरी का एक वर्जन पहले न्यूज़लॉन्ड्री पर प्रकाशित हो चुका है.


(विवेक कौल बैड मनी किताब के लेखक हैं.)

Also see
article imageकौन हैं वे किसान संगठन जो कृषि क़ानूनों पर मोदी सरकार को दे रहे हैं समर्थन?
article imageकिसी भी हाल में किसानों को दिल्ली नहीं पहुंचने देना चाहती मोदी सरकार
article imageकौन हैं वे किसान संगठन जो कृषि क़ानूनों पर मोदी सरकार को दे रहे हैं समर्थन?
article imageकिसी भी हाल में किसानों को दिल्ली नहीं पहुंचने देना चाहती मोदी सरकार
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like