26 जनवरी की घटना के बाद सिंघु बॉर्डर पर क्या बदला?

बीते दो महीने से प्रदर्शन स्थल की तरफ जाते हुए किसी भी शख्स को रोका नहीं गया. किसी का पहचान पत्र भी नहीं देखा गया, लेकिन 26 जनवरी की घटना के बाद से स्थिति बदल गई है.

WrittenBy:बसंत कुमार
Date:
Article image

शुक्रवार को सिंघु बॉर्डर पर हज़ारों की संख्या में ‘स्थानीय निवासी’ पहुंच गए और पुलिस की उपस्थिति में प्रदर्शनकारी किसानों पर हमला बोल दिया. यह हमला अचानक नहीं हुआ बल्कि इसकी पटकथा गुरुवार दोपहर में ही लिखी जा चुकी थी.

गुरुवार की रात अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर पंजाब के तरनतारन जिले के एक किसान ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया, ‘‘आज दोपहर आरएसएस के करीब 150 लोग यहां आए थे. उन्होंने प्रदर्शन स्थल को खाली करने की धमकी देते हुए कहा कि आज खाली नहीं किया गया तो कल हज़ारों की संख्या में आएंगे और हटाएंगे.’’

शाम के करीब सात बज रहे थे. सिंघु बॉर्डर पर चल रहे प्रदर्शन स्थल से करीब एक किलोमीटर दूर दिल्ली पुलिस और अर्धसैनिक बल के हज़ारों सुरक्षाकर्मी मुस्तैद नज़र आते हैं. जबरदस्त बैरिकेडिंग की जा रही है. इस दौरान प्रदर्शन स्थल की तरफ जा रहे लोगों को पुलिस लौटा रही थी. ऑफिस से लौट रही एक स्थानीय महिला अपने घर जाने के लिए लगातार पुलिस से गुजारिश करती नज़र आती है, लेकिन पुलिस उन्हें अंदर नहीं जाने देती. उदास होकर वो किनारे खड़ी हो जाती हैं. महिला का घर बैरिकेड से महज 50 मीटर की दूरी पर है. बंद की वजह से उन्हें रास्ता बदलकर दो किलोमीटर की दूरी तय करते हुए घर जाने पर मज़बूर होना पड़ा. वो भी उस रास्ते से जिसपर स्ट्रीट लाइट ही नहीं है.

बीते दो महीने से प्रदर्शन स्थल की तरफ जाते हुए किसी भी शख्स को रोका नहीं जा रहा था. किसी का पहचान पत्र भी नहीं देखा जा रहा था, लेकिन 26 जनवरी की घटना के बाद से स्थिति बदल गई है.

उससे पहले सिंघु बॉर्डर प्रदर्शन स्थल पर लोग आसानी से चले जाते थे. बैरिकेडिंग के बावजूद पुलिस ने किनारे से आने जाने का रास्ता खोला हुआ था, लेकिन गुरुवार को उसे भी बंद कर दिया गया. इतनी ज़्यादा बैरिकेडिंग को लेकर वहां मौजूद इंस्पेक्टर सुधीर कुमार से जब न्यूज़लॉन्ड्री ने पूछा तो वे बताते हैं, ‘‘कुछ स्थानीय लोग आज यहां आए थे. वे बेहद नाराज़ हैं और प्रदर्शनकारियों को यहां से जाने के लिए कहकर गए हैं. आगे कोई विवाद न हो इसके लिए किसी को भी उधर नहीं जाने दिया जा रहा है.’’

क्या वे नाराज़ स्थानीय निवासी आरएसएस के थे. जैसा कि पंजाब से आए किसानों ने आरोप लगाया है. इस सवाल पर सुधीर कहते हैं, ‘‘नहीं नहीं. वे स्थानीय लोग थे.’’

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute

‘उदासी तो है, लेकिन वापस जाएंगे नहीं’

25 और 26 जनवरी को सिंघु बॉर्डर पर पैर रखने की जगह नहीं थी, लेकिन 26 जनवरी को लाल किले पर हुई घटना के बाद लोगों की कमी साफ़ नजर आती है. 28 जनवरी की दोपहर के एक बजे स्टेज से लोग बारी-बारी से भाषण देते नज़र आते हैं. सुनने वालों की संख्या पच्चास से भी कम है. स्टेज पर मौजूद एक महिला वक्ता कहती हैं कि लाल किला पर क्या हुआ इसकी सफाई देने की ज़रूरत नहीं है. जो कुछ भी हुआ उसमें हमारे लोग शामिल नहीं थे. हमें आंदोलन को आगे ले जाने के लिए क्या करना है इस पर सोचना चहिए.

स्टेज के पास गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी का लंगर स्थल है. वहां हमारी मुलाकात एक बुजुर्ग महिला गुरमेहर कौर से होती है, जो कि दिल्ली की ही रहने वाली हैं. वो कहती हैं, ‘‘बीते दो महीनों से यहां हम सेवा कर रहे हैं. इतनी मेहनत कर रहे थे, लेकिन सबकुछ पर पानी फिर गया. लाल किले पर जो कुछ हुआ गलत हुआ. आंदोलन को नुकसान हुआ है.’’ गुरमेहर कौर बात करते-करते रोने लगती हैं. वो आगे बात करने से इंकार कर देती हैं.

यहां लंगर खाने के लिए हमेशा भीड़ लगी रहती थी लेकिन आज यहां कुछ ही लोग नज़र आए. गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी की तरफ से लंगर की देखरेख कर रहे गुरमीत सिंह कहते हैं, ‘‘जब से यहां किसान बैठे हुए हैं तब से हम लंगर चला रहे हैं. 26 जनवरी को जो कुछ हुआ वो सारी जनता ने देखा. हम तो दिल्ली की तरफ गए भी नहीं थे. यहां लंगर की सेवा दे रहे थे. 26 जनवरी के बाद यहां 19-20 का फर्क पड़ा है. जो किसान बैठे हैं वे अभी तक डटे हुए हैं. जो कुछ शरारती तत्व थे वे शरारत करके चले गए.’’

गुरमीत सिंह

सिंह आगे कहते हैं, ‘‘जो कुछ हुआ उससे मनोबल तो कुछ टूटा ही है. बाकी ये है कि जो किसान थे उन्होंने अपने ट्रैक्टर पर देश के झंडे के साथ किसान यूनियन का झंडा भी लगाया था. जहां तक रही लंगर खाने वालों की बात तो पहले सुबह से शाम तक 70 से 80 हज़ार लोग लंगर खाने आते थे अब 50 हज़ार के करीब आ रहे हैं.’’

आप अपना लंगर कब तक चलाओगे इस सवाल के जवाब में सिंह कहते हैं, ‘‘जब तक किसान अपना आंदोलन करते रहेंगे तब तक हम लंगर लगाए रखेंगे.’’

यहां मिले ज़्यादातर लोग 26 जनवरी को लाल किले पर जो कुछ हुआ उसको अफ़सोसजनक बताते नजर आते हैं. उनका दावा है, ‘‘यह सब पुलिस ने जानबूझकर होने दिया. बीते दो महीने से सिंघु बॉर्डर के प्रदर्शन में शामिल 28 वर्षीय नरेंद्र बताते हैं कि सरकार और पुलिस ने हमें अपने ट्रैप में फंसाया ताकि हम लोग जो रूट तय था उसपर न जाकर दिल्ली की तरफ जा सकें. जो रूट हमें जाने के लिए दिया गया था उसपर बैरिकेडिग की क्या ज़रूरत थी. हमें जिधर से जाना था उसे तो रोका गया, लेकिन किसानों को दिल्ली जाने दिया गया. ये कैसे मुमकिन हुआ. उन्हें रोकने के लिए कोई पुलिस बल मौजूद नहीं था. दरअसल यह सब जानबूझकर किया गया ताकि आंदोलन को बदनाम किया जा सके. लाल किले के अंदर 26 जनवरी को परिंदा पर नहीं मार सकता लेकिन इतने सारे लोगों को क्यों जाने दिया गया. क्या यह सब इत्तेफ़ाक़ था. नहीं, दरअसल सरकार की साजिश थी.’’

लाल किले के अंदर निशान साहिब का झंडा लगा था लेकिन मीडिया के एक बड़े हिस्से द्वारा खालिस्तानी झंडा बताये जाने के सवाल पर सिंह कहते हैं, ‘‘दरअसल मीडिया तो शुरू से हमारे आंदोलन में खालिस्तान के शामिल होने की बात कर रहा है लेकिन वो जो झंडा है उसी के नीचे लंगर लगता है. प्रधानमंत्री खुद वो झंडा कई दफा अपने माथे पर बांध चुके हैं. हमारे सिख सैनिक जब भी सफर करते हैं. उनकी गाड़ी पर यह झंडा लगा रहता है तो ऐसे में इस झंडे को खालिस्तानी झंडा कोई बोल रहा है तो यह हैरान होने वाली ही बात है. बेसिक समझ नहीं है उन्हें. दरअसल आज के समय में जो भी बीजेपी के खिलाफ बोलेगा वो मीडिया के लिए आतंकवादी ही होगा.’’

हरियाणा-पंजाब भाई-भाई

बुधवार को हरियाणा के कुछ किसानों के वापस लौटने की खबर सामने आई. इसके पीछे कारण था, 26 जनवरी की घटना पर बोलते हुए किसान नेता बलवीर सिंह राजेवाल का दिया एक बयान जिसमें उन्होंने कहा था कि हरियाणा के कुछ युवाओं ने गुमराह कर कुछ लोगों को लाल किले की तरफ जाने के लिए भड़काया था. इस बयान के बाद लोगों ने नाराज़गी जाहिर की जिसके बाद राजेवाल ने अपना बयान वापस लिया और इसके लिए माफ़ी मांगी लेकिन इसका जितना नुकसान होना था हो चुका था.

राजेवाल के बयान से जो नुकसान हुआ था उसकी भरपाई के लिए गुरुवार को तिरंगा यात्रा निकाली गई. इस तिरंगा यात्रा में सबसे आगे भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) के प्रमुख चढूनी बैठे थे. उसके पीछे दर्शनपाल और राजेवाल समेत बाकी किसान नेता भी थे. इस यात्रा के दौरान पंजाब-हरियाणा भाई-भाई के नारे लगाए जा रहे थे. लोग हाथों में 'पंजाब हरियाणा भाई-भाई, मिलकर जीतेंगे लड़ाई' की तख्ती लेकर चल रहे थे.

दर्शनपाल

इस रैली को लेकर दर्शनपाल न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘गणतंत्र दिवस के दिन जो घटना हुई उसके बाद लोग थोड़े परेशान थे. इस तिरंगा रैली का मकसद लोगों में जोश भरना था.’’

हरियाणा-पंजाब भाई-भाई के नारे के पीछे के कारणों के सवाल पर दर्शनपाल कहते हैं, ‘‘राजेवाल ने जो टिप्पणी की थी उसका हरियाणा के लोगों पर गलत असर पड़ा था.’’

28 जनवरी को निकाला गया तिरंगा मार्च

26 जनवरी की घटना के बाद मीडिया ने जिस तरह पूरे आंदोलनकारी किसानों पर ही सवाल खड़े कर दिए उसपर दर्शनपाल कहते हैं, ‘‘न जाने क्यों मीडिया किसान आंदोलन को बुरी तरह से दिखा रहा है.’’

सिंघु बॉर्डर पर नेशनल मीडिया के एक बड़े तबके को लेकर नाराज़गी शुरू से ही थी. जिसके कारण कई मीडिया संस्थानों के रिपोटर्स के साथ अभद्रता भी की गई. यह नाराजगी एक बार फिर बढ़ गई है क्योंकि 26 जनवरी की घटना के बाद मीडिया ने किसानों को एक बार फिर खालिस्तानी बताना शुरू कर दिया. यहां मौजूद एक नौजवान प्रदर्शनकारी जसमीत कहते हैं, ‘‘मीडिया पर क्या ही बोला जाए. उससे उम्मीद ही नहीं करते की वो हमारा पक्ष उठाएगा. जो आज वो दिखा रहे हैं उससे कोई हैरानी वाली बात नहीं है. हमारा आंदोलन कमजोर नहीं हुआ. हम कानून वापस कराकर ही जाएंगे.’’

किसानों से नफरत

26 जनवरी को लाल किले पर जो कुछ हुआ उसने सरकार और मीडिया के एक बड़े हिस्से को किसानों पर सवाल उठाने का मौका दे दिया. कहा जा रहा है कि किसानों को लेकर नफरत भर गई है. सोशल मीडिया पर किसानों पर भारतीय झंडे का असम्मान करने का आरोप लगाया गया जिसका कई लोगों पर असर दिख रहा है.

कथित तौर पर स्थानीय लोग शुक्रवार को किसानों पर हमला करने पहुंचे हुए थे. इस दौरान जमकर पत्थराबजी की गई. हालांकि पुलिस ने समय रहते इसपर काबू पा लिया.

नफरत का एक रूप हमें सिंघु बॉर्डर के पास इंडियन ऑयल पेट्रोल पंप पर वाशरूम के लिए जाते हुए दिखा. पेट्रोल पंप के बाहर आने-जाने का रास्ता बंद किया जा चुका है. जब हम वहां पहुंचे तो वहां मौजूद वर्कर ने हमसे पूछा आप कौन हैं. पत्रकार बताने पर उसने चहकते हुए कहा, आप जा सकते हैं.

Also see
article image#GhazipurBorder: कैसे एक घंटे के अंदर बदल गई आंदोलन की सूरत
article imageट्रैक्टर रैली: गाजीपुर बॉर्डर से लाल किले तक का सफर
article image#GhazipurBorder: कैसे एक घंटे के अंदर बदल गई आंदोलन की सूरत
article imageट्रैक्टर रैली: गाजीपुर बॉर्डर से लाल किले तक का सफर

शुक्रवार को सिंघु बॉर्डर पर हज़ारों की संख्या में ‘स्थानीय निवासी’ पहुंच गए और पुलिस की उपस्थिति में प्रदर्शनकारी किसानों पर हमला बोल दिया. यह हमला अचानक नहीं हुआ बल्कि इसकी पटकथा गुरुवार दोपहर में ही लिखी जा चुकी थी.

गुरुवार की रात अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर पंजाब के तरनतारन जिले के एक किसान ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया, ‘‘आज दोपहर आरएसएस के करीब 150 लोग यहां आए थे. उन्होंने प्रदर्शन स्थल को खाली करने की धमकी देते हुए कहा कि आज खाली नहीं किया गया तो कल हज़ारों की संख्या में आएंगे और हटाएंगे.’’

शाम के करीब सात बज रहे थे. सिंघु बॉर्डर पर चल रहे प्रदर्शन स्थल से करीब एक किलोमीटर दूर दिल्ली पुलिस और अर्धसैनिक बल के हज़ारों सुरक्षाकर्मी मुस्तैद नज़र आते हैं. जबरदस्त बैरिकेडिंग की जा रही है. इस दौरान प्रदर्शन स्थल की तरफ जा रहे लोगों को पुलिस लौटा रही थी. ऑफिस से लौट रही एक स्थानीय महिला अपने घर जाने के लिए लगातार पुलिस से गुजारिश करती नज़र आती है, लेकिन पुलिस उन्हें अंदर नहीं जाने देती. उदास होकर वो किनारे खड़ी हो जाती हैं. महिला का घर बैरिकेड से महज 50 मीटर की दूरी पर है. बंद की वजह से उन्हें रास्ता बदलकर दो किलोमीटर की दूरी तय करते हुए घर जाने पर मज़बूर होना पड़ा. वो भी उस रास्ते से जिसपर स्ट्रीट लाइट ही नहीं है.

बीते दो महीने से प्रदर्शन स्थल की तरफ जाते हुए किसी भी शख्स को रोका नहीं जा रहा था. किसी का पहचान पत्र भी नहीं देखा जा रहा था, लेकिन 26 जनवरी की घटना के बाद से स्थिति बदल गई है.

उससे पहले सिंघु बॉर्डर प्रदर्शन स्थल पर लोग आसानी से चले जाते थे. बैरिकेडिंग के बावजूद पुलिस ने किनारे से आने जाने का रास्ता खोला हुआ था, लेकिन गुरुवार को उसे भी बंद कर दिया गया. इतनी ज़्यादा बैरिकेडिंग को लेकर वहां मौजूद इंस्पेक्टर सुधीर कुमार से जब न्यूज़लॉन्ड्री ने पूछा तो वे बताते हैं, ‘‘कुछ स्थानीय लोग आज यहां आए थे. वे बेहद नाराज़ हैं और प्रदर्शनकारियों को यहां से जाने के लिए कहकर गए हैं. आगे कोई विवाद न हो इसके लिए किसी को भी उधर नहीं जाने दिया जा रहा है.’’

क्या वे नाराज़ स्थानीय निवासी आरएसएस के थे. जैसा कि पंजाब से आए किसानों ने आरोप लगाया है. इस सवाल पर सुधीर कहते हैं, ‘‘नहीं नहीं. वे स्थानीय लोग थे.’’

‘उदासी तो है, लेकिन वापस जाएंगे नहीं’

25 और 26 जनवरी को सिंघु बॉर्डर पर पैर रखने की जगह नहीं थी, लेकिन 26 जनवरी को लाल किले पर हुई घटना के बाद लोगों की कमी साफ़ नजर आती है. 28 जनवरी की दोपहर के एक बजे स्टेज से लोग बारी-बारी से भाषण देते नज़र आते हैं. सुनने वालों की संख्या पच्चास से भी कम है. स्टेज पर मौजूद एक महिला वक्ता कहती हैं कि लाल किला पर क्या हुआ इसकी सफाई देने की ज़रूरत नहीं है. जो कुछ भी हुआ उसमें हमारे लोग शामिल नहीं थे. हमें आंदोलन को आगे ले जाने के लिए क्या करना है इस पर सोचना चहिए.

स्टेज के पास गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी का लंगर स्थल है. वहां हमारी मुलाकात एक बुजुर्ग महिला गुरमेहर कौर से होती है, जो कि दिल्ली की ही रहने वाली हैं. वो कहती हैं, ‘‘बीते दो महीनों से यहां हम सेवा कर रहे हैं. इतनी मेहनत कर रहे थे, लेकिन सबकुछ पर पानी फिर गया. लाल किले पर जो कुछ हुआ गलत हुआ. आंदोलन को नुकसान हुआ है.’’ गुरमेहर कौर बात करते-करते रोने लगती हैं. वो आगे बात करने से इंकार कर देती हैं.

यहां लंगर खाने के लिए हमेशा भीड़ लगी रहती थी लेकिन आज यहां कुछ ही लोग नज़र आए. गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी की तरफ से लंगर की देखरेख कर रहे गुरमीत सिंह कहते हैं, ‘‘जब से यहां किसान बैठे हुए हैं तब से हम लंगर चला रहे हैं. 26 जनवरी को जो कुछ हुआ वो सारी जनता ने देखा. हम तो दिल्ली की तरफ गए भी नहीं थे. यहां लंगर की सेवा दे रहे थे. 26 जनवरी के बाद यहां 19-20 का फर्क पड़ा है. जो किसान बैठे हैं वे अभी तक डटे हुए हैं. जो कुछ शरारती तत्व थे वे शरारत करके चले गए.’’

गुरमीत सिंह

सिंह आगे कहते हैं, ‘‘जो कुछ हुआ उससे मनोबल तो कुछ टूटा ही है. बाकी ये है कि जो किसान थे उन्होंने अपने ट्रैक्टर पर देश के झंडे के साथ किसान यूनियन का झंडा भी लगाया था. जहां तक रही लंगर खाने वालों की बात तो पहले सुबह से शाम तक 70 से 80 हज़ार लोग लंगर खाने आते थे अब 50 हज़ार के करीब आ रहे हैं.’’

आप अपना लंगर कब तक चलाओगे इस सवाल के जवाब में सिंह कहते हैं, ‘‘जब तक किसान अपना आंदोलन करते रहेंगे तब तक हम लंगर लगाए रखेंगे.’’

यहां मिले ज़्यादातर लोग 26 जनवरी को लाल किले पर जो कुछ हुआ उसको अफ़सोसजनक बताते नजर आते हैं. उनका दावा है, ‘‘यह सब पुलिस ने जानबूझकर होने दिया. बीते दो महीने से सिंघु बॉर्डर के प्रदर्शन में शामिल 28 वर्षीय नरेंद्र बताते हैं कि सरकार और पुलिस ने हमें अपने ट्रैप में फंसाया ताकि हम लोग जो रूट तय था उसपर न जाकर दिल्ली की तरफ जा सकें. जो रूट हमें जाने के लिए दिया गया था उसपर बैरिकेडिग की क्या ज़रूरत थी. हमें जिधर से जाना था उसे तो रोका गया, लेकिन किसानों को दिल्ली जाने दिया गया. ये कैसे मुमकिन हुआ. उन्हें रोकने के लिए कोई पुलिस बल मौजूद नहीं था. दरअसल यह सब जानबूझकर किया गया ताकि आंदोलन को बदनाम किया जा सके. लाल किले के अंदर 26 जनवरी को परिंदा पर नहीं मार सकता लेकिन इतने सारे लोगों को क्यों जाने दिया गया. क्या यह सब इत्तेफ़ाक़ था. नहीं, दरअसल सरकार की साजिश थी.’’

लाल किले के अंदर निशान साहिब का झंडा लगा था लेकिन मीडिया के एक बड़े हिस्से द्वारा खालिस्तानी झंडा बताये जाने के सवाल पर सिंह कहते हैं, ‘‘दरअसल मीडिया तो शुरू से हमारे आंदोलन में खालिस्तान के शामिल होने की बात कर रहा है लेकिन वो जो झंडा है उसी के नीचे लंगर लगता है. प्रधानमंत्री खुद वो झंडा कई दफा अपने माथे पर बांध चुके हैं. हमारे सिख सैनिक जब भी सफर करते हैं. उनकी गाड़ी पर यह झंडा लगा रहता है तो ऐसे में इस झंडे को खालिस्तानी झंडा कोई बोल रहा है तो यह हैरान होने वाली ही बात है. बेसिक समझ नहीं है उन्हें. दरअसल आज के समय में जो भी बीजेपी के खिलाफ बोलेगा वो मीडिया के लिए आतंकवादी ही होगा.’’

हरियाणा-पंजाब भाई-भाई

बुधवार को हरियाणा के कुछ किसानों के वापस लौटने की खबर सामने आई. इसके पीछे कारण था, 26 जनवरी की घटना पर बोलते हुए किसान नेता बलवीर सिंह राजेवाल का दिया एक बयान जिसमें उन्होंने कहा था कि हरियाणा के कुछ युवाओं ने गुमराह कर कुछ लोगों को लाल किले की तरफ जाने के लिए भड़काया था. इस बयान के बाद लोगों ने नाराज़गी जाहिर की जिसके बाद राजेवाल ने अपना बयान वापस लिया और इसके लिए माफ़ी मांगी लेकिन इसका जितना नुकसान होना था हो चुका था.

राजेवाल के बयान से जो नुकसान हुआ था उसकी भरपाई के लिए गुरुवार को तिरंगा यात्रा निकाली गई. इस तिरंगा यात्रा में सबसे आगे भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) के प्रमुख चढूनी बैठे थे. उसके पीछे दर्शनपाल और राजेवाल समेत बाकी किसान नेता भी थे. इस यात्रा के दौरान पंजाब-हरियाणा भाई-भाई के नारे लगाए जा रहे थे. लोग हाथों में 'पंजाब हरियाणा भाई-भाई, मिलकर जीतेंगे लड़ाई' की तख्ती लेकर चल रहे थे.

दर्शनपाल

इस रैली को लेकर दर्शनपाल न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘गणतंत्र दिवस के दिन जो घटना हुई उसके बाद लोग थोड़े परेशान थे. इस तिरंगा रैली का मकसद लोगों में जोश भरना था.’’

हरियाणा-पंजाब भाई-भाई के नारे के पीछे के कारणों के सवाल पर दर्शनपाल कहते हैं, ‘‘राजेवाल ने जो टिप्पणी की थी उसका हरियाणा के लोगों पर गलत असर पड़ा था.’’

28 जनवरी को निकाला गया तिरंगा मार्च

26 जनवरी की घटना के बाद मीडिया ने जिस तरह पूरे आंदोलनकारी किसानों पर ही सवाल खड़े कर दिए उसपर दर्शनपाल कहते हैं, ‘‘न जाने क्यों मीडिया किसान आंदोलन को बुरी तरह से दिखा रहा है.’’

सिंघु बॉर्डर पर नेशनल मीडिया के एक बड़े तबके को लेकर नाराज़गी शुरू से ही थी. जिसके कारण कई मीडिया संस्थानों के रिपोटर्स के साथ अभद्रता भी की गई. यह नाराजगी एक बार फिर बढ़ गई है क्योंकि 26 जनवरी की घटना के बाद मीडिया ने किसानों को एक बार फिर खालिस्तानी बताना शुरू कर दिया. यहां मौजूद एक नौजवान प्रदर्शनकारी जसमीत कहते हैं, ‘‘मीडिया पर क्या ही बोला जाए. उससे उम्मीद ही नहीं करते की वो हमारा पक्ष उठाएगा. जो आज वो दिखा रहे हैं उससे कोई हैरानी वाली बात नहीं है. हमारा आंदोलन कमजोर नहीं हुआ. हम कानून वापस कराकर ही जाएंगे.’’

किसानों से नफरत

26 जनवरी को लाल किले पर जो कुछ हुआ उसने सरकार और मीडिया के एक बड़े हिस्से को किसानों पर सवाल उठाने का मौका दे दिया. कहा जा रहा है कि किसानों को लेकर नफरत भर गई है. सोशल मीडिया पर किसानों पर भारतीय झंडे का असम्मान करने का आरोप लगाया गया जिसका कई लोगों पर असर दिख रहा है.

कथित तौर पर स्थानीय लोग शुक्रवार को किसानों पर हमला करने पहुंचे हुए थे. इस दौरान जमकर पत्थराबजी की गई. हालांकि पुलिस ने समय रहते इसपर काबू पा लिया.

नफरत का एक रूप हमें सिंघु बॉर्डर के पास इंडियन ऑयल पेट्रोल पंप पर वाशरूम के लिए जाते हुए दिखा. पेट्रोल पंप के बाहर आने-जाने का रास्ता बंद किया जा चुका है. जब हम वहां पहुंचे तो वहां मौजूद वर्कर ने हमसे पूछा आप कौन हैं. पत्रकार बताने पर उसने चहकते हुए कहा, आप जा सकते हैं.

Also see
article image#GhazipurBorder: कैसे एक घंटे के अंदर बदल गई आंदोलन की सूरत
article imageट्रैक्टर रैली: गाजीपुर बॉर्डर से लाल किले तक का सफर
article image#GhazipurBorder: कैसे एक घंटे के अंदर बदल गई आंदोलन की सूरत
article imageट्रैक्टर रैली: गाजीपुर बॉर्डर से लाल किले तक का सफर
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like