लाल किले पर हुई घटना से खुद को आहत बताकर उन्होंने आंदोलन से अलग होने की घोषणा कर दी थी.
लखीमपुर खीरी के रहने वाले हरिभगवान शर्मा भी वीएम सिंह के इस फैसले से नाराज़ दिखे. वे कहते हैं, ‘‘हमारे इलाके में उनका प्रभाव थोड़ा बहुत था, लेकिन जब उन्होंने ऐसी गद्दारी की तो लोगों ने उनका साथ छोड़ दिया है. बीते डेढ़ महीने से वो यही कह रहे थे कि मैं संयोजक था, पंजाब वाले मेरे बाद में आए. इनकी ऐसी ही हरकतों से इन्हें अलग कर दिया गया था. इन्हें किसी मीटिंग में नहीं बुलाया जाता था. ये तो बस ऐसे ही आते थे. आते थे और थोड़ी देर बैठे और चले जाते थे. कभी यहां के स्टेज पर इन्हें चढ़ने नहीं दिया गया. इनके रवैये के कारण ऐसा हुआ था. वे पहले भी वापस जाने की बात किया करते थे. ये शुरू से आंदोलन को कमजोर ही कर रहे थे.’’
गाजीपुर बॉर्डर पर लोगों की संख्या कम होने के सवाल पर शर्मा कहते हैं, ‘‘26 जनवरी को काफी संख्या में किसान आए थे. अब किसानों के पास और भी काम है. हमें खेती भी करनी है. गन्ना भी काटना और और दोबारा से बोना भी है. गेहूं को भी पालना है. सभी किसान आकर यहां बैठ नहीं सकते न.’’
आगे कभी वीएम सिंह किसानों को कभी किसी आंदोलन के लिए बुलाते हैं तो क्या आप उनका समर्थन करेंगे इस सवाल पर शर्मा कहते हैं, ‘‘जी नहीं, बिलकुल नहीं करेंगे. वो सिख बिरादरी से भी अलग हो जाएंगे और किसान बिरादरी से भी. जो ऐसे आंदोलनों को छोड़कर जाता हैं उसे गद्दार कहा जाता है. वो हमारे किसान बिरादरी का गद्दार है जिसने ऐसे मौके पर जब चरम सीमा पर हमारा संघर्ष पहुंचा हुआ था वहां से छोड़कर चला गया.’’
पीलीभीत से आए रोहन सिंह भी इसी तरह की राय रखते हैं, ‘‘लाल किला पर जो कुछ हुआ उसमें हमारी क्या गलती थी. राकेश टिकैत तो लोगों को रोकने की कोशिश कर ही रहे थे, लेकिन उस रोज वीएम सिंह तो नज़र नहीं आए. जब भीड़ तय रास्ते से अलग निकली तो क्या सिंह ने रोकने की कोशिश की. नहीं. मुझे तो वो कहीं भी नहीं दिखे.’’
आंदोलन से अलग होने की घोषणा करते हुए वीएम सिंह ने राकेश टिकैत पर आरोप लगाया था. लेकिन 26 जनवरी को टिकैत दिल्ली की तरफ बढ़ने वाले प्रदर्शनकारियों को रोकने की हर कोशिश की थी. यहां तक की दिल्ली की तरफ जा रहे कई प्रदर्शनकारियों को उन्होंने डंडा भी मारा था.
लखीमपुर खीरी के रहने वाले हरिभगवान शर्मा भी वीएम सिंह के इस फैसले से नाराज़ दिखे. वे कहते हैं, ‘‘हमारे इलाके में उनका प्रभाव थोड़ा बहुत था, लेकिन जब उन्होंने ऐसी गद्दारी की तो लोगों ने उनका साथ छोड़ दिया है. बीते डेढ़ महीने से वो यही कह रहे थे कि मैं संयोजक था, पंजाब वाले मेरे बाद में आए. इनकी ऐसी ही हरकतों से इन्हें अलग कर दिया गया था. इन्हें किसी मीटिंग में नहीं बुलाया जाता था. ये तो बस ऐसे ही आते थे. आते थे और थोड़ी देर बैठे और चले जाते थे. कभी यहां के स्टेज पर इन्हें चढ़ने नहीं दिया गया. इनके रवैये के कारण ऐसा हुआ था. वे पहले भी वापस जाने की बात किया करते थे. ये शुरू से आंदोलन को कमजोर ही कर रहे थे.’’
गाजीपुर बॉर्डर पर लोगों की संख्या कम होने के सवाल पर शर्मा कहते हैं, ‘‘26 जनवरी को काफी संख्या में किसान आए थे. अब किसानों के पास और भी काम है. हमें खेती भी करनी है. गन्ना भी काटना और और दोबारा से बोना भी है. गेहूं को भी पालना है. सभी किसान आकर यहां बैठ नहीं सकते न.’’
आगे कभी वीएम सिंह किसानों को कभी किसी आंदोलन के लिए बुलाते हैं तो क्या आप उनका समर्थन करेंगे इस सवाल पर शर्मा कहते हैं, ‘‘जी नहीं, बिलकुल नहीं करेंगे. वो सिख बिरादरी से भी अलग हो जाएंगे और किसान बिरादरी से भी. जो ऐसे आंदोलनों को छोड़कर जाता हैं उसे गद्दार कहा जाता है. वो हमारे किसान बिरादरी का गद्दार है जिसने ऐसे मौके पर जब चरम सीमा पर हमारा संघर्ष पहुंचा हुआ था वहां से छोड़कर चला गया.’’
पीलीभीत से आए रोहन सिंह भी इसी तरह की राय रखते हैं, ‘‘लाल किला पर जो कुछ हुआ उसमें हमारी क्या गलती थी. राकेश टिकैत तो लोगों को रोकने की कोशिश कर ही रहे थे, लेकिन उस रोज वीएम सिंह तो नज़र नहीं आए. जब भीड़ तय रास्ते से अलग निकली तो क्या सिंह ने रोकने की कोशिश की. नहीं. मुझे तो वो कहीं भी नहीं दिखे.’’
आंदोलन से अलग होने की घोषणा करते हुए वीएम सिंह ने राकेश टिकैत पर आरोप लगाया था. लेकिन 26 जनवरी को टिकैत दिल्ली की तरफ बढ़ने वाले प्रदर्शनकारियों को रोकने की हर कोशिश की थी. यहां तक की दिल्ली की तरफ जा रहे कई प्रदर्शनकारियों को उन्होंने डंडा भी मारा था.