उज्जैन में हिंदूवादी संगठनों की बाइक रैली के दौरान हुई हिंसा के बाद मध्य प्रदेश पुलिस का एकपक्षीय चेहरा सामने आ रहा है.
“25 दिसंबर को हिंसा हुई, अगले दिन 26 तारीख को प्रशासन बुलडोज़र लेकर आ गया. जिस घर से पथराव हुआ था उसे तोड़ने के लिए. तभी उस घर के मकान मालिक ने पुलिस को बताया कि वह हिंदू है. उन्होंने घर में मौजूद मंदिर को दिखाया साथ ही कहा कि उनका बेटा बंजरग दल का सदस्य भी है. इसके बाद प्रशासन ने बुलडोज़र उनके घर से हटाकर हमारे पर चला दिया जबकि हमारे घर से एक भी पत्थर नहीं फेंका गया था.”
62 साल के अब्दुल हामिद यह बताने के बाद हमें अपना टूटा घर दिखाने लगे. करीब 30 साल से यहां रह रहे हामिद के परिवार में कुल 19 सदस्य हैं.
रंगाई-पुताई का काम करने वाले अब्दुल हामिद ने यह घर सरकार से जमीन पट्टे पर मिलने के बाद बनाया है. नाले के किनारे बना यह घर उज्जैन के बेगमबाग इलाके में आता है. यह मुस्लिम बहुल इलाक़ा है जिसमें थोड़े से हिंदू परिवार रहते हैं. हामिद 25 दिसंबर की घटना को याद करते हुए कहते हैं, “यह शाम की बात है जब यह घटना हुई, रोज की तरह मैं और मेरे बेटे काम पर गए थे. हम लोग मजदूरी का काम करते हैं. जब घटना हुई तब हम लोग घर पर नहीं थे. शाम को जब आए तो घटना की जानकारी मिली.”
हामिद आगे बताते हैं, “अगले दिन सुबह मैं अपने काम पर निकल गया. प्रशासन का अमला दोपहर में अचानक से मकान तोड़ने आ गया. उन्होंने घर के ऊपर का हिस्सा तोड़ दिया. इस दौरान इलाके के लोग और शहर काजी खलीकुर्रहमान भी आ गए. सभी ने मकान तोड़े जाने पर आपत्ति जताई. काजी ने कहा कि ‘अगर तोड़ने का काम 15 मिनट में नहीं रुका तो बात बिगड़ जाएगी. इसके बाद कलेक्टर ने तोड़फोड़ रुकवा दी और बातचीत करने के लिए काजी को लेकर कंट्रोल रूम चले गए. लेकिन उनके जाते ही फिर से मकान तोड़ना फिर शुरू कर दिया. इससे पहले हम अपना सामान निकाल पाते, प्रशासन ने हमारा घर तोड़ दिया.”
हामिद कहते है, “एक बेटी की शादी अगले मई महीने में है. उसकी शादी के लिए खरीदे गए गहने और सामान सब तोड़फोड़ में बर्बाद हो गए. जो बर्तन और समान था वह सब नाले में फेंक दिया.”
हामिद कहते हैं, “मकान टूटने के बाद हम किराए पर कमरा लेकर रह रहे हैं. हमारे घर में छोटे बच्चे हैं और ठंड भी है इसलिए हमारे पड़ोसी कीकाराम ने अपने मकान में हमें किराए पर कमरा दे दिया.”
हामिद हमें बताने लगे, “यहां हर साल ना जाने कितनी बार रैली निकलती है. हमारे घर से कुछ ही दूरी पर महाकाल मंदिर है और महाकाल की सवारी तो बहुत प्रसिद्ध है. वो इसी इलाके से निकलती है. पहले कभी ऐसा नहीं हुआ. भगवान राम के नाम पर इन लोगों ने एक नहीं बल्कि तीन बार रैली निकाली. उस दौरान वो लोग कई आपत्तिजनक नारे लगा रहे थे, “बच्चा बच्चा राम का, चाचियों के काम का”. रैली के नाम पर यह लोग भगवान राम को भी बदनाम कर रहे हैं.”
कीकाराम का घर जिनके यहां से हुआ था पथराव
इस पूरे बलवे की शुरुआत एक घर की छत से हुए पथराव के बाद हुई. ज्यादातर मीडिया ख़बरों में बताया गया कि मुसलमानों की छत से पथराव हुआ. हमने उस घर की पड़ताल की जहां से रैली पर पथराव हुआ था.
25 दिसंबर को भारतीय जनता युवा मोर्चा और अन्य हिंदूवादी संगठनों ने बेगमबाग इलाके से बाइक रैली निकाली थी. रैली का मकसद उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर के लिए चंदा इकट्ठा करना था. रैली के दौरान औरतें और बच्चे छतों से रैली को देख रहे थे. 19 साल के टिगुल जो कैटरिंग का काम करते हैं, उन्होंने बताया कि उस दिन शाम को रैली में नारों के साथ ही छतों पर खड़ी औरतों पर छींटाकशी की गई. यहां हिंदू-मुस्लिम नहीं होता. हम सभी मिलजुलकर रहते हैं. लेकिन उस दिन रैली में गाली और हिंसक नारे लगाने कि वजह से यह सब हुआ.
मौके पर मौजूद लोगों ने हमें बताया कि रैली में हो रही नारेबाजी के दौरान 75 वर्षीय कीकाराम और 70 वर्षीय उनकी पत्नी मीराबाई के मकान पर मौजूद कुछ लोगों ने रैली पर पथराव कर दिया. कीकाराम न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, “हमारे घर में दो तरफ से रास्ता है आने-जाने का. घर के पिछले हिस्से में एक कमरे को हमने किराए पर दे रखा है. हिना नाम की एक औरत अपने दो बच्चों के साथ किराए पर रहती थी. हिंसा वाले दिन हम घर पर ही थे लेकिन हमने कुछ नहीं देखा कि किसने पत्थर मारा.”
एक वीडियो में दिख रहा है कि कीकाराम की छत से उनकी किराएदार हिना और यासमीन पत्थर मार रही हैं. पुलिस ने यासमीन को गिरफ्तार कर लिया है. यासमीन भी उसी इलाके में अब्दुल हामिद के घर किराए पर रहती थी. वह कीकाराम की छत पर जाकर हिना के साथ पत्थरबाजी में शामिल थी. हिना फरार है. मीराबाई कहती हैं, “हमें पता ही नहीं चला कि किसने यह काम किया. पिछले 6 महीने का किराया बिना दिए रातों-रात वह कमरा छोड़कर चली गई. अपना कुछ सामान लेकर गई थी.”
मीराबाई बताती हैं, “जब पुलिस यहां आई थी, तो हमने उनके पैर-हाथ जोड़े और विनती की, तब जाकर वह माने की हमने कुछ नहीं किया है. हमने उन्हें अपना पूजा वाला कमरा भी दिखाया. हमने उनको बताया कि जो किया है वह उस हिना ने किया, इसके बाद पुलिस वाले चले गए.”
कीकाराम कहते है, “पुलिस ने पूछताछ में कहा कि आप उस समय कहां थे तो मैंने कह दिया कि मैं घर पर ही था लेकिन मुझे कुछ नहीं मालूम, तो उन्होंने कहा अदालत आना पड़ेगा, मैंने कहा दिया कि आ जाऊंगा. जब मैंने कुछ किया ही नहीं है तो डर किस बात का.”
नाले के किनारे स्थित यह थोड़े से घर हैं बाकि पूरी बेगमबाग कॉलोनी नाले के बाई तरफ है. मीराबाई कहती हैं, “हमने ही नाले के इस पार कॉलोनी बसाई है. जिसके बाद बाकी लोग यहां रहने आए और बाद में सरकार ने सभी को पट्टा बांट दिया. वह कहती हैं, इस कॉलोनी में एक दो घर ही हिंदू के हैं लेकिन हम सब मिलकर रहते हैं. सभी एक दूसरे के त्योहारों में शामिल होते हैं.”
एकपक्षीय कार्रवाई का आरोप
इस घटना ने देशभर का ध्यान खींचा है. महाकाल की नगरी के नाम से प्रसिद्ध उज्जैन में हुई इस घटना के बाद पुलिस प्रशासन के रवैये पर लोग सवाल उठा रहे हैं. बेगमबाग में रहने वाले लोगों का कहना हैं कि पुलिस सही से जांच नहीं कर रही है, एकतरफ़ा कार्रवाई की जा रही है. हमने शहर काजी खलीकुर्रहमान से बातचीत की. वह कहते हैं, “हम निष्पक्ष जांच की मांग कर रहे हैं, जो भी दोषी हो उन पर कार्रवाई हो. घटना की सारी वीडियो पुलिस के पास मौजूद है, जिस पक्ष ने गलत किया हो उन पर कार्रवाई हो.”
वह बातचीत में आगे कहते हैं, “जिनका घर गिराया गया, वह निर्दोष लोग थे लेकिन फिर भी घर गिरा दिया गया. ऐसा क्या हुआ था उस घर से कि पुलिस ने घर गिरा दिया, उसकी जांच करें. हमारे 18 लोगों को पुलिस पकड़कर ले गई है, हम उनकी मदद के लिए वकील का इंतजाम करेंगे.”
26 दिसंबर को 15 मिनट में कार्रवाई नहीं रोकने पर बुरे नतीजे वाले बयान पर काजी कहते हैं, “मेरे बयान का गलत मतलब निकाला जा रहा है. 15 मिनट वाले बयान का मतलब सिर्फ इतना था कि मैं प्रशासन को बताना चाह रहा था कि पब्लिक इकट्ठा हो रही है. प्रशासन की गलत कार्रवाई से लोग गुस्से में हैं. पब्लिक बहक जाएगी तो आप कुछ नहीं कर पाएंगे.”
एकपक्षीय पुलिस कार्रवाई के आरोपों पर हमने महाकाल पुलिस से बात की. बेगमबाग में हुई यह घटना महाकाल पुलिस क्षेत्र में आती है. इस मामले में कुल तीन अलग-अलग एफ़आईआर दर्ज हुई हैं. पहली एफआईआर बेगमबाग के अब्दुल शाकिर ने दर्ज कराई है. दूसरी एफआईआर बीजेपी युवा मोर्चा के नवदीप सिंह रघुवंशी और तीसरी भारत माता मंदिर के ट्रस्ट द्वारा दर्ज कराई गई है.
पहली एफआईआर रैली में शामिल लोगों के खिलाफ की गई है. इस मामले के जांच अधिकारी चुन्नीलाल माले ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “पुलिस इस केस की जांच कर रही है, हमने फरियादी को जांच में सहयोग के लिए कहा है ताकि केस की जांच आगे बढ़ सके, लेकिन अभी तक उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया.”
हमने उनसे पूछा की क्या हिंदू पक्ष के भी कुछ लोगों को गिरफ्तार किया है आपने, तो वह कहते हैं कि अभी तक किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया गया है. रैली के लिए पूर्व अनुमति नहीं होने के सवाल पर जांच अधिकारी कहते हैं, “इन सब आरोपों की जांच चल रही है. हम पता करने की कोशिश कर रहे हैं कि किसने इसे आयोजित किया था और कौन से लोग इस तोड़फोड़ में शामिल थे. जैसे ही जांच पूरी हो जाएगी हम गिरफ्तारियां शुरू कर देंगे.”
दूसरी एफआईआर हिंदू पक्ष द्वारा बेगमबाग इलाके के लोगों द्वारा किए गए पथराव को लेकर है. इस केस के जांच अधिकारी गगन बादल कहते हैं, “हमने अभी तक 18 लोगों को गिरफ्तार किया है. जिसमें से 5 (मोहम्मद अयाज, असलम अल्टू, शादाब खान, युसूफ मेवाती और समीर हमीद) के खिलाफ रासुका (एनएसए) कानून के तहत कार्रवाई की गई है. इनमें से एक महिला यासमीन को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है जबकि हिना की तलाश जारी है. हम सभी वीडियो की भी जांच कर रहे हैं, जिसके आधार पर ही यह कार्रवाई की गई है.”
तीसरी एफ़आईआर भारत माता मंदिर ट्रस्ट द्वारा अज्ञात लोगों के खिलाफ तोड़फोड़ को लेकर दर्ज कराई गई है. इसमें मंदिर के बोर्ड को तोड़ने और मना करना पर मारपीट का आरोप लगाया गया है. इस मामले के जांच अधिकारी लोकेंद्र सिंह ने कहा, "अभी तक इस केस में गिरफ्तारी नहीं हुई है. जिस तरफ मंदिर आता है कि उस तरफ का कोई भी वीडियो फुटेज नहीं मिला है. इसलिए अभी तक किसी के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं किया गया है."
रासुका के तहत गिरफ्तार लोगों के परिजनों का पक्ष
पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए 35 वर्षीय युसूफ़ मेवाती के बारे में पुलिस ने हमें बताया कि वह नशे का आदी है और पहले भी कई अपराधों में शामिल रहा है. पुलिस के इन आरोपों पर युसूफ़ के छोटे भाई मोइनुद्दीन मेवाती ने हमें बताया, “मेरे भाई रेत-गिट्टी की दुकान पर टैक्टर चलाते हैं. जब वह काम से लौट रहे थे, तब पुलिस ने कहा तुम भी पथराव में शामिल थे और उन्हें गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने तीन महीने की रासुका लगाई है. इस दौरान परिजनों की मुलाकात पर भी रोक है.”
मोइनुद्दीन आरोप लगाते हुए कहते हैं, “इलाके से गिरफ्तारी करने के बाद पुलिस की जांच धीमी हो गई है. मोइनुद्दीन के साथ मौजूद अन्य युवक कहते हैं, घटना वाले दिन पुलिस ने ऐसे कई लोगों को गिरफ्तार किया जो बेगुनाह हैं. इन युवकों को थाने ले जाकर उनपर केस दर्ज कर जेल भेज दिया गया.”
गिरफ्तार हुए युवकों में 21 साल के समीर हमीद भी हैं जिनके खिलाफ पुलिस ने रासुका के तहत केस दर्ज किया है. समीर और उसके पिता अब्दुल हमीद दोनों खाना बनाने का काम करते है. 56 वर्षीय अब्दुल हमीद कहते हैं, “जिस वक्त घटना हुई थी उस समय वह खाना बना रहा था. वह मेरे साथ ही काम करता है. उसने रैली पर पथराव नहीं किया था लेकिन फिर भी पुलिस ने उस पर रासुका लगा दिया.”
अब्दुल आगे कहते हैं, “कुछ लोगों ने मेरे बेटे के खिलाफ मुखबिरी की थी, जिसके बाद से पुलिस उसे ढूंढ रही थी. मैं खुद उसे अपने साथ थाने लेकर गया था.”
पुलिस पर पैसे लेने का आरोप लगाते हुए हमीद कहते हैं, “पुलिस ने कहा था 50 हजार का इंतज़ाम कर लो, हम समीर को छोड़ देगें लेकिन मैं पैसों का इंतजाम नहीं कर पाया और उसे जेल भेज दिया.”
नाले के किनारे से होते हुए एक पतली सी गली में चलकर हम शादाब खान के घर पहुंचे. यहां शादाब के पिता और उनकी मां से मुलाकात होती है. शादाब के पिता 49 साल के अकरम खान बताते हैं, “उनका बेटा ऑटो चलाता था लेकिन कुछ समय से घर पर ही था. उसे अस्थमा की बीमारी है. जिसके बाद से हमने खुद उसे ऑटो चलाने से मना कर दिया.”
20 साल के शादाब के पिता से बातचीत के दौरान ही उनके पड़ोसी भी बाहर आ गए. उन्होंने कहा कि शादाब बेकसूर है. वह खुद बीमार है तो पत्थर कहां से मारने जाएगा. वह तो घटना वाले दिन यहीं घर के सामने बैठा था, फिर भी पुलिस ने उस पर पथराव करने को लेकर रासुका लगा दी.”
अकरम बताते हैं, “घटना के अगले दिन पुलिस सुबह 4 बजे हमारे घर आई. उस समय हम सभी सो रहे थे. आवाज़ सुनकर जब मैंने गेट खोला तो 16 पुलिसवाले थे. उन्होंने कहा कि शादाब है, मैंने कहा हां.. फिर वह उसे उठा कर ले गए. उन्होंने उस समय बताया भी नहीं कि उसे किस जुर्म में गिरफ्तार करके ले जा रहे हैं. सुबह जब हम थाने गए तो पता चला की उस पर रासुका लगाकर जेल भेज दिया गया है.”
बातचीत के दौरान ही शादाब की मां, अपने बेटे के बीमारी के कागज भी दिखाती है. वह कहती हैं, देखिए मेरा बेटा बीमार है जिसका इलाज चल रहा है. घटना वाले दिन वह घर से कहीं गया ही नहीं था, जिसकी गवाह यह पूरी गली है लेकिन फिर भी पुलिस उसे ले गई.
अकरम कहते हैं, बेटे से मिलने 10 तारीख को जेल जाएंगे, जब वह क्वारंटाइन से बाहर आ आएगा.
पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए लोगों में सबसे ज्यादा सवाल असलम अल्टू की गिरफ्तारी पर उठ रहा है. 50 साल के असलम कई दिनों से बीमार थे जिसकी वजह से वह घर से बाहर भी नहीं निकल पा रहे थे. पूरी गली में लोगों ने असलग की गिरफ्तारी पर सवाल उठाया.
असलम की पत्नी 45 साल की जमीला कहती हैं, “घटना के कई रोज पहले से उनकी तबीयत खराब थी जिसकी वजह से वह ऑटो नहीं चला रहे थे. वह घर पर ही लेटे रहते थे क्योंकि उनके शरीर में दर्द था.”
जमीला आगे कहती हैं, “मैं आप को सच बता रही हूं, मेरे पति शराब पीते थे, लेकिन तबीयत खराब होने की वजह से वह घर से बाहर नहीं जा रहे थे. आप चाहो तो गली वालों से, हिंदू परिवार वालों से भी पूछ लो, वह कहीं नहीं गए थे घर पर ही थे.”
वह आगे कहती है, “25 दिसंबर शुक्रवार को रात करीब 11 बजे कुछ पुलिस वाले मेरे घर पर आए और उन्होंने अल्टू को कहा कि चल थाने, साहब को चेहरा दिखा दे. इस पर उन्होंने कहा कि साहब मैं तो बेकसूर हूं, तब पुलिस वाले अकड़ने लगे तो वह पुलिस वालों के साथ चले गए.”
अल्टू पर पहले के दर्ज केस पर जमीला कहती हैं, “10 साल पहले के केस थे जो खत्म हो गए थे. अब उन पर कोई केस नहीं था. हमने बार-बार पुलिस वालों से कहा कि वह निर्दोष हैं लेकिन उन्होंने हमारी एक भी नहीं सुनी और उन्हें जेल भेज दिया.”
इस पूरे घटनाक्रम में जहां पुलिस और प्रशासन पर एकतरफा कार्रवाई का आरोप लग रहा है. वहीं पूरे मामले में सरकार के दवाब की भी बात लोग कर रहे हैं. इस मामले ने देशभर के लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा लेकिन इतनी बड़ी घटना के बाद एक भी जन प्रतिनिधि इलाके के लोगों से मिलने नहीं गए. पूर्व पार्षद भूरे खां बताते हैं, "घटना के बाद से कोई जनप्रतिनिधि नहीं आया. कांग्रेस और अन्य पार्टियों के कुछ लोग आए थे लेकिन बीजेपी से कोई नहीं आया."
बता दें कि इस इलाके के विधायक बीजेपी के डॉ मोहन यादव हैं. मोहन यादव वर्तमान में प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री भी हैं और वह शिक्षा मंत्री का पद संभाल रहे हैं. उज्जैन के सांसद बीजेपी अनिल फिरोजिया हैं. विधायक और सांसद दोनों ही इतनी बड़ी घटना हो जाने के बाद नहीं आए हैं. हमने विधायक मोहन यादव से घटना को लेकर फोन किया था लेकिन उनके एक सहयोगी ने मीटिंग में ‘बिजी हैं’ कहकर बाद में फोन लगाने को कहा, लेकिन हमारे बार-बार फोन लगाने के बावजूद उनसे बात नहीं हो पाई.
“25 दिसंबर को हिंसा हुई, अगले दिन 26 तारीख को प्रशासन बुलडोज़र लेकर आ गया. जिस घर से पथराव हुआ था उसे तोड़ने के लिए. तभी उस घर के मकान मालिक ने पुलिस को बताया कि वह हिंदू है. उन्होंने घर में मौजूद मंदिर को दिखाया साथ ही कहा कि उनका बेटा बंजरग दल का सदस्य भी है. इसके बाद प्रशासन ने बुलडोज़र उनके घर से हटाकर हमारे पर चला दिया जबकि हमारे घर से एक भी पत्थर नहीं फेंका गया था.”
62 साल के अब्दुल हामिद यह बताने के बाद हमें अपना टूटा घर दिखाने लगे. करीब 30 साल से यहां रह रहे हामिद के परिवार में कुल 19 सदस्य हैं.
रंगाई-पुताई का काम करने वाले अब्दुल हामिद ने यह घर सरकार से जमीन पट्टे पर मिलने के बाद बनाया है. नाले के किनारे बना यह घर उज्जैन के बेगमबाग इलाके में आता है. यह मुस्लिम बहुल इलाक़ा है जिसमें थोड़े से हिंदू परिवार रहते हैं. हामिद 25 दिसंबर की घटना को याद करते हुए कहते हैं, “यह शाम की बात है जब यह घटना हुई, रोज की तरह मैं और मेरे बेटे काम पर गए थे. हम लोग मजदूरी का काम करते हैं. जब घटना हुई तब हम लोग घर पर नहीं थे. शाम को जब आए तो घटना की जानकारी मिली.”
हामिद आगे बताते हैं, “अगले दिन सुबह मैं अपने काम पर निकल गया. प्रशासन का अमला दोपहर में अचानक से मकान तोड़ने आ गया. उन्होंने घर के ऊपर का हिस्सा तोड़ दिया. इस दौरान इलाके के लोग और शहर काजी खलीकुर्रहमान भी आ गए. सभी ने मकान तोड़े जाने पर आपत्ति जताई. काजी ने कहा कि ‘अगर तोड़ने का काम 15 मिनट में नहीं रुका तो बात बिगड़ जाएगी. इसके बाद कलेक्टर ने तोड़फोड़ रुकवा दी और बातचीत करने के लिए काजी को लेकर कंट्रोल रूम चले गए. लेकिन उनके जाते ही फिर से मकान तोड़ना फिर शुरू कर दिया. इससे पहले हम अपना सामान निकाल पाते, प्रशासन ने हमारा घर तोड़ दिया.”
हामिद कहते है, “एक बेटी की शादी अगले मई महीने में है. उसकी शादी के लिए खरीदे गए गहने और सामान सब तोड़फोड़ में बर्बाद हो गए. जो बर्तन और समान था वह सब नाले में फेंक दिया.”
हामिद कहते हैं, “मकान टूटने के बाद हम किराए पर कमरा लेकर रह रहे हैं. हमारे घर में छोटे बच्चे हैं और ठंड भी है इसलिए हमारे पड़ोसी कीकाराम ने अपने मकान में हमें किराए पर कमरा दे दिया.”
हामिद हमें बताने लगे, “यहां हर साल ना जाने कितनी बार रैली निकलती है. हमारे घर से कुछ ही दूरी पर महाकाल मंदिर है और महाकाल की सवारी तो बहुत प्रसिद्ध है. वो इसी इलाके से निकलती है. पहले कभी ऐसा नहीं हुआ. भगवान राम के नाम पर इन लोगों ने एक नहीं बल्कि तीन बार रैली निकाली. उस दौरान वो लोग कई आपत्तिजनक नारे लगा रहे थे, “बच्चा बच्चा राम का, चाचियों के काम का”. रैली के नाम पर यह लोग भगवान राम को भी बदनाम कर रहे हैं.”
कीकाराम का घर जिनके यहां से हुआ था पथराव
इस पूरे बलवे की शुरुआत एक घर की छत से हुए पथराव के बाद हुई. ज्यादातर मीडिया ख़बरों में बताया गया कि मुसलमानों की छत से पथराव हुआ. हमने उस घर की पड़ताल की जहां से रैली पर पथराव हुआ था.
25 दिसंबर को भारतीय जनता युवा मोर्चा और अन्य हिंदूवादी संगठनों ने बेगमबाग इलाके से बाइक रैली निकाली थी. रैली का मकसद उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर के लिए चंदा इकट्ठा करना था. रैली के दौरान औरतें और बच्चे छतों से रैली को देख रहे थे. 19 साल के टिगुल जो कैटरिंग का काम करते हैं, उन्होंने बताया कि उस दिन शाम को रैली में नारों के साथ ही छतों पर खड़ी औरतों पर छींटाकशी की गई. यहां हिंदू-मुस्लिम नहीं होता. हम सभी मिलजुलकर रहते हैं. लेकिन उस दिन रैली में गाली और हिंसक नारे लगाने कि वजह से यह सब हुआ.
मौके पर मौजूद लोगों ने हमें बताया कि रैली में हो रही नारेबाजी के दौरान 75 वर्षीय कीकाराम और 70 वर्षीय उनकी पत्नी मीराबाई के मकान पर मौजूद कुछ लोगों ने रैली पर पथराव कर दिया. कीकाराम न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, “हमारे घर में दो तरफ से रास्ता है आने-जाने का. घर के पिछले हिस्से में एक कमरे को हमने किराए पर दे रखा है. हिना नाम की एक औरत अपने दो बच्चों के साथ किराए पर रहती थी. हिंसा वाले दिन हम घर पर ही थे लेकिन हमने कुछ नहीं देखा कि किसने पत्थर मारा.”
एक वीडियो में दिख रहा है कि कीकाराम की छत से उनकी किराएदार हिना और यासमीन पत्थर मार रही हैं. पुलिस ने यासमीन को गिरफ्तार कर लिया है. यासमीन भी उसी इलाके में अब्दुल हामिद के घर किराए पर रहती थी. वह कीकाराम की छत पर जाकर हिना के साथ पत्थरबाजी में शामिल थी. हिना फरार है. मीराबाई कहती हैं, “हमें पता ही नहीं चला कि किसने यह काम किया. पिछले 6 महीने का किराया बिना दिए रातों-रात वह कमरा छोड़कर चली गई. अपना कुछ सामान लेकर गई थी.”
मीराबाई बताती हैं, “जब पुलिस यहां आई थी, तो हमने उनके पैर-हाथ जोड़े और विनती की, तब जाकर वह माने की हमने कुछ नहीं किया है. हमने उन्हें अपना पूजा वाला कमरा भी दिखाया. हमने उनको बताया कि जो किया है वह उस हिना ने किया, इसके बाद पुलिस वाले चले गए.”
कीकाराम कहते है, “पुलिस ने पूछताछ में कहा कि आप उस समय कहां थे तो मैंने कह दिया कि मैं घर पर ही था लेकिन मुझे कुछ नहीं मालूम, तो उन्होंने कहा अदालत आना पड़ेगा, मैंने कहा दिया कि आ जाऊंगा. जब मैंने कुछ किया ही नहीं है तो डर किस बात का.”
नाले के किनारे स्थित यह थोड़े से घर हैं बाकि पूरी बेगमबाग कॉलोनी नाले के बाई तरफ है. मीराबाई कहती हैं, “हमने ही नाले के इस पार कॉलोनी बसाई है. जिसके बाद बाकी लोग यहां रहने आए और बाद में सरकार ने सभी को पट्टा बांट दिया. वह कहती हैं, इस कॉलोनी में एक दो घर ही हिंदू के हैं लेकिन हम सब मिलकर रहते हैं. सभी एक दूसरे के त्योहारों में शामिल होते हैं.”
एकपक्षीय कार्रवाई का आरोप
इस घटना ने देशभर का ध्यान खींचा है. महाकाल की नगरी के नाम से प्रसिद्ध उज्जैन में हुई इस घटना के बाद पुलिस प्रशासन के रवैये पर लोग सवाल उठा रहे हैं. बेगमबाग में रहने वाले लोगों का कहना हैं कि पुलिस सही से जांच नहीं कर रही है, एकतरफ़ा कार्रवाई की जा रही है. हमने शहर काजी खलीकुर्रहमान से बातचीत की. वह कहते हैं, “हम निष्पक्ष जांच की मांग कर रहे हैं, जो भी दोषी हो उन पर कार्रवाई हो. घटना की सारी वीडियो पुलिस के पास मौजूद है, जिस पक्ष ने गलत किया हो उन पर कार्रवाई हो.”
वह बातचीत में आगे कहते हैं, “जिनका घर गिराया गया, वह निर्दोष लोग थे लेकिन फिर भी घर गिरा दिया गया. ऐसा क्या हुआ था उस घर से कि पुलिस ने घर गिरा दिया, उसकी जांच करें. हमारे 18 लोगों को पुलिस पकड़कर ले गई है, हम उनकी मदद के लिए वकील का इंतजाम करेंगे.”
26 दिसंबर को 15 मिनट में कार्रवाई नहीं रोकने पर बुरे नतीजे वाले बयान पर काजी कहते हैं, “मेरे बयान का गलत मतलब निकाला जा रहा है. 15 मिनट वाले बयान का मतलब सिर्फ इतना था कि मैं प्रशासन को बताना चाह रहा था कि पब्लिक इकट्ठा हो रही है. प्रशासन की गलत कार्रवाई से लोग गुस्से में हैं. पब्लिक बहक जाएगी तो आप कुछ नहीं कर पाएंगे.”
एकपक्षीय पुलिस कार्रवाई के आरोपों पर हमने महाकाल पुलिस से बात की. बेगमबाग में हुई यह घटना महाकाल पुलिस क्षेत्र में आती है. इस मामले में कुल तीन अलग-अलग एफ़आईआर दर्ज हुई हैं. पहली एफआईआर बेगमबाग के अब्दुल शाकिर ने दर्ज कराई है. दूसरी एफआईआर बीजेपी युवा मोर्चा के नवदीप सिंह रघुवंशी और तीसरी भारत माता मंदिर के ट्रस्ट द्वारा दर्ज कराई गई है.
पहली एफआईआर रैली में शामिल लोगों के खिलाफ की गई है. इस मामले के जांच अधिकारी चुन्नीलाल माले ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “पुलिस इस केस की जांच कर रही है, हमने फरियादी को जांच में सहयोग के लिए कहा है ताकि केस की जांच आगे बढ़ सके, लेकिन अभी तक उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया.”
हमने उनसे पूछा की क्या हिंदू पक्ष के भी कुछ लोगों को गिरफ्तार किया है आपने, तो वह कहते हैं कि अभी तक किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया गया है. रैली के लिए पूर्व अनुमति नहीं होने के सवाल पर जांच अधिकारी कहते हैं, “इन सब आरोपों की जांच चल रही है. हम पता करने की कोशिश कर रहे हैं कि किसने इसे आयोजित किया था और कौन से लोग इस तोड़फोड़ में शामिल थे. जैसे ही जांच पूरी हो जाएगी हम गिरफ्तारियां शुरू कर देंगे.”
दूसरी एफआईआर हिंदू पक्ष द्वारा बेगमबाग इलाके के लोगों द्वारा किए गए पथराव को लेकर है. इस केस के जांच अधिकारी गगन बादल कहते हैं, “हमने अभी तक 18 लोगों को गिरफ्तार किया है. जिसमें से 5 (मोहम्मद अयाज, असलम अल्टू, शादाब खान, युसूफ मेवाती और समीर हमीद) के खिलाफ रासुका (एनएसए) कानून के तहत कार्रवाई की गई है. इनमें से एक महिला यासमीन को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है जबकि हिना की तलाश जारी है. हम सभी वीडियो की भी जांच कर रहे हैं, जिसके आधार पर ही यह कार्रवाई की गई है.”
तीसरी एफ़आईआर भारत माता मंदिर ट्रस्ट द्वारा अज्ञात लोगों के खिलाफ तोड़फोड़ को लेकर दर्ज कराई गई है. इसमें मंदिर के बोर्ड को तोड़ने और मना करना पर मारपीट का आरोप लगाया गया है. इस मामले के जांच अधिकारी लोकेंद्र सिंह ने कहा, "अभी तक इस केस में गिरफ्तारी नहीं हुई है. जिस तरफ मंदिर आता है कि उस तरफ का कोई भी वीडियो फुटेज नहीं मिला है. इसलिए अभी तक किसी के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं किया गया है."
रासुका के तहत गिरफ्तार लोगों के परिजनों का पक्ष
पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए 35 वर्षीय युसूफ़ मेवाती के बारे में पुलिस ने हमें बताया कि वह नशे का आदी है और पहले भी कई अपराधों में शामिल रहा है. पुलिस के इन आरोपों पर युसूफ़ के छोटे भाई मोइनुद्दीन मेवाती ने हमें बताया, “मेरे भाई रेत-गिट्टी की दुकान पर टैक्टर चलाते हैं. जब वह काम से लौट रहे थे, तब पुलिस ने कहा तुम भी पथराव में शामिल थे और उन्हें गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने तीन महीने की रासुका लगाई है. इस दौरान परिजनों की मुलाकात पर भी रोक है.”
मोइनुद्दीन आरोप लगाते हुए कहते हैं, “इलाके से गिरफ्तारी करने के बाद पुलिस की जांच धीमी हो गई है. मोइनुद्दीन के साथ मौजूद अन्य युवक कहते हैं, घटना वाले दिन पुलिस ने ऐसे कई लोगों को गिरफ्तार किया जो बेगुनाह हैं. इन युवकों को थाने ले जाकर उनपर केस दर्ज कर जेल भेज दिया गया.”
गिरफ्तार हुए युवकों में 21 साल के समीर हमीद भी हैं जिनके खिलाफ पुलिस ने रासुका के तहत केस दर्ज किया है. समीर और उसके पिता अब्दुल हमीद दोनों खाना बनाने का काम करते है. 56 वर्षीय अब्दुल हमीद कहते हैं, “जिस वक्त घटना हुई थी उस समय वह खाना बना रहा था. वह मेरे साथ ही काम करता है. उसने रैली पर पथराव नहीं किया था लेकिन फिर भी पुलिस ने उस पर रासुका लगा दिया.”
अब्दुल आगे कहते हैं, “कुछ लोगों ने मेरे बेटे के खिलाफ मुखबिरी की थी, जिसके बाद से पुलिस उसे ढूंढ रही थी. मैं खुद उसे अपने साथ थाने लेकर गया था.”
पुलिस पर पैसे लेने का आरोप लगाते हुए हमीद कहते हैं, “पुलिस ने कहा था 50 हजार का इंतज़ाम कर लो, हम समीर को छोड़ देगें लेकिन मैं पैसों का इंतजाम नहीं कर पाया और उसे जेल भेज दिया.”
नाले के किनारे से होते हुए एक पतली सी गली में चलकर हम शादाब खान के घर पहुंचे. यहां शादाब के पिता और उनकी मां से मुलाकात होती है. शादाब के पिता 49 साल के अकरम खान बताते हैं, “उनका बेटा ऑटो चलाता था लेकिन कुछ समय से घर पर ही था. उसे अस्थमा की बीमारी है. जिसके बाद से हमने खुद उसे ऑटो चलाने से मना कर दिया.”
20 साल के शादाब के पिता से बातचीत के दौरान ही उनके पड़ोसी भी बाहर आ गए. उन्होंने कहा कि शादाब बेकसूर है. वह खुद बीमार है तो पत्थर कहां से मारने जाएगा. वह तो घटना वाले दिन यहीं घर के सामने बैठा था, फिर भी पुलिस ने उस पर पथराव करने को लेकर रासुका लगा दी.”
अकरम बताते हैं, “घटना के अगले दिन पुलिस सुबह 4 बजे हमारे घर आई. उस समय हम सभी सो रहे थे. आवाज़ सुनकर जब मैंने गेट खोला तो 16 पुलिसवाले थे. उन्होंने कहा कि शादाब है, मैंने कहा हां.. फिर वह उसे उठा कर ले गए. उन्होंने उस समय बताया भी नहीं कि उसे किस जुर्म में गिरफ्तार करके ले जा रहे हैं. सुबह जब हम थाने गए तो पता चला की उस पर रासुका लगाकर जेल भेज दिया गया है.”
बातचीत के दौरान ही शादाब की मां, अपने बेटे के बीमारी के कागज भी दिखाती है. वह कहती हैं, देखिए मेरा बेटा बीमार है जिसका इलाज चल रहा है. घटना वाले दिन वह घर से कहीं गया ही नहीं था, जिसकी गवाह यह पूरी गली है लेकिन फिर भी पुलिस उसे ले गई.
अकरम कहते हैं, बेटे से मिलने 10 तारीख को जेल जाएंगे, जब वह क्वारंटाइन से बाहर आ आएगा.
पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए लोगों में सबसे ज्यादा सवाल असलम अल्टू की गिरफ्तारी पर उठ रहा है. 50 साल के असलम कई दिनों से बीमार थे जिसकी वजह से वह घर से बाहर भी नहीं निकल पा रहे थे. पूरी गली में लोगों ने असलग की गिरफ्तारी पर सवाल उठाया.
असलम की पत्नी 45 साल की जमीला कहती हैं, “घटना के कई रोज पहले से उनकी तबीयत खराब थी जिसकी वजह से वह ऑटो नहीं चला रहे थे. वह घर पर ही लेटे रहते थे क्योंकि उनके शरीर में दर्द था.”
जमीला आगे कहती हैं, “मैं आप को सच बता रही हूं, मेरे पति शराब पीते थे, लेकिन तबीयत खराब होने की वजह से वह घर से बाहर नहीं जा रहे थे. आप चाहो तो गली वालों से, हिंदू परिवार वालों से भी पूछ लो, वह कहीं नहीं गए थे घर पर ही थे.”
वह आगे कहती है, “25 दिसंबर शुक्रवार को रात करीब 11 बजे कुछ पुलिस वाले मेरे घर पर आए और उन्होंने अल्टू को कहा कि चल थाने, साहब को चेहरा दिखा दे. इस पर उन्होंने कहा कि साहब मैं तो बेकसूर हूं, तब पुलिस वाले अकड़ने लगे तो वह पुलिस वालों के साथ चले गए.”
अल्टू पर पहले के दर्ज केस पर जमीला कहती हैं, “10 साल पहले के केस थे जो खत्म हो गए थे. अब उन पर कोई केस नहीं था. हमने बार-बार पुलिस वालों से कहा कि वह निर्दोष हैं लेकिन उन्होंने हमारी एक भी नहीं सुनी और उन्हें जेल भेज दिया.”
इस पूरे घटनाक्रम में जहां पुलिस और प्रशासन पर एकतरफा कार्रवाई का आरोप लग रहा है. वहीं पूरे मामले में सरकार के दवाब की भी बात लोग कर रहे हैं. इस मामले ने देशभर के लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा लेकिन इतनी बड़ी घटना के बाद एक भी जन प्रतिनिधि इलाके के लोगों से मिलने नहीं गए. पूर्व पार्षद भूरे खां बताते हैं, "घटना के बाद से कोई जनप्रतिनिधि नहीं आया. कांग्रेस और अन्य पार्टियों के कुछ लोग आए थे लेकिन बीजेपी से कोई नहीं आया."
बता दें कि इस इलाके के विधायक बीजेपी के डॉ मोहन यादव हैं. मोहन यादव वर्तमान में प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री भी हैं और वह शिक्षा मंत्री का पद संभाल रहे हैं. उज्जैन के सांसद बीजेपी अनिल फिरोजिया हैं. विधायक और सांसद दोनों ही इतनी बड़ी घटना हो जाने के बाद नहीं आए हैं. हमने विधायक मोहन यादव से घटना को लेकर फोन किया था लेकिन उनके एक सहयोगी ने मीटिंग में ‘बिजी हैं’ कहकर बाद में फोन लगाने को कहा, लेकिन हमारे बार-बार फोन लगाने के बावजूद उनसे बात नहीं हो पाई.