लखनऊ सीएए प्रदर्शन: नाबालिग को 11 माह बाद जमानत

अब स्कूल ने रजिस्ट्रेशन डेट खत्म कहकर उसे एडमिशन देने से इंकार कर दिया है.

Article image
  • Share this article on whatsapp

सीएए-एनआरसी का मसला कोरोना वायरस के कारण भले ही शांत हो गया हो. लेकिन कुछ लोगों के लिए इसके जख्म अभी तक शांत नहीं हुए हैं. इससे वे अभी तक डरे हुए हैं. ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से प्रकाश में आया है. ठाकुरगंज निवासी नाबालिग हसन (बदला हुआ नाम) को पुलिस ने सीएए प्रदर्शन के मामले में 25 दिसम्बर को गिरफ्तार किया था. 11 महीने तक बाल सुधार गृह में रहने के बाद भले ही सेशन कोर्ट ने उसे जमानत दे दी हो लेकिन अब स्कूल ने रजिस्ट्रेशन डेट खत्म कहकर उसे एडमिशन देने से इंकार कर दिया है.

16 वर्षीय हसन ने इसी साल लखनऊ के राजकीय हुसैनाबाद इंटर कालेज से दसवीं की परीक्षा पास की है. जब उसका रिजल्ट आया तो वह बाल सुधार गृह में ही था. रिजल्ट के बाद उसकी अनुपस्थिति में उसकी मम्मी जब 11वीं में एडमिशन के लिए स्कूल गईं तो वहां रजिस्ट्रेशन डेट खत्म बताकर एडमिशन के लिए मना कर दिया था. हालांकि जब हमने स्कूल प्रिंसिपल से बात की तो उन्होंने नियमानुसार एडमिशन करने का भरोसा दिया है.

दरअसल नागरिकता संशोधन बिल लोकसभा में 9 दिसंबर, 2019 को पास होने के बाद 11 दिसंबर, 2019 को राज्यसभा में भी एक लंबी बहस के बाद पास हो गया था. बिल के पास होते ही पूरे देश में इसके खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन होने शुरू हो गए. इन आंदोलनों ने तब बड़ा रूप ले लिया जब 15 दिसम्बर को पुलिस ने दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में घुसकर बच्चों पर बर्बर रूप से हमला कर दिया. इससे कई बच्चों को गंभीर चोटें आईं.

इसके विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग में लोग सड़क जाम कर धरने पर बैठ गए. वहीं इसके बाद पूरे देश में शाहीन बाग की तर्ज पर प्रदर्शन हुए. ऐसा ही एक प्रदर्शन लखनऊ में भी “संविधान बचाओ देश बचाओ” के नाम से ‘परिवर्तन चौक’ पर चल रहा था.

नागरिकता संशोधन कानून को लेकर चल रहे इस विरोध-प्रदर्शन ने 19 दिसम्बर को हिंसक रूप ले लिया था. पुराने लखनऊ में कई जगह आगजनी और तोड़फोड़ की खबरें भी सामने आईं थीं. जिसके बाद भीड़ को काबू करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया और लोगों की गिरफ्तारियां कीं. साथ ही बहुत से प्रदर्शनकारियों को जो सीएए प्रदर्शन में शामिल थे, शहर के चौक पर फोटो भी लगाए गए थे. जिसकी देश भर में आलोचना भी हुई थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तो इस मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को सभी जगहों से होर्डिंग हटाने के निर्देश दिए थे. वहीं लखनऊ प्रशासन से 16 मार्च तक इस मामले पर रिपोर्ट मांगी थी.

लखनऊ के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने हमें बताया, “इस घटना के बाद 19 दिसम्बर को प्रदर्शन स्थल से बहुत से लोगों को गिरफ्तार किया गया था. जिसमें बहुत से लोग फर्जी तरीके से फंसाए गए थे. इसी कड़ी में 25 दिसम्बर को 16 वर्षीय हसन (बदला हुआ नाम) को उसके मोहल्ले से मुखबिर की सूचना पर गिरफ्तार किया था. पुलिस ने इस पर धारा 307 सहित कुल 17 केस में मामला दर्ज किया. इसके बाद इसे 11 महीने तक बाल सुधार गृह में रखा गया. वहां उसके कुछ अधिकारों का भी उल्लंघन हुआ. जैसे मिलने भी नहीं दिया जाता था. और अब उसे जमानत पर आने के बाद भी स्कूल में एडमिशन देने से मना कर रहे हैं. अब हम इसे देख रहे हैं. अगर हो जाता है तो ठीक है वरना हम कोर्ट जाएंगे.”

सीएए-एनआरसी के खिलाफ हुए प्रदर्शनों के बाद यूपी पुलिस पर नाबालिगों को गिरफ्तार करने, प्रताड़ित करने और उनके अधिकारों के हनन के काफी आरोप लगे थे. आजमगढ़ में भी पुलिस ने सीएए प्रदर्शन के दौरान एक नाबालिग को गिरफ्तार कर लिया था जिसे चार महीने तक सुधार गृह की जगह सामान्य कैदियों की जेल में ही रखा. उस केस की पैरवी कर रहे वकील ने न्यूजलॉन्ड्री से पुलिसिया लापरवाही की कहानी बयां की थी.

पूरे उतर प्रदेश से पुलिसिया लापरवाही की ऐसी अनेक घटनाएं सामने आईं थीं. जिसमें पुलिस ने सीएए-एनआरसी के दौरान नाबालिगों को गिरफ्तार कर कुछ को तो यातनाएं भी दी थीं.

ठाकुरगंज निवासी हसन के घर की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं है. उसके पिता शाहिद मजदूरी करते हैं. जिनका कोरोना के बाद से काम नहीं चल पा रहा है.

हमने उनसे हसन की गिरफ्तारी के बारे में बात की तो वे बेहद डरे हुए नजर आए. उन्होंने हमसे माफी मांगते हुए कुछ भी कहने से इंकार कर दिया. थोड़ा भरोसे में लेने पर इतना ही कहा कि, "आप चाहें तो वकील से बात कर लें. क्योंकि हमें केस के बारे में ज्यादा पता भी नहीं है और इस चक्कर में पड़ना भी नहीं है. हम काफी भुगत चुके हैं और अब भुगतने के लिए तैयार नहीं हैं. मजदूर आदमी हूं, लॉकडाउन के बाद अब तक काम भी नहीं चला. बाकि ये भी 10वीं में पढ़ता था. अब पढ़ाई-लिखाई भी सब चौपट हो गई, ऊपर से स्कूल ने एडमिशन देने से मना कर दिया." इसके बाद काफी कोशिश के बाद हमारी बात हसन से भी हुई.

हसन ने बताया, “मुझे यहीं से एक मुखबिर की सूचना पर छह दिन बाद रास्ते से पकड़ लिया था. वहां से थाने ले जाकर फिर कोर्ट में पेश किया, और वहां से जेल भेज दिया. बाकि वहां मुझे किसी तरह के उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ा.”

हसन छह नवंबर को सुधार गृह से घर आया है. उसने हमसे भी गुजारिश की कि वह अब अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहता है. हसन ने कहा, "सर, अगर आप करा सकते हो तो मेरा एडमिशन करा दीजिए."

हमने हसन की वकील से भी इस केस के बारे में बात की. उन्होंने बताया, “हसन का घर क्योंकि वहीं रोड़ पर है और पुलिस के ऊपर ज्यादा से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार करने का दबाव था. तो उसे मुखबिरों ने गिरफ्तार करा दिया. इसके बाद उसे बाल सुधार गृह में भेज दिया गया जहां उसे 11 महीने तक जेल में रहना पड़ा. इस दौरान कई चीजों का उल्लंघन भी हुआ.”

“जैसे जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड का गठन नहीं हुआ था, न ही उन्होंने सहयोग किया. जबकि जेजेबी में प्रावधान है कि अगर कोई बच्चा 16 साल या उससे कम का है तो उसे कस्टडी गार्जन को दिया जा सकता है. और फिर आठ माह बाद जेजेबी ने उसकी जमानत भी खारिज कर दी. जिसका कोई कारण भी नहीं बताया था. इसके बाद हमने डिस्ट्रिक्ट जज में अपील की तब उसे जमानत मिल पाई है.”

ठाकुरगंज थाने के एसएचओ राजकुमार से जब हमने इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि मैं अभी व्यस्त हूं और एक मीटिंग में हूं. बाकि इस केस की विवेचना चल रही है.

राजकीय हुसैनाबाद इंटर कालेज की प्रिंसिपल वंदना मिश्रा से हमने हसन के एडमिशन के बारे में बात की. तो उन्होंने हमें भरोसा दिलाया कि नियमानुसार अगर डेट बढ़ी है तो निश्चित ही उसका एडमिशन हो जाएगा.

प्रिंसिपल वंदना ने हमें बताया, “जब उसकी मम्मी आई थीं तो डेट निकल गई थी. और जब डेट दोबारा बढ़ी तो वह आई नहीं, और हमारे पास उनका नंबर भी नहीं था. और अभी तो वह सुधार गृह में ही है, छूटकर भी नहीं आया.”

इस पर हमने बताया कि नहीं, उसे बेल तो मिल चुकी है तो वह बोलीं, “इसकी सूचना हमें नहीं मिली है. बाकि देखते हैं, अगर डेट बढ़ी तो उसका एडमिशन हो जाएगा, क्योंकि कई बार कोरोना के कारण डेट बढ़ाई गई हैं. और ये गवर्मेंट कॉलेज है तो नियम के अनुसार ही सब कुछ होगा. बाकि तब भी हमने सोचा था और अब भी हमारी कोशिश है कि एक बच्चे का भविष्य क्यों बर्बाद हो, डेट हुई और वह छूटकर आ गया है तो 100 प्रतिशत एडमिशन हो जाएगा.”

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute
Also see
article imageएनआरसी से न भी जोड़ें तो भी सीएए क्यों बुरा है
article imageसीएए विरोधी आंदोलन की शुरुआत से अब तक दिल्ली एनसीआर में 32 पत्रकारों पर हमला
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like