वर्ष 2018 में कंपनी ने किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का लिखित आश्वासन दिया था लेकिन भाव अधिक होने पर उचित दाम मिलेगा या नहीं, यह अनुत्तरित है.
देश में हरियाणा और पंजाब के कुछ किसान मंडी में अपनी बासमती धान की फसलों को लेकर जहां सदमे में हैं वहीं प्राइवेट एमएसपी का आश्वासन पाने वाले उत्तर प्रदेश के बासमती धान उगाने वाले कुछ किसान नफा-नुकसान के डर से बिल्कुल बेफिक्र हैं. इस बेफिक्री की वजह है सरकारी एमएसपी की तर्ज पर प्राइवेट कंपनियों की तरफ से एक निश्चित न्यूनतम दाम दिए जाने का लिखित आश्वासन.
उत्तर प्रदेश के बहराइच के महसी ब्लॉक में पाकिस्तानी बासमती उगाने वाले गड़वा गांव के आनंद चौधरी और उनके गांव के 39 अन्य किसानों को दो वर्ष पहले ही (2018) एक कंपनी के द्वारा सरकार के एमएसपी की तरह 2850 रुपये प्रति कुंतल भाव से "प्राइवेट एमएसपी" मिलने का भरोसा मिला है. हालांकि ऐसे किसान जो हाल ही के वर्षों में कंपनी से जुड़े हैं उन्हें यह आश्वासन नहीं दिया गया है. कांट्रैक्ट फार्मिंग करने वाली कंपनियों की ओर से एमएसपी की तरह न्यूनतम पैसा देने का भरोसा दरअसल किसानों को अपने साथ जोड़े रखने का एक नया दांव है.
गड़वा गांव के किसान आनंद चौधरी बताते हैं कि, "वह सबसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 2008 में ही हरियाणा के सोनीपत की कंपनी नेचर बायो फूड्स लिमिटेड के साथ करार किया था. उसी समय उनके गांव के अन्य 39 किसानों ने भी कंपनी से बासमती उगाने के लिए हाथ मिलाया था. अब हम सभी किसान कंपनी की नजर में न सिर्फ पुराने हैं बल्कि भरोसेमंद भी हैं. इसलिए हमें कंपनी सुविधाएं दे रही है. गांव में इस कंपनी से अब तक 100 के करीब किसान जुड़ गए हैं. लेकिन नए लोगों को उनकी तरह सुविधाएं नहीं दी जा रही."
नेचर बायो फूड्स की तरह सनस्टार और अन्य कंपनियां भी अब गांव में अलग-अलग तरीकों से किसानों को लुभा रही हैं. लेकिन किसानों को कंपनी का उपहार कब तक मिलता रहेगा और अधिक भाव होने के बावजूद कम पैसे मिलने की सूरत में किसान क्या करेंगे? नए कृषि बिल में एमएसपी मुद्दे की तरह कंपनी के साथ करार करने वाले किसानों के पास ऐसा कोई लिखित आश्वासन नहीं है. इस सवाल पर गड़वा के किसान निरुत्तर रहते हैं, "उनका विश्वास है कि कंपनी के साथ चल रहा व्यवहार कभी बिगड़ेगा नहीं."
नेचर बॉयो फूड्स लिमिटेड दावत ब्रांड के नाम से बासमती और गैर बासमती चावल बेचने वाली हरियाणा के गुरुग्राम स्थित कंपनी एलटी लिमिटेड की सब्सिडरी कंपनी है. इस कंपनी का एक ऑफिस हरियाणा के सोनीपत में है. अकेले गड़वा गांव में करीब 513 परिवार हैं और 2791 लोगों की आबादी है. गांव में कुल 321.19 हेक्टेयर (3965 बीघा) जमीन है. इसमें से करीब 81 हेक्टेयर (1000 बीघे) में बासमती धान की पैदावार है. इस 1000 बीघे में करीब 300 टन बासमती इस बार तैयार होगी. इसमें से औसत 250 टन बासमती एक निजी कंपनी की ट्रकों में लोड होकर हरियाणा चली जाएगी.
नेचर बायो ने गड़वा और आस-पास के करीब 14 गांवों में बासमती पैदा करने वाले किसानों को 2008 से ही जोड़ना शुरू किया था. पहले साल किसानों को बासमती का बेहतर दाम मिला तो गांव के किसान कंपनी से जुड़ते चले गए. बायो नेचर कंपनी का दावा है कि इस वक्त ऑर्गेनिक खेती के लिए उससे 64,087 किसान परिवार जुड़े हैं जो कि 94,403 हेक्टेयर जमीन पर खेती करते हैं.
नेचर बायो फूड्स लिमिटेड कंपनी के साथ करार करने वाले गड़वा गांव के ही एक अन्य किसान बताते हैं कि कंपनी की ओर से कहा गया है कि बाजार में बासमती का भाव भले ही कितना गिर जाए लेकिन उन्हें 2850 प्रति कुंतल के हिसाब से पूरे रुपए मिल जाएंगे. मिसाल के तौर पर यदि बासमती का भाव 2000 रुपये प्रति कुंतल हो जाता है तो कंपनी 2500 रुपये पहले देगी फिर खातों में अतिरिक्त 350 रुपये डाल देगी. लेकिन कंपनी से जुड़ने वाले यह बाकी 60 नए किसानों पर लागू नहीं है.
कंपनी से करार करने वाले एक अन्य किसान नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, "नानपारा स्थित एचडीएफसी बैंक में नेचर बायो और बासमती उगाने वाले कंपनी से जुड़े हुए पुराने किसानों के बीच से चुने हुए अध्यक्ष का एक संयुक्त खाता है. उस खाते में कंपनी कुछ बोनस पैसे भी डालती है. इस वक्त करीब 1.5 करोड़ रुपये खाते में जमा हैं. जल्द ही गड़वा में कंपनी के पुराने 40 किसानों को 2000 से 2500 रुपये तक की कीमत वाली टॉर्च दी गई है, खेतों की लेबलिंग कराई गई है और अब 25 सोलर लाइट भी खेतों में उसी पैसे से लगेगी. अभी यह सब सुविधाएं सीमित और चुनिंदा किसानों को ही कंपनी की तरफ से दी जा रही हैं. पुराने किसानों को ही सुविधाएं देना दरअसल गांव के अन्य किसानों को एक संदेश है कि यदि आप भरोसेमंद बनेंगे तो हम आपका ख्याल रखेंगे."
गड़वा गांव की तरह उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों में भी डिब्बा बंद बासमती चावल बेचने वाली कंपनियों का ऐसा नेटवर्क फैला हुआ है. गांवों में ही कार्यालय खुला है, बाजार के अधिकारी हैं और किसानों से लगातार वे जुड़े रहते हैं. प्रतिस्पर्धा के चलते कंपनियां इस वक्त नई-नई सुविधाओं का वादा किसानों से कर रही हैं. किसान बताते हैं कि 2014-15 में पाकिस्तानी बासमती यानी सीएसआर 30 वेरायटी का उन्हें प्रति कुंतल 5400 रुपये तक मिला था लेकिन उसके बाद से रेट 3000 रुपये से 3400 रुपये प्रति कुंतल तक मिल रहा है.
दरअसल गड़वा गांव के किसान जिसे “पाकिस्तानी बासमती” कहते हैं, वह उत्तर प्रदेश के कई गांवों में वर्षों से लगाई जा रही है. यह सीएसआर 30 सीड वेरायटी है. हरियाणा के करनाल स्थित सेंट्रल सॉयल सैलिनिटी रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएसएसआरआई) की ओर से 2002 में इसे विकसित किया गया था. यह बासमती की देसी प्रजाति में ही शामिल है. वहीं, प्रचलित बासमती प्रजाति पूसा 1121 के मुकाबले इसमें ज्यादा खुशबू है और इसलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य बासमती वेरायटी के मुकाबले इसका अच्छा भाव बना रहता है.
सीएसएसआरआई, करनाल के वैज्ञानिक डॉ कृष्णा मूर्ति बताते हैं, "किसान सीड की अज्ञानता में इसे पाकिस्तानी बासमती कहते हैं. दरअसल सीएसआर30 पाकिस्तानी बासमती और बीआर4-10 का क्रॉस है. इसका उत्पादन एक हेक्टेयर में 37 कुंतल तक है. हरियाणा की बासमती उपज में इसकी बड़ी हिस्सेदारी है."
वहीं, लेखपाल गांव में फसलों का सर्वे करने कई वर्ष से नहीं आया है और प्राइवेट कंपनियों के पास गांव, आबादी, रकबा और उत्पादन का पूरा आंकड़ा मौजूद है. सरकार की एमएसपी व्यवस्था भले ही ध्वस्त हो गई हो लेकिन प्राइवेट एमएसपी का नया जाल किसानों को आकृष्ट कर रहा है. आश्वासन वाले किसानों को भी इसका उत्तर नहीं मालूम है.
(साभार- डाउन टू अर्थ)
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उत्तर प्रदेश के बहराइच के महसी ब्लॉक में पाकिस्तानी बासमती उगाने वाले गड़वा गांव के आनंद चौधरी और उनके गांव के 39 अन्य किसानों को दो वर्ष पहले ही (2018) एक कंपनी के द्वारा सरकार के एमएसपी की तरह 2850 रुपये प्रति कुंतल भाव से "प्राइवेट एमएसपी" मिलने का भरोसा मिला है. हालांकि ऐसे किसान जो हाल ही के वर्षों में कंपनी से जुड़े हैं उन्हें यह आश्वासन नहीं दिया गया है. कांट्रैक्ट फार्मिंग करने वाली कंपनियों की ओर से एमएसपी की तरह न्यूनतम पैसा देने का भरोसा दरअसल किसानों को अपने साथ जोड़े रखने का एक नया दांव है.
गड़वा गांव के किसान आनंद चौधरी बताते हैं कि, "वह सबसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 2008 में ही हरियाणा के सोनीपत की कंपनी नेचर बायो फूड्स लिमिटेड के साथ करार किया था. उसी समय उनके गांव के अन्य 39 किसानों ने भी कंपनी से बासमती उगाने के लिए हाथ मिलाया था. अब हम सभी किसान कंपनी की नजर में न सिर्फ पुराने हैं बल्कि भरोसेमंद भी हैं. इसलिए हमें कंपनी सुविधाएं दे रही है. गांव में इस कंपनी से अब तक 100 के करीब किसान जुड़ गए हैं. लेकिन नए लोगों को उनकी तरह सुविधाएं नहीं दी जा रही."
नेचर बायो फूड्स की तरह सनस्टार और अन्य कंपनियां भी अब गांव में अलग-अलग तरीकों से किसानों को लुभा रही हैं. लेकिन किसानों को कंपनी का उपहार कब तक मिलता रहेगा और अधिक भाव होने के बावजूद कम पैसे मिलने की सूरत में किसान क्या करेंगे? नए कृषि बिल में एमएसपी मुद्दे की तरह कंपनी के साथ करार करने वाले किसानों के पास ऐसा कोई लिखित आश्वासन नहीं है. इस सवाल पर गड़वा के किसान निरुत्तर रहते हैं, "उनका विश्वास है कि कंपनी के साथ चल रहा व्यवहार कभी बिगड़ेगा नहीं."
नेचर बॉयो फूड्स लिमिटेड दावत ब्रांड के नाम से बासमती और गैर बासमती चावल बेचने वाली हरियाणा के गुरुग्राम स्थित कंपनी एलटी लिमिटेड की सब्सिडरी कंपनी है. इस कंपनी का एक ऑफिस हरियाणा के सोनीपत में है. अकेले गड़वा गांव में करीब 513 परिवार हैं और 2791 लोगों की आबादी है. गांव में कुल 321.19 हेक्टेयर (3965 बीघा) जमीन है. इसमें से करीब 81 हेक्टेयर (1000 बीघे) में बासमती धान की पैदावार है. इस 1000 बीघे में करीब 300 टन बासमती इस बार तैयार होगी. इसमें से औसत 250 टन बासमती एक निजी कंपनी की ट्रकों में लोड होकर हरियाणा चली जाएगी.
नेचर बायो ने गड़वा और आस-पास के करीब 14 गांवों में बासमती पैदा करने वाले किसानों को 2008 से ही जोड़ना शुरू किया था. पहले साल किसानों को बासमती का बेहतर दाम मिला तो गांव के किसान कंपनी से जुड़ते चले गए. बायो नेचर कंपनी का दावा है कि इस वक्त ऑर्गेनिक खेती के लिए उससे 64,087 किसान परिवार जुड़े हैं जो कि 94,403 हेक्टेयर जमीन पर खेती करते हैं.
नेचर बायो फूड्स लिमिटेड कंपनी के साथ करार करने वाले गड़वा गांव के ही एक अन्य किसान बताते हैं कि कंपनी की ओर से कहा गया है कि बाजार में बासमती का भाव भले ही कितना गिर जाए लेकिन उन्हें 2850 प्रति कुंतल के हिसाब से पूरे रुपए मिल जाएंगे. मिसाल के तौर पर यदि बासमती का भाव 2000 रुपये प्रति कुंतल हो जाता है तो कंपनी 2500 रुपये पहले देगी फिर खातों में अतिरिक्त 350 रुपये डाल देगी. लेकिन कंपनी से जुड़ने वाले यह बाकी 60 नए किसानों पर लागू नहीं है.
कंपनी से करार करने वाले एक अन्य किसान नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, "नानपारा स्थित एचडीएफसी बैंक में नेचर बायो और बासमती उगाने वाले कंपनी से जुड़े हुए पुराने किसानों के बीच से चुने हुए अध्यक्ष का एक संयुक्त खाता है. उस खाते में कंपनी कुछ बोनस पैसे भी डालती है. इस वक्त करीब 1.5 करोड़ रुपये खाते में जमा हैं. जल्द ही गड़वा में कंपनी के पुराने 40 किसानों को 2000 से 2500 रुपये तक की कीमत वाली टॉर्च दी गई है, खेतों की लेबलिंग कराई गई है और अब 25 सोलर लाइट भी खेतों में उसी पैसे से लगेगी. अभी यह सब सुविधाएं सीमित और चुनिंदा किसानों को ही कंपनी की तरफ से दी जा रही हैं. पुराने किसानों को ही सुविधाएं देना दरअसल गांव के अन्य किसानों को एक संदेश है कि यदि आप भरोसेमंद बनेंगे तो हम आपका ख्याल रखेंगे."
गड़वा गांव की तरह उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों में भी डिब्बा बंद बासमती चावल बेचने वाली कंपनियों का ऐसा नेटवर्क फैला हुआ है. गांवों में ही कार्यालय खुला है, बाजार के अधिकारी हैं और किसानों से लगातार वे जुड़े रहते हैं. प्रतिस्पर्धा के चलते कंपनियां इस वक्त नई-नई सुविधाओं का वादा किसानों से कर रही हैं. किसान बताते हैं कि 2014-15 में पाकिस्तानी बासमती यानी सीएसआर 30 वेरायटी का उन्हें प्रति कुंतल 5400 रुपये तक मिला था लेकिन उसके बाद से रेट 3000 रुपये से 3400 रुपये प्रति कुंतल तक मिल रहा है.
दरअसल गड़वा गांव के किसान जिसे “पाकिस्तानी बासमती” कहते हैं, वह उत्तर प्रदेश के कई गांवों में वर्षों से लगाई जा रही है. यह सीएसआर 30 सीड वेरायटी है. हरियाणा के करनाल स्थित सेंट्रल सॉयल सैलिनिटी रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएसएसआरआई) की ओर से 2002 में इसे विकसित किया गया था. यह बासमती की देसी प्रजाति में ही शामिल है. वहीं, प्रचलित बासमती प्रजाति पूसा 1121 के मुकाबले इसमें ज्यादा खुशबू है और इसलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य बासमती वेरायटी के मुकाबले इसका अच्छा भाव बना रहता है.
सीएसएसआरआई, करनाल के वैज्ञानिक डॉ कृष्णा मूर्ति बताते हैं, "किसान सीड की अज्ञानता में इसे पाकिस्तानी बासमती कहते हैं. दरअसल सीएसआर30 पाकिस्तानी बासमती और बीआर4-10 का क्रॉस है. इसका उत्पादन एक हेक्टेयर में 37 कुंतल तक है. हरियाणा की बासमती उपज में इसकी बड़ी हिस्सेदारी है."
वहीं, लेखपाल गांव में फसलों का सर्वे करने कई वर्ष से नहीं आया है और प्राइवेट कंपनियों के पास गांव, आबादी, रकबा और उत्पादन का पूरा आंकड़ा मौजूद है. सरकार की एमएसपी व्यवस्था भले ही ध्वस्त हो गई हो लेकिन प्राइवेट एमएसपी का नया जाल किसानों को आकृष्ट कर रहा है. आश्वासन वाले किसानों को भी इसका उत्तर नहीं मालूम है.
(साभार- डाउन टू अर्थ)
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