जेल में 14 साल की सजा काटकर बाहर आने वाला था असगर, पेट में मिला सुसाइड नोट बना पहेली

असगर की मौत से सभी हैरान हैं उसे लिखना पढ़ना भी नहीं आता था लेकिन पोस्टमार्टम के दौरान उसके पेट से एक सुसाइड नोट बरामद हुआ है. इस नोट में लिखी बातें भी सबको परेशान कर रही हैं.

WrittenBy:प्रतीक गोयल
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सुबह के लगभग साढ़े दस बज रहे थे, मुंबई के आग्रीपाड़ा इलाके के अपने घर में 11 साल की राफिया अपनी मां रुबीना खातून के फ़ोन पर ऑनलाइन क्लासेज में भाग ले रही थीं कि तभी उनके फ़ोन की घंटी बज गई. जैसे ही राफिया ने फ़ोन उठाया तो सामने की तरफ से आवाज़ आयी "असगर मंसूरी ने आत्महत्या कर ली". यह सुन राफिया घबराकर अपनी मां रुबीना के पास गयी और कहने लगी "मम्मी मम्मी असगर मामू ने सुसाइड कर लिया." जब रुबीना ने फोन पर बात करना शुरू किया तो पता चला कि फोन नासिक सेंट्रल जेल से आया था और जेल का पुलिस अधिकारी उन्हें उनके भाई असगर मुमताज़ मंसूरी की मौत की खबर दे रहा था.

असगर ने सात सितम्बर 2020 को आत्महत्या किस वजह से की थी इस बात का खुलासा उनकी मौत के लगभग तीन दिन बाद तब हुआ, जब नासिक रोड जेल पुलिस थाने की एक अधिकारी ने उनके परिवार को फोन कर इस बात की जानकारी दी कि पोस्टमार्टम के दौरान असगर के पेट से एक सुसाइड नोट मिला है. जिसमे लिखा था कि चार-पांच जेल अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित किये जाने के चलते वो आत्महत्या कर रहे हैं. गौरतलब है कि हत्या के मामले में पिछले लगभग 14 साल से जेल काट रहे असगर की छह महीनों बाद रिहाई होने वाली थी.

न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत के दौरान असगर की बड़ी बहन रुबीना खातून कहती हैं, "जब सात तारीख को मुझे पता चला तो मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मेरे भाई ने खुदकुशी कर ली है, उससे जब भी बात होती थी वो हस्ते हुए बात करता था, बस एक बार उसने मुझसे अपना दुख जाहिर करते हुए कहा था कि वो अब जेल की ज़िन्दगी जीते-जीते थक गया है. लेकिन फिर जब मैंने उसे समझाया कि इतना वक्त गुज़ार लिया है और थोड़ा सा गुज़ारना है तो वह फिर से हस्ते मुस्कुराते बात करने लगा था. उसे शायद यह भी लग रहा था कि अगर वह अपनी परेशानियां घर वालों को बतायेगा तो घर वाले और परेशान हो जाएंगे. उसकी मौत की इत्तला मिलते ही हमारे परिवार के लोग फ़ौरन नासिक के लिए रवाना हो गए थे. वहां पहुंचने पर पता चला कि उसके शव को पोस्टमार्टम की कार्रवाई के लिए धुलिया भेजा है. आठ तारीख को दिन भर इंतज़ार करने के बाद रात को उसका शव हमारे हवाले किया गया. अगले दिन उसका अंतिम संस्कार हुआ."

रुबीना आगे कहती हैं, "मेरे भाई ने ऐसा कदम बहुत ही परेशान होकर उठाया होगा. उसने सुसाइड नोट में चार जेल कर्मचारियों का नाम लिखा है. इस बात का भी पूरा ध्यान रखा कि वो चिट्ठी कहीं पुलिस को न मिल जाए ताकि उसे जेल में कोई गायब ना कर दे, इसलिए वह चिट्ठी को एक थैली में लपेट कर निगल गया. मुझसे बहुत करीब था मेरा भाई, थोड़े समय में वह रिहा होने वाला था लेकिन यह सब क्या हो गया.

असगर के भाई अमजद मंसूरी कहते हैं, "पुलिस वाले कह रहे थे कि असगर ने मास्क बांधने के फीते इक्कट्ठा कर रस्सी बना ली थी और उसी का इस्तेमाल कर अपने आप को फांसी लगा ली थी. असगर के अंतिम संस्कार के एक दिन बाद यानी 10 तारीख को नासिक रोड पुलिस थाने से हमें फ़ोन आया, फ़ोन करने वाली अधिकारी ने हमें बताया कि असगर के पेट में एक सुसाइड नोट मिला है आप नासिक आ जाइए. नासिक रोड पुलिस स्टेशन पहुंचने पर जब हम राउत मैडम (मनीषा राउत पुलिस अधिकारी का नाम) से मिले तो हमें उस चिट्ठी के बारे में बताने लगीं. वह चिट्टी मराठी में लिखी थी. हैरत की बात यह है कि मेरा भाई पढ़ना-लिखना नहीं जानता था, यकीनन उसने किसी से वह चिट्ठी लिखवाई थी, लेकिन किसी और के लिए खुदकुशी की चिट्ठी लिखना भी ताज्जुब की बात है."

अमजद आगे कहते हैं, "मुझे मराठी की इतनी समझ नहीं है तो मैंने पुलिस वालों से वह चिट्ठी पढ़कर सुनाने के लिए कहा. उस चिट्ठी में बावीस्कर, चव्हाण, कारकर और सरपटे नाम के चार जेल अधिकारियों के नाम लिखे थे और लिखा था कि वो चारों असगर को सताते थे. वो उसे मारते थे, धमकाते थे, उसके साथ गाली गलौज करते थे, उसकी तनख्वाह नहीं देते थे (जेल में कैदियों को जेल के भीतर काम करने के लिए तनख्वाह मिलती है) और उनके द्वारा लगातार परेशान किये जाने के चलते उसने खुदकुशी कर ली थी. इस बारे में पता चलने पर जब हमने पुलिस थाने के अधिकारी से एफआईआर दर्ज करने की बात कही तो वह कह रही थीं कि इस मामले की जांच सीबीआई करेगी और वह भी करेंगी. फिर हमने उनसे इस मामले को लेकर मीडिया में जाने की बात कही तो ऐसा करने से उन्होंने हमें मना किया और कहने लगीं कि थोड़ी सी बात को बड़ा ना बनाओ. लेकिन हमारे कई बार कहने पर भी उन्होंने एफआईआर दर्ज नहीं की बस वो यही कह रही थीं कि इसकी जांच सीबीआई या क्राइम ब्रांच करेगी."

गौरतलब है कि असगर की मौत को लेकर जेल में मौजूद कैदियों ने भी मुंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कारागृह), एडिशनल डायरेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस (प्रिज़नस), उप महानिरीक्षक (कारागृह), डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस (प्रिज़नस), नासिक के पुलिस आयुक्त, नासिक सेशन कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश और नासिक रोड पुलिस थाने के पुलिस निरीक्षक को पत्र लिखकर शिकायत की है. न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद खतों में असगर मंसूरी को जेल कर्मचारी सूबेदार प्रदीप बावीस्कर और अन्य जेल अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित करने का जिक्र किया है. साथ ही साथ जेल में चल रहे गोरखधंधो का भी खुलासा किया है.

कैदियों ने अपनी शिकायत में लिखा है (सुरक्षाकारणों से उन कैदियों का नाम नहीं लिख रहे हैं) असगर मंसूरी को जेल में जेल वार्डर की जवाबदारी दी गयी थी और सूबेदार प्रदीप बावीस्कर उसे पिछले 5-6 महीनों से लगातार तंग कर रहा था. वह उससे पैसे मांगा करता था और उसे ज़िम्मेदारी से हटाने की धमकी देता था. असगर को बावीस्कर ने पंखे वाले कमरे से निकालकर बिना पंखे वाले कमरे में डाल दिया था और उसे बाकी कैदियों से अलग कर अकेला रख दिया था. बावीस्कर जेल में गांजा, मोबाइल फ़ोन आदि की तस्करी करवाता था. बावीस्कर असगर को इसलिए भी परेशान करता था क्योंकि उसको लगता था कि गांजा और मोबाइल फोन जेल में लाने की उसकी हरकतों के बारे में असगर बड़े अधिकारियों से उसकी शिकायत करता है.

सभी कैदियों ने लिखा है कि असगर खुश मिजाज़ आदमी था लेकिन बावीस्कर और अन्य जेल अधिकारियों के द्वारा प्रताड़ित किए जाने के चलते उसने 14 साल जेल काटने के बावजूद भी आत्महत्या कर ली.

एक कैदी ने खत में लिखा है, "बावीस्कर को मैंने खुद कई बार असगर को डांटते-फटकारते, गुस्सा करते देखा है. एक बार बावीस्कर ने मुझसे कहा था कि वो गांजा लाकर देगा और मुझे उसे असगर की जेब में डालना होगा लेकिन मैंने ऐसा करने से मना कर दिया. बावीस्कर के डर से यह बात मैंने किसी को भी नहीं बतायी थी वरना वो मुझे भी परेशान करने लगता."

एक दूसरे कैदी ने लिखा है, "जेल अधिकारियों ने जेल में बहुत भ्रष्टाचार और अत्याचार फैला रखा है, जिसके कारण बंदी शिकायत करने से डरते हैं. बंदियों को मारा-पीटा जाता है. साहब लोगों के जो ख़ास वार्डर और वॉचमैन है वह अपनी मनमानी करते हैं. बंदियों के काम करने के लिए उनसे कुछ ना कुछ लेते हैं."

कुछ वार्डर जेल में मोबाइल चलवाते हैं, बंदियों की साहबों से शिकायतें करके उन्हें जेल टावर में पीटा जाता है. "बंदियों को इतना परेशान किया जाता है कि असगर ने 13-14 साल जेल में काटने के बाद और वार्डर होने के बाद भी आत्महत्या कर ली."

सभी कैदियों ने अपना नाम गोपनीय रखने की बात कही है क्योंकि उन्हें डर है कि अगर जेल अधिकारियों को उनका नाम पता चलता है तो जेल में उनके साथ मार -पीट हो सकती है और उन्हें कई और तरीकों से परेशान किया जा सकता है.

गौरतलब है कि कैदियों ने यह सारे खत हाल ही में रिहा हुए एक कैदी की मदद से पोस्ट के ज़रिये आला अधिकारियों को भेजे हैं. नाम गोपनीय रखने की शर्त पर रिहाई पर बाहर आये वह शख्स कहते है, "मैंने जेल में लगभग 12 साल बिताये और असगर को मैं पिछले साढ़े चार साल से जानता हूं. वो बहुत ही खुश मिज़ाज़ लड़का था लेकिन जेल अधिकारियों ने उसके साथ बहुत गलत किया. वह उसे बहुत परेशान करते थे. उस पर वार्डर की जवाबदेही थी जिसके तहत वह बाकी कैदियों को खाना बांटता था, साफ़ सफाई करवाता था. लेकिन अचानक उससे सारी जवाबदेही ले ली गयी थी, क्योंकि उसने जेल के कुछ अधिकारियों को जेल में मौजूद कैदियों को मोबाइल देते हुए देख लिया था. वह उन कैदियों से तीन हज़ार रूपये लेते थे."

वह आगे कहते हैं, "असगर को जानबूझकर सताया जाने लगा था. उसके ऊपर पाबंदियां लगा दी थी. उसके साथ बेवजह मार-पीट और गाली गलौज की जाने लगी थी. असगर सेपरेट -2 की सेल में रहता था, जेल में जब कैदियों को अपने सेल से बाहर निकलने की छूट होती थी तो उसे गाली देकर अंदर कर दिया जाता था, बाकी कैदियों को कही भी जाने दिया जाता था लेकिन उस पर पाबंदी लगा दी थी और वह कुछ ही जगह पर जा सकता था. उसकी आत्महत्या के बाद अधिकारी पल्ला झाड़ने के लिए उसे पागल कहने लगे, अगर वह पागल था तो उसे वार्डर क्यों बनाया गया था.

अपनी बात आगे बढ़ाते हुए वह बताते हैं, "वैसे भी जेल में मुस्लिम कैदियों के साथ अधिकारी थोड़ा अलग व्यवहार करते हैं. मुस्लिम कैदियों की बात ज़रा भी नहीं सुनी जाती है. अगर कोई हिन्दू और मुस्लिम कैदी एक ही सेल में हैं और अगर हिन्दू कैदी अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए लाइब्रेरी से लाकर कुरान पढ़ने लगता था तो उसका खामियाज़ा मुस्लिम कैदी को भुगतना पड़ता है. ऐसी वाकिये में कुछ कैदी जाकर अधिकारियों से शिकायत कर देते हैं कि हिन्दू कैदी मुसलमान कैदी के बहकावे में आकर कुरान पढ़ रहा है, जिसके बाद अधिकारी मुसलमान कैदी को मारते पीटते हैं चाहे भले ही वो हिन्दू कैदी उनसे कहे कि वो कुरान अपनी खुद की मर्ज़ी से पढ़ रहा है. किसी झूठी शिकायत पर भी मुसलमान कैदियों के साथ मार-पिटाई हो जाती है. लेकिन अगर कोई परेशान मुस्लिम कैदी शिकायत करता है तो उसकी शिकायत को नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है."

वह कहते हैं, "जेल में गांजा, मोबाइल सब जेल स्टाफ लाकर कैदियों को मुहैया कराते हैं तो बड़े कैदियों को हर बात की छूट रहती है लेकिन आम कैदियों को छोटी -छोटी बातों पर भी टॉवर में ले जाकर पीटा जाता है."

जब असगर अंसारी की मौत से जुड़े इस पूरे मामले के बारे में हमने महाराष्ट्र के एडिशनल डायरेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस (प्रिज़नस) सुनील रामानंद से बात की तो वो कहते हैं, "इस मामले को लेकर विभागीय जांच का ज़िम्मा हमारे विभाग का है और एक महानिरीक्षक (इंस्पेक्टर जनरल) पद के अधिकारी ने विभागीय जांच का काम शुरू कर दिया है. लेकिन जेलों में हुयी इस तरह की संदेहास्पद मौतों की जांच या तो स्थानीय पुलिस करती है या फिर इसकी न्यायिक जांच होती है.

जब न्यूज़लॉन्ड्री ने नासिक रोड पुलिस स्टेशन के प्रभारी सूरज बिजली से इस मामले में उनकी ढीले रवयै और एफआईआर दर्ज करने में देरी करने को लेकर सवाल किये, तो उन्होंने इस बारे में बात करने से मना कर दिया. इस मामले में हमने नासिक के पुलिस आयुक्त दीपक पांडे से भी सवाल किये लेकिन उन्होंने हमारे सवालों का अभी तक कोई जवाब नहीं दिया. उनका जवाब मिलने पर उसे इस कहानी में जोड़ दिया जाएगा.

कहने को तो भारतीय जेलों को चलाने वाले हुक्मरान अक्सर कहते हैं कि जेलों में कैदियों को सुधार कर एक नयी ज़िन्दगी के काबिल बनाने की कवायद होती है. लेकिन आमतौर पर जेलों में क्या चलता है इसका मोटे तौर पर सबको इल्म है. पुलिस प्रताड़ना, यौन शोषण, अपराधियों की तानाशाही, मूल भूत सुविधाओं की परेशानी, मेडिकल और पुलिस स्टाफ की कमी, जेलों के भीतर उनकी क्षमता से ज़्यादा कैदियों का भरा जाना (औसतन 150-200%) जेल के भीतर का भ्रष्टाचार, यह सब कुछ ऐसी बातें है जो इस देश की जेलों की तासीर बन गयीं हैं. एक आम कैदी की ज़िन्दगी जेल के अधिकारियों के रहमो करम की इतनी ज़्यादा गुलाम हो जाती है कि उसके बिना उसका जीना दूभर हो जाता है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यरो (एनसीआरबी) के अनुसार साल 2019 में 116 कैदियों ने जेलों में खुदकुशी कर ली थी, साल 2018 में यह आंकड़ा 129 का था, साल 2017 में 109, साल 2016 में 102 और वहीं साल 2015 में ऐसी मौतों का आंकड़ा 77 था. औसतन हर साल 100 कैदी जेलों में वहां माहौल के चलते आत्महत्या करते हैं.

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