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एनएल चर्चा का 135वें अंक में कृषि सुधार बिल, एनसीबी द्वारा दीपिका पादुकोण को समन, रिपब्लिक टीवी के पत्रकार प्रदीप भंडारी के साथ हुई मारमीट, पूर्व क्रिकेटर डीन जोंस की आकस्मिक मौत, केंद्रीय राज्यमंत्री की कोरोना से हुई मौत और सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुधा भारद्वाज की रद्द किया गया जमानत याचिका समेत कई अन्य विषयों पर चर्चा हुई.
इस बार की चर्चा में गांव कनेक्शन के असिस्टेंट एडिटर अरविंद शुक्ला, न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन और न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस शामिल हुए. संलाचन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
अतुल ने कृषि बिल पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा, “पिछला सप्ताह राज्यसभा में काफी हंगामेदार था, इसी हंगामे के बीच कृषि बिल को पास करा दिया गया. राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश, जो कि पूर्व पत्रकार भी हैं, वो संसद के महत्व को जानते है लोकतंत्र की मजबूती के लिए, ऐसे में उन्होंने हंगामें और नारेबाजी के बीच बिना बहुमत के ही ध्वनिमत से इतना अहम बिल पास कराया.”
आनंद से सवाल करते हुए अतुल कहते है, “जिस तरह से उपसभापति ने बिल पास कराया, वह कृत्य एक तरह से संसदीय मर्याताओं और नियमावली के खिलाफ था. 8 सांसदों को निलंबित कर दिया गया. लेकिन उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह के रवैये को संसदीय कैसे मान लिया जाय.”
अतुल के सवाल का जवाब देते हुए आनंद कहते है, “राज्यसभा में जो हुआ उसमें दो तरह की बेचैनी देखने को मिली. एक बेचैनी थी सरकार की और दूसरी विपक्ष की. सरकार की बेचैनी थी कि अल्पावधि के इस सत्र में ज्यादा से ज्यादा बिल पास करवा ले. ऐसे में कुछ बिलों पर हंगामा हो सकता था. दूसरी तरफ विपक्ष की बेचैनी थी कि, इस सत्र से कुछ बड़े मुद्दे निकाले जा सकें. मज़दूरों का पलायन का मुद्दा था.”
आनंद कहते हैं, “कई सांसद समझते हैं कि जनता को संसदीय प्रणाली से ज्यादा मतलब नहीं होता है, इसलिए वहां जो होता है वह चर्चा में बने रहने के लिए उपयोग किया जाता है. अगर बात जनता की करें, तो वह भी ज्यादा महत्व नहीं देती कि, उनके सांसद ने क्या कहा.”
अतुल ने यहां पर मेघनाथ और अरविंद को चर्चा में शामिल करते हुए कृषि बिल के विभिन्न प्रावधानों पर चर्चा को आगे बढ़ाया.
मेघनाथ कहते हैं, “जो राज्यसभा में हुआ वह गलत था. काफी सांसदों ने कहा अगर बिल पर वोटिंग होती तो, बिल पास नहीं हो पाता, क्योंकि सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं था. इस पूरे मुद्दे पर संसदीय कानून की बात की जा रही है कि सदस्य अपने स्थान पर नहीं थे, इसलिए वोटिंग नहीं की गई. तो फिर उस शोर-शराबे में कृषि बिल को ध्वनिमत से क्यों बिल पास किया गया. यह सत्र हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण था, क्योंकि भारत-चीन, मजदूरों का पलायन और कोरोना वायरस जैसे काफी महत्वपूर्ण विषय हमारे सामने थे.”
चर्चा का हिस्सा बनते हुए अरविंद कहते हैं, “हमें सबसे पहले यह देखना चाहिए कि, क्या इस बिल की जरूरत थी या नहीं. तो इसका जवाब हैं ‘हां’. क्योंकि अगर बीजेपी यह बिल नहीं लाती तो वह कांग्रेस लाती, क्योंकि उसने भी अपने घोषणापत्र में यह विषय शामिल किया था. रही बात क्या यह बिल सही तरीके से लाया गया, तो उसका जवाब है नहीं. जब अध्यादेश लाया गया, उसके बाद से किसानों से सरकार को बात करनी चाहिए थी, लेकिन सरकार ने उसे नज़रअंदाज़ कर दिया, इसके कारण राजनीतिक पार्टियों ने पहले ही इस बिल का विरोध करना शुरू कर दिया था, जिसके कारण रविवार राज्यसभा में इतना विरोध हुआ.”
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पत्रकारों की राय, क्या देखा पढ़ा और सुना जाए.
सलाह और सुझाव
मेघनाथ
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