झारखंड में सरकारी योजनाओं का पैसा नहीं मिलना किसानों के लिए मौत का नया कुचक्र रच रहा है.
झारखंड की राजधानी रांची से 50 किलोमीटर दूर चान्हो प्रखंड के पतरातू गांव के निवासी लखन महतो की मौत का मातम उनके घर में अभी भी मौजूद है. 27 जुलाई को लखन का शव घर के पास स्थित कुएं में मिला था. आधा खपरैल और आधा पक्का बने दो कमरे के मकान में लोगों की आवाजाही अभी भी लगी हुई थी. रोते-बिलखते परिवार को ढांढस देने वाले भी मौजूद थे. घर के एक कोने में दरवाजे से लगकर कर जमीन बैठी लखन महतो की (85 वर्ष) बुजुर्ग मां गुजरी देवी हर अंजान चेहरे को टकटकी लगाए एक नजर देखतीं और फिर बिलखते हुए कहने लगतीं, “पूरा परिवार आनाथ हो गया, बच्चे कैसे पाले-पोसेंगे.”
थोड़ी देर बाद गुजरी देवी को उनका पोता सूरज अपने सीने से लगा लेता है और कहता है कि दादी को वृद्धा पेंशन तक नहीं मिल रही है. लखन महतो के तीन बच्चों में 17 साल का सूरज सबसे बड़ा है. पिता के काम में हाथ बंटाने वाले सूरज के कंधे पर पढ़ाई के साथ-साथ अब परिवार का बोझ भी असमय आ गया है.
मृतक लखन महतो
पिता की आत्महत्या से दो दिन पहले सूरज उनके साथ ब्लॉक दफ्तर बकाया राशि के भुगतान के लिए गया था. उस दिन को याद करते हुए सूरज कहता है, “कर्जा लेकर कुआं तो बनवा लिए थे पापा, लेकिन हर दिन परेशान रहते थे. मम्मी से कहते रहते थे कि कर्जा कहां से देंगे, पैसा मिल ही नहीं रहा है. इधर हम भी पापा के साथ ब्लॉक जाते थे. पैसे के लिए पापा एक साल से बीडीओ और ब्लॉक का चक्कर लगा रहे थे. शुरू में लोग कहते थे कि मिल जाएगा, लेकिन बाद में वे उनसे मिलने से कतराने लगे. बीडीओ ने हमें भाग जाने के लिए कहा.”
सूरज का कहना है कि कुएं के लिए नरेगा योजना के तहत 3.5 लाख रुपया मिलना था, लेकिन सिर्फ पौने दो लाख रुपया ही मिल पाया.
लखन महतो पतरातु पंचायत के उन किसानों में शामिल थे, जिनका मनरेगा के तहत कुआं स्वीकृत हुआ था. 2017-18 की स्कीम के तहत उन्हें भी अन्य लाभार्थियों की तरह कुएं के निर्माण के लिए 3 लाख 54 हजार रुपये मिलने थे. मगर गुजरे पौने दो साल में उन्हें मात्र पौने दो लाख रुपया ही मिला. बाकी बकाये के लिए वो लगभग एक साल से सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे थे.
परिवार की माने तो इसी राशि के भरोसे लखन महतो ने कुएं का निर्माण कई लोगों से कर्ज लेकर पूरा किया था. वो कर्ज के बोझ से काफी तनाव में थे. 27 जुलाई को शाम सात बजे उनके ही कुएं से उनका शव मिला.
इसी कुएं से मिला था लखन का शव
घर वालों के मुताबिक दो अगस्त को मृतक लखन महतो के मोबाइल पर एक मैसेज आया कि उनके खाते में दो हजार रुपया जमा हो गए हैं. यह राशि मुख्यमंत्री कृषि आशीर्वाद योजना के तहत किसानों को प्रति एकड़ दी जाने वाली पांच हजार रुपये की पहली किस्त है. लेकिन नरेगा से मिलने वाला लखन महतो का बकाया डेढ़ लाख रुपया उनकी मौत को डेढ़ माह बीत जाने के बाद भी नहीं आया है.
इधर घर और गांव वाले लखन महतो की मौत को आत्महत्या बता रहे हैं परंतु प्रशासन की नजर में लखन की मौत संभावित शराब के नशे में कुएं में गिर जाने के बाद एक दुर्घटना मात्र है. लेकिन लखन की मौत ‘आत्महत्या’ क्यों है, इस बाबत घर और गांव वाले इसकी कई वजह गिनाते हैं.
लखन महतो के बहनोई बिरबल महतो खूंटी जिला के तोरपा से करीब सौ किलोमीटर की दूरी तय कर चौथी बार बच्चों का हाल-चाल लेने लखन के घर पहुंचे थे.
लखन महतो से मोबाइल पर हुई बातचीत के बारे बिरबल महतो बताते हैं, “लखन ने आत्महत्या किया है. वो इतना टेंशन में रहता था कि कभी कभार मुझे 11-12 बजे रात में फोन करता. कहता कि जीजा जी पैसा निकलने वाला है. इस हफ्ते पैसा निकल जाएगा. आपको वापस कर देंगे.”
लखन ने जिन लोगों से कर्ज ले रखा था उसमें उनके बहनोई बिरबल महतो भी शामिल हैं. उन्होंने बताया कि लखन ने उनसे 50 हजार रुपया कुएं के लिए कर्ज लिया था.
पत्नी विमला देवी ज्यादा बातचीत करने की स्थिति में नहीं थी. अनुरोध करने पर वो कमरे से बाहर आती हैं और वहीं पर बैठ जाती हैं जहां पर उनकी सास गुजरी देवी बैठी हुई थीं. वो रूंधे गले से बोलती हैं, “कुएं के लिए बहुत परेशान थे. हर टाइम टेंशन में रहते थे. कर्जा लिए थे कई लोग से. कहते कि कुए का पैसा कब मिलेगा, इतना इतना पैसा कर्जा ले लिए है. कहां से देंगे कर्जा. खेती-बाड़ी का टाइम था, लोग पैसा मांगते थें उनसे. कभी झगड़ा लड़ाई भी घर में नहीं हुआ था, कर्जा का ही टेंशन था. जान दे देंगे ऐसा कभी नहीं बोले थे. फिर ऐसा कैसे कर दिए.”
विमला देवी ने बातचीत में यह भी बताया कि लखन महतो ने परिवार के तीन जनों से दो लाख रुपये के करीब उधार लिए थे.
एक माह में आत्महत्या का तीसरा मामला
लखन महतो घटना के दिन यानी 27 जुलाई को रोज की तरह ही सुबह चार बजे पत्नी से गेट की चाभी लेकर बाहर निकले थे. पत्नी के मुताबिक वो ना शराब पीते थे और ना आखिरी रात को उन्होंने पिया था. लेकिन जांच के लिए गठित की गई जिला स्तरीय समिति के प्रमुख एके पांडे ने जांच रिपोर्ट आने से पहले ही मीडिया में बयान दिया कि लखन महतो की मौत संभावित नशे की हालल में कुएं में गिर जाने से हुई है. जब जांच रिपोर्ट आने के बाद उनसे जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि वो बताने के लिए अधिकृत नहीं हैं, डीसी से पूछ लीजिए.
प्रशासन की दलीलों और तर्कों के बीच राज्य में बीते एक माह में किसानों के आत्महत्या से जुड़ी तीन घटनाओं ने सरकारी दावों पर सवाल तो खड़े किए ही हैं साथ ही सिलसिलेवार हुई इन मौतों ने लोगों का ध्यान भी खींचा है.
30 जुलाई को गुमला जिला के ढिढ़ौली गांव के किसान शिवा खड़िया (60) ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. परिवार के मुताबिक आत्महत्या का कारण है दो बेटियों का ब्याह और पहले से लिए कर्ज को चुकाना था. ऊपर से 90 फीसदी धान का बिचड़ा का सूख जाना था.
वहीं 12 अगस्त को गढ़वा जिला के रक्शी गांव के किसान शिवकुमार बैठा ने अपनी पत्नी और दो बेटियों को कुएं में डुबोकर मार डाला और फिर खुद फांसी लगा ली. शिवकुमार ने बैंक और महाजनों से कर्ज ले रखा था, जिसे चुका नहीं पा रहे थे.
तीनों घटना में कर्ज लेने की बात समान रूप से मिलती है.
आकंड़ों के अनुसार पिछले तीन सालों में झारखंड में आत्महत्या की वरदातें बढ़ी हैं. इस बीच राज्य के बारह किसानों ने बदहाली से तंग आकर जान दे दी. सबसे अधिक साल 2017 में सात किसानों ने आत्महत्या की है. यही आकंड़ा राष्ट्रीय स्तर पर देश की भयावह तस्वीर पेश करता है. 1995-2015 तक भारत भर में लगभग 3.20 लाख किसानों ने आत्महत्या की है. जबकि 2016 के बाद से आत्महत्या से जुड़े आंकड़े एनसीआरबी के वेबसाइट पर मौजूद नहीं हैं.
नरेगा पर काम करने वाली संस्था नरेगा वॉच की टीम ने लखन महतो के मामले की जांच की है. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लखन महतो की मौत को आत्महत्या बताया है. संस्था के सदस्य विवेक कुमार ने कहा, “टीम ने जांच में पाया है कि नरेगा की बकाया राशि नहीं मिल पाने के कारण लखन महतो मानसिक तनाव से जूझ रहे थे. उन्होंने कर्ज लेकर कुएं का निर्माण कराया था. कर्जा समय पर नहीं चुकाने के कारण आत्महत्या जैसा कदम उठाया. टीम जल्द ही नरेगा आयुक्त को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी.”
रांची डीसी और बीडीओ दोनों का ही कहना है कि लखन महतो ने सुसाइड नहीं किया है, क्योंकि उनके घर और खेत में लगी फसल को देखने के बाद आर्थिक तंगी जैसा कुछ प्रतीत नहीं होता है. दो कमरे के पक्के घर को देख प्रशासन उन्हें खुशहाल बता रहा है, पर परिवार वालों का कहना है कि घर भी लखन महतो ने कर्जा लेकर बनाया था.
पतरातू पंचायत में 17 वार्ड हैं और नरेगा से मिलने वाले कुएं के लाभार्थी 26 हैं. पंचायत में लगभग दो हजार घर हैं जिसकी अधिकतर आबादी खेती-किसानी पर ही निर्भर है. ऐसा नहीं है कि सिर्फ लखन महतो का ही पैसा नरेगा में बकाया है. बल्कि सभी लाभार्थियों को सिर्फ मजदूरी का ही पैसा मिल पाया है.
लाभार्थियों में से एक सौबत देवी भी हैं. इनका कामकाज छह नंबर के वार्ड पार्षद और उनका बेटा भीम यादव देखते हैं. भीम यादव उसी वार्ड के पार्षद हैं जिस वार्ड में लखन महतो का भी घर है. यादव बताते हैं, “गांव के ज्यादातर लाभार्थियों ने कुएं के निर्माण के लिए ऋण ले रखा है. इसे चुकाने के लिए वे लोग भी लखन महतो की तरह ही परेशानी से जूझ रहे हैं. एक मुश्त 3.54 लाख रुपया किसान के लिए लगाना संभव नहीं है. किसान इतना पैसा एक बार में कहां से लाएगा. ज्यादातर लोगों ने कर्जा लेकर ही कुएं का निर्माण कराया है. अब बकाया मांगने जाते हैं तो यहां का बीडीओ किसी की सुनता ही नहीं है.”
एक आंकड़े के मुताबिक नरेगा का पिछले वित्तीय वर्ष (2018-19) की राशि का 181 करोड़ 13 लाख रुपया सरकार के ऊपर बकाया है. वहीं चान्हो प्रखंड के बीडीओ के अनुसार नरेगा के मैटेरियल राशि का छह करोड़ बकाया है. यही हाल राज्य के हर प्रखंड का है.
डीसी और बीडीओ की नजर में आत्महत्या क्यों नहीं?
आत्महत्या के सवाल पर भीम यादव कहते हैं, “लखन महतो ने आत्महत्या ही किया है. पोस्टमार्टम करवाने हम भी गए थे, अच्छा नहीं लग रहा था. पेमेंट नहीं आने के कारण ब्लॉक दौड़ रहा था. कर्जा लिए हुए था. देने का काफी तनाव था उस पर.”
लखन महतो की पोस्टमार्टम और जांच रिपोर्ट दोनों ही आ चुकी है. डॉक्टरों के मुताबिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लखन के शरीर में अल्कोहल पाए जाने का कोई जिक्र नहीं है. जबकि जांच रिपोर्ट के बारे में रांची के डीसी राय महिमापत रे कहते हैं, “एग्रीकल्चर के कारण कोई तनाव नहीं था. प्राइमा फेसी तनाव के कारण सुसाईड का कोई लक्षण दिखाई नहीं देता.”
ये बात जांच रिपोर्ट में किस आधार पर कही गई है? इस पर रे ने कहा, “उसका घर देख लीजिए. दूसरी बात है कि नरेगा की मजदूरी वाला पेमेंट हो गया था. खेत में लगी फसल को देख लीजिए.
लखन महतो की पोस्टमार्टम रिपोर्ट
शराब पीने की बात कही जा रही है, पोस्टमार्ट या जांच रिपोर्ट में इसका जिक्र है क्या? इस पर रे कहते हैं, “ये मुझे नहीं मालूम. लोगों ने कहा कि लखन महतो ड्रिंक करता था.”
शराब वाली से लखन महतो का परिवार काफी नाराज है. सूरज का कहना है, “जिस समय पापा की मौत हुई थी उस समय बीडीओ और अधिकारी लोगों ने कहा था कि एक हफ्ते में पैसा मिल जाएगा. अब इन लोगों ने झूठ फैला दिया कि पापा शराब पीते थे, और उस दिन पीकर कुएं में गिर गए थे. अपने को बचाने के लिए ड्रिंक वाली बात कर रहे हैं ये लोग.”
चान्हो बीडीओ संतोष कुमार अपने ऊपर लगे दुर्व्यहार के आरोप और लखन महतो के द्वारा ब्लॉक का लगातार चक्कर लगाने वाली बात से इंकार करते हैं. घटना के बारे में पूछे जाने पर, कहते हैं, “मामला साफ है कि दुर्घटना में मौत हुई है. उसके बेटे ने भी एफआईआर में लिखकर ये कहा है. आत्महत्या करने का कोई कारण होना चाहिए. रही बात कार्यलय आने की तो एक बार कुछ लोग विधायक के साथ कार्यलय आए थे, बस.”
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इस साल शुरू हुई प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम और मुख्यमंत्री आशीर्वाद योजना की जमीनी हकीकत का विश्लेषण करना जल्दबादी होगा, लेकिन पूर्व की ढेरो योजनाएं धरातल पर आधी-अधूरी ही है.
झारखंड में राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति की अंतिम बैठक के मुताबिक झारखंड में 18 लाख किसानों को ही अब तक क्रेडिट कार्ड बांटे गए हैं. 2018 में छह लाख किसानों ने ही इसका इस्तेमाल किया, जबकि 12 लाख निष्क्रिय रहे. सरकारी घोषणा के मुताबिक राज्य में 35 लाख किसान हैं.
बीते साल सिर्फ 12 लाख ही गैर-कर्जदार किसानों ने फसल बीमा कराया है. और छह लाख किसानों के बीच ही फसल ऋण बांटा गया है. जबकि सरकार ने कुल 27.50 लाख किसानों के फसल बीमा करने का लक्ष्य रखा था. इसी तरह इस वित्तीय वर्ष में किसानों को बांटी जाने वाली 3824.82 करोड़ की राशि कुल लक्ष्य का सिर्फ 46 प्रतिशत ही है.
झारखंड के किसानों की बदहाली की एक बड़ी वजह सिचाईं और गिरते भूजल स्तर भी हैं. पिछले साल झारखंड के अधितकर जिलों को सुखाड़ घोषित कर दिया गया था. कृषि और मौसम विभाग के जारी ताजा आकंड़ों की माने तो हाल इस बार भी बुरा है. साल 2018 और 2015 में झारखंड का किसान सुखाड़ झेल चुका है. 2018 में 18 जिलों 129 प्रखंड को सूखाग्रस्त घोषित किया गया था.
चार सितंबर को कृषि विभाग के जारी आकंड़ों के अनुसार जिस राज्य में सामान्य के मुकाबले 60 से 99 फीसदी कम बारिश हुई उसमें झारखंड भी शामलि है. इसमें झारखंड के 14 जिले शामिल हैं. हालांकि सूखा की आधिकारिक घोषणा सरकार के द्वारा की जाती है, लेकिन ऐसे हालात को भी सूखा कहा जा सकता है. झारखंड में इस बार 2.35 लाख हेक्टेयर में धान की बुआई नहीं हो पाई है.