“लड़का बंबई में क्या कर रहा है” ये चिंता नहीं तंज था

मुक्काबाज़ के मुख्य कलाकार विनीत सिंह के साथ न्यूज़लॉन्ड्री पॉडकास्ट.

WrittenBy:अतुल चौरसिया
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मुंबई कुछ भी आसानी से नहीं देती. घिस-घिस कर सोना और पीतल का फ़र्क करने के बाद ही ये किसी को गले लगाती है. और जब मुंबई गले लगाती है तब पूरा देश, कई बार पूरी दुनिया उस मुहर की मुनादी करती है. मुंबई के मुहर की धाक पूर दुनिया में है. कोई भी इस ठप्पे को खारिज नहीं कर सकता. इस सिलसिले में अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, नवाजुद्दीन सिद्दीकी समेत तमाम नाम हैं. और यह सिर्फ मुंबई की फिल्मी दुनिया का सच नहीं है, मुंबई से जुड़ी हर ज़िंदगी का यही सच है.

मुंबई की इसी भट्टी से तपकर एक और सितारा जन्मा है- विनीत कुमार सिंह. डेढ़ दशकों से ज्यादा का समय विनीत ने मुंबई में अपनी जिजीविषा, आत्मविश्वास और प्रतिभा के भरोसे पर लगभग गुमनाम रहते हुए बिता दिया.

अनुराग कश्यप मुंबई की निर्मम फिल्मी दुनिया में ऐसे तपे हुए सितारों की सवारी बन गए हैं. अगर गैंग्स ऑफ वासेपुर से नवाजुद्दीन सिद्दीकी का गुमनामी का दौर खत्म हुआ था तो कहा जा सकता है कि मुक्काबाज विनीत सिंह के लिए टॉप लीग में लॉन्चिंग पैड है. हालांकि हम सिर्फ उम्मीद कर सकते हैं क्योंकि जिंदगी तय ढर्रे पर आगे नहीं बढ़ती.

विनीत का संघर्ष कुछ मायनों में नवाजुद्दीन सिद्दीकी के संघर्ष से अलग भी है. नवाज फिल्मों में काम करने के लिए एनएसडी की डिग्री के साथ पहुंचे थे जो कि आपकी अभिनय प्रतिभा का सबसे स्थापित मानक है. इससे आपको काम मिले न मिले लेकिन आपको कोई खारिज नहीं करता. इस लिहाज से विनीत सिंह के लिए स्थितियां कहीं ज्यादा कठिन थीं. हालांकि यह लिखना कहीं से भी नवाज के संघर्ष को कमतर करना नहीं है, ना ही दो लोगों के जीवन में इस तरह की सरल साम्यता स्थापित करना समझदारी है. पर फिर भी यह ख़तरा उठाते हुए यह बात कह रहा हूं.

ऐसा नहीं है कि विनीत 1999 में मुंबई आने के बाद पूरी तरह गुमनामी में ही रहे. एक एक्टिंग कंपटीशन में विजेता बनने के बाद उन्हें फिल्मी दुनिया में पहला ब्रेक बहुत जल्दी मिल गया था. फिल्म पिता में उन्होंने काम किया. लेकिन जल्द ही लोग फिल्म और विनीत दोनों को भूल गए. इसके बाद उनकी सपनों को पकड़ने की दौड़ शुरू हुई. इस दौड़ में उन्होंने गैंग्स ऑफ वासेपुर, अगली, बॉम्बे टाकीज जैसी चर्चित फिल्मों की सवारी भी की लेकिन उनके हिस्से वो पहचान, वो संतुष्टि नहीं आई जिसकी उन्होंने कामना की थी. इस लिहाज से विनीत का संघर्ष जारी रहा.

मुक्काबाज शायद उस सूखे का अंत कर सकती है और उन्हें उनके हिस्से की सफलता, पहचान दे सकती है. हालांकि यह सब भी उनके आगामी निर्णयों और समझदारी पर निर्भर करेगा कि वे किस तरह की फिल्में चुनते हैं, सफलता को कैसे आत्मसात करते हैं आदि.

विनीत कुमार के साथ यह पॉडकास्ट आपको उनके बारे में, उनकी जिंदगी से जुड़े, संघर्षों से जुड़े तमाम अनछुए पक्षों को उजागर करता है. सुनें और लोगों को भी सुनाएं.

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