दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
डंकापति ने हाल ही में अपने दीवान-ए-आम को सेवा तीर्थ घोषित किया था. लेकिन यह बदलाव सेवा तीर्थ वासियों को रास नहीं आया. अंदरूनी मारकाट की खबर है. डंकापति के बगलबहिया रायसीना वाले राष्ट्र संपादक जोशीले को लेकर दिन रात अफवाहें उड़ रही हैं. सिर्फ एक ही बात पुख्ता तरीके से सामने आ रही है कि एक पखवाड़े से जोशीले का जोश ठंडा पड़ा है. ये सारी अफवाहें उड़-उड़कर धृतराष्ट्र के कानों तक पहुंच रही थी. लिहाजा वो थोड़ा बेचैन होकर दरबार पहुंचे थे.
हमारी सरकार ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन का स्वागत ऐसे किया जैसे वो दुनिया को बेहतरी की ओर ले जाने वाले कोई नायक हो. आपको एलेक्सी नवाल्नी के बारे में पता होना चाहिए. रूस में असली लोकतंत्र लाने के लिए संघर्ष करने वाले नवाल्नी की पिछले साल आर्कटिक क्षेत्र की एक बियाबान काल कोठरी में ठंड से ठिठुरकर मौत हो गई. इस तरह की अनेक राजनीतिक मौतें पुतिन के कार्यकाल में हो चुकी हैं. लेकिन हमारे मीडिया ने पुतिन से कोई जरूरी सवाल नहीं पूछा.
बीते हफ्ते संचार साथी के रूप में सरकार के पिटारे से निकले एक एप ने भी घमासान मचाया. दरअसल, सरकारें जनता के बेडरूम में घुसने की तमन्ना हमेशा से पाले रहती हैं. रूस, उत्तर कोरिया और चीन इसका उदाहरण हैं. मोदीजी की सरकार ने भारत को भी इन तीन देशों की सूची में लाने का तगड़ा प्रयास किया था.
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