डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन रूल्स बीते बीते 15 नवंबर को नोटिफाई किए गए हैं.
डिजिपब न्यूज इंडिया फाउंडेशन ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा नोटिफाई किए गए नए डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन रूल्स, 2025 (डीपीडीपीआर) पर चिंता जताई है. फाउंडेशन ने इस बारे में एक बयान जारी करते हुए कहा, 'यह पत्रकारिता को खतरे में डालता है और सूचना का अधिकार को भी कमजोर करके भारत की पारदर्शिता वाली लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करता है.'
केंद्र सरकार की ओर से बीते 15 नवंबर को इन नए नियमों को नोटिफाई किया गया है. यह नए नियम डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 (डीपीडीपीए, 2023) के विशेष प्रावधानों और कई अन्य प्रावधानों को लागू करते हैं. डिजिपब ने एक बयान में कहा, 'डीडीपीपीए, 2023 और डीपीडीपीआर, 2025 साथ मिलकर सूचना के अधिकार की शक्ति को कम करते हैं, जो कि लोकतंत्र में जवाबदेही के लिए सबसे महत्वपूर्ण कानूनों में से एक है और साथ ही इससे ऐसे नियम भी बन रहे हैं, जो पत्रकारिता को खतरे में डालते हैं.'
यह नियम कन्सेंट मैनेजर, बच्चों से संबंधित डाटा की प्रोसेसिंग, जरूरी डाटा को संभालने की जिम्मेदारी और व्यक्तिगत डाटा प्रोसेसिंग में राज्य के लिए विशेष प्रावधान निर्धारित करते हैं. डिजिपब ने कहा कि यह ढांचा सरकार को पत्रकारों के लिए कोई विशेष छूट दिए बिना बड़े पैमाने पर शक्तियां देता है. इस चूक के बारे में डिजिपब ने पहले भी संबंधित मंत्रालय को बताया था.
डिजिपब ने बयान में कहा, 'ये नियम स्रोत की गोपनीयता को खतरे में डालते हैं, जनहित को रोकते हैं, भ्रष्टाचार विरोधी खुलासों में बाधा डालते हैं और लोकतांत्रिक जवाबदेही के लिए आवश्यक सूचना के ढांचे को कमज़ोर करते हैं. ये नियम राज्य के लगातार बिना रोक-टोक हस्तक्षेप और संपादकीय स्वतंत्रता में गुप्त हस्तक्षेप के भी रास्ते खोलते हैं.'
डिजिपब ने कहा कि उसने पहले डीपीडीपीए, 2023 से पत्रकारिता संबंधी प्रावधान को हटाने के लिए अपनी औपचारिक आपत्तियां दर्ज कराई थीं और यह भी बताया था कि धारा 44(3), आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(j) की जगह लेती है, जिससे जनहित का प्रावधान खत्म हो जाता है और सूचना तक पहुंच और भी ज्यादा मुश्किल हो जाती है.
बयान में आगे बताया गया है, 'डिजिपब के निदेशक और प्रतिनिधि ने मंत्रालय के द्वारा आयोजित एक चर्चा में इन चिंताओं को औपचारिक रूप से प्रस्तुत करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सचिव से मुलाकात की. बैठक के बाद, हमारे सदस्यों ने अपनी कानूनी टीम के साथ मिलकर जरूरी सवालों और चिंताओं का एक सेट तैयार किया, जिसे बाद में डाक से भेजा गया. सहयोग की इन अच्छी कोशिशों के बावजूद भी इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने ना तो इन सवालों का कोई जवाब दिया और ना ही पत्रकारों और डिजिटल मीडिया संगठनों द्वारा उठाई गई किसी भी चिंता का समाधान किया.'
बयान में जिक्र है कि एक सरकारी सूत्र ने अगस्त में प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया को बताया था कि पत्रकारों और आरटीआई कार्यकर्ताओं द्वारा उठाई गई चिंताओं को दूर करने के लिए कानून पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (एफएक्यू) जारी किए जाएंगे, लेकिन 'ऐसे अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू) भी जारी नहीं किए गए हैं.'
फाउंडेशन ने कहा, 'यह लोकतांत्रिक परामर्श प्रक्रिया में एक गंभीर खामी को दर्शाता है और प्रेस की स्वतंत्रता और सूचना के संवैधानिक अधिकार के प्रति अनादर भी दिखाता है. डिजिपब का मानना है कि डीपीडीपीए, 2023 और डीपीडीपीआर, 2025 दोनों ही अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करते हैं और स्वतंत्र मीडिया पर एक अनुचित, और संवैधानिक रूप से गलत बोझ डालते हैं.'
फाउंडेशन ने केंद्र सरकार, खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय से पत्रकारिता और जनहित के लिए एक ‘स्पष्ट वैधानिक छूट’ बहाल करने के लिए ‘सुधार प्रक्रिया शुरू करने’ का आग्रह किया है. इसने कहा कि सरकार को ‘डिजिपब और अन्य द्वारा प्रस्तुत किए गए मुद्दों पर एक पारदर्शी, औपचारिक और समयबद्ध चर्चा शुरू करनी चाहिए’ और उन प्रावधानों में संशोधन करना चाहिए ‘जो मीडिया की स्वतंत्रता, सूचना के अधिकार और डिजिटल सार्वजनिक क्षेत्र की अखंडता को कमजोर करते हैं.’
डिजिपब ने कहा, ‘किसी भी लोकतांत्रिक गणराज्य के लिए एक स्वतंत्र प्रेस जरूरी है. जारी किए गए डीपीडीपीए, 2023 और डीपीडीपीआर, 2025 इस मूलभूत सिद्धांत के लिए एक गंभीर झटका हैं.’
एडिटर्स गिल्ड ने भी जताई वही चिंता
वहीं, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी एक बयान जारी कर नए नियमों पर चिंता जाहिर की है.
गिल्ड ने कहा कि ये नियम पत्रकारों और मीडिया संगठनों के जरूरी सवालों को अनसुलझा छोड़ देते हैं. उसने पहले भी इस अधिनियम द्वारा आरटीआई व्यवस्था को कमज़ोर किए जाने और पत्रकारिता के लिए साफ छूट की कमी की ओर ध्यान दिलाया था, लेकिन ये कमियां दूर नहीं हुईं.
साथ ही याद गिल्ड ने बयान के जरिए दिलाया कि जुलाई 2025 में, इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सचिव ने प्रेस संस्थाओं को आश्वासन दिया था कि पत्रकारिता संबंधी काम डीपीडीपी अधिनियम के दायरे में नहीं आएंगे. गिल्ड ने कहा, "हालांकि, तब से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं मिली है."
गिल्ड ने इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय से भी अनुरोध किया कि वह "वास्तविक पत्रकारिता गतिविधियों को अधिनियम की सहमति से छूट देने वाला एक साफ स्पष्टीकरण जल्द से जल्द जारी करे".
गिल्ड ने कहा कि इस तरह की स्पष्टता के बिना, "भ्रम और नियमों का इतना अधिक पालन प्रेस की स्वतंत्रता को कमजोर करेगा और एक लोकतांत्रिक समाज में मीडिया की आवश्यक भूमिका में बाधा पैदा करेगा". गिल्ड ने आगे कहा कि डेटा सुरक्षा का अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जनता के जानने के अधिकार के साथ संतुलन होना चाहिए.
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