बिहार के बाहुबली: अनंत सिंह, अमरेंद्र पांडे की वापसी तो रीत लाल हारे, शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा जीते

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान विधानसभा चुनावों में 32 फीसदी उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले होने की घोषण की है.

अमरेंद्र पांडे, रीत लाल, अनंत सिंह और ओसामा की तस्वीर.

बीच चुनावों के मोकामा विधानसभा में हुई एक हत्या ने बिहार की राजनीति में बाहुबल को लेकर एक बार फिर से सवाल खड़े कर दिए. इस चुनाव में कई ऐसे उम्मीदवार मैदान में हैं जिन पर गंभीर मुकदमे दर्ज हैं या फिर वे बाहुबली परिवारों के सदस्य हैं.

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान विधानसभा चुनावों में 32 फीसदी उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले होने की घोषण की है. वहीं, 27 फीसदी उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले हैं. 

गौरतलब है कि 1990 के दशक के बाद जब देश में मंडल-कमंडल की राजनीति आकार लेने लगी तो बिहार से भी इससे अछूता नहीं रहा. यहां जातीय कट्टरता और कमज़ोर कानूनी तंत्र ने बाहुबलियों के उभार का रास्ता खोला. धीरे-धीरे बाहुबली भय और शासन के प्रतीक बन गए. संभवतः इसी गठजोड़ ने उन्हें चुनावी सफलता भी दिलवाई. 

तो ऐसे बाहुबलियों और उनके परिवारों को इस बार के चुनावों में जनता का कितना समर्थन मिला है? आइए कुछ उम्मीदवारों के प्रदर्शन से इसे समझते हैं. 

मोकामा: ‘जेल के फाटक टूटेंगे’

जदयू उम्मीदवार और लंबे समय से बाहुबली अनंत सिंह पटना जिले के मोकामा से एक बार फिर जीत दर्ज की है. उन्होंने राजद की वीणा देवी को 28206 वोट से हराया है. जनसुराज पार्टी के प्रियदर्शी पीयूष यहां से तीसरे नंबर पर रहे हैं. मालूम हो कि वर्तमान में अनंत सिंह, जनसुराज पार्टी के ही एक समर्थक की हत्या के आरोप में जेल में बंद हैं. फिर भी उनके लौटने की उम्मीद उनके निर्वाचन क्षेत्र में साफ़ दिखाई दे रही है, जहां ऐसे पोस्टर लगे हैं जिनमे लिखा है: "जेल का फाटक टूटेगा, हमारा शेर छूटेगा".

छठवीं बार विधायक बने अनंत सिंह साल 2005 में पहली बार जदयू के टिकट पर विधानसभा में पहुंचे थे. इसके बाद उन्होंने 2010 में फिर से जीत हासिल की. साल 2015 में वह पार्टी छोड़कर निर्दलीय चुनाव लड़े और जीते. 2020 में वह राजद की टिकट पर विधानसभा पहुंचे थे. इस बार उन्होंने जदयू की टिकट से पर चुनाव जीता है.

सिंह के खिलाफ 28 आपराधिक मामले लंबित हैं. साल 2022 में वह आर्म्स एक्ट के तहत दोषी करार दिए गए. उन पर घर में एके-47 रखने का आरोप था. इसके बाद उनकी सदस्यता चली गई और उपचुनाव में उनकी पत्नी नीलम देवी ने जीत हासिल की. 

कुचायकोट: कई केस वाले उम्मीदवार के लिए आरामदायक जीत

कुचायकोट (गोपालगंज) से पांच बार से जदयू विधायक अमरेंद्र पांडे पर आपराधिक मामलों का एक काफी लंबा-चौड़ा रिकॉर्ड दर्ज है. 20 गंभीर आईपीसी मामले, एक मामला बीएनएस के तहत और आईपीस के 28 अन्य मामले दर्ज हैं. उनके खिलाफ हत्या और हत्या के प्रयास से लेकर ज़मीन हड़पने, जबरन वसूली, लूटपाट और अवैध हथियार रखने जैसे कई आरोप हैं. एक बार फिर पांडे ने चुनाव में जीत हासिल की है. उन्होंने कांग्रेस के हरि नारायण सिंह को 24491 वोट से हराया है. 

रघुनाथपुर: शहाबुद्दीन के बेटे जीते

राजद प्रत्याशी ओसामा शहाब ने जदयू के विकास कुमार सिंह के खिलाफ 9248 वोट से जीत हासिल की है.  सीवान के दिवंगत बाहुबली और पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा पर उनके हलफनामे में हत्या के प्रयास के दो मामले दर्ज हैं. भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए ने उन्हें उम्मीदवार बनाने के लिए राजद की आलोचना की और पार्टी पर अपराधियों को बढ़ावा देने और ‘जंगल राज वापस लाने’ का प्रयास करने जैसा आरोप लगाया है, जिसका संदर्भ लालू प्रसाद के नेतृत्व वाले राजद के शासन से है.

ब्रह्मपुर: बाहुबली के भाई हारे

बक्सर की ब्रह्मपुर सीट पर लोजपा (रामविलास) ने जदयू के पूर्व बाहुबली नेता सुनील पांडे के भाई हुलास पांडे को मैदान में उतारा. हुलास पांडे पर भी 2012 के एक हत्याकांड में 2023 में सीबीआई ने आरोपपत्र दाखिल किया था और प्रवर्तन निदेशालय ने 2024 में आय से अधिक संपत्ति की जांच के चलते उनकी संपत्तियों की तलाशी ली थी. साथ ही उनका नाम 2012 में ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या में भी दर्ज है. हुलास पांडे राजद के शंभूनाथ यादव से लगभग 3220 वोटों के अंतर से हारे. मालूम हो कि 14वें राउंड तक वो लगभग 4,000 वोटों से आगे चल रहे थे. 

नबीनगर: आनंद मोहन के बेटे जीते

नबीनगर में जदयू के चेतन आनंद 28वें चरण की मतगणना पूरी होने के बाद बस 112 मतों के मामूली अंतर से जीते. राजद के आमोद कुमार सिंह से उनका ये मुकाबला काफी कड़ा रहा.  शिवहर से विधायक चेतन, पूर्व सांसद आनंद मोहन के पुत्र हैं. जिन पर कई आपराधिक मामले दर्ज हैं और जो शिवहर, कोसी क्षेत्र और मिथिलांचल में एक प्रभावशाली व्यक्ति हैं. आनंद मोहन विधायक और सांसद रह चुके भारत के पहले ऐसे नेता थे जिन्हें फ़ांसी की सज़ा सुनाई गई थी. वह कभी लालू प्रसाद के कट्टर विरोधी हुआ करते थे. 1990 के दशक में आनंद ने बिहार पीपुल्स पार्टी की स्थापना की और अंततः राजद के साथ ही गठबंधन किया. उनका करियर लंबे समय तक गोपालगंज के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट जी कृष्णैया की 1994 में हुई लिंचिंग की घटना से प्रभावित रहा, जिसके लिए उन्हें आपराधिक मुकदमे का भी सामना करना पड़ा.

दानापुर: रीत लाल रॉय भाजपा से हारे

दानापुर से राजद प्रत्याशी रीतलाल यादव भाजपा के राम कृपाल यादव से 29133 मतों से हार गए. रीत लाल पर कम से कम 11 आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें हत्या, जबरन वसूली, दंगा, आपराधिक धमकी और हत्या के प्रयास जैसे आरोप शामिल हैं. वह अप्रैल 2025 से भागलपुर जेल में हैं और उन्हें केवल नामांकन दाखिल करने के लिए ही ज़मानत मिली थी. इसके बावजूद, दानापुर में उनका काफ़ी प्रभाव है. जिसे राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के चुनाव प्रचार दौरे से और अधिक बल मिला.

कुछ और ‘बाहुबलियों’ का ऐसा रहा प्रदर्शन

रुपौली से राजद उम्मीदवार बीमा भारती को जदयू के कलाधर प्रसाद मण्डल ने 73 हजार से भी ज्यादा वोटों के एक बड़े अंतर से हराया. जोकीहाट से एआइएमआईएम के मोहम्मद मुरशिद आलम को जीत मिली और राजद के शहनवाज आलम को भी 28 हजार से ज्यादा वोटों से हार का सामना करना पड़ा. लालगंज से भाजपा प्रत्याशी संजय कुमार सिंह ने जदयू के टिकट से मैदान में उतरी बाहुबली मुन्ना शुक्ला की बेटी शिवानी शुक्ला को 32 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया है. 

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