गुवाहाटी क्राइम ब्रांच ने दोनों पत्रकारों के खिलाफ एक और मामला दर्ज कर समन भेजे थे.
सुप्रीम कोर्ट ने द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और वरिष्ठ पत्रकार करण थापर को बड़ी राहत दी है. अदालत ने गुवाहाटी क्राइम ब्रांच की एफआईआर में गिरफ्तारी समेत किसी भी कठोर कार्रवाई पर रोक लगा दी है. यह आदेश न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जॉयमाल्या बागची की पीठ ने दिया. अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 15 सितंबर तय की है.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, पत्रकारों की वकील नित्या रामकृष्णन ने कोर्ट में बताया कि सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम संरक्षण मिलने के बावजूद वरदराजन और थापर को समन जारी किया गया. इसके बाद ही कोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए उन्हें दोबारा सुरक्षा दी.
इससे पहले असम के मोरीगांव में एक एफआईआर दर्ज की गई थी. यह एफआईआर ऑपरेशन सिंदूर पर छपे एक लेख को लेकर थी. उस लेख का शीर्षक था- “राजनीतिक नेतृत्व की पाबंदियों की वजह से भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान से लड़ाकू विमान गंवाए: भारतीय रक्षा अताशे.” इस एफआईआर में भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 लगाई गई, जो भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों से जुड़ी है.
12 अगस्त को गुवाहाटी क्राइम ब्रांच ने नया समन जारी किया. इसमें धारा 152 के साथ कई और धाराएं भी जोड़ी गईं. इनमें अलग-अलग समूहों के बीच दुश्मनी फैलाने, झूठी या भ्रामक जानकारी प्रकाशित करने और आपराधिक साजिश से जुड़ी धाराएं शामिल थीं. हालांकि, द वायर का कहना है कि क्राइम ब्रांच ने नई एफआईआर का कोई विवरण साझा नहीं किया.
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार समन में एफआईआर की तारीख का जिक्र नहीं था. कथित अपराध का कोई विवरण भी नहीं दिया गया और एफआईआर की कॉपी भी नहीं दी गई. जबकि कानून के अनुसार इस धारा के तहत समन जारी करते समय यह जानकारी अनिवार्य होती है.
भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 को पुराने राजद्रोह कानून का नया रूप माना जा रहा है. यह धारा ‘भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य’ से संबंधित है. राजद्रोह कानून को सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में स्थगित कर दिया था.
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