रीसाइक्लिंग यूनिट्स पर सबसे सख़्त नज़र रखी जानी चाहिए क्योंकि ये ‘रेड कैटेगरी’ में आती हैं, लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री को पता चला है कि सरकार की बुनियादी जांच भी गायब है.
मई और जून में न्यूज़लॉन्ड्री ने चार राज्यों में कामकाजी घंटों के दौरान जिन 41 सरकारी ऑथराइज्ड रीसाइक्लिंग प्लांट्स का दौरा किया, उनमें से सात या तो गायब थे या हमेशा के लिए बंद थे या फिर ऐसी दूसरी कंपनियों के कब्जे में थे जो रीसाइक्लिंग से जुड़ा कोई काम नहीं कर रही थीं.
ये सातों प्लांट्स मिलकर दो लाख मीट्रिक टन से ज़्यादा ई-वेस्ट प्रोसेस करने के लिए ऑथराइज्ड हैं. ये आंकड़ा भारत की फॉर्मल सेक्टर की रीसाइक्लिंग क्षमता का लगभग सात फीसदी है. लेकिन, इनकी क्षमता को लाइसेंस देने के बावजूद, सरकार इन दिखने में भूतिया लगने वाली फैसिलिटीज की बुनियादी जांच करने में भी नाकाम रही है.
यह चिंता की बात है क्योंकि रीसाइक्लिंग यूनिट्स “रेड कैटेगरी” में आती हैं. यानी वो इंडस्ट्रीज जिन्हें सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाला माना जाता है और जिन पर सबसे सख्त निगरानी और कायदे-कानून लागू होते हैं.
यह न्यूजलॉन्ड्री की भारत के ई-वेस्ट अंडरवर्ल्ड पर इन्वेस्टिगेटिव सीरीज का दूसरा हिस्सा है. इस इन्वेस्टिगेशन को तैयार करने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री ने जमीनी पड़ताल, कॉरपोरेट और न्यायिक रिकॉर्ड, आंतरिक दस्तावेज और सूचना के अधिकार कानून के तहत मिली सरकारी जवाबदेही को आधार बनाया है.
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