अस्पताल के पास पत्रकारों के टेंट पर इज़रायल का हमला, अल जज़ीरा के पांच पत्रकार मारे गए

ग़ाज़ा सिटी के अल-शिफ़ा अस्पताल के पास एक लक्षित हमले में इज़रायल ने अल जज़ीरा के पांच पत्रकारों की हत्या कर दी.

मारे गए लोगों में अल जजीरा संवाददाता अनस अल-शरीफ भी शामिल थे.

इज़रायल ने ग़ाज़ा सिटी के अल-शिफ़ा अस्पताल के पास एक लक्षित हमले में अल जज़ीरा के पांच पत्रकारों की हत्या कर दी. मारे गए लोगों में अल जज़ीरा के संवाददाता अनस अल-शरीफ़ और मोहम्मद क़ुरैकेह, तथा कैमरामैन इब्राहीम ज़ाहेर, मोहम्मद नौफ़ल और मोअमेन अलीवा शामिल थे. चैनल के अनुसार, ये सभी अस्पताल के मुख्य द्वार पर पत्रकारों के लिए बने एक टेंट में थे, जब वह निशाना बनाया गया.

इज़रायल डिफेंस फ़ोर्सेज़ (आईडीएफ) ने पुष्टि की कि उसने अनस अल-शरीफ़ को निशाना बनाया. आईडीएफ ने दावा किया कि वह “हमास में एक आतंकवादी सेल का प्रमुख” था. हालांकि, उसने हमले में मारे गए अन्य पत्रकारों का कोई ज़िक्र नहीं किया. खबरों के मुताबिक, इस हमले में पांच पत्रकारों समेत कम से कम सात लोग मारे गए.

अल जज़ीरा ने इस हमले को “लक्षित हत्या” बताते हुए कहा कि यह “पत्रकारिता की आज़ादी पर एक और साफ़ और पूर्वनियोजित हमला” है. नेटवर्क ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय और सभी संबंधित संगठनों से अपील की कि वे “इस चल रहे नरसंहार को रोकने और पत्रकारों को जानबूझकर निशाना बनाने की घटनाओं को ख़त्म करने के लिए निर्णायक कदम उठाएं.”

अपनी मौत से ठीक पहले, 28 वर्षीय अरबी संवाददाता अल-शरीफ़, जो उत्तरी ग़ाज़ा से व्यापक रिपोर्टिंग करते थे, ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि इज़रायल ने ग़ाज़ा सिटी के पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों में भीषण बमबारी शुरू कर दी है. 

अल जज़ीरा के अनुसार, 6 अप्रैल को लिखा गए आखिरी संदेश (जिसे उनकी मौत की स्थिति में प्रकाशित किया जाना था) में अल-शरीफ़ ने कहा था कि उन्होंने “दुख को उसके हर पहलू में जिया” और “बार-बार ग़म और क्षति का स्वाद चखा.” उन्होंने कहा, “इसके बावजूद, मैंने कभी सच्चाई को जस का तस, बिना तोड़-मरोड़ के पेश करने में हिचकिचाहट नहीं की, इस उम्मीद में कि ख़ुदा उन लोगों का गवाह बनेगा जो चुप रहे, जिन्होंने हमारी हत्या को स्वीकार किया, और जिन्होंने हमारी सांसों तक को रोक दिया.”

अल शरीफ ने आगे लिखा, “हमारे बच्चों और औरतों के चिथड़े हुए शव भी उनके दिल नहीं पिघला सके, और न ही उस नरसंहार को रोक सके, जिसका सामना हमारा समुदाय डेढ़ साल से कर रहा है.” 

पिछले महीने, जब इज़रायली सेना के प्रवक्ता अवीखाई अड्रई ने एक वीडियो फिर से साझा किया जिसमें अल-शरीफ़ पर हमास के सशस्त्र विंग का सदस्य होने का आरोप लगाया गया था, तो संयुक्त राष्ट्र की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर विशेष प्रतिवेदक, आइरीन ख़ान ने कहा कि वह अल-शरीफ़ के ख़िलाफ़ “इज़रायली सेना की बार-बार दी जाने वाली धमकियों और आरोपों से बेहद चिंतित” हैं. 

ख़ान ने कहा, “अल-शरीफ़ की सुरक्षा को लेकर आशंकाएं वाजिब हैं, क्योंकि बढ़ते सबूत दिखाते हैं कि ग़ाज़ा में पत्रकारों को इज़रायली सेना ने इस आधार पर निशाना बनाया और मार डाला कि वे हमास के आतंकवादी थे जबकि इन दावों के समर्थन में ठोस सबूत नहीं हैं.”

मानवाधिकार समूहों का कहना है कि अक्टूबर 2023 में ग़ाज़ा पर हमला शुरू करने के बाद से इज़रायल नियमित रूप से फ़िलिस्तीनी पत्रकारों को हमास का कार्यकर्ता बताकर उनकी साख ख़राब करने की कोशिश कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र ने इन हत्याओं की निंदा की है और ग़ाज़ा में अंतरराष्ट्रीय मीडिया की पहुंच बहाल करने की मांग दोहराई है, साथ ही इज़रायल से प्रेस की स्वतंत्रता बनाए रखने की अपील की है.

पिछले महीने, पत्रकारों की रक्षा के लिए बनी समिति (सीपीजे) ने कहा कि वह इस पत्रकार की सुरक्षा को लेकर बेहद चिंतित है, क्योंकि उसे “इज़रायली सेना के एक बदनाम करने वाले अभियान का निशाना बनाया जा रहा था.” 

सीपीजे की मुख्य कार्यकारी, जोडी गिन्सबर्ग ने बीबीसी को बताया कि इज़रायली अधिकारियों ने यह साबित करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं किया कि जिन पत्रकारों को उन्होंने मारा, वे आतंकवादी थे. 

उन्होंने कहा, “यह एक पैटर्न है जो हमने इज़रायल से देखा है और सिर्फ़ मौजूदा युद्ध में नहीं बल्कि पिछले कई दशकों में जिसमें आमतौर पर इज़रायली बल किसी पत्रकार को मार देते हैं और फिर बाद में कहते हैं कि वह आतंकवादी था, लेकिन इस दावे को साबित करने के लिए बहुत कम सबूत देते हैं.”

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