हाथी महादेवी के बहाने पीआर का नया अवतार: यह पशु प्रेम है या वनतारा प्रेम?

एक तरफ सड़क से सोशल मीडिया तक हाथिनी महादेवी को वनतारा भेजने का विरोध हो रहा है, दूसरी तरफ ‘पशुप्रेमियों’ की एक नई जमात वनतारा के समर्थन में उतर आई है. 

WrittenBy:विकास जांगड़ा
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महादेवी को लेकर विभिन्न वर्गों के ट्वीट का स्क्रीनशॉट और बीचे में उसकी तस्वीर.

कुछ दिनों पहले महाराष्ट्र की एक हथिनी माधुरी उर्फ महादेवी खूब चर्चा में रही. बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बाद इसे रिलायंस समूह के चश्मेचिराग़ अनंत अंबानी के निजी अभ्यारण्य वनतारा में पहुंचा दिया गया था. इसे लेकर एक तबका विरोध पर उतर आया. लोग प्रदर्शन करने लगे. हथिनी को वनतारा से आजाद करने के लिए कई किलोमीटर लंबी यात्रा तक निकाल रहे हैं. यहां तक कि अंबानी के स्वामित्व वाली जियो के बॉयकॉट का ट्रेंड चल रहा है. 

लेकिन अगर आप एक्स जैसे प्लेटफॉर्म पर महादेवी उर्फ माधुरी, वनतारा को सर्च करेंगे तो पाएंगे कि महादेवी को वनतारा भेजने के समर्थकों ने क्रांति पैदा कर दी है. भले ही यह क्रांति चाय के प्याले में उठे तूफान की तरह हो लेकिन वनतारा के समर्थन वाली इस क्रांति का विश्लेषण करने पर एक दिलचस्प ट्रेंड निकल कर सामने आया. 

खैर सड़क पर हो रहे विरोध के दबाव में अब महाराष्ट्र सरकार ने कहा है कि वह हथिनी को वापस लाने के लिए हर कोशिश करेगी. 

ये है मामला

बीते 16 जुलाई को बॉम्बे हाईकोर्ट ने महादेवी के वनतारा स्थानांतरण को मंजूरी दी थी. कोर्ट ने इस फैसले के पीछे पेटा और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा गठित उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) द्वारा प्रस्तुत पशु चिकित्सा और फोटोग्राफिक साक्ष्यों को आधार बनाया था. जिनसे पता चला कि महादेवी गठिया, पैर की सड़न, अल्सरयुक्त घावों और बढ़े हुए नाखूनों से पीड़ित थीं. उसमें मानसिक परेशानी के लक्षण भी दिखाई दे रहे थे, जिसमें बार-बार सिर हिलाना भी शामिल था.  

कोल्हापुर के एक जैन मठ, स्वस्तिश्री जिनसेन भट्टारक पट्टाचार्य महास्वामी संस्था ने इसे चुनौती दी. लेकिन कोर्ट ने मठ की याचिका खारिज कर दी. साल 1992 से महादेवी इसी मठ के संरक्षण में रह रही थी. 

इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई को बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा और पुनर्वास पूरा करने के लिए दो हफ़्ते का समय दिया. अब अगली सुनवाई 11 अगस्त को होनी है. 

महाराष्ट्र में विरोध, मार्च और जियो बॉयकॉट का ट्रेंड

बॉम्बे हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद महाराष्ट्र की सियासत में उबाल आ गया. यहां लोग सड़कों पर उतर आए और हाथी महादेवी को वनतारा भेजे जाने का विरोध करने लगे. खासतौर पर जैन समुदाय के बीच खासा रोष देखने को मिल रहा है. इस बीच सोशल मीडिया पर बॉयकॉट जियो समेत अंबानी के विरोध जैसे ट्रेंड भी देखने को मिले. मालूम हो कि वनतारा का स्वामित्व अंबानी परिवार के अनंत अंबानी के पास है. 

कुछ प्रमुख हैशटैग्स इस प्रकार हैं- #Bringbackmadhuri, #JusticeForMadhuri, #MadhuriElephant, #BoycottJio, #BoycottReliance

अचानक से महादेवी के समर्थकों की बाढ़!

तीन अगस्त तक मीडिया में हर जगह महादेवी की बात हो रही थी और जियो एवं अंबानी परिवार का विरोध चल रहा था. लेकिन बीते 24 घंटों में सोशल मीडिया पर एक दूसरा ही प्रदर्शन  शुरू हो गया. यहां बड़े-बड़े से लेकर तमाम छुटभैय्ये ब्लूटिकधारी महादेवी को वनतारा भेजने का समर्थन करते दिखने लगे. दिलचस्प बात ये है कि समर्थकों में लेफ्ट से लेकर राइट और सेंटर से लेकर पत्रकार तक तमाम सो कॉल्ड सोशल मीडिया एंफ्लुएंसर शामिल हैं. इस ट्रेंड की पड़ताल में एक बात काफी कॉमन दिखी, और यह एक सवाल को भी जन्म दे रही है कि क्या ये लोग वास्तव में जंतुप्रेमी या हाथी प्रेमी हैं, या फिर कहीं और से इनकी डोर खींची जा रही है?

इस आशंका की वजह ये है कि इन लोगों की भाषा तो एक जैसी है ही साथ ही समर्थन में ट्वीट किए जा रहे वीडियो भी एक ही है. खैर, वजह जो भी हो आइए इस ट्रेंड पर एक नज़र डालते हैं. 

महादेवी को वनतारा भेजने का समर्थन करने वालों की भाषा लगभग एक जैसी है. जैसे उदाहरण के लिए सबने लगभग यही लिखा है- 

"महादेवी ने 33 साल ज़ंजीरों के बंधन में बिताए हैं. अब वनतारा में वह आज़ाद है, सुरक्षित है, और पहली बार सही देखभाल पा रही है."

राजेश साहू दैनिक भास्कर के पत्रकार का ट्वीट, “महादेवी उर्फ माधुरी हथिनी को जानते ही होंगे. 33 साल तक जंजीरों में जकड़ी रही. लेकिन अब वन्तारा में खुली हवा में सांस ले रही. जानवरों का सम्मान यही है कि उन्हें जंजीरों से अलग रखा जाए. वन्तारा में माधुरी चैन से है.”

खुद को समाजवादी और पत्रकार कहने वाले जैकी यादव का ट्वीट- “महादेवी को लेकर महाराष्ट्र में सियासत गरमाई हुई है, लेकिन लोगों को समझना चाहिए कि जिस महादेवी ने अपने जीवन के 33 साल ज़ंजीरों में और दर्द में बिताए हों, अब वनतारा ने उसे सहारा दिया है, वह यहां आज़ाद है, सुरक्षित है, सही देखभाल पा रही है. वनतारा कोई बंदीगृह तो है नहीं यह तो एक आश्रय है. वनतारा में अधिकतर जानवर वह हैं जो अपनी वृद्धावस्था में हैं, जिन्हें विशेष देखभाल की ज़रूरत है, वनतारा उन्हें वह सब दे रहा है जिसके यह असहाय जानवर हकदार हैं.” 

निगार परवीन का ट्वीट, “महादेवी (माधुरी) ने 33 साल ज़ंजीरों में बिताए दर्द, दुर्व्यवहार और घावों के साथ अब वह आज़ाद है, सुरक्षित है हालाँकि कुछ लोग इसका विरोध भी कर रहे हैं !” 

पुनीत कुमार सिंह पत्रकार का ट्वीट, “उस हथिनी के बारे में आपको पता ही होगा जो कोर्ट के आदेश के बाद अब वंतारा भेजी जा रही है. कुछ लोग भावुक होकर इसे ग़लत कह रहे हैं और कुछ सही कह रहे हैं.  महादेवी (माधुरी) ने 33 साल ज़ंजीरों के बंधन में बिताए हैं. मंदिर में पूजा के समय भीड़भाड़ में रखा गया.. किसी भी जानवर को ये सब भला पसन्द होता है क्या?  अब वंतारा में वह आज़ाद है, सुरक्षित है, और पहली बार सही देखभाल पा रही है. ये बात भी सच है.  कुछ लोग इसे यह बंदीगृह कहते हैं तो कुछ इसे जंगल रूपी एक सही आश्रय. यहाँ ज़्यादातर जानवर बूढ़े, घायल या असहाय हैं, जो जंगल में बहुत दिनों तक सर्वाइव नहीं कर सकते. वंतारा एक चिड़ियाघर नहीं बल्कि वनाश्रय है जिसमें डॉक्टर्स आदि की व्यवस्था होती है, अच्छे खानपान की भी.  उस हथिनी से लोगों का इतना लगाव था कि लोग और हथिनी दोनों ही रो पड़े थे अलग होते समय.. लेकिन आगे का भविष्य उसका मुश्किल हो जाता इसलिये ये जीवाश्रय ठीक है उसके लिये.”

खुद को तेजस्वी का सिपाही बताने वाले प्रतीक पटेल का ट्वीट, हथिनी महादेवी को लेकर आज हर जगह बात हो रही है, महाराष्ट्र की सियासत में ये एक चर्चा का विषय बना हुआ है. महादेवी ने अपने जीवन के 33 साल जंजीरों में बिताए हैं. इन सालों में जो हथिनी महादेवी ने जो सहा है वो कल्पना से पड़े है. अब वो वनतारा में शिफ्ट कर दी गई है. जहां वो आजाद है. सुरक्षित है. उसका देखभाल हो रहा है. यह कैद नहीं करुणा है. यहां हर पशु को वह सम्मान मिल रहा है जिसके वो हकदार हैं.” 

आपने गौर किया हो तो पत्रकारों से लेकर तमाम तरह की राजनीति का समर्थन करने वाले लगभग एक ही भाषा और टोन में ट्वीट कर रहे हैं. सब हाथी महादेवी के 33 सालों के बंधन और संघर्ष पर जोर देते हुए उसे वनतारा में ही रखे जाने की मांग कर रहे हैं. ऐसे में ये सवाल उठता है कि क्या ऐसा ये सब अपने आप कर रहे हैं या फिर किसी के कहने पर ऐसा किया जा रहा है. इतिहास बताता है कि ऐसा ही ट्रेंड अनंत अंबानी की शादी के वक्त भी देखने को मिला था. तब एक इंस्ट्राग्राम इंफ्लुएंसर ने इस बात का खुलासा किया था कि उसे लाखों रुपये ऑफर हुए थे और बदले में उसे चर्चा करनी थी कि कैसे अंबानी की शादी भारतीय अर्थव्यवस्था में उछाल लाएगी.  

क्या कहता है कानून?

भारत में हाथियों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I के तहत कानूनी सुरक्षा प्राप्त है. इसके तहत हाथियों के शिकार और व्यापार पर पूर्णतः प्रतिबंध है. इन्हें राष्ट्रीय धरोहर पशु के रूप में भी मान्यता दी गई है.  हालांकि, देशभर में हाथी अभयारण्य बनाए गए हैं, लेकिन इन संरक्षित क्षेत्रों को अब तक कोई विशिष्ट कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है. नतीजा हाथियों के आवास क्षेत्रों में निरंतर गिरावट जैसी समस्याएं बनी हुई हैं, जिससे उनकी सुरक्षा के प्रयासों को गंभीर चुनौती मिलती है. 

महादेवी का मामला भी इसी चुनौती को दर्शाता है.

क्या है वनतारा?

वेबसाइट के मुताबिक, गुजरात के जामनगर स्थित वनतारा वन्यजीवों के संरक्षण का एक प्रयास है. यहां लिखा है, “वनतारा एक विश्वस्तरीय वन्यजीव बचाव और संरक्षण पहल है, जो संकटग्रस्त प्रजातियों की रक्षा और प्राकृतिक आवासों के पुनर्निर्माण के लिए समर्पित है. अत्याधुनिक पशु चिकित्सा सेवाओं और सतत संरक्षण प्रयासों के माध्यम से, हम बचाए गए जानवरों को एक सुरक्षित आश्रय प्रदान करते हैं, जहां वे स्वस्थ होकर फल-फूल सकें.”

हालांकि, जब हाथी माधुरी (महादेवी) का विवाद बढ़ा और आरोप लगने लगे तो वनतारा की ओर से स्पष्टीकरण आया. साथ ही वनतारा से एक वीडियो भी जारी किया गया. जिसमें कहा गया, "वनतारा में अब वह हर दिन को गरिमा के साथ जी रही है. उसे हल्की-फुल्की गतिविधियों, संतुलित और पोषक आहार, विशेषज्ञों की देखरेख और लगातार उपचारात्मक सहयोग मिल रहा है." 

हालांकि, वनतारा को लेकर भी समय-समय पर सवाल उठते रहते हैं कि क्या ये वाकई कोई संरक्षण अभियान है या फिर किसी दौलतमंद का निजी चिड़ियाघर. खासतौर पर तब जब इसके बारे में छपी मीडिया रिपोर्ट्स का या तो कंटेंट बदल जाता है या फिर अचानक से गायब हो जाती हैं. इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए न्यूज़लॉन्ड्री की ये रिपोर्ट पढ़िए. 

वनतारा पर हमारी रिपोर्ट्स पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.  

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