गाज़ा में विदेशी पत्रकारों को तुरंत और बिना रोक-टोक प्रवेश देने की मांग

100 से अधिक मशहूर पत्रकारों और युद्ध संवाददाताओं ने एक साझा बयान जारी कर ये मांग की है. 

गाजा पर हवाई हमले को कवर करते पत्रकारों के छायाचित्र.

दुनियाभर के 100 से अधिक पत्रकारों ने एक याचिका पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें गाज़ा पट्टी में ‘तत्काल और बिना निगरानी के विदेशी प्रेस को प्रवेश’ देने की मांग की गई है.

इस याचिका पर हस्ताक्षर करने वालों में मशहूर पत्रकार और युद्ध संवाददाता शामिल हैं. जैसे प्रसारक मेहदी हसन, सीएनएन की क्रिस्टियाना अमनपोर और क्लैरिसा वॉर्ड, युद्ध फोटोग्राफर डॉन मैक्कुलिन, और स्काई न्यूज़ की एलेक्स क्रॉफर्ड.

यह अपील 'फ्रीडम टू रिपोर्ट' नामक पहल का हिस्सा है, जिसमें चेतावनी दी गई है कि यदि संघर्षरत पक्षों ने कार्रवाई नहीं की, तो पत्रकार 'किसी भी वैध माध्यम से, स्वतंत्र रूप से, सामूहिक रूप से या मानवीय अथवा नागरिक समाज के संगठनों के साथ मिलकर गाज़ा में प्रवेश कर सकते हैं.'

याचिका में कहा गया है, 'विदेशी पत्रकारों के लिए बिना रोक-टोक और स्वतंत्र पहुंच तत्काल आवश्यक है, न केवल इस युद्ध के अत्याचारों को दस्तावेज़ करने के लिए, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि युद्ध की सच्चाई केवल वे लोग न तय करें जिनके पास हथियार और नैरेटिव की ताक़त है. गाज़ा इस समय सबसे ज़्यादा ज़रूरी मामला है, लेकिन यह पत्रकारों की आवाज़ दबाने और प्रेस की स्वतंत्रता को कुचलने की एक व्यापक और खतरनाक प्रवृत्ति को दर्शाता है. गाज़ा में प्रेस की पहुंच की रक्षा करना, वैश्विक स्तर पर पत्रकारिता की स्वतंत्रता की रक्षा करना है.'

वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थान गाज़ा के भीतर रिपोर्टिंग के लिए स्थानीय फ़लस्तीनी पत्रकारों और मानवीय कार्यकर्ताओं पर निर्भर हैं. लेकिन इस संघर्ष में अब तक लगभग 200 पत्रकारों की जान जा चुकी है. जिनमें अधिकांश फ़लस्तीनी थे, जिससे यह पत्रकारों के लिए अब तक का सबसे घातक युद्ध बन चुका है.

पिछले महीने, एसोसिएटेड प्रेस, एएफ़पी, बीबीसी न्यूज़ और रायटर्स ने एक संयुक्त बयान में कहा था कि उनके गाज़ा स्थित पत्रकार न केवल जानलेवा परिस्थितियों में काम कर रहे हैं, बल्कि अपने परिवारों के लिए भोजन जुटाने में भी संघर्ष कर रहे हैं.

'फ्रीडम टू रिपोर्ट' याचिका में तत्काल पहुंच की मांग के अलावा, सभी पक्षों से अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत पत्रकारों की सुरक्षित स्थिति का सम्मान करने और सरकारों तथा प्रेस स्वतंत्रता निकायों से तत्काल कार्रवाई करने की अपील की गई है.

भूखमरी संकट

23 जुलाई को, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के प्रमुख ने गाज़ा में हालात को 'मानव निर्मित सामूहिक भुखमरी' करार दिया. उन्होंने इसके लिए इस्राइली नाकेबंदी को ज़िम्मेदार ठहराया, जिसके कारण मानवीय सहायता रुकी हुई है.

पिछले हफ्ते, अमेरिका के मध्य पूर्व मामलों के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ़ ने गाज़ा में एक विवादित अमेरिकी समर्थित राहत वितरण स्थल का दौरा किया. यह उन तीन स्थलों में से एक है, जहां हाल के हफ्तों में सैकड़ों फ़लस्तीनी भोजन पाने की कोशिश में मारे गए हैं, जैसा कि सीएनएन ने रिपोर्ट किया.

विटकॉफ़ ने कहा कि उन्होंने वहां पांच घंटे बिताकर मानवीय संकट का आकलन किया और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को इस बारे में जानकारी दी. इस सप्ताह की शुरुआत में ट्रंप ने स्वीकार किया कि गाज़ा में 'वास्तव में भुखमरी' है, जो कि इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के इस दावे के विपरीत है कि गाज़ा में खाद्य संकट नहीं है.

अब तक 59,000 फ़लस्तीनियों की मौत

7 अक्टूबर 2023 से इस्राइली सेना गाज़ा पर अपना हमला जारी रखे हुए है और अंतरराष्ट्रीय युद्धविराम की अपीलों को नज़रअंदाज़ कर रही है. अब तक 59,000 से अधिक फ़लस्तीनी मारे जा चुके हैं, जिनमें अधिकांश महिलाएं और बच्चे हैं.

पिछले नवंबर में, अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) ने गाज़ा में युद्ध अपराधों और मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए इस्राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू और तत्कालीन रक्षा मंत्री योआव गैलांट के खिलाफ गिरफ़्तारी वारंट जारी किए थे.

इसके अतिरिक्त, इस्राइल के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में नरसंहार का मामला भी चल रहा है.

जुलाई में, हारेत्ज़ अख़बार ने मेडिकल सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट किया कि गाज़ा में अकाल के लक्षण महामारी का रूप ले चुके हैं. सैकड़ों लोग थकावट, कुपोषण और याददाश्त खोने जैसी तकलीफों से जूझ रहे हैं, जो लंबे समय तक भुखमरी के लक्षण हैं.

डॉ सुहैब अल-हम्स, जो अल-मवासी मानवीय क्षेत्र में फील्ड अस्पताल के निदेशक हैं, उन्होंने चेतावनी दी कि विस्थापित लोगों में अंग विफलता के कारण 'मौत की लहर' आ सकती है. 

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