ईडी का बढ़ता डर और घटती सजा की दर

राज्यसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के मुताबिक, प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दायर कुल 5892 मामलों में मात्र 8 मामलों में ही दोषसिद्धि हो पाई है. 

WrittenBy:विकास जांगड़ा
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फाइलों के ढेर के बीच प्रवर्तन निदेशालय की तस्वीर.

भारत में आर्थिक अपराधों की जांच के लिए गठित प्रवर्तन निदेशालय यानि ईडी हाल के वर्षों में अपने तेज़ी से बढ़ते दायरे और कार्रवाइयों के कारण चर्चा में रहा है. विशेष रूप से मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत मामलों की संख्या में भारी वृद्धि दर्ज की गई है. जब इन मामलों की कानूनी परिणति, दोषसिद्धि दर (कन्विक्शन रेट) और न्यायिक टिप्पणियों का विश्लेषण किया जाता है तो तस्वीर कई परतों में सामने आती है.

ईडी पर जहां एक ओर राजनेताओं के खिलाफ कार्रवाई को लेकर राजनीतिक पक्षपात के आरोप लगे हैं, वहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल के दिनों में एजेंसी की कार्यशैली पर सख्त टिप्पणी की है. 

इस रिपोर्ट में हम ईडी के पिछले एक दशक के प्रदर्शन, राजनेताओं के खिलाफ दर्ज मामलों, लंबित जांचों, कन्विक्शन रेट और न्यायिक समीक्षा के विविध पहलुओं का तथ्यात्मक विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं.

10 साल करीब 6,000 केस, लेकिन परिणाम सिर्फ 15? 

वित्त मंत्रालय द्वारा राज्यसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, 1 जनवरी 2015 से 30 जून 2025 के बीच ईडी ने 5892 मामलों की जांच शुरू की. इनमें से 1398 मामलों में अभियोजन शिकायतें (प्रोसिक्यूशन कंपलेंट्स) दाखिल की गईं, जिनमें 353 पूरक शिकायतें थीं. लेकिन अब तक केवल 300 मामलों में ही आरोप तय हो सके हैं और 15 व्यक्तियों को दोषी ठहराया गया है, जबकि केवल 8 मामलों में सजा संभव हुई है. यह डेटा बताता है कि कुल मामलों की तुलना में अपराध सिद्ध होने की दर सिर्फ 0.25% है.

इसके अतिरिक्त, सिर्फ 49 मामलों में ईडी ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की है यानी जहां उसे कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिले.

प्रवर्तन निदेशालयों का संक्षिप्त विवरण.

राजनेताओं पर दर्ज मामले: संख्या ज्यादा, सजा नहीं के बराबर

इससे पहले राज्यसभा में बीते साल 6 अगस्त को पूछे गए प्रश्न के जवाब में बताया गया कि ईडी ने 2019 से 31 जुलाई 2024 तक राजनीतिक नेताओं (सांसद, विधायक, पार्षद, आदि) के खिलाफ 132 मामलों में ईसीआईआर दर्ज की. यह रिपोर्ट ईडी द्वारा तब तैयार की जाती है जब उसे यह संदेह हो कि मनी लॉन्ड्रिंग की किसी गतिविधि से संबंधित अपराध हुआ है. यह एफआईआर के समकक्ष होती है, लेकिन इसे आमतौर पर सार्वजनिक नहीं किया जाता.

राज्यसभा में जानकारी दी गई कि इन 132 में से सिर्फ 5 मामलों में ट्रायल पूरा हुआ और सिर्फ 1 मामले में दोष सिद्ध हुआ. इसका अर्थ है कि नेताओं से जुड़े मामलों में ट्रायल पूरी होने की दर 3.78%, और कन्विक्शन रेट मात्र 0.76% रही है.

ईडी प्रमुख का बयान: 93.6% कन्विक्शन रेट

हाल ही में 'ईडी दिवस' पर आयोजित कार्यक्रम में ईडी के निदेशक राहुल नवीन ने दावा किया कि ईडी की कन्विक्शन रेट 93 फीसदी से ज्यादा है. उन्होंने कहा, “अब तक जिन 47 मामलों में ट्रायल पूरी हुई है, उनमें से 44 मामलों में दोषसिद्धि हुई है और सिर्फ 3 में बरी किया गया है. यानी एजेंसी की कन्विक्शन रेट 93.6% है.”

गौरतलब है कि यह आंकड़ा केवल उन्हीं मामलों पर आधारित है, जिनका ट्रायल पूरी तरह अदालत में समाप्त हो चुका है न कि सभी दर्ज मामलों पर. जबकि ईडी द्वारा बीते 10 सालों में दर्ज 5892 मामलों में से केवल 47 का ट्रायल पूरा हुआ है.

उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि कई मामलों में जांच बहुत लंबी खिंच रही है और 2025 में ईडी का एक प्राथमिक लक्ष्य लंबित जांचों को पूरा कर फाइनल चार्जशीट दाखिल करना होगा.

नवीन ने इसी कार्यक्रम में आगे कहा, “पीएमएलए कानून 2005 में लागू तो हुआ था, लेकिन 2014 से पहले तक यह कानून काफी हद तक अप्रभावी था. हर साल 200 से भी कम केस दर्ज होते थे और वे भी मुख्यतः नशीले पदार्थों से संबंधित होते थे. 2014 के बाद ईडी की गतिविधियों में उल्लेखनीय तेजी आई है. 2014 से 2024 के बीच पीएमएलए के तहत कुल 5,113 नई जांचें शुरू की गईं, यानी औसतन हर साल 500 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं.”

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणियां

ईडी को लेकर समय-समय पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी सवाल उठते रहते हैं. 22 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने तमिलनाडु के राज्य-नियंत्रित शराब रिटेलर TASMAC (द तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड) पर चल रही मनी लॉन्ड्रिंग जांच पर ईडी की आलोचना करते हुए जांच पर रोक लगा दी. मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “ईडी अपनी सारी सीमाएं लांघ रही है… यह संघीय ढांचे का उल्लंघन कर रही है.”

तमिलनाडु सरकार और TASMAC ने ईडी की छापेमारी को चुनौती देते हुए अदालत में याचिका दाखिल की थी. 

इससे पहले 11 अप्रैल 2025 को, न्यायमूर्ति ए.एस. ओका की अध्यक्षता वाली एक अन्य पीठ ने छत्तीसगढ़ के "नागर‍िक आपूर्ति निगम" घोटाले को दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग पर भी ईडी को फटकार लगाई थी. अदालत ने कहा था, "ईडी को यह भी सोचना चाहिए कि आरोपी के मौलिक अधिकार भी हैं."

ये टिप्पणियां ईडी की निष्पक्षता और प्रक्रिया को लेकर न्यायपालिका की चिंताओं को उजागर करती हैं. 

राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल!

ईडी पर विपक्षी दलों द्वारा बार-बार यह आरोप लगाया गया है कि एजेंसी का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है. हाल के वर्षों में झारखंड, महाराष्ट्र, दिल्ली, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में विपक्षी नेताओं पर की गई कार्रवाइयां इस बहस को और तेज करती हैं. हालांकि, ईडी का यह भी तर्क रहा है कि वह केवल वित्तीय अपराधों की जांच कर रही है और कार्रवाई किसी की राजनीतिक पहचान के आधार पर नहीं होती.

सक्रियता अधिक, परिणाम सीमित

जहां एक ओर एजेंसी यह दावा कर रही है कि वह जिन मामलों को अंतिम रूप से अदालत तक ले जाती है, वहां उसकी सफलता उल्लेखनीय है, वहीं आंकड़े यह भी दर्शाते हैं कि ट्रायल तक पहुंचने वाले मामलों की संख्या बेहद सीमित है.

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