एक्सक्लूसिव: ई-वेस्ट रीसाइक्लिंग का फर्जीवाड़ा- कागज़ पर सफाई, ज़मीन पर सफाया

न्यूज़लॉन्ड्री की पड़ताल में पता चला है कि 75% रीसाइक्लिंग प्लांट या तो मौजूद ही नहीं हैं या बस नाम मात्र को चल रहे हैं. बड़े ब्रांड अप्रत्यक्ष रूप से करोड़ों की बचत कर रहे हैं.

नकदी से भरा डिब्बा लेकर भागते हुए चोर का चित्रण.

आपके पुराने फोन या फ्रिज का इस्तेमाल पूरा होने के बाद क्या होता है? हो सकता है आपने उसे बेच दिया हो, किसी और को दे दिया हो, या हो सकता है कि वह बस धूल फांक रहा हो. जब वो आखिरकार खराब हो जाता है, तो आप उम्मीद करते हैं कि उसे जिम्मेदारी से रीसायकल किया जाएगा: उसके विषैले हिस्से हटा दिए जाएंगे, ताकि पर्यावरण या मानव स्वास्थ्य को कोई नुकसान न हो. लेकिन असल में ऐसा नहीं हो रहा है.

न्यूज़लॉन्ड्री ने चार राज्यों में सरकार द्वारा अनुमोदित 41 ई-कचरा रीसाइक्लिंग संयंत्रों की पड़ताल में पाया है कि इनमें से 75 प्रतिशत यानी 31 संयंत्र या तो मौजूद ही नहीं हैं, या फिर बस नाम मात्र को चल रहे हैं.

जैसे कि उदाहरण के लिए कुछ मामले देखें- 

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में, तीन संयंत्र अपने पते पर नहीं मिले. लेकिन आधिकारिक तौर पर केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा दो बार उनका "निरीक्षण" और "अनुमोदन" किया जा चुका है. लगभग 50 किलोमीटर दूर मेरठ में 15 संयंत्रों के एक औद्योगिक समूह में औद्योगिक गतिविधि का कोई संकेत नहीं है. चिमनियां खामोश हैं. थोड़े बहुत मजदूर ही दिखाई दे रहे हैं.

पड़ोसी राज्य हरियाणा में दो संयंत्र- ऑटो कंपोनेंट और बस बॉडी फ्रेम बनाते हैं जबकि एक अन्य संयंत्र रीसाइक्लिंग के नाम पर केवल ट्रक चला रहा है. उत्तराखंड में एक चौथे संयंत्र को अपने बुनियादी ढांचे की क्षमता से कहीं अधिक रीसाइक्लिंग के लिए सरकार की मंजूरी मिल गई है.

कागजों में ये 31 संयंत्र लाखों मीट्रिक टन ई-कचरे की रीसाइक्लिंग कर रहे हैं, जिससे वे व्यापार में इस्तेमाल होने वाले विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व यानि ईपीआर क्रेडिट के पात्र बन जाते हैं.

ये कार्बन क्रेडिट के जैसा ही है, लेकिन कचरा प्रबंधन पर केंद्रित है. ये क्रेडिट संयंत्रों को तब दिए जाते हैं जब वे केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को अपने कामों के दस्तावेज़, चालान और तस्वीरें जमा करके वास्तविक रीसाइक्लिंग की घोषणा करते हैं. सैकड़ों करोड़ रुपये मूल्य के ये ईपीआर क्रेडिट, रीसाइक्लर द्वारा इलेक्ट्रॉनिक ब्रांडों को बेचे जाते हैं ताकि उन्हें कानूनी रूप से अनिवार्य रीसाइक्लिंग लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिल सके.

कुल मिलाकर प्रति वर्ष 8.49 लाख मीट्रिक टन तक रीसाइक्लिंग करने के लिए अधिकृत इन 24 कंपनियों द्वारा संचालित ये 31 संयंत्र, सीपीसीबी के माध्यम से 1,800 करोड़ रुपये से ज्यादा कीमत के ईपीआर क्रेडिट कमा सकते हैं.

इन संयंत्रों को चलाने वाली कंपनियों ने शीर्ष इलेक्ट्रॉनिक्स ब्रांडों को ईपीआर क्रेडिट बेचे हैं. खरीदारों में एलजी, सैमसंग, कैरियर, हिताची-जॉनसन कंट्रोल्स, हैवेल्स और डाइकिन जैसे शीर्ष के नाम शामिल थे.

ये लेन-देन अक्सर औपचारिक रीसाइक्लिंग की लागत या सरकारी न्यूनतम मूल्य निर्धारण की तुलना में आश्चर्यजनक रूप से कहीं ज्यादा सस्ते होते थे.

केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से लगभग नदारद या घालमेल भरा निरीक्षण ही इस ढकी-छिपी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे रहा है.

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यह भारत के ई-कचरे के अंडरवर्ल्ड पर न्यूज़लॉन्ड्री की खोजी श्रृंखला का पूर्वावलोकन है, जो कॉर्पोरेट भ्रष्टाचार, नियामक विफलता और इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माताओं के संदिग्ध लाभों को उजागर करेगी. इस जांच को पूरा करने के लिए, न्यूज़लॉन्ड्री ने जमीनी सत्यापन, कॉर्पोरेट और न्यायिक फाइलिंग, आंतरिक रिकॉर्ड और सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सरकार के जवाबों का सहारा लिया है.

न्यूज़लॉन्ड्री ने कुल 41 रीसाइक्लिंग सुविधाओं का पता लगाने के लिए उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड और राजस्थान के 10 शहरों का दौरा किया. इनमें से केवल दो का संचालन वैध था, जबकि आठ की वैधता, दस्तावेजों के अभाव या उन तक न पहुंच पाने की वजह से पता नहीं चल सकी.

बाकी 31 संयंत्र कागजों पर, हापुड़, बुलंदशहर और रुड़की के औद्योगिक केंद्रों, कृषि क्षेत्रों के आसपास या प्रमुख राजमार्गों के किनारे फैले हुए थे. ज्यादातर मध्यम से बड़े आकार के थे, जिनकी क्षमता 10,000 मीट्रिक टन से लेकर 1,00,000 मीट्रिक टन प्रति वर्ष तक थी. बुलंदशहर का पेगासस एनवायरनमेंट एलएलपी (1.29 लाख मीट्रिक टन), रुड़की की एटमॉस रीसाइक्लिंग प्राइवेट लिमिटेड (1.2 लाख मीट्रिक टन), अलवर की ग्रीनस्केप इको मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड (1.16 लाख मीट्रिक टन) और गुड़गांव की इकोवरवा ई-वेस्ट रीसाइक्लिंग प्राइवेट लिमिटेड (98,805 मीट्रिक टन) इनमें सबसे बड़े थे.

ये 31 प्लांट औपचारिक क्षेत्र के 85 प्रतिशत बोझ को संभाल सकते हैं और 10 अप्रैल तक CPCB पोर्टल पर पंजीकृत कुल 353 प्लांट्स में शामिल थे.

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सरकारी लक्ष्यों में कमजोर कड़ी

अगले पांच वर्षों में भारत में ई-कचरा उत्पादन दोगुना होने का अनुमान है. इससे पर्यावरण और लोगों के लिए जोखिम बढ़ने की आशंका है- खासकर तब, जब औपचारिक रीसाइक्लिंग की वास्तविक मात्रा सरकारी दावों से कम है, जैसा कि इस रिपोर्ट में ऊपर उल्लिखित संयंत्रों में देखा जा सकता है.

ये इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि नरेंद्र मोदी सरकार एक चक्रीय अर्थव्यवस्था के लिए औपचारिक क्षेत्र पर भरोसा कर रही है, जिसके तहत रीसायकल की गई सामग्री को बाजार में लाया जाता है, जिससे देश की दुर्लभ मृदा खनिजों (रेयर अर्थ मिनरल्स) के आयात पर निर्भरता कम होती है.  संसद में साझा किए गए सीपीसीबी के एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2024-25 में उत्पादकों द्वारा उत्पन्न 1.4 लाख मीट्रिक टन ई-वेस्ट में से लगभग 70 प्रतिशत औपचारिक क्षेत्र द्वारा रीसायकल किया गया. 

कई संयंत्रों के जाली संचालन को देखते हुए एक चक्रीय अर्थव्यवस्था के सपने की उम्मीदों पर पानी फिरता रहेगा.

सरकार द्वारा फर्मों के लिए मानक अनिवार्य किए जाने के बावजूद, रीसाइक्लिंग एक कमजोर कड़ी बना हुआ है. साल 2022 से ई-कचरा प्रबंधन नियमों के तहत, इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों को हर साल बाजार में आने वाले ई-कचरे के आधार पर वार्षिक रीसाइक्लिंग लक्ष्य दिए जाते हैं, इसे ईपीआर दायित्व कहा जाता है.

ये लक्ष्य संभवतः सिर्फ कागज़ों पर ही पूरे किए जा रहे हैं- या तो निगरानी की ढिलाई के कारण, या फिर इसलिए क्योंकि रीसाइक्लर्स शुरुआत के स्तर पर ही नियमों के साथ खेल कर रहे हैं. वे सीपीसीबी के नियमों में मौजूद आत्म-घोषणा (सेल्फ डिक्लेरेशन) की प्रक्रिया का फायदा उठाकर ईपीआर क्रेडिट्स कमा रहे हैं. 

कई राज्यों में संदिग्ध संयंत्र

31 संदिग्ध संयंत्रों में से सात या तो मौजूद ही नहीं हैं, या स्थायी रूप से बंद हैं.

इन सात में से दो का मालिकाना हक़ बुलंदशहर स्थित पेगासस एनवायरनमेंट एलएलपी के पास है. जिन्होंने उत्तर प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनुमति से कागजों पर अपनी रीसाइक्लिंग क्षमता बढ़ा दी है.

बाकी संयंत्र संदिग्ध लगने वाले कामों में लगे हुए हैं.

उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश और हरियाणा की पांच फैक्ट्रियां दिखने में ट्रांसपोर्ट या ट्रक चलाने वाले प्लांट जैसी लगती हैं. 

आम तौर पर रीसाइक्लिंग फैक्ट्रियों में ट्रक दो कामों के लिए इस्तेमाल होते हैं — एक, ई-वेस्ट इकट्ठा करने के लिए और दूसरा, प्रोसेस किए गए मटीरियल को बिक्री के लिए पहुंचाने के लिए. इसमें लंबी दूरी तय करनी पड़ती है. लेकिन इन राज्यों में इन संयंत्रों के दौरे के दौरान, न्यूज़लॉन्ड्री को उनके परिसरों और एक किलोमीटर के दायरे में स्थित धर्मकांटों के बीच ट्रकों के आने-जाने के अलावा कोई प्रत्यक्ष संचालन दिखाई नहीं दिया. इन संयंत्रों में ई-कचरा काटने या टुकड़े करने वाले कोई मजदूर नहीं थे, दूर-दराज के इलाकों से कोई वाहन भी नहीं आया था. कर्मचारी या तो गेट पर ट्रकों और सामान की तस्वीरें लेते या फिर सामान चढ़ाते-उतारते देखे गए. बिना किसी प्रत्यक्ष रीसाइक्लिंग के ट्रकों की इस आवाजाही से ये सवाल उठता है कि क्या ये संयंत्र सीपीसीबी पोर्टल पर नकली तस्वीरें और चालान अपलोड कर रहे थे? लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री को पता चला है कि सीपीसीबी ने इन संयंत्रों के लिए ईपीआर क्रेडिट तैयार किए हैं.

राजस्थान में, ग्रीनस्केप इको मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड द्वारा संचालित अलवर स्थित एक संयंत्र, रीसायकल हुई सामग्री (जिसे बेचा जाना है) की गिनती करके अपने स्रोत से प्राप्त ई-कचरे की मात्रा को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा रहा है. इस तरह की गड़बड़ी को छिपाने के लिए, इस संयंत्र में आने वाले ट्रकों में प्रसंस्कृत ई-कचरा के ऊपर फेंके गए एसी, रेफ्रिजरेटर और वाशिंग मशीन जैसे ई-कचरे की एक परत चढ़ी होती है.

नियामकीय अनदेखी और ईपीआर दरें

ई-कचरा प्रबंधन नियम, 2022 के तहत, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों या थर्ड पार्टी एजेंसियों के माध्यम से समय-समय पर रीसायकल करने वालों का ऑडिट और औचक निरीक्षण करने का अधिकार है. लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री की जांच से पता चलता है कि सरकारी निरीक्षण या तो अनुपस्थित है, या उसमें कुछ घालमेल है.

इस महीने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में दायर एक हलफनामे में, हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कहा कि उसने राज्य के सभी रीसाइक्लिंग संयंत्रों का निरीक्षण किया है और उन्हें नियमों का पालन करते पाया है. दिलचस्प बात ये है कि गुरुग्राम स्थित ईकोवरवा ई-वेस्ट रीसाइक्लिंग प्राइवेट लिमिटेड के तीन संयंत्र, जिनमें से दो स्थायी रूप से बंद हैं, राज्यव्यापी निरीक्षण का हिस्सा नहीं रहे हैं. रोहतक में एंडेवर रिसाइक्लर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड द्वारा संचालित एक अन्य बंद पड़े संयंत्र का निरीक्षण, आखिरी बार तीन साल पहले किया गया था.

राजस्थान और उत्तर प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों ने भी इसी तरह की याचिकाएं दायर कीं, लेकिन यह नहीं बताया कि क्या उन्हें अपने अधिकार क्षेत्र में कोई पंजीकृत संस्थान ऐसा भी मिला, जो नियमों का पालन न कर रहा हो.

कमज़ोर निगरानी से टॉप इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों को परोक्ष रूप से फायदा मिला है। कैसे? इससे वे असली रीसाइक्लरों की तुलना में काफी सस्ते दामों पर EPR क्रेडिट्स खरीद सकती हैं. 

रीसाइक्लिंग उद्योग निकायों मैटेरियल रीसाइक्लिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया और रीसाइक्लिंग एंड एनवायरमेंट इंडस्ट्री एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने सीपीसीबी को बार-बार सूचित किया है कि संदिग्ध आचरण वाले रीसाइक्लर्स ईपीआर क्रेडिट को कम कीमत पर बेच रहे हैं, जिससे बाजार में खरे व्यापारियों को नुकसान हो रहा है. लेकिन इन अपीलों का कोई खास असर नहीं हुआ है.

रीसाइक्लर्स को ईपीआर क्रेडिट भुगतान पर बहस के बीच ई-कचरा प्रबंधन नियमों में 2024 का संशोधन महत्वपूर्ण है. उद्योग के औपचारीकरण को बढ़ावा देने के लिए, सीपीसीबी ने पिछले साल सितंबर में ई-कचरा उत्पादकों को निर्देश दिया था कि उन्हें ईपीआर क्रेडिट के लिए रीसाइक्लर्स को ज्यादा भुगतान करना होगा. उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में, ई-कचरा उत्पादकों को कम से कम 22 रुपये प्रति किलोग्राम ई-कचरा का भुगतान करना पड़ता है. यह कीमत सरकार द्वारा दो रीसाइक्लिंग एसोसिएशनों से परामर्श के बाद तय की गई थी, जिन्होंने संग्रहण, परिवहन और रीसाइक्लिंग की लागत के आधार पर 23 रुपये प्रति किलो की सिफारिश की थी.

न्यूज़लॉन्ड्री को ऐसे उदाहरण मिले हैं, जहां प्रमुख ब्रांडों ने कुछ रीसाइक्लर्स को 6 रुपये से 8 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच भुगतान किया है. इस उद्योग के जानकारों का मानना है कि एक किलो ई-कचरे के प्रसंस्करण की चालू लागत 12 से 16 रुपये तक होती है. शीर्ष के ई-कचरा उत्पादकों में एलजी कंपनी, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए सबसे ज़्यादा 15 रुपये प्रति किलोग्राम का भुगतान करता है.

ईपीआर लेनदेन के लिए सरकार की न्यूनतम और अधिकतम सीमा से नाराज होकर प्रमुख ब्रांडों जैसे एलजी, सैमसंग, हैवेल्स, कैरियर, वोल्टास और डाइकिन ने दिल्ली हाईकोर्ट में 2024 के संशोधन को चुनौती ये कहते हुए दी है कि बाजार को ईपीआर दरें तय करनी चाहिए. ये मामला फिलहाल अदालत में विचाराधीन है.

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस रिपोर्ट में नामित सभी इलेक्ट्रॉनिक्स प्रमुख कंपनियों, रीसाइक्लर्स, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और चार राज्यों के राज्य प्रदूषण बोर्डों से संपर्क किया है. अगर वे जवाब देते हैं तो इस रिपोर्ट में उन्हें जोड़ दिया जाएगा.

मूल रूप से अंग्रेजी में प्रकाशित रिपोर्ट को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

हमारे सेना प्रोजेक्ट ‘ई-वेस्ट का अंडरवर्ल्ड’ के तहत इस अगले भाग में पढ़िए लाखों टन ई-कचरे के पुनर्चक्रण के लिए अधिकृत सात गैर-मौजूद संयंत्रों की कहानी. 

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