जन्मतिथि के जिक्र बगैर ये सवाल उठने लगा है कि चुनाव आयोग इस दस्तावेज से पहचान और उम्र कैसे तय करेगा?
बिहार में चल रहे विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान (एसआईआर) में एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है. दरअसल, चुनाव आयोग द्वारा मांगे गए 11 प्रमुख दस्तावेज़ों में से कम-से-कम 5 में आवेदक की जन्मतिथि या जन्मस्थान का कोई उल्लेख नहीं है. यह जानकारी अंग्रेजी दैनिक द हिंदू की एक रिपोर्ट से सामने आई है.
दरअसल, मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए जन्म की तिथि और स्थान का होना अनिवार्य शर्त है. लेकिन जिन दस्तावेज़ों को चुनाव आयोग ने स्वीकार किया है, उनमें जाति प्रमाण पत्र, वन अधिकार प्रमाण पत्र और निवास प्रमाण पत्र शामिल हैं. गौरतलब है कि इन दस्तावेज़ों में ये जानकारी दर्ज नहीं होती है. वहीं, आधार कार्ड, पैन कार्ड और वोटर आईडी जैसे आम पहचान-पत्रों को इस सूची से बाहर कर दिया गया है. हालांकि लोग अक्सर इन्हीं दस्तावेज़ों को पहचान के लिए प्रस्तुत करते हैं.
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि एनआरसी और पारिवारिक रजिस्टर जैसे दो अन्य मान्य दस्तावेज़ बिहार में अस्तित्व में ही नहीं हैं.
द हिंदू की ग्राउंड रिपोर्ट के अनुसार, चंपारण जिले में एक बूथ स्तर अधिकारी ने बताया कि वितरित किए गए 500 फॉर्मों में से सिर्फ 10% के साथ मान्य दस्तावेज़ संलग्न थे, बाकी लोगों ने स्कूल छोड़ने के प्रमाणपत्र या नए निवास प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया है.
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि फील्ड विज़िट और स्थानीय जांच के आधार पर अंतिम निर्णय ईआरओ द्वारा लिया जाएगा. हालांकि, विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए इसे हजारों लोगों के मतदान अधिकार पर खतरा बताया है.
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