एसी बनाने वाली कंपनी जॉनसन कंट्रोल्स-हिताची ने ई-कचरे की रीसाइक्लिंग के लिए सरकारी कीमत से काफी कम कीमत पर बोली लगाने की अनुमति दी.
एयर कंडीशनर निर्माता जॉनसन कंट्रोल्स-हिताची ने ई-कचरे के लिए सरकार द्वारा अनिवार्य न्यूनतम मूल्य से बहुत कम कीमत पर रीसाइकिलर्स को बोलियां लगाने की अनुमति दी है. ये जानकारी न्यूज़लॉन्ड्री द्वारा देखे गए आंतरिक रिकॉर्ड की प्रतियों से निकलकर सामने आई है. मालूम हो कि भारत में हिताची का मालिकाना हक़ अब बॉश समूह के पास है.
ई-कचरा नियमों के तहत, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड उपभोक्ता विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक कचरे (सीईईडब्ल्यू) की रीसाइक्लिंग के लिए 22 रुपये प्रति किलोग्राम की न्यूनतम कीमत निर्धारित करता है. लेकिन इस महीने की शुरुआत में एक डिजिटल खरीद वेबसाइट के माध्यम से रिवर्स ई-नीलामी के दौरान, इस कंपनी ने इस कीमत से बहुत कम मूल्य पर बोलियां लगाने की अनुमति दी. एक रिसाइकल करने वाले ने तो 5.9 रुपये प्रति किलोग्राम तक की कम पर कीमत बोली लगाई.
भारत में ई-कचरा (पुराने इलेक्ट्रॉनिक सामान) को रिसाइकल करने के लिए एक नियम है. इस नियम के तहत, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने तय किया है कि एक किलो ई-कचरे की न्यूनतम कीमत 22 रुपये होनी चाहिए. मतलब, कोई भी कंपनी इससे कम दाम पर ई-कचरा नहीं खरीद सकती. लेकिन इस महीने की शुरुआत में, एक डिजिटल वेबसाइट के ज़रिए जब ई-कचरे की रिवर्स ई-नीलामी (नीलामी जिसमें खरीदार बोली लगाते हैं) हुई, तो कुछ कंपनियों ने इस तय कीमत से भी बहुत कम दाम पर बोली लगाई. एक कंपनी ने तो सिर्फ 5.9 रुपये प्रति किलो की बोली लगाई, जो नियमों के खिलाफ है.
सरकारी मूल्य निर्धारण के अनुसार, हिताची कंपनी को इस चालू वित्तीय वर्ष में अपने 13,655 मीट्रिक टन ई-कचरे से जुड़ी अपनी सालाना रीसाइक्लिंग जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए रीसाइकिलर्स को कम से कम 30.04 करोड़ रुपये देने होंगे. लेकिन आंतरिक रिकॉर्ड दिखाते हैं कि इसके लिए ई-नीलामी के लिए सबसे कम कुल बोली राशि लगभग 10 करोड़ रुपये तक रही. हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि लगभग 30 मिनट तक चली इस ई-नीलामी के दौरान सबसे कम बोली क्या थी, जिसमें कम से कम 36 बोलियां आईं.
क्या जॉनसन कंट्रोल्स-हिताची ने हमेशा की तरह सबसे कम बोली स्वीकार की, जिससे करोड़ों की बचत हुई? न्यूज़लॉन्ड्री ने कंपनी को अपनी तरफ से सवाल भेजे, जिनमें उनसे समापन मूल्य और बोली लगाने वालों की कुल संख्या पूछी गई. अगर वे जवाब देते हैं तो यह रिपोर्ट अपडेट कर दी जाएगी.
दो सूत्रों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत सीपीसीबी को नियमों के इस कथित उल्लंघन के बारे में सूचित कर दिया गया है. हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई है या नहीं.
इन बोलियों का मकसद कंपनियों को उनकी रीसाइक्लिंग की जिम्मेदारी पूरी करने में मदद करना था. इसके लिए कंपनियों को विस्तारित उत्पादक जिम्मेदारी (EPR) प्रमाणपत्र दिए जाते हैं, जो कुछ हद तक कार्बन क्रेडिट की तरह काम करते हैं. हर इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाने वाली कंपनी पर ये कानूनी बाध्यता है कि वो पुराने ई-कचरे को सही तरीके से रिसाइकल करवाए. ये नियम ई-कचरा प्रबंधन नियम, 2022 के तहत लागू होता है.
इस नियम के तहत, कंपनियों को तय मात्रा में ई-कचरा रिसाइकल कराना होता है. इसे पूरा करने के लिए कंपनियां ईपीआर सर्टिफिकेट खरीदती हैं, जो उन्हें दिखाता है कि उन्होंने अपनी रिसाइकलिंग की ज़िम्मेदारी पूरी कर ली है. इसी उद्देश्य से पिछले साल सितंबर 2024 में सीपीसीबी ने ई-कचरे की सात श्रेणियों के लिए न्यूनतम और अधिकतम दाम तय किए थे.
जॉनसन कंट्रोल्स-हिताची सहित इलेक्ट्रॉनिक्स की दिग्गज कंपनियों ने पिछले साल दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी, जिसमें रीसाइकिलर्स के लिए अधिक भुगतान को चुनौती दी गई थी. उनका तर्क था कि जैसा कि सितंबर के दिशानिर्देशों तक था, बाजार को ही रीसाइक्लिंग के लिए मूल्य निर्धारण तय करना चाहिए. बाद में हिताची ने याचिका वापस ले ली. अन्य याचिकाकर्ताओं में दक्षिण कोरिया की एलजी और सैमसंग, जापान की डाइकिन, टाटा समूह की वोल्टास, हैवेल्स और ब्लू स्टार शामिल हैं. मामला अभी भी अदालत में लंबित है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने बॉश संचार विभाग से भी संपर्क किया. यदि उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया मिलती है तो इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
5.90 रुपये की बोली
6 जून को, जॉनसन कंट्रोल्स-हिताची ने अपने रीसाइक्लिंग लक्ष्यों को पूरा करने के लिए रिवर्स ई-नीलामी, एक प्रक्रिया जिसमें सबसे कम बोली लगाने वाले को ठेका मिलता है, करने के लिए एक ऑनलाइन खरीद मंच का उपयोग किया.
इस नीलामी के समाप्त होने से सात मिनट पहले, 5.9 रुपये की बोली को कोटेशन के अवरोही क्रम में 17वें स्थान पर रखा गया था, यानी कम से कम 16 और बोलियां इससे भी कम थीं. इस रिसाइक्लर की कुल बोली 10.46 करोड़ रुपये थी. जैसे-जैसे नीलामी आगे बढ़ी, 22 रुपये की बोली लगाने वाले रिसाइक्लर की रैंकिंग नीचे चली गई. शुरुआत में यह सबसे कम बोली लगाने वाले शीर्ष 10 में से एक था, लेकिन फिर शीर्ष 30 में और बाद में शीर्ष 40 में आ गया.
‘कंपनी इस दाम की उम्मीद कैसे कर सकती है?’
सीपीसीबी के चेयरमैन वीर विक्रम यादव, सदस्य सचिव भरत कुमार शर्मा और ई-वेस्ट विभागाध्यक्ष यूथिका पुरी को भेजे सवालों में न्यूज़लॉन्ड्री ने पूछा कि क्या उन्हें कंपनी के खिलाफ कोई शिकायत मिली है, और क्या कोई कार्रवाई की गई है? इस सवालों का जवाब हमें नहीं मिला.
न्यूज़लॉन्ड्री ने ई-नीलामी से जुड़े तीन रीसायकल करने वालों से बात की.
उनमें से एक ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक कचरे को रिसाइकल करने की काम चलने की ही लागत कम से कम 12 से 16 रुपये प्रति किलोग्राम है. उन्होंने कहा, “हिताची, रिसाइकल करने वालों से ये उम्मीद कैसे कर सकती है कि वे उन्हें 5-6 रुपये प्रति किलोग्राम पर ईपीआर प्रमाणपत्र बेचेंगे? यह सीपीसीबी के 22 रुपये प्रति किलोग्राम के दिशा-निर्देशों का भी उल्लंघन है.”
एक अन्य ने दावा किया कि उन्होंने नीलामी में सक्रिय रूप से हिस्सा ही नहीं लिया क्योंकि कीमत बहुत कम थी. उन्होंने कहा, “मैंने पहले ही निर्माताओं से कह दिया है कि मैं 22 रुपये से कम पर ईपीआर प्रमाणपत्र नहीं बेचूंगा, भले ही इसका नतीजा ये निकले कि कोई धंधा न हो.”
पिछले साल सितंबर में, सीपीसीबी ने न्यूनतम और अधिकतम मूल्य तय किए थे, जिस पर ईपीआर प्रमाणपत्र निर्माताओं को बेचे जा सकते थे.इन दरों में न्यूनतम मूल्य ही निर्माताओं द्वारा रीसायकल करने वालों को दिए जाने वाले दामों से ज्यादा था. उस समय सीपीसीबी ने तर्क दिया था कि रिसाइकल करने वालों को ज्यादा भुगतान करने से उन्हें प्रोत्साहन मिलेगा, और तभी ई-कचरे का वैज्ञानिक प्रसंस्करण सुनिश्चित होगा.
दिशा-निर्देशों में कहा गया है, "ईपीआर प्रमाणपत्र के लिए न्यूनतम मूल्य निर्धारित करना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह संग्रह और परिवहन नेटवर्क में निवेश को प्रोत्साहित करता है, संग्रह और रसद लागत को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाता है और रीसायकलर्स को माल की कीमतों में उतार-चढ़ाव के जोखिम से बचाता है, उनकी स्थिरता सुनिश्चित करता है और वैध रिसाइकल करने वालों को अनौपचारिक क्षेत्र के समक्ष प्रतिस्पर्धा करने में मदद करता है."
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